Saturday, November 23राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: आलोक रंजन त्रिपाठी “इंदौरवी”

तकल्लुफ का कोई एहसास तो दिखलाइए
ग़ज़ल

तकल्लुफ का कोई एहसास तो दिखलाइए

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अब तकल्लुफ का कोई एहसास तो दिखलाइए जो सुकूं दे दिल को वो अल्फ़ाज़ तो दिखलाइए बेटियों के पैर में बेड़ी है इन को खोल दो इन परिंदों को ज़रा आकाश तो दिखलाइए कट गई शब ख्वाब में ऊंची उड़ानें साथ थी अब सहर की खुशनुमा परवाज़ तो दिखलाइए मैंने तो दिल को मेरे अब कैद करके रख लिया आप अपना थोड़ा सा अंदाज़ तो दिखलाइए हम चलेंगे साथ जब तक है इशारा आपका क्या क़दम है आपका आगाज़ तो दिखलाइए तितलियों को इस तरह पकड़ो ना नाज़ुक हैं बड़ी साथ में इनके यही इकरार तो दिखलाइए देश की खातिर जो सीना तान करके हैं खड़े आपको है इन पे कितना नाज़ तो दिखलाइए परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रका...
राम न कोई आएगा
कविता

राम न कोई आएगा

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सीता सीता बनी रहे तो लज्जा कौन बचाएगा रावण है बहुतेरे लेकिन राम न कोई आएगा धर्म और संस्कृति की रक्षा हमें स्वयं करना ही होगा जो इस पर आक्षेप करेगा उससे मिलकर लड़ना होगा आतताइयों से अब तक जो जुर्म सहे हैं हम सबनें अब तक रहे नहीं रहना है करूणा के इस बंधन में इन कलंकितों की भाषा में इनको कौन बतायेगा रावण हैं..... नारी अपनी शक्ति दिखाओ आत्मबली बन जाओ तुम अपनी क्षमता को पुष्टित कर दुष्टों को ललकारों तुम धैर्यवान हो तुम कृपाण हो सृष्टि तुम्हीं हो पालक हो अद्भुत क्षमता वाली तुम हो तुम्ही समाज सुधारक हो चंडी बन संहार करो जो तुमको आज सतायेगा रावण हैं..... जिस धरती पर नारी का सम्मान नहीं हो पायेगा मानवता रोकेगी किसको मानव ही मिट जायेगा लज्जा के घूंघट से जिसनें रावण को ललकारा था पतिव्रत ...
जले हैं दीप खूब झिलमिलाने दो
ग़ज़ल

जले हैं दीप खूब झिलमिलाने दो

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जले हैं दीप इन्हें खूब झिलमिलाने दो ख़ुशी को पास में आकरके गीत गाने दो चमन को आज विरासत में जो मिली खुश्बू उसे दिलों में हर मकाम पे लुटाने दो ग़रीब और अमीरी में फ़र्क छोड़ो जी सभी से हाथ मुस्कुराके अब मिलाने दो ये जिंदगी तो तीन दिन का बुलबुला ही है इसे बेख़ौफ़ होके और खिलखिलाने दो न रोककर उसे मायूस करो अब रंजन उसे भी अपना क़दम एक तो बढ़ाने दो परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, २०१६ से लेखन में अभिरुचि विशेष : आध्...
बेवफ़ा मैं हूं नहीं
कविता

बेवफ़ा मैं हूं नहीं

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम न समझो या न समझो, बेवफ़ा मैं हूं नहीं दूर हूं तुमसे मगर, तुमसे खफा मैं हूं नहीं मयकदे में मय की चर्चा खूब करता हूं मगर साथ यादें हैं तुम्हारी, ग़मजदा मैं हूं नहीं सात जन्मों की कसम है साथ तेरा है मेरा इस जहां की भीड़ में भी गुमशुदा मैं हूं नहीं मैं हवा के साथ हूं लेकर चले मुझको जहां क्या गरम ठंडी भी क्या वाद ए सबा मैं हूं नहीं गलतियां तो सब से कुछ ना कुछ हुआ करती यहां मैं भी उनमें एक हूं अब देवता मैं हूं नहीं परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ...
यूं ही बस
कविता

