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Tag: ओमप्रकाश सिंह

जिंदगी की सफर
कविता

जिंदगी की सफर

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** जिंदगी की सफर में याद कोई आता है! गुजर गई जो कारवाँँ वह मुकाम याद आता है! जब चेहरे पर थकान होता वह 'दीपदान' याद आता है! जब चाँदनी भरपूर होती वह राग याद आता है! 'रजनीगंधा' की महक होती 'हँसनी' सी तेरी चहक होती! वह 'कदमताल' याद आता है इस उम्र की ढलान में! वह कसक याद आता है रच रहा हूं नीत 'कविता' तुम गाओ सुरीली कंठ से ' नीलकंठ' मै भी बन गया! मजबूरियां भी ऐसी थी ' वियोगिनी' तू बनी वियोगी मैं बना! ना तुझे कोई शिकवा हो, न कसक हो मुझे! इस दुनिया में असंख्य रह रहे जुदा-जुदा! इस कोरोना काल में तो सुरक्षित रहो सदा! गंगा सी तू निर्मल बनो अनवरत बहती रहो! ऋषियों कि इस देश में अभय दान देती रहो! . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द...
कोरोना काल
कविता

कोरोना काल

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** हिंदी साहित्य जगत में अब तक आया है चतुर्थ काल भक्ति रीती वीर और आधुनिक काल यह पंचम काल बनकर उभरा है यह भयावह विस्मयकारी कोरोना काल यह किसी? प्रकृति की नियति है की मानव है कैद महाभूल में भविस्य काल की अंधकार में। वुहान सहर चीन राष्ट्र ने। पूरी मानवता को झोंक चुका लॉकडौन की हाहाकार और अंधकार में। पंचम सुर में बज रहा यह कोरोना की दुखद भयावह राग। हाय यह कैसा आया? कोरोना का दुखद काल मानव मानव से संसंकित है वेहद दुखद यह संतप्त घड़ी है दिख रही सामने आने वाली भूख मेरी और विपदा की घड़ी है जागो जागो है त्रिपुरारी घट घट के वासी फिर से तू विश पान करो कोरोना का संघार करो अमृत कलश को छलकवो है अभ्यंकर हे नटराज फिर दे दो अभय दान मिट जाए यह मानवता का दुखद काल तेरे चरणों मे है इस अकिंचन का सहस्त्रो प्रणाम। . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्या...
जागो
कविता

जागो

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** जागो जागो हे आर्यपुत्र विषम काल है फिर आया! जागो जागो हे नटवर फिर तू प्रलयकाल है फिर आया! उठा गांडीव फिर तू अर्जुन महासमर है फिर छाया! शंखनाद तू कर हे योगेश्वर विषमकाल है फिर आया! जागो जागो हे परशुराम हवन कुंड है मुरझाया! फिर तू परशु प्रहार कर अनाचार घनघोर छाया! दीपक की लौ मुरझाने को है विद्वेष भाव है पतित फैलाया! धर्म ध्वज अब फहराआओ महा समर का क्षण आया! 'सत्यमेव'अटूट वाक्य हो सिंघनाद का वह क्षण आया! राष्ट्रप्रेम से बढ़कर कुछ नहीं? सृजन काल है फिर आया! जागो -जागो हे नटवर फिर से 'प्रलयकाल' काल है फिर आया! उठा सागर में 'महाज्वार' है जागो जागो हे महामाया! . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्म...
अनैतिकता
कविता

