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Tag: उषाकिरण निर्मलकर

समय
दोहा

समय

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मन में चिंतन कीजिए, इसका कितना मोल। व्यर्थ न जानें दीजिए, समय बड़ा अनमोल।। आगत को सिर धारिए, सुख-दुख जो भी होय। समय-समय का फेर है, आज हँसे कल रोय ।। समय आज का कल बनें, कल बन जाये आज। पहिया इसका चल रहा, यही काल सरताज।। वापस ये आये नहीं, एक बार बित जाय। मुठ्ठी रेत फिसल रही, हाथ मले रह जाय।। अविरल ये धारा बहे, कोई रोक न पाय। अगर समय ठहरा रहे, तो सब कुछ बह जाय।। समय को गुरू जानिए, देता जीवन सीख। कभी नीम सा स्वाद है, कभी मिठाये ईख।। राजा रंक बना दिये, रंक बने धनवान। मान समय का कीजिए, कहते संत-सुजान।। परिचय :- उषाकिरण निर्मलकर निवासी : करेली जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
अवध में राम आये हैं
ग़ज़ल

अवध में राम आये हैं

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ सुमंगल गीत गाओ तुम, अवध में राम आये हैं। सुमन-श्रद्धा लुटाओ तुम, अवध में राम आये हैं। सकल ब्रम्हांड के स्वामी, विधाता वो जगत के हैं। चरण उनके पखारो तुम, अवध में राम आये हैं। सहज, सुंदर, सलोना है, मेरे भगवान का मुखड़ा, कि मन-मंदिर बसाओ तुम, अवध में राम आये हैं। नयन कजरा, तिलक माथे कि कुंडल-कान धारे हैं, नजर अब तो उतारो तुम, अवध में राम आये हैं। सदा ही भाव वो देखे, सभी स्वीकार है उनको, कि शबरी बन खिलाओ तुम, अवध में राम आये हैं। समझते हैं, सभी के कष्ट, वो पालक-पिता जग के, सभी दुख को मिटाओ तुम, अवध में राम आये हैं। वचन की लाज रखनें को, गये चौदह बरस वन में, पुकारो लौट आओ तुम, अवध में राम आये हैं। कि लक्ष्मण जानकी है संग, अब कर्तव्य के पथ पर, पवनसुत जी पधारो तुम, अवध में रा...
तू बढ़ता चल
कविता

तू बढ़ता चल

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** हरदम कोशिश करता चल। बाधाओं से तू लड़ता चल।। मन में रख विश्वास अटल। तू बढ़ता चल, तू बढ़ता चल।। अनवरत तू अभ्यास कर। कमियों का आभास कर।। फिर नया प्रयास करता चल। तू बढ़ता चल, तू बढ़ता चल।। अर्जुन सा लक्ष्य भेदन कर। एकलव्य सा गुरुध्यान कर।। एकाग्रता का पाठ पढ़ता चल। तू बढ़ता चल, तू बढ़ता चल।। बाधाएँ अनगिनत जो तुझे टोके। पर्वत बन तेरा राह जो रोके।। तू नदियाँ बनकर बहता चल। तू बढ़ता चल, तू बढ़ता चल।। धैर्य, उत्साह, साहस बटोर। तूफानों को भी दे झकझोर।। हौसला खुद में तू गढ़ता चल। तू बढ़ता चल, तू बढ़ता चल।। अपने लक्ष्य से परिचय कर। अपनी जीत तू निश्चय कर।। हर दिन नयी उड़ान भरता चल। तू बढ़ता चल, तू बढ़ता चल।। परिचय :- उषाकिरण निर्मलकर निवासी : करेली जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ ...
अधरों की अमर वाणी है हिन्दी
कविता

अधरों की अमर वाणी है हिन्दी

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे नन्हें अधरों की किलकारी है हिन्दी। हर तोतली आवाज में, बड़ी प्यारी है हिन्दी। जवां हुई जो मेरे संग-संग हाँ, मेरा हमसफर, मेरा हमराही है हिन्दी। मेरी आन, मेरा गुरुर, मेरा अभिमान है हिन्दी। मेरा नाम, मेरा काम, मेरी पहचान है हिन्दी। ये मेरा व्यक्तित्व है, अस्तित्व है मेरा, और मेरे लिए तो मेरा हिंदुस्तान है हिन्दी। सबको अपनें आँचल में समेटे हुए, संस्कृत से जन्मी, मॉं का अवतार है हिन्दी। अनुपम, अलंकृत, अनमोल, अनुशासित, और पूर्ण परिभाषित संस्कार है हिन्दी। मानों चिरकाल से चिरपरिचित, चिरस्मरणीय, चिरयौवना और चिरस्थायी है हिन्दी। हर रूप में है अति सुशोभित, कभी दोहा, कभी छंद, कभी चौपाई है हिन्दी। सुरभित सुमन की भाँति महकती, साहित्य की शुभाषितानी है हिन्दी। शब्दों का जो अथाह सागर है, अधरों की अमर वाणी ...
पिता
कविता

