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अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे
कविता

अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे

कमलेश मिश्रा बांसडीह बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे शब्द भी कंठों से निकल रोने लगे ये आसियाँ सा दिखता जहाँ धूल सा अंधियो मे मिलने लगे अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे। जब जागते अंगड़ाईयो मे तब खोह खड्डे खाइयो मे चिड़ियों के भी घोशले कुछ चिड़ियों सा उड़ने लगे फिर नीड़ के निर्माण मे घायल भी खग उड़ने लगे अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे। कुछ नीति नाते मोड़कर कुछ रूढ़ियों को तोड़कर चार कंधो पर उठाकर अपने हीं समशान मे हीं छोड़कर मुह मोड़कर चलने लगे अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे। अब शाम हो चली हैं चल लौट जाते हैं घर इस जिंदगी कि राह मे हैं जिंदगी का हीं डर इस ख्वाब कि ऊंचाइयों मे हम ख्वाब सा होने लगे अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे। परिचय :- कमलेश मिश्रा पिता : आदित्य मिश्रा जन्म : ०२-०८-२००६ निवासी : बांसडीह बलिया (उत्तर प्र...