अनैतिकता

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** अनैतिकता का बोल-बाला है जहां भी- आसुरी शक्तियां वहां पर है चरम पर! खोद चुका है पूर्व में मानव- कब्र अपना गगनचुंबी इमारतों में! झांक रहा है पतन का गुब्बार अपना- बहुत दूषित कर चुके तुम इस धरा को! कराह रही है धरती मां और अंबर अपना- स्वप्न बन गई है कि कल कल निर्मल! बहती रही सदा संसार की नदियां- प्राण दायिनी वायु भी अब बन गई जान लेवा! चारों तरफ हाहाकार है रो रही है यह धरा- संत भी सुरक्षित नहीं है यह है मानवी वेदना! वोट बैंक के लिए स्वार्थी फरेबी बन गए हैं नेता- देशहित से बढ़कर इनका सुनहला स्वप्न अपना! नित सीमाओं पर शहीद हो रहे देशभक्त अपना! कैसे सुरक्षित रहेगा मां भारती का भविष्य अपना- श्रेष्ठताओ को भूलकर हम चले जा रहे कहाँ? मां भारती की चरणों में है-इस अकिंचन का- करुण क्रंदन रुदन बंदन शत शत नमन! . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य व...
विश्व-वेदना
कविता

विश्व-वेदना

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** फैल गई है पूरे विश्व मे कोरोना वायरस महामारी। क्षण क्षण पल पल कोहराम मची है महाविनाश की आहट भारी मानवता खतरे में है यह वायरस है अति प्रलयंकारी ज्ञान विज्ञान में जो चढे बढे है उनकी भी नही चलती होशियारी। फैल चुकी है पूरे विश्व मे कोरोना वायरस महामारी छुआछूत से फैल रही है मानवता पर यह संकट भारी चीन राष्ट्र की कुचक्र चाल से सिसक रही मानवता सारी राष्ट्र धर्म पुकार रही है यह समय अति है विस्यमकारी विश्व गुरु फिर राष्ट्र बनेगा जन जन का उद्धार करेगा अध्यात्म योग संबल बनेगा सत्य सनातन फिर उभरेगा मानवता का दर्द मिटेगा फिर से सुख शांति बढ़ेगा वायरस का अब अन्त निकट है वह छन आयगा मंगलकारी . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा ...
धर्म युद्ध
कविता

धर्म युद्ध

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** धर्म युद्ध फिर से लड़ना होगा मानव मात्र को मुक्ति दिलाना। फिर नई त्रृचा को गढ़ना होगा अनासक्त कर्म विधान को हृदय पटल पर लाना होगा। मां भारती के सुपुत्रों को जीवन संग्राम में भिड़ना होगा। अजय बने फिर मां भारती इसे विश्व पटल पर लाना होगा। अंधे बहरे जो बने मनुज है उस धृतराष्ट्र को मरना होगा। सत्य असत्य की परिभाषा को मूर्ख मती तुझे बतलाना होगा। दुस्साहस और भोगवाद को शीघ्र मटिया मेट करना होगा। हिमालय की तुंग शिखर से सिंघनाद फिर करना होगा। बन अर्जुन तू उठा गानडीव धर्म युद्ध फिर लड़ना होगा। महिषासुर की मर्दन हेतु नवदुर्गा को आना होगा। खोए हुए अपने वैभव प्राप्ति हेतु राजा सूरथ सदृश तुझे बनना होगा। अनाचार मिटाने हेतु तुझे श्री परशुराम फिर बनना होगा। . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - प...
जीवन प्रयोजन
कविता

जीवन प्रयोजन

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** जीवन का प्रयोजन क्या है? यह क्यों है मानव शरीर, जीवन में जन्म से दुख है, मृत्यु दुख- प्रिय सी संयोग बियोग दुख है। यह जगत दुख है फिर भी प्राणी इस दुख मंदिर को- ढोता इसे फेंकता नहीं इसकी विनाश की कल्पना से- सिहर, कांप उठता है फिर नवीन कल्पना करता है! सृष्टि की प्रारंभ से इस गूढ़ रहस्य को- जानने समझने यत्न किया है! करते अभी जा रहे हैं इसमें ज्ञान विज्ञान अभी लगाहै! फिर भी सूर्य उदित होते हैं शशि कलाये में घटती बढ़ती है! महासागर गरजता है आंधी फुफकारती है! तुसारापात हमें ढंढा करता है, आपत जलाता हैं! यह खेल गजब है जीवन का- यह खेल नियति क्यों खेलता है? उसकी गहरी वंदना में-उसे क्या रस मिलता है? फिर उसे बंधनों में जकडने में क्या आनंद मिलता है? प्राणियों के करुण क्रंदन से उसका मन नहीं पसीजता है! शून्यवाद से लेकर अब तक मानव चिंतन जारी है- ज...
योगनी तू
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योगनी तू