यूं ही बस

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब भी तुम रूठ कर न बोलोगे जानता हूं कि छुपके रो लोगे इश्क का दर्द जानता हूं मैं ये भी मुमकिन नहीं कि सो लोगे ज़िंदगी का वज़न जियादा है कैसे तन्हाइयों में ढो लोगे ग़म बहुत वैसे हैं तुम्हें हासिल खुद को इस गम में भी डुबो लोगे वक्त का इंतज़ार है मुझको साथ मेरे कभी तो हो लोगे है यकीन मुझको अपने रिश्तों में ख़ूब बारीकियों से तोलोगे याद आएगी तुमको जब मेरी अपने दामन को भी भिगो लोगे परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाश...
तुम्हें ग़म देने वाला
कविता

तुम्हें ग़म देने वाला

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम्हें ग़म देने वाला तो तुम्हारा हो नहीं सकता कलेजा जो दुखाए वो सहारा हो नहीं सकता कहां है इस ज़िंदगी में सब को अपना ख़्वाब मिलता है तुम्हारा था जो अब फिर से दोबारा हो नहीं सकता हमेशा ही तुम्हें मौका मिलेगा सच नहीं है ये तेरी तक़दीर में ऐसा सितारा हो नहीं सकता यहां तक़दीर के मारे ज़हां में और हैं देखो अकेला तू मुसीबत का भी मारा हो नहीं सकता फ़िज़ा में फूल कितने हैं इन्हें हंसते हुए देखो ख़िज़ाओं को मगर सब कुछ गंवारा हो नहीं सकता परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में ...
श्रीराम के गुणगान की महिमा
भजन, स्तुति

श्रीराम के गुणगान की महिमा

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चलो श्रीराम के गुणगान की महिमा सुनाते हैं समर्पण और भक्ति की नई गाथा सुनाते हैं सिया संग जंगलों में जो भटककर धर्म पर चलते उसी युगपुरुष के चरणों में यह कविता सुनाते हैं अनुज लक्ष्मण की भातृ भक्ति को दुनियां समझती है लखन के त्यागमय उस शक्ति को दुनियां समझती है सिया और राम के चरणों में उनका जो समर्पण था मधुर उस प्रेम की अभिव्यक्ति को दुनिया समझती है निशाचर मुक्त करके जो सदा संतो को तारे हैं जो दशरथ और माता कोशिला के भी दुलारे हैं शरण में जो चला जाता है उसको थाम लेते हैं वही श्री राम जी मेरे हृदय में प्राण प्यारे हैं किये लंका दहन जो राक्षसों को दंड देकर के विभीषण को भगति के पुष्प का मकरंद देकर के अयोध्या वासियों के साथ खुशियां जो मनाए थे दुखों से व्याप्त भक्तों को नया आनंद दे कर के प...
वक्त का इम्तिहान
ग़ज़ल

वक्त का इम्तिहान

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वक्त का इम्तिहान होता है कितना गहरा निशान होता है आंधियों में बचा कहां है कुछ वाकया ए बयान होता है मुद्दतों बाद इतनी शोहरत हो कोई इक खानदान होता है मुफलिसी में न छत न दरवाजा ना कोई आसमान होता है अपनें बच्चों की परवरिश खातिर बाप तो बागवान होता है परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, २०१६ से लेखन में अभिरुचि विशेष : आध्यात्मिक प्रवक्ता एस्ट्रोलॉजर। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्...
मन की पीड़ा
कविता

