Monday, December 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: किशनू झा “तूफान”

नर्स दिवस
कविता

नर्स दिवस

किशनू झा “तूफान” ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती। देखभाल को सदा मरीजों के, घर -घर तक जाती है। फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती। उपयोग सदा ही करती है, वह शारीरिक विज्ञान का। देखभाल में ध्यान रखे वह, रोगी के सम्मान का। कितनी मेहनत संघर्षो से, एक नर्स बन पाती है फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती है सदा बचाती है रोगी को, दुख, दर्दो, बीमारी से । भेदभाव को नहीं करे वह, नर रोगी और नारी से। देख बुलंदी को नर्सों की, बीमारी डर जाती है। फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती है। देती शिक्षा और सुरक्षा, बीमारी से बचने की। कला नर्स को आती है, रोगी का जीवन रचने की। असहाय मरीजों की केवल, परिचायक ही तो साथी है। फ्लोरेंस की वह पावन, बेटी नर्सिंग कहलाती है। देखभाल का जिसके अंदर, एक अनोखा ग्यान ...
मिट्टी मेरे गांव की
कविता

मिट्टी मेरे गांव की

किशनू झा “तूफान” ग्राम बानौली, (दतिया) ******************** युगों युगों से रही बोलती, भाषा जो सद्भाव की। जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। खेतों में हरियाली वसुधा, का श्रृंगार कराती है। एक पड़ोसन दूजे के घर, मठ्ठा लेने जाती है। भाईचारा सिखलातीं हैं, गलियां मेरे गांव की । जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। यहाँ सूर्य भी पहले आकर, उजियाला फैलाता है। और पिता के नाम से हर इक, घर को जाना जाता है । आती यादें, चोर सिपाही, कागज वाली नांव की। जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। गाँव में किशनू के आने को, ईश्वर भी ललचाते हैं। राम, श्याम, घनश्याम यहाँ, नामों में सबके आते हैं। चारों धामों से बड़कर है, मिट्टी माँ के पांव की। जन्नत से बड़कर लगती है, मिट्टी मेरे गाँव की। परिचय : किशनू झा "तूफान" पिता - श्री मंगल सिंह झा माता - श्रीमती अंजना झा निवासी - ग्राम बानौली, (दतिया...
है सलाम
कविता

है सलाम

*********** रचयिता : किशनू झा "तूफान" है सलाम, है सलाम, है सलाम, है सलाम। दे गये देशहित, प्राण उनको सलाम। जां लुटा दी उन्होंने, वतन के लिए । चुन लिया है तिरंगा, कफन के लिए। कतरा कतरा बहाकर के अपना लहू, कर गये हैं समर्पित, चमन के लिए। उनके घर बन गये, जैसे तीरथ के धाम। है सलाम, है सलाम, है सलाम, है सलाम। धरातल, गगन ये, समय रुक गया। जब गये छोड़कर, हर ह्रदय झुक गया। हो गये जो अमर, अब युगों के लिए। हम जपें सुबह शाम, उन शहीदो का नाम। है सलाम, है सलाम, है सलाम, है सलाम। राष्ट्र ध्वज था कफन, यह भी अर्ग मिल गया। यह धरा छोड़ दी उनको, स्वर्ग मिल गया। जब गये होंगे ईश्वर के, घर पर शहीद। झुक शहीदों का स्वागत किये, होंगे राम। है सलाम, है सलाम, है सलाम, है सलाम। राष्ट्र के सामने था, धर्म झुक गया। घाव को देखकर, के मरहम झुक गया। हिन्दुओं, मुस्लिमों ने किया था नमन, छोड़कर देश को जब गये थे कलाम। है सलाम...