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** योगनी तू हो निरंतर प्रेमयी बढ़ती उत्कर्ष पथ पर। है न्योछावर सर्वस्व तेरी सहर्ष पुलकित बनकर। आलिंगन-मिलन हेतु बहती हैं मलयानील रुक रूक कर। आज अभय तू निर्भय कर जीवन की इसे गुरुतर पथ पर। सुपत जीवन में जीवन रस लाया आज हलाहल पूरे विशव में। कोई नही नटवर आया युद्ध अनाचार विद्वेष भय से। भुचर, जलचर, नुभचर झुलस रहा क्षणिक स्वार्थ में मानवी सभ्यता। महमरण-प्रलय लाया। आज प्रकंपित होता भू-है- हरक्षण महाभीशन आया। सुधा प्रेम बरसा हरषा तू रजनीगंधा की मादकता। नूतन रूप सृजन की बनकर फिर से तू बोधिसत्व को ला। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच ...
माँ कंकाली स्तुती
कविता

माँ कंकाली स्तुती

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** तापा सेमरौन गढ़ में विराजत तू माँ महामाया कंकाली- ध्यावत तुमको निश दिन नेपाल-भारत के वासी सदियो से माँ पूजित-सिद्धयोगी बाबा मंशा राम की हरछन जलती धुनी। जय माँ कंकाली जय माँ कंकाली दुखियो की दुख हारती माँ तू सुख शांति की दाती। जय माँ काली कंकाली। ऋषि मुनि से तू पूजित धन वैभव की दाती। तापा सेमरौन गढ़ में विराजत तू सुख शांति की दाती। सत्रु मर्दन करती छन में सेवक को हो हर्षाती। पुत्र हीन को तू पुत्र देती हो हरदम तू मदमाती उच्च सिघासन पर विराजत हरछन घंटा नद घहराती जय माँ काली कंकाली भक्त जन जब तुम को देखे सारा संकट टर जाती जय माँ काली कंकाली बड़े बड़े साधक का माँ तू सिद्ध साधन कर जाती अनुभव स्वयं साधक को होती जब तेरी किरिपा ही जाती जय माँ काली कंकाली। सदियो से तू माँ विराजत औघड़ सिद्घ बाबा मंशा राम थे वा...
मेरा प्रणाम
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मेरा प्रणाम

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मेरे पूज्य पिता जी मेरा प्रणाम अब आप सामने नहीं है। फिर भी हृदय में उफान आप नहीं लेकिन आप की अमर वाणी आपकी त्याग की सरलता आपकी सादगी हमें तथा आपके द्वारा परिमार्जित परिवार में बिखर गया है। आपकी ऋण से लद गई है आपकी आत्मा से निकली आवाज। शायद विलीन हो गई है पंचतत्व में नश्वर शरीर के घेरे में जो था। आपकी अनश्वर आत्मा अब भी शायद उपकार में तल्लीन है ऐसा आभास होता है। लेकिन शब्द नहीं मेरे शब्दकोष में सिर्फ याद की चंद लम्हों को। जो मेरे जीवन में आपके विगत जीवन का अंश मिला है। भुलाए नहीं भूलता सृजन करता सा अभिभूत वह साकार द्विय रूप। नत-मस्तक है आज भी आपकी याद मे मेरा रोम-रोम। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी ...
घने कोहरे
कविता