पिता

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** बरगद की विशाल शाखाओं जैसी, अपनी बाँहे फैलाए। ख़ड़े रहकर धूप और छाँव में, हर मौसम की मार झेल जाये।। कोई और नहीं, एक पिता ही हो सकता है। कठोर भाव, पर अव्यक्त प्रेम का आसन। सख्ती से चलनें वाला परिवार का अनुशासन।। संबल, शक्ति, संस्कारों की मूर्ति। परिवार के सभी इच्छाओं की पूर्ति।। कोई और नही, एक पिता ही हो सकता है। बिन कहे जो बच्चों का अरमान भांप ले। बाँहे फैलाये तो सारा आसमान नाप ले।। थरथराते, काँपते, नन्हे पँखों को। उड़ान का हौसला देनें वाला।। कोई और नही, एक पिता ही हो सकता है। न जानें अपने अंदर कितनें मर्म छुपाये। दिल में आह हो, तो भी मुस्कुराये।। अपनी ख्वाहिशों की चिता से, घर को रौशन करनें वाला। कोई और नहीं, एक पिता ही हो सकता है। ईश्वर की अद्भुत रचना, जो ईश्वर का ही रुप लगता है। गढ़ता है जो अप...
शिव स्तुति
भजन, स्तुति

शिव स्तुति

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** हे! मोक्षरूप, हे! वेदस्वरूप, हे! व्यापक ब्रम्ह जगदव्यापी । हे! नीलकंठ, हे! आशुतोष, तुम अजर अमर हो अविनाशी । हे! शशिशेखर, हे! सदाशिव, तुम व्योमकेश तुम कैलाशी, कृपा करो प्रभु कृपा करो, अब विघ्न हरो घट घट वासी । हे! शूलपाणि, हे! विरुपाक्ष, हे! वीरभद्र, हे! खटवांगी । हे! मृगपाणि, तुम सहस्राक्ष, हो सहस्रपाद हे! कालांगी । हे! शिवाप्रिय, हे! ललाटाक्ष, माँ शैलसुता है वामांगी , हे! भूतनाथ, तुम ही रुद्राक्ष, तुम पंचभूतों के हो संगी । हे! भुजंगभूषण, हे! मृत्युंजय, सच्चिदानंद, अंतर्यामी । देवों के देव, हे! महादेव, मैं याचक हूँ, तुम हो स्वामी । हे! अलखनिरंजन, हे! दुखभंजन, तुम करुणा के सागर हो, काम हरो अब नाम करो प्रभु, तुम निष्काम, मैं हूँ कामी । हे! अमरनाथ, हे! रामेश्वर, हे! परमेश्वर, हे! सुखकारी । हे! वृषाङ्क, ह...
पद्मासना
स्तुति

पद्मासना

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** आराधना करूँ, देवी पद्मासना। मैं उपासना करूँ, देवी पद्मासना। मेरे अधरों में , सुर बनके बैठो हे माँ, स्वर साधना करूँ, देवी पद्मासना। आराधना करूँ .... स्वर की देवी कहूँ, सुरपूजिता हो तुम। धवल वसन धारिणी, परमपुनिता हो तुम। तान वीणा की जैसे, सुरसरिता बहे, तेरी वंदना करूँ, देवी हंसासना। आराधना करूँ .... वाग्देवी, रमा तू वारिजासना। सुरवन्दिता तू ही, माँ पद्मलोचना। ध्यान तेरा धरूँ, माँ ध्यान मेरा रखो, मैं प्रार्थना करूँ, देवी श्वेतासना। आराधना करूँ .... वाणी, संगीत हो, भाषा वेदों की तुम। अज्ञानी हूँ मैं, माँ ज्ञान दे दोगी तुम। अब तो विनती मेरी भी स्वीकारो हे माँ, जिस भावना कहूँ, देवी पद्मासना। आराधना करूं .... परिचय :- उषाकिरण निर्मलकर निवासी : करेली जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्र...