मन की पीड़ा

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब मन की पीड़ा उभरी तो मैंने उसे लगाम दिया है कठिन पलों में मैंने खुद को एक नई पहचान दिया है पीकर के अपमान घूंट का मैंने संयम पाला है दूर दर्शिता के आंगन में स्वयं हृदय को ढाला है विचलित होकर जब दुनिया के लोग यहां घबराते हैं तब हम अपनी जीवन की गाथा लिखकर उन्हें सुनाते हैं जीवन मुल्यों की धूरी पर जब जब भी आघात हुआ है और निखरकर जीनें के साहस भी एहसास हुआ है रिश्तों के ब्वहारिकता में मौकों को सम्मान दिया है जब मन.... जब तुम मुझे समझ पाओगे और अधिक इतराओगे मेरे भावों की सरिता में तब तुम और नहाओगे प्रेम नहीं ये नैतिकता है इसका मूल्य समझना होगा उछली उछली भावुकता से तुमको आज उभरना होगा गहन विचारों में डूबी जब सोच निकलकर आयेगी तब इस प्रेम कहानी की सच्चाई तुमको भायेगी समझ सकोगे शायद मैंने तुमको क्या संधा...
दर्द उनका संभालते रहना
कविता

दर्द उनका संभालते रहना

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दर्द उनका संभालते रहना कोई मुद्दा उछलते रहना मां का बच्चा ये बहुत प्यारा है इसको हरदम दुलारते रहना जो मुसीबत में फंसे हैं देखो ग़म से उनको उबारते रहना फर्ज की बात बस करो मुझसे अब तो खुद को तरासते रहना मां बड़ी है जहान दुनिया में उसको हरदम दुलारते रहना गलतियां जब भी तुमसे हो जाए हर कदम पर सुधारते रहना खूब इज्जत कमा सको रंजन रब से इतना पुकारते रहना परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, २०१६ से लेखन में अभिरुचि ...
देखने की तमन्ना तुम्हें
गीत

देखने की तमन्ना तुम्हें

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** देखने की तमन्ना तुम्हें फिर हुई तेरी गलियों से जब मैं गुजरता रहा खिड़कियों से जो देखा तुम्हें रूबरू दर्द दिल में जो था फिर उभरता रहा देखने की तमन्ना ... छू गया एक झोंका मुझे प्यार का अनसुनी एक आवाज आने लगी दिल ने दिल से कहा पास आओ मेरे प्रीत की रीत मुझको लुभाने लगी जब से तेरे खयालों में जीने लगा कोई सागर हृदय में उमड़ता रहा देखने की तमन्ना ... तेरी पहली छुवन याद आने लगी इश्क का मुझ को पहला ये एहसास था तन बदन में जो सिहरन उठी उस घड़ी तेरी चाहत का कैसा यह आभास था सांस तेरी मुझे छू गई इस तरह ख्वाब की वादियों में उतरता रहा देखने की तमन्ना ... तेरी खुशबू का अंदाज मुझको मिला और मादक बदन ये नशीला हुआ कैसी बरसात में तन ये भीगा हुआ आंख का रंग फिर से रंगीला हुआ तेरे मेरे मिलन की घड़ी आ गई तुम म...
मुहब्बत के हंसी पल
कविता

मुहब्बत के हंसी पल

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मुहब्बत के हंसी पल जब भी मुझको याद आते हैं मुझे उस प्रेम की रस्सी में कसकर बांध जाते हैं कदम बढ़करके मुझको आसमां तक लेके आया है यहां हम अपनी दुनिया के नए नगमें सुनाते हैं मुहब्बत की कई तस्वीर मुझको और गढनी है कसमकस है बहुत फिर भी यहां हम मुस्कुराते हैं निभाकर फर्ज हमनें मुश्किलों को खूब देखा है मगर इसके सिवा रस्ता कहां हम देख पाते हैं चलो कुछ दूर तक चलकर यहां आबोहवा देखें सुना है आदमी ही आदमी को काट खाते हैं यहां दुख दर्द को सुनकर नहीं कुछ फर्क पड़ता है मुसाफिर हैं सभी फिर भी मुसाफिर को सताते हैं न जानें कौन सी मंजिल पे जाने की कवायत है भटकते लोग भी रस्ता यहां सब को बताते हैं परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेख...
अपनी तकदीर लेके आया हूं
कविता