घने कोहरे

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** घने कोहरे की बीरानंगी में- छिपी दुबकी जिन्दगी । सूर्य की प्रखर किरणों की ताप से- उल्लसित, सुवासित, मुखरित हो उठी है। विद्यालय में आज में देखता हूं- छात्र-छात्राओं की संख्या में बेतहासा- बृद्धि समृद्धि सी हो गयी है। खिले धूप में ही पढ़न-पढ़ान कार्य आरंभ हो गई है नामांकन से उत्साहित- छात्र-छात्राएं एक नई जीवन की- उम्मीद बाद एक नई स्फूर्ति के साथ। नए वर्ग में मां सरस्वती की आराधना में- अपने आप को संलग्न जिंदगी की ओर स्नेह और करुणामई याचना से- ओत-प्रोत मां की कर कमलों में समर्पित। अर्पित कर रही है अपनी सब कुछ ..... . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
फाल्गुनी हवा
कविता

फाल्गुनी हवा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** फाल्गुनी हवा के झोंकों से- उड़ रहे हैं झर झर पत्ते। उड़ रही है मिट्टी की धूल- कण- जन जीवन में उमस जागे। नस-नस मे फिर पौरूषता की- आज महा प्रलय जागे । नवयुगल सब प्रेम गीत में- सराबोर होकर सब नाचे। ढोल, झाल, मंजीरे लेकर- ठुमक-ठुमक कर सब नाचे। पीते हैं कोई भंग-गंग-संग झूम-झूम कर सब नाचे। लिए हाथ में पिचकारी को- घोल रंग को सब पर डालें। लाल-पीली हरी रंगों में- अंग-अंग रंग डाले। फाल्गुनी हवा के झोंकों से- उड़ रहे हैं झर-झर पत्ते। आज न कोई राजा-रानी सभी मस्ती में झूमे नाचे। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो...
आम कुजं
कविता

आम कुजं

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मेरे घर के पूरब-आम् कुजं से कोयल की कूक वेदना ने मुझे जगायी। मंजर से लद गयीं है ये उपवन सारे इस "बंसतोत्सव "मे सो गया तू। निष्ठुरता है इस जीवन मे ढेर सारे। तू सजग रह मेरे साथ ये लिख अनंत वेदना के गीत सारे। कूकना है तो कूक भी अपनी वेदना मे मेरी भी असीम वेदना मिला। गाना है तो गा मेरे साथ प्राण-पण से तेरी वेदना पर लिख रहा हूँ देर गीत सारे अपने घर के पूरब आम् कुजं। कोयल की वेदना ने मुझे जगायी बीते अनुराग को तू याद रखना। उठती हृदय की ये ज्वार तू स्वीकार करना। सदियों तक 'कवि' का उद्गगार आभार तू अपनी कूक मे याद रखना। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी ...
मां शारदे
कविता

मां शारदे

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मां शारदे तू मुझ पर कृपा कर दे। मैं दीन-हीन अति पामर। मुझ पर कृपा दृष्टि कर दे मां शारदे तू मुझ पर कृपा कर दे। श्वेत वासिनी मां तू अंतस मे विज्ञान-ज्ञान भर दे। तू महामूर्ख कालीदास को छन में महाकवि बनाया। ज्योतिपुंज भर दे। दीन पर दया कर दे। झंकृत कर दो तू अपनी वीणा की तारें वाणी में ओज भर दे। अलंकृत हो मेरा भी जीवन तू कृपा दृष्टि कर दें। श्वेत कमल पर आसन तेरी मां मुझ पर कृपा कर दे। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindiraksha...
कविता सुगंध
कविता

कविता सुगंध

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** सुगंध है व्याप्त वायु में रोम रोम को पुलकित करता तन मन को बेसुद्ध करता सरस सांस में है समाहित यह नव बसंत उत्सव जैसा खिल चुके हैं पुष्प वृंद सब आम्रकुंज में आती मंजर लता कुंज में नव पल्लव झूम रही गेहूं की बाली सरसों खिलीं कुम-कुम जैसा सुगंध है व्याप्त वायु में रोम-रोम को पुलकित करता फुदक रही है गौरैया भी गुटूर गुं की प्रणय गीत भी गा रही है वय कबूतरी। फैली धरा पर अनुपम आभा भंवरे समूह में गुंजन करते पुष्प सभी है शर्माती चुम रहे हैं ओष्ठ पुष्प का हो हो कर सब मतवाले डोल रहे हैं पुष्प डाल सब चुबंन से है थर्राते . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक...
बिरहनी
कविता

