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Tag: अशोक पटेल “आशु”

जीवन में रंग भर जाए
कविता

जीवन में रंग भर जाए

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मैं तेरे प्यार में रंग जाऊं होली के रंगों की तरह मेरे जीवन में बहार आ जाए वसन्त के ऋतु की तरह। मैं तेरा हमसफर बन जाऊँ बागों के बागबान की तरह मेरा जीवन भी महक जाए फूलों के खुशबू की तरह। मैं तेरा सिंदूरी रंग बन जाऊँ पलास के फूलों