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Tag: आशीष तिवारी “निर्मल”

नहीं मिला
कविता

नहीं मिला

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जो कुछ खोया मैं ने यहां दुबारा नहीं मिला थी तलाश जिसकी वो किनारा नहीं मिला‌। लौट आता मैं भी किसी मौसम की तरह मुझे तुम्हारी ओर से कोई इशारा नहीं मिला। टूटा,बिखरा और बिखरकर निखरा मैं अकेले जरूरत थी मुझे तब तेरा सहारा नहीं मिला। मेहमान बनकर आए दुख,दर्द जीवन में मेरे, पर खुशियों को ढूढ़े घर हमारा नहीं मिला। स्याह रातों में सिसकियों का साथ मिला उमंग भरे जो मन में वो सितारा नहीं मिला। चीखती हैं अजीब खामोशियां रह-रह के मुझमें मुझे कोई मुझ सा नसीब का मारा नहीं मिला। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दू...
बीच राह में छोड़कर
ग़ज़ल

बीच राह में छोड़कर

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** बीच राह में छोड़कर जाने के लिए शुक्रिया दर्द दे दे के मुझको रुलाने के लिए शुक्रिया। मंजिल मुझे मिल ही गई जैसे-तैसे ही सही मेरी राह में कांटे बिछाने के लिए शुक्रिया। समय से सीख रखी थी तैराकी मैंने कभी साजिशन मेरी नाव डुबाने के लिए शुक्रिया। मेरा सबकुछ लुटा हुआ है पहले से ही यहां मेरे घरौंदे में आग लगाने के लिए शुक्रिया। दुख दर्द तुम न देते तो कलम चलती नहीं ग़म-ए-घूँट मुझको पिलाने के लिए शुक्रिया। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि...
बेरहम दुनिया
कविता

बेरहम दुनिया

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** दिल के ज़ख्म बड़े ही गहरे निकले सबकी तरह तुम भी गूँगे बहरे निकले। तुम ही तो थे गवाह मेरी बेगुनाही के तुम्हारी ज़ुबाँ पे सौ-सौ पहरे निकले। तुमपे किया निसार दिल-ओ-जाँ कभी तुमने दिये जो घाव हमेशा हरे निकले। इसीलिए ठहरा हुआ हूँ बेरहम दुनिया में वालिदैन के कुछ ख्वाब सुनहरे निकले। किरदार निभा रहे लोग यहाँ रंगमंच पे तन्हाई में आंख से कंठ तक भरे निकले। सीने में छिपाए बैठे हैं वो भी दर्द हजारों दुनिया की नज़रों में जो मसख़रे निकले। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक स...
आम बजट २०२१
कविता

आम बजट २०२१

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** लोक-लुभावन वादे जिसमें दाना, चारा नहीं, यह आम बजट तो आमजन का प्यारा नहीं। बजट के गजट का दिमागी बुखार तो उतरा, अन्नदाता के सिर का बोझ तुमने उतारा नहीं। छोड़ कर शीशमहल झुग्गियों में आओ साहब कोई दिन तुमने ऐसा अभी तक गुजारा नहीं। दुखों का सारा तूफान झेल रहा आम आदमी, वरना आंखों से बहती यूं ही अश्क धारा नहीं। जिनकी वेतन लाखों में उनको सारी सुविधाएं मध्यमवर्ग के लिए सोचा और विचारा नहीं। इस्तेमाल किया करते हो आम आदमी का, आम आदमी बर्फ जैसा होता है अंगारा नहीं। गरीबों की रोटियां छीन रहे डंके की चोट पे, खुदा होगा वो किसी और का हमारा नहीं।। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाश...
सिर्फ तेरे लिए लिखता हूँ मैं
कविता

सिर्फ तेरे लिए लिखता हूँ मैं

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** अच्छा लिखता हूँ या खराब लिखता हूँ मैं एक तेरे हुस्न को शराब लिखता हूँ मैं। लिखने का होश भी अब तो रहा नहीं सिर्फ तेरे लिए मेरे जनाब लिखता हूँ मैं। खुद को छिपा के रखी तू सदा नक़ाबों ग़ज़लों में तुझको बेनकाब लिखता हूँ मैं। चाँद का टुकड़ा,मल्लिका-ए-हुस्न भी ना जाने देकर कितने ख़िताब लिखता हूँ मैं। खुद को छोटी कलम समझता हूँ सदा सिर्फ तेरे लिए बनके नवाब लिखता हूँ मैं। कतई ज़हर तो कभी अमृत लगती है तू शोला,शबनम कभी आफ़ताब लिखता हूँ मैं। अनसुलझा सा सवाल रही तू मेरे खातिर तेरे हर सवालों का जवाब लिखता हूँ मैं। रिश्ते का तुमने मज़ाक बनाया था कभी उन्हीं मजाकों पे पूरी किताब लिखता हूँ मैं। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हि...
विधाता की निगाह में
कविता