बिरहनी

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** बिरहनी इस चांदनी में ज्योति पुंज से तू खड़ी हो। इस धरा पर विपुल स्वर्ग सा मलयानिल फिर मंद गति से। रुक रुक कर बहती है। विरहनी इस धवल चांदनी में ज्योति पुंज सी तू स्थिर हो। बोलो सदियों की चुप्पी तोड़ो कब से मौन व्रत में तुम? चंचलता को रोक खड़ी हो। सृष्टि तो अविराम गति से सदियों से गतिमान बनी है। तुम प्रेरक हो जीवन सुधा की चांदनी फिर सकुचाई देखो। देखो चंपा जूही बेला रजनीगंधा ने ली अंगड़ाई। तेरी बंदन में मग्न रजनी है। नीले अंबर के तारक गण भी बिखरे हैं नभ में अति सुंदर। सुदूर क्षितिज में उज्जवल तारे तुझे देखकर विहंस रहे हैं। नीले अंबर के नीचे" विरहनी" नील मणी सी तू अति सुन्दर हर पल नूतन दिखती हो। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
बसंत
कविता

बसंत

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** बसंत जब आती है। कोयल गीत गाती है। इठलाती है डाली पे आम्र मंजरी में छुप छुप गुप चुप नहीं, आलाप तीब्र कूक की। डाली पे छुप गाती है। बसंत की परिधान में मुस्कान नव नव आता है। अतिरंग में वहिरंग हो। नवरंग जब आता है। निराशा में आशा पतन में उत्थान नवताल नव छंद किसलय से वासंती जब मुस्कुराता है। बसंत के आगमन से सृष्टि नव आता है। मुरझायी हुयी कलियों में कोपल मे नव गंध नव सुगंध भाता बसंत जीवन सूचक है। बसंत अंत मरणासन्न कुछ काल तक ही आता है। ब्रह्म बेला में प्राणदायिनी वायु बन। सुगंध के झरोखों से प्रिये सी अभिनंदन करती हैं। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी ...
शहिदो की प्रिया
कविता

शहिदो की प्रिया

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** आँचल में स्नेह आँखों में विशवास। धैर्य रखो प्राण प्रिय न करो मन उदास मैं सरहदों से जरूर वापस आऊंगा मेरे बढ़ते कदमो को न रोको मेरे हम दम मुझेको मातृभूमि ने पुकारा है तुम कृपा कर मुझे विदा करो। दीर्घ समय न लगेगा मुझ रण बाँकुरे को सरहदो पर दुश्मनों को मार भगाने में गौरव से अपनी हृदय दृढ कर। अपनी कोमल हथेलीयो को उठाकर जरा मुझे अलविदा कहो। धृत दीपक पुष्प रोली चंदन से थाल सजा कर नई दुल्हन सी श्रृंगार किए धीरे। मुस्कुराकर दरवाजे पर मिल जाना निश्चय ही युद्ध स्थल से विजय वरण कर आऊंगा नीचे निज प्रेम भरी सांसो से तुझे पिघलाउगा मैं सरहदों से जरूर वापस आऊंगा तोपचीओ के फटते गोलों के धुए से केवल तुम्हारी स्नेह मुझे राह दिखाएगा दुश्मनों की असंख्य गोलियां मेरी ओर चलेगी विश्वास तेरी हृदय का मेरे काम आएगा मेरी भी असंग की गोलियां अचूक बन जाएगी रण में तेर...
इस संसार में
कविता

