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Tag: कीर्ति सिंह गौड़

वो कुमकुम वाले पैर
कविता

वो कुमकुम वाले पैर

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वो कुमकुम वाले पैर, कलश गिरा कर जब आँगन में आते हैं न जाने कितनों के जीवन में वो ख़ुशियाँ ले आते हैं मेहंदी वाले हाथ जब बड़ों के पग लग जाते हैं न जाने कितनों के मन को वो हर्षित कर जाते हैं लालायित मन होता उसका भी अब ये घर मेरा होगा मायके रात आख़िरी बिता के आयी पिया के घर नया सवेरा होगा डोली में सज के आयी हूँ अर्थी में तुम ले जाना फ़र्ज़ करूँगी अपना पूरा बस तुम सच्चे साथी बन जाना। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कवित...
न जाने कब वो
कविता

न जाने कब वो

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** न जाने कब मेरी बोली सुनकर वो बोलना सीख गया। न जाने कब मेरी उँगली पकड़कर वो चलना सीख गया। उसके बचपन में, मैं अपनी ममता को जीती रही। मेरा चेहरा देखकर न जाने कब वो हँसना भी सीख गया। मेरी अमावस की रात सी ज़िंदगी में, वो चाँद की चाँदनी सा बिखरना सीख गया। न जाने कब उसका कांधा मेरे कांधे तक आ गया फिर वो अपनी ज़िदों पर मचलना भी सीख गया। कभी-कभी छुपा लेती हूँ अपने जज़्बात उससे-२ पर न जाने कब वो मेरी आँखों को पढ़ना सीख गया। जगाता था जो कभी रात भर मुझे रो-रो कर आज वो मेरी खैरियत में रातभर जागना सीख गया। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
वक़्त और मैं’
कविता

वक़्त और मैं’

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज और कल में मेरा सब बीत गया जो कभी पीछे मुझसे था वो भी मुझसे जीत गया। हार का दंश मुझे अंदर से निचोड़ रहा था मेरे सपनों का महल फिर भी आगे खड़ा था। एक पल को सोचा हार मान लूँ पर जब गुज़रे रास्ते की दूरी देखी तो लगा कि ख़ुद में थोड़ी और जान डाल दूँ। फिर शुरू किया है मैंने सफ़र एक और बार इस बार मंज़िल ख़ुद कर रही है मेरा इंतज़ार। वक़्त के इम्तिहान भी क्या लाजवाब हैं तब वक़्त की कद्र न की हमने और आज वक़्त के साथ साथ मेरे पाँव हैं। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा ...
मर्यादा
कविता

मर्यादा

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम सीता हो, इस समाज में स्थापित हर मर्यादित राम की देती रहोगी परीक्षा यहाँ हर निर्धारित काम की। प्रिय हो तुम भी अपनी सीता के बिल्कुल राम की तरह पर राम की तरह सहना भी पड़ेगा अपनी सीता से विरह। बैर उन दोनों के बीच था ही कहाँ बस किया दोनों ने वही जो समाज ने कहा। रघुकुल के स्थापित मूल्य भला समाज ने भी कहाँ माने हैं पर तुम्हें वो सारे नियम व संस्कार निभाने हैं। अछूते तो वो भी नहीं रहे जो ख़ुद मर्यादा की सूरत थे सहना पड़ा अपमान उन्हें भी जो ख़ुद ईश्वर की मूरत थे। संस्कारों की बलिबेदी पर तुम्हें ख़ुद की आहुति देना है लोगों के मन की ज़ंग लगी ज़ंजीरों में जकड़े रहना है। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वर...
वो लम्हे
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वो लम्हे