विधाता की निगाह में

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** ये जिंदगी गुजर रही है आह में जाएगी एक दिन मौत की पनाह में। कर लो चाहे जितने पाप यहां हो हर पल विधाता की निगाह में। मेरी कमी मुझे गिनाने वाले सुन शामिल तो तू भी है हर गुनाह में। छल प्रपंच से भरे मिले हैं लोग दगाबाजी मुस्काती मिली गवाह में। खोने के लिए कुछ भी शेष नहीं सब खोये बैठा हूं किसी की चाह में। आंखों में छिपे हैं राज बड़े ही गहरे इतनी जल्दी पहुंचोगे नहीं थाह में। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान...
बैंक एफडी
लघुकथा

बैंक एफडी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                        राजमोहन गांव के बड़े जमींदार थे। गांव वालों की नजर में उनकी छवि सदा ही एक सम्मानित एवं साफ सुथरी व्यक्ति की रही। राजमोहन हमेशा ही दीन, हीन, भिक्षु, विकलांग वा आमजन के प्रति उदार भावना रखते थे। खुशियां सबसे बांट लेते लेकिन दुख दर्द अकेले ही झेल जाते थे। इसके पीछे उनका निजी दृष्टिकोण था। राजमोहन का बड़ा बेटा राधे घर में रहकर घर के काम खेती, किसानी में हाथ बंटाता था। एक दिन राजमोहन अपने बड़े बेटे के साथ घर में बैठे कुछ विषयों पर बात ही कर रहे थे, कि गांव के ही एक व्यक्ति राजबली अचानक आ पहुंचे। राजबली के चेहरे और हाव भाव को देखकर ही राजमोहन समझ गये कि हो ना हो इनको किसी तरह की मदद की जरूरत है। इसलिए अचानक ये हमारे पास आये....। राजमोहन बिल्कुल भी देरी ना करते हुए राजबली को बैठने को कहते हुए बोले- कहिए कैसे आना ह...
भाई की डांट
लघुकथा

भाई की डांट

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** आनंद तब से अपने बड़े भाई राजीव को जोर-जोर से डांटे जा रहा था। आनंद का कहना था- कि तुम घर से बाहर मत जाया करो। आसपास मुहल्ले के लोगों से बोलचाल मत रखो। तुम्हारी सहजता, सरलता, मृदुभाषिता के चलते लोग तुम्हारी कोई इज्जत नहीं करते। तुम सबसे प्रणाम, दुआ, सलाम करते रहते हो तो लोग तुम को हल्के से लेते हैं। हर किसी से हंसकर मुस्करा कर बात मत किया करो। लोगों की नजरों में तुम्हारी कोई अहमियत नहीं है। कोई कुछ भी काम कह दे तो फौरन कर देते हो। लोगों को समय देते हो यह सब पूरी तरह बंद करो। गंभीर बनो, लोगों से बातचीत नहीं करो। घमंडी दिखो, स्वभाव से स़ख्त रहो तब लोग इज्जत देंगे सम्मान देंगे तुम्हारी अहमियत समझेंगे। राजीव जो इतनी देर से सब ख़ामोश होकर सुन रहा था अचानक उसने ख़ामोशी तोड़ते हुए कहा कि तुम मेरे छोटे भाई होकर जब मुझे सम्मान नहीं देते। म...
हमें मोहब्बत सिखा रहे हैं
कविता