इस संसार में

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** यह सोचा मैंने इस संसार में अकेला हूं मैं यूं कहने को यहां। मेरे साथ प्रकृति की सन्नाटा चिरपरिचित झींगुर की आवाज। काली स्याह रात कभी धवल धूसर चांदनी जिसकी दूधिया प्रकाश। फिर भी इस सब के बीच अपने आप को अकेला और तन्हा पाता हूं अपने आप को। सोचता हूं यहां कोई अपना होता बोध करा पाता उसे अपने अंतस की गहराइयों को सृजनशील मानव अपनी राह खुद बनाते हैं। उस पथ पर बढते चले जाते हैं। उद्धत अविराम कर्म पथ पर सृजनशीलता की परिचय देते हैं। अपने एहसास के अनगढ पत्थरों को अपनी कल्पनाओ की पैनी छैनी तथा कर्मठता की हाथौड़ो से प्रहार कर नई जीवंत मूर्ति तराश लेते सृजनशीलता तो प्रकृति की अटूट नियम है। प्रकृति की शक्ति को नियंत्रित करने की व्यर्थ कोशिश की गई है। उनकी भाव भंगिमा ओं के साथ छेड़छाड़. करके मानव महा विनाश की ओर निर्बाध अपनी गति को बढ़ाई। . परिचय :-...
फन कुचलो इस विषधर का
कविता

फन कुचलो इस विषधर का

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** फन कुचलो इस विषधर का। जो विष वमन नित करते हैं भारत मां की गौरवमयी भूमि पर नित्य नई कुचक्र को रचते हैं। इस महापापी को धराशायी कर फिर से तू नई सृजन कर। जहां प्रेम हो आपस में हर आर्य वंशी हो भाई-भाई फन कुच लो इस विषधर का जो विष वमन नित करते हैं। अपनी कुकृत्यो से भारत मां की जिसने आंचल मैली की। अबलाओं की इज्जत पर जो लाठी तंत्र की वर्षा की। जिसे दंभ है भ्रष्टाचार पर दुशासन के शासन पर रक्षक की मूरत में भक्षक इसे अब तू सर्वनाश कर फिर तू नवसृजन कर हर माता है सीता राधेय हर बालक है राम कृष्ण तू है अर्जुन, भीम, नकुल, धृतराष्ट बनकर है जिसने कुशासन का नींव डाला। उंघ रहा है मद में यह छिछोरेपन करता करता। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
चांदनी
कविता

चांदनी

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** एक रात यूं ही नील गगन में' नीलकमल सी चांदनी ने। मुस्कुराई थी अचानक़़ थोड़ी सीहर कर चांदनी ने, अचानक दर्द छेड़ थोड़ी सी पवन सिसक कर बिखर गई। मरमराती रात में सुनहली सी चांदनी। इस पूर्णता की विछोह में, अपूर्णता की भ्रांति टिमटिमाती जुगनू की, गूंज रही थी क्रांति। इस धरा की सरहदों पर, बिखेर दी थी क्रांति। घटाटोप अंधकार में, जंगली गुफाओं में, समुंद्री गर्जनाओ मे, होगी अनेकों क्रांति अंधकार में प्रकाश की, होगी महाआरती। स्वर्ण युग आएगी गुनगुनाती चांदनी। सभी हंसेगे साथ-साथ। मुस्कुराती चांदनी। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, क...
तुम्हारी याद जब आती
गीत

तुम्हारी याद जब आती

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** तुम्हारी याद जब आती तड़प आंसू बहाता हूँ। जुगनू पूछते हमसे कोहरे का पकड़ दामन पुष्पों के नाज पर भवरे बने घूमते हैं यू उन्मन जख्मी ही समझ सकते हैं। कसक जो गीत गाता है। तुम्हारी याद जब आती तड़प आंसू बहता हूँ। धरा पर अंधियारी छाती लुटाती स्वप्न की दुनिया तभी तुम पास आ जाते हैं अचानक जब नींद खुलती एकांकी हाथ पाता हूँ। तुम्हारी याद जब आती तड़प अश्रु बहाता हूँ। अलग टूटे हुए दिलों में लहर उच्छवास की आती तुम ही पर यह लगी नयने सदा बरसात कर जगाती तड़पकर आह भरकर मै सदा रजनी गँवाता हूँ। तुम्हारी याद जब आती........ . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक ...
पूरबा बयार से
कविता