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जमा कर लूँ मैं उन लम्हातों को जो तेरे आने का पैग़ाम लाते थे। तुझसे पहले किसी से कोई वास्ता न था तेरे बाद भी किसी से कोई वास्ता नहीं। बस वो लम्हे ही हैं जो मेरी आँखों में आज भी चमक रहे हैं। बस वो लम्हे ही तो हैं जो तेरे इंतज़ार में अब भी दिल में धड़क रहे हैं। तेरे आने की आहट आज भी कानों को सुकून देती है तेरे आने की आहट जैसे फ़िज़ा में ख़ुशबुओं को घोल देती है। मरकज़ मेरे इश्क़ का तू ही तो है मुक़द्दर मेरे इश्क़ का तू ही तो है। बेपनाह तेरी मोहब्बत और शोख़ी तेरी और बेइंतिहा वो बातें तेरी। जमा कर लूँ मैं उन तमाम लम्हातों को जो तेरे आने का पैग़ाम लाते थे। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक...
वो रात
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वो रात

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वो रात न सोने वाली थी वो रात जागने वाली थी। ऊपर से बादल गरजे थे नीचे लोगों के सपने थे। चारों दिशायें गाती थी नया सवेरा लाती थीं। २०० वर्ष ग़ुलामी के कैसे हमने वो काटे थे। आख़िर वो दिन आ ही गया जब अपना भारत लगे नया। आओ इस आज़ादी को जी भर के फिर से जी लें हम। जो आज़ादी देकर चले गए उनके आँगन में खेलें हम। वीरों की इस आज़ादी पर अब पूर्ण अधिकार हमारा है। घर-घर में देखो आज सभी लहराया तिरंगा प्यारा है। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी र...
सपनों का घर
कविता

सपनों का घर

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ख़ूबसूरत ख़्वाबों की तरह वो अपना घर बसाना चाहती है वो अपने घर को ख़ुशियों से भर देना चाहती है हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। घर के प्रवेश द्वार पर हों गणपति, कोने-कोने को वो रोशनी से जगमगाना चाहती है। हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। रसोई में उसकी पसंद के बर्तन हों, खिड़की दरवाज़ों पर उसकी ही पसंद के कर्टन हों सिर्फ़ इतना ही तो वो चाहती है हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। पलंग के सिरहाने एक लैम्प रखा हो और पलंग पर पसंद का चादर बिछा हो और क्या वो चाहती है। हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। टेबल पर रखी प्लेट को फूलों से भरकर घर का कोना कोना महकाना चाहती है। हाँ वो अपना घर सजाना चाहती है। दीवारें अपनों की तस्वीरों से सजी हो उदासियों का नमोनिशां नहीं हो उन तस्वीरों में ख़ुशियों के रंग भरना चाहती है हाँ वो अ...
रूठी हुई महफ़िल
कविता

रूठी हुई महफ़िल

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक महफ़िल में तेरा इन्तज़ार करते-करते सुबह हो गई, जो नूर मेरे चेहरे पर था उस नूर से मेरे चेहरे की कलह हो गई। सितारों वाला दुपट्टा ओढ़ा था मैंने तुम्हारे लिए, वो दुपट्टा तुमसे रूठ गया और उसके सितारों की चमक भी बेज़ार हो गई। दिल में अरमान लिए तेरी ख़ातिर सज कर महफ़िल में आए थे हम, रूठ गईं मेरी चूड़ियाँ भी तुमसे और उनकी खनक कम हो गई। मैंने वही पायल पहनी थी जो तुमने मुझे तोहफ़े में दी थी, छम-छम करना भूल गईं वो भी और उदास हो गईं। आँखों में काजल डाल बिंदिया सजाई थी मैंने माथे पर, काजल मेरा आँसुओं में धुल गया और बिंदिया भी तुमसे नाराज़ हो गई। क्यूँ मेरी मोहब्बत को महफ़िल में रुसवा किया तुमने इस तरह, कि वो सजी हुई महफ़िल तेरे इंतज़ार में तबाह हो गई। उस महफ़िल में तेरा इंतज़ार करते-करते .....। परिचय :...
आओ फिर लौट चले बचपन की ओर
कविता