हमें मोहब्बत सिखा रहे हैं

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** पानी में कागज का घर बना रहे हैं लोग सूरज को ही अब रोशनी दिखा रहे हैं लोग। हमीं से सीखकर मोहब्बत का ककहरा आज हमें ही मोहब्बत सिखा रहे हैं लोग। है पता जबकि की टांग की टूटेंगी हड्डियां फिर भी हर बात पर टांग अड़ा रहे हैं लोग। थी मांगी दुआएं जिनके लिए मैंने कभी बददुवावों से मुझको नवाजे जा रहे हैं लोग। जग हंसाई की चिंता को कर दरकिनार खून के रिश्ते से ही सींग लड़ा रहे हैं लोग। सियासी शैतान हवाओं को बिना समझे ही मजहब के नाम पे खून बहा रहे हैं लोग। कलम से कायम,दिलों पे बादशाहत अपनी पर जानबूझ के मेरा दिल दुखा रहे हैं लोग। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प...
पछतावा
कविता

पछतावा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** किसी को सता कर जिये तो क्या जिये, किसी को रुला कर जिये तो क्या जिये। करता रहा तुम पर भरोसा अटूट हर पल, उसी को आजमां कर जिये तो क्या जिये। किया जिंदगी की जमा-पूंजी नाम तुम्हारे, उसे घटिया बता कर जिये तो क्या जिये। जिसके अश्रुधार बहे सिर्फ तुम्हारे ही लिए, उसे नजरों से गिरा कर जिये तो क्या जिये। किया जो कुछ, सब तुम्हारी खुशी के लिए, उसी का दिल दुखा कर जिये तो क्या जिये। लहू के रिश्ते जैसा ही रिश्ता था जब उससे रिश्ते में दाग़ लगा कर जिये तो क्या जिये। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक ...
तुम गैरों के संग
कविता

तुम गैरों के संग

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** मेरे सनम मुझसे ही नाराज़ हो गए, थे दिल के पास तुम, दूर दराज हो गए। मोहिनी, कामिनी, रागिनी से लगते थे अब तो तुम्हारे अलग अंदाज हो गए। कभी थे मेरे लिए कुदरत का उपहार अब गैरों के संग ख़ुशमिजाज हो गए। नभ की नीलिमा, चंद्रमा सी लालिमा थी अब तो कर्कश तुम्हारे अल्फाज हो गए। स्वप्न दिखाए खूबसूरत कल के मुझको पल में ही तुम मेरे अश्रु भरे आज हो गए। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन...
क्या हम क्या हमारा
आलेख

क्या हम क्या हमारा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                                                                   यह विचारणीय तथ्य है मित्रों कि जब हमारा जन्म होता है तब हम वस्त्र विहीन होते हैं और जब आखिरी समय पर लाश चिता पर लिटाई जाती है तब भी जिस कफ़न से शरीर ढका जाता है वह कफ़न आग की लपटों में पहले ही जल जाता है और इंसान का शरीर फिर वस्त्र विहीन हो जाता है। अर्थात दुनिया में बिना लिबास के आए और बिना लिबास चलते बने फिर समझ नहीं आता कि सारी उम्र इंसान ये तमाशाई दुसाले ओढ़ कर आखिर किसको भरमाने की कोशिश करता है खुद को या औरों को ? ये गाड़ी, बंगला, धन, दौलत, गुरुर, घमंड, सोना, जवाहरात, जमीन, परिवार? जब तन को ढँके कपड़े भी पहले जले, धर्म-अधर्म, नीति-अनीति धन दौलत जतन-जतन कर पाई-पाई जोड़ी लड़ाई-झगड़ा भी किया। कोर्ट कचहरी थाना तहसीली दुनिया भर के स्वांग रचे इस धरती पर आकर तुम ने। पर क...
आखिर हो क्या गया जमाने को
कविता

आखिर हो क्या गया जमाने को

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सच्चे दिल से साथ निभाए उसे पागल समझा जाता है दंगा, बात-विवाद को ही समस्या का हल समझा जाता है। कड़वी हकीकत कहने में जरा भी देर नहीं करता हूँ मैं दुख है कि मेरी बातों को आज नही कल समझा जाता है। पर पीड़ा देख आखों से बहते गंगाजल जैसे पावन आंसू निर्मम लोगो द्वारा आंसू को भी सादा जल समझा जाता है। बदलने वाले तो अक्सर बदल ही जाया करते हैं जमाने में ईमान, वफा,सच्चाई को भी अब केवल छल समझा जाता है। अदब से झुका वही करता, जिसमें होते संस्कार सभी अच्छे अफ़सोस जमाने में ऐसे लोगों को निर्बल समझा जाता है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां,...
बाय-बाय ट्रम्प
व्यंग्य