अपनी तकदीर लेके आया हूं

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अपनी तकदीर लेके आया हूं अब न तेरे लिए पराया हूं दूर तक देख लो मुझे तुम भी याद का सिलसिला बनाया हूं जिंदगी खुद नहीं समझ पाई कितने किरदार में समाया हूं वक्त को हम समझ नहीं पाए आस फिर भी कहीं लगाया हूं लोग नफरत की बात करते हैं बस इसी खौफ का सताया हूं जितने गम भी मिले जमानें में उनको दिल में छुपा के लाया हूं खुद पे मुझको यक़ीन है रंजन अपना रस्ता नया बनाया हूं परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, २०१६ से लेखन में...
एक रस्ते के मुसाफिर
कविता

एक रस्ते के मुसाफिर

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक रस्ते के मुसाफिर आप भी हैं हम भी हैं अब तो इस गुलशन में हाजिर आप भी हैं हम भी हैं खूबसूरत साज है दिलकश यहां आवाज है इश्क की नजरों में कातिल आप भी हैं हम भी हैं आज पैमाने छलककर होठ तक आये मेरे दर्द में इस दिल के शामिल आप भी हैं हम भी है जाम आंखों से जो पीकर होश मैंने खो दिया अब इसी महफ़िल के काबिल आप भी हैं हम भी हैं जिस अदा से आपनें दस्तक दिया दिल पर मेरे बस उसी खुशबू की हाशिल आप भी हैं हम भी हैं। परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के ...
दर्द सहकर भी
कविता

दर्द सहकर भी

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दर्द सहकर भी विजयपथ की तरफ बढ़ना पड़ेगा मंजिलें हैं पास फिर भी दो कदम चलना पड़ेगा हर नये संकल्प का आगाज़ साहस से करें हम तोड़कर इक दायरा अब सीढियां चढ़ना पडेगा चांद पर भी दाग़ का धब्बा दिखाई दे रहा हर तरफ आकाश ही उड़ता दिखाई दे रहा मन की ये ऊंची उड़ानें ब्योम तक पहुंचेगी कब तक इस समन्दर में ये मन घुलता दिखाई दे रहा कब तलक इन आंधियों के बीच में रहना पड़ेगा दर्द सहकर भी ...... प्यास की चिंगारियों के बीच कैसे नींद आये इस पिपासा को बुझाने का कोई रस्ता बताये धैर्य भी है चैन भी है फिर भी कुछ खलती कमी है कोई मेरे पास आकर प्रेम की लोरी सुनाये बिखरते सपनों को सिलकर चादरें बुनना पड़ेगा दर्द सहकर भी ...... जिस खुशी के वास्ते हमनें सभी संकल्प त्यागा जिसकी यादों में विलय होता रहा दिन-रात जागा उस शिखर के...
कैसा हिंदुस्तान चाहिए …
कविता

कैसा हिंदुस्तान चाहिए …

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कैसा हिंदुस्तान चाहिए बोलो तो बतलाऊं मैं घर कैसा मेहमान चाहिए बोलो तो बतलाऊं मैं जिसकी गलियों में नित गूंजे वेद मंत्र की पावन धुन जिसके हर घर पर अंकित हो स्वास्तिक और शुभ लाभ सगुन जिसकी नदियों के कलरव में राम कृष्ण शिव गान रहे जिसकी मस्तक पर इस जग में विश्व गुरु पहचान रहे बस ऐसी पहचान चाहिए बोलो तो बतलाऊं मैं कैसा.... इस धरती का कण-कण ही भारत मां का यशगान करे चाहे किसी धर्म को माने पर सबका सम्मान करे आपस में सद्भाव रहे मानवता का अनुराग रहे स्वार्थ सिद्धि से ऊपर उठकर सब में सच्चा भाव रहे बस ऐसा इंसान चाहिए बोलो तो बतलाऊं मैं कैसा.... राजनीति परिवारवाद निज स्वार्थ वाद से दूर रहे नेताओं में अपनी संस्कृति के प्रति सच्चा राग रहे सत्य सनातन के आदर्शों के प्रति सबकी निष्ठा हो हिंद देश हिंदी भाषा की...