पूरबा बयार से

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** ग्रामो मे मेरे पूरबा बयार से बसवारीयो की खूँटे टकराती है। चरमर-चरमर की आवाजे भैरवी की राग सुनाती है। कराहती है गरीबी बेदर्द बन झोपड़ियों में- जहां दिन में सूर्य की रोशनी रातें में चांदनी झांकती है जहां दीपक के नाम पर चंद देर तक का ही सही अचानक चांदनी टिमटिमाती है। अंधकार की नीरवता में पवित्र निश्चल हृदय पुचकारती है। पावस की फुहार, में जहां दूधिया चांदनी में मजबूरियों की हाहाकार में नई विवाहिता बालाए सिकुड़कर नहलाती है। गाती है उनकी माताए ग्रामीण वृद्धाए खुशी की गीत । घुंंघट के नीचे निःसंकोच शर्माती है। राजनीति से दूर, सुदूर पश्चिम मे पेड़ो की टहनियों पर बैठ कर चिड़िया चहकती है। महकती है बागे जब आम् मंजर खिलती है। गाँवो की पोखर मे कमल की फूल भ्रमर की गुनगुनाहट सुन अचानक सहम जाती है। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय ...
भारत भूमि
कविता

भारत भूमि

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** भारत मां की पुण्य भूमि से- क्रांति के फिर ज्वाल उड़े। पूर्ण स्वाधीनता की अमर राग- जन जन फिर हुंकार उठे। भारत मां की पुण्य भूमि से- क्रांति के फिर ज्वाला उड़े। अफसरशाही तानाशाही- नौकरशाही फिर भाग सके। एक बार फिर हुंकारे। संपूर्ण क्रांति फिर जाग उठे। पूंजीवादी शोषणवादी- व्यक्तिवादी स्वार्थीवादी फिर भाग उठे। टंकार यहां हो कण कण में- अंगार क्रांति की जन-जन में- शान यहां कि जाग उठे। अब मान यहां कि जाग उठे। वीर सुभाष की सपनों की धरती- फिर एक बार हुंकार उठे। भारत की पुण्य भूमि से- क्रांति के फिर ज्वाल उड़े। . परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्...
तीसरी लहर
कविता

तीसरी लहर

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** तीसरी लहर आ रही है इस मानवी शताब्दी मे हर ओर है और होगी नयापन इस सभ्यता की तीसरी लहर मे वासनाए घुरेगी इस तीसरी लहर मे फैसन नहीं नंगापन श्रृंंगार नहीं शरारत इस तीसरी लहर मे अंग प्रदर्शन पहले भी हुआ करती थी अंजता की गुफाओं मे पर्दे के अन्दर छुप छुपकर। यादगार विज्ञान की सूत्र मे विज्ञान नहीं सिखाती मिट्टी मिल जाओ। अपनी संस्कृति की धज्जि उड़ाओ शराब पीना हानीकारक हैं फिर भी पीते है अधिकाशं आधुनिकता के पोषक। इस तीसरी लहर मे अंग प्रदर्शन अपराध के जनक है आए दिन ऐसी खबर समाचार पत्र भी देती है अपराध बढती जा रही है इस मानवी शताब्दी मे। कुछ अटपटी तेवर बदल रहे है शस्त्रों की होड़ मे जी जान तोड़ के एटोमिक रिएक्टर मे एटम हाइड्रोजन बम बन रहे है दुरमारक प्रक्षेपास्त्र से विनाशकारी लीबास हम सज रहे है अंधकार की गहन कूप मे धीरे धीरे खिसक रहे हैं। . लेखक...