बाय-बाय ट्रम्प

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जी हाँ! एक दम सही पढ़ा आपने दुनिया के सर्व शक्तिशाली शख्स का तमगा अपनी छाती पर लादकर बाइडेन अब व्हाइट हाउस की गद्दी में बैठने जा रहे हैं। सर्वशक्तिशाली देशों की सूची में ओहदा रखने वाले अमेरिका को नया राष्ट्रपति बाइडेन के रूप में मिल गया है। वैसे अमेरिका के नये राष्ट्रपति के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं होंगी जब दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है और इसका सबसे ज्यादा शिकार अमेरिका ही हुआ है, अमेरिका जैसे देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, लाखों लोग बेरोजगार हैं। ऐसे में देखना यह भी होगा कि इन सभी हालातों से बाइडेन कैसे निबटते हैं। बहरहाल उगते सूरज को सलाम करने की हमारी सनातनी परम्परा रही है और आगे भी रहेगी। हमारे हिन्दुस्तान में उगते सूरज को सलाम करने के लिए इस समय देश की महनीय कुर्सी पर दो गुजराती भाऊ बैठे हैं और गुजराती भाऊ बिजनेस औ...
गोपियाँ, पहना रही हैं टोपियाँ
व्यंग्य

गोपियाँ, पहना रही हैं टोपियाँ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                                                                   भारत ही नहीं अपितु वैश्विक स्तर पर गोपियों का महत्व और वर्चस्व सदा से कायम रहा है और आगे भी रहेगा! सतयुग, त्रेता, द्वापरयुग से लेकर आज तक गोपियों के महत्व में कोई परिवर्तन नहीं है! पहले गोपियाँ पनघट में पानी भरते पायी जाती थीं, सावन में झूले झूलती पायी जाती थीं! बाग बगीचों में आपस में हास, परिहास, इठलाती, बलखाती पायी जाती थीं, तब नटखट नंदलाला इनको छेंड़ा करता था और ये हंसी खुशी छिंड़ जाया करती थीं! नंदलाला से छिड़ंकर ये इठलाया करती थीं! कहते हैं समय बड़ा ही परिवर्तनशील और परिवर्तन भरे दौर में इन गोपियों में भी भयंकर परिवर्तन आया है, अब गोपियों के हाथ में एंड्रायड मोबाइल है और ये गोपियाँ फेसबुक पर पायी जा रही हैं! स्वयं छिड़ने के बजाय अब तो फेसबुक पर खुलेआम, नंदलाला...
मेरी ग़ज़लों को आवाज दे दो
ग़ज़ल

मेरी ग़ज़लों को आवाज दे दो

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सुनो अपना दिल मुझको उधार दे दो, तुम पर ग़ज़ल कहूँ मैं थोड़ा प्यार दे दो! संग-संग हंसे और संग-संग रोंए दोनों मुझे भी अपने सुघर नेह की धार दे दो! सिवा तुम्हारे ना किसी का जिक्र करूँ मैं, अपनी चाहतों का अब ऐसा खुमार दे दो! है मुश्किल काम मोहब्बत को निभा पाना मैं कर लूंगा ये काम भी, तुम ऐतबार दे दो! एक-दूसरे का हमसाया बनकर रहें हम, मेरी ग़ज़लों को आवाज तुम एक बार दे दो! परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान सम...
हाई-वे के ढाबों सी
कविता

हाई-वे के ढाबों सी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** कुछ टूटे, कुछ छूटे, ख्वाबों सी, जिंदगी अपनी हाई-वे के ढाबों सी! अब तो वही बुलंदी पर पहुंचते हैं, ज़हन जिनका गंदा, जुबां गुलाबों सी! मेरे चरित्र को घटिया बताने वालों, तुम्हारे चरित्र से बदबू आती जुराबों सी! शब्द मैं फिजूल क्यों खर्चूं उनके लिए ज्ञान की बातें दीमक लगी किताबों सी! जाने कहाँ खो गए खुशियों भरे पल फिरती हैं घड़ी की सुईयां अज़ाबों सी! परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचो...
डर लगता है
कविता