आओ फिर लौट चले बचपन की ओर

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब लड़ते थे झगड़ते थे, बात बात पर यारों से अकड़ते थे। सहेली की गुड़ियों की शादी में, जब सज-धज कर जाते थे और दावत भी उड़ाते थे। तब माँ का ये कहना कुछ रास नहीं आता था, कि जल्दी आना। अभी तो घर से निकले ही कहाँ थे, कि माँ का ये फ़रमान सुनाना। शाम के वक़्त का इन्तज़ार, जब मिलेंगे यार और खेलेंगे बेशुमार। बड़ों की दुनियाँ से दूर, अपनी ही मस्ती में चूर। खेलने का वक़्त ख़त्म होने पर, माँ का बुलावा आना और कहना। अगर वक़्त का ख़याल नहीं तो, घर मत आना अपने दोस्त के घर ही सो जाना। नज़दीक आता इम्तिहान का वक़्त और बढ़ती बेचैनी, किसी का पास तो किसी का फेल हो जाना। होली के रंगों की ख़रीदारी लिए, साथ में बाज़ार जाना। छत पर संक्रांति की पतंग साथ उड़ाना। जन्मदिन पर मावे का केक, और ढेर सारी भेंट और न जाने क्या ...
चौखट पर ससुराल की
कविता

चौखट पर ससुराल की

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ससुराल की चौखट पर कुमकुम के पैरों से उसका पहला प्रवेश थोड़ी सहमी, थोड़ी शरमाई सी सेज पर अपने मन के भावों को समेटती वो। नए जीवन की उमंग लिए प्रीतम के इन्तज़ार में सिमटी सी बैठी हुई सोच रही है। नये रिश्तों का ताना-बाना कैसे बुनेगी वो? कोशिश रहेगी कि सब को ख़ुश रखेगी वो। उम्मीद कि जो ब्याह कर लाया है उसे समझेगा वो? ग़लतियों की गुंजाइश के डर के साथ बस यही तानाबाना बुन रही है वो। कुमकुम के पैरों से ससुराल की चौखट पर उसका पहला प्रवेश परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित...
मुझे तो राधा ही रहने दो
कविता

मुझे तो राधा ही रहने दो

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्या करूँगी मैं तुम्हारी रुक्मणी बनके मुझे तो बस राधा ही रहने दो। परमानंद है प्रेम की सम्पूर्णता में मुझे तो अंग तुम्हारा आधा ही रहने दो। जीवन का सच सिर्फ़ इतना सा है कान्हा इस जग में प्रेम के अलावा सब कुछ है, नहीं है दुःख मुझे आठों पहर संग रहने का इन संग के पहरों को भी तुम आधा ही रहने दो। समय कहाँ होगा रुक्मणी को, तुम्हारी बांसुरी को अपने अधरों पे धरने का। तुम्हारे कांधे पर झुका हुआ मेरा शीश और तुम्हारी बांसुरी को मेरे अधरों पर ही रहने दो। कान्हा, कभी बैठे हो कदम की छाया में रुक्मणी के संग उस कदम की छाया के नीचे संग हम दोनों का ही रहने दो। व्यस्त कर रखा है रुक्मणी को तुमने अपने घर संसार में, पहरों बैठकर जमना के तीर प्रतीक्षा का वो अधिकार भी मेरा ही रहने दो। “मुझे तो बस राधा ही रहने दो” “ओ‘कान्हा’म...
झरोखे के नज़दीक
कविता

झरोखे के नज़दीक

कीर्ति सिंह गौड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वो झरोखे के नज़दीक बैठी रही बारिश की बूँदों के इंतज़ार में, प्रीतम के दीदार में। उम्मीद कि जब बौछारें आएँगी तो उसका मुरझा चुका प्रेम, उन बारिश की बूँदों से फिर पनप जाएगा, लहलहा उठेगा उसका मन प्रीतम के आगमन पर। पर बूँदों ने भिगोया सिर्फ़ उसके आँचल को धोया उसकी आँखों के काजल को। मन पर बेरहम एक बूँद भी न पड़ी, और उसका मुरझाया हुआ प्रेम सूखता रहा। फिर भी झरोख़े के नज़दीक बैठी रही वो, बारिश की बूँदों के इंतज़ार में, प्रीतम के दीदार में।। परिचय :- कीर्ति सिंह गौड़ निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रका...