डर लगता है

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सहमा - सहमा सारा शहर लगता है कोई गले से लगाए तो, डर लगता है। आशीष लेने कोई नहीं झुकता यहाँ स्वार्थ के चलते पैरों से, सर लगता है। अपना कहकर धोखा देते लोग यहाँ ऐसा अपनापन सदा, जहर लगता है। इंसान-इंसान को निगल रहा है ऐसे इंसान-इंसान नही, अजगर लगता है। साजिश रच बैठे हैं सब मेरे खिलाफ छपवाएंगे अखबार में, खबर लगता है। साथ पलभर का देते नही लोग यहाँ टांग खींचने हर कोई, तत्पर लगता है। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल...
राष्ट्र के प्रति नकारात्मक धारणा को तोड़ती है पुस्तक “राष्ट्र चिंतन”
साहित्य

राष्ट्र के प्रति नकारात्मक धारणा को तोड़ती है पुस्तक “राष्ट्र चिंतन”

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************  काव्य संग्रह का नाम- राष्ट्र चिंतन रचनाकार- उपेन्द्र कुमार द्विवेदी  प्रकाशक- रवीना प्रकाशक दिल्ली  कीमत- ३०० रुपये  समीक्षक- आशीष तिवारी निर्मल  राष्ट्र चेतना के मुखर कवि श्री उपेन्द्र कुमार द्विवेदी द्वारा विरचित उनका पहला काव्य संग्रह "राष्ट्र चिंतन" हाथ में आया। काव्य संग्रह की साज-सज्जा देश भक्ति की भावना से ओतप्रोत है। मुख पृष्ठ पर आजादी के दीवाने चंद्रशेखर आज़ाद की तस्वीर प्रमुखता के साथ छपी है। काव्य संग्रह "राष्ट्र चिंतन" में प्रकाशित कविताओं के माध्यम से रचनाकार ने राष्ट्रवाद के चिंतन, राष्ट्र के इतिहास और विकास को प्रस्तुत किया है। लेखक ने राष्ट्र चिंतन में भारत से संबंधित विविध विचारों को देश की संस्कृति, सामाजिक समरसता, वेदों, उपनिषदों, और आधुनिक समय में राष्ट्र की संकल्पना ने कैसे आकार लिया है, उसको विस्तार से सम...
तुम साथ रहना
कविता

तुम साथ रहना

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** दिन हो चाहे रात, तुम साथ रहना बिगड़े कोई बात, तुम साथ रहना! जिंदगी की डोर है अब तेरे ही हाथ समझ मेरे जज्बात, तुम साथ रहना! दूरियों के दिन भी जैसे-तैसे गुजरेंगे रंग लाएगी मुलाकात, तुम साथ रहना! हमारा मिलना भी अखरेगा कुछ को उठते रहेंगे सवालात, तुम साथ रहना! हर पल खड़ा मिलूंगा मैं तुम्हारे साथ चाहे जो हो हालात, तुम साथ रहना! परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय ...
रिश्ते का लिहाज़
लघुकथा

रिश्ते का लिहाज़

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                   लंबे समयांतराल बाद जिला कलेक्टर के आदेशानुसार लाकडाउन में थोड़ी छूट दी गई। ज्यादातर लोग घरों से निकल कर बाजार की तरफ चल पड़े थे, दैनिक जीवन से जुड़ी आवश्यक सामग्री की खरीदी करने के लिए। बालकनी में बैठे-बैठे मैं लोगों को बाजार आते-जाते देख रहा था, इच्छा हुई कि बाजार घूम आता हूँ। मैं भी घर से निकल पड़ा बाजार की तरफ। बाजार पहुंचकर मैं समैय्या के होटल में एक कप चाय बोलकर चाय आने का इंतजार कर रहा था, तभी मेरी नज़र पड़ी होटल में एक कोने में बैठे तीन लोगों पर, जो कि एक ही स्टूल पर बैठे थे, जिनमें एक व्यक्ति ठीक बीच में बैठे थे, और शराब की बोतल से शराब गिलास में डालकर क्रमश: पहले और फिर दूसरे व्यक्ति को बारी-बारी से दे रहे थे।जब पहले व्यक्ति शराब पी रहे होते तो दूसरे सज्जन दूसरी तरफ नज़र घुमा लेते थे और जब दूसरे सज्जन शर...
दोहरे किरदार
कविता

दोहरे किरदार

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** बाहर से खुश हैं अंदर गमों का बाजार लेके चलते हैं लोग चेहरे पे चेहरे और दोहरे किरदार लेके चलते हैं। रोटी,धोती,मकान की महती पूर्ति के लिए ही तो यहाँ हम अपने कंधों पे दुनिया भर का भार लेके चलते हैं। दिल में है हसरत स्वंय लिए बस फूल पाने की मगर दूसरों की खातिर निज हाथों में खार लेके चलते हैं। परहित में काम कोई किया ना फूटी कौड़ी का मगर दिखावे के लिए सिर्फ जुबानी रफ्तार लेके चलते हैं। पछुआ हवा का असर उनपर इस तरह हावी हुआ है अब कहाँ वो अपनी संस्कृति,संस्कार लेके चलते हैं। वो क्या जमाने का भला कर पाएंगे तुम सोचो निर्मल जो औरों के लिए केवल दिल में गुबार लेके चलते हैं। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली...
कुलक्षणी औरत
लघुकथा

कुलक्षणी औरत

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** मैं जब भी गाँव जाता तो देखता कि रामदास की घरवाली गृहस्थी के काम में हर पल उलझी ही रहती! बेचारी को पल भर की फुर्सत नहीं थी घर के काम से, शान-शौक तो जैसे सब कब के छूट चुके थे! सिर पर जिम्मेदारी का बोझ था, देखने में लगता जैसे बीमार हो बेचारी! वहीं दूसरी ओर उसका पति रामदास निहायत निठल्ला, कामचोर, पत्तियाँ खेलते हुए समय बेकार करता रहता था! घर की स्थिति बेहद नाजुक थी!गरीबी तो मानो छप्पर पर चढ़कर चिल्ला रही थी कि उसका हमेशा से शुभ स्थान रामदास का घर ही रहा है! इस बार मैं चार महीने से गाँव नही जा पाया था, लेकिन चार महीने बाद में जब गाँव गया तो देखा कि रामदास का तीन कमरे का पक्का मकान बना हुआ था! रामदास ने एक आटो भी खरीद ली थी! सब कुछ बहुत अच्छा हो गया था! मैं ने रामदास से पूछा कि इतना परिवर्तन अचानक कैसे हुआ? और तुम्हारी घर वाली नही दिख र...
मख्खनबाजी और बेईमानी आवश्यक है भाई!
व्यंग्य

मख्खनबाजी और बेईमानी आवश्यक है भाई!

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जी हाँ ! बिलकुल सही पढ़ा है आपने! खुद के द्वारा किए गए एक शोध से यह कहने में मुझे कोई गुरेज नही कि यह दुनिया सिर्फ और सिर्फ मख्खनबाजी और बेईमानी की बुनियाद पर टिकी हुई है! दुनिया में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति में मख्खनबाजी और बेईमानी का गुण विद्यमान है चाहे वह नर हो या नारी! मैं तो यह बात भी दावे के साथ कह रहा हूँ कि यदि मख्खनबाजी और बेईमानी का रास्ता छोड़ दिया जाए तो दुनिया जैसी चल रही है वैसे चल ही नहीं पाएगी! मख्खनबाजी और बेईमानी की राह छोड़ देने से सब तहस-नहस हो जाएगा! रिश्ते नाते खत्म हो जाएंगे! मख्खनबाजी और बेईमानी छोड़ देने से आपसी प्रेम और भाईचारा खत्म हो जाएगा! आपने कभी सोचा है कि एक औरत अपने पति के बारे में जो सोचती है वह कह ही नहीं सकती या एक पति अपने पत्नी के बारे में जो सोचता है वह कहता ही नहीं जीवन पर्यन्त क्यों ? क...
तुम साथ नहीं हो
कविता

तुम साथ नहीं हो

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** उसकी बंदिश में कब तक रहता तुम्ही बताओ, मैं उसके जुल्म कब तक सहता तुम्ही बताओ! जहर पीता रहा मैं अब तक खामोशी से यारों, आखिर कब तक कुछ ना कहता तुम्ही बताओ! जो छलती रही सदा अपना कह-कह के मुझको, मैं एक बार उसको क्यों ना छलता तुम्ही बताओ! मेरी उन्नति से भी वो जलती रही अंदर ही अंदर, फिर मैं ही उससे क्यों ना जलता तुम्ही बताओ! सफर में साथ छोड़ के वो बदल दी हमसफ़र, अपने वादों से मैं क्यों ना बदलता तुम्ही बताओ! गुजर गया अनमोल समय बेमतलब के रिश्ते में, बर्बाद हुआ समय क्यों ना खलता तुम्ही बताओ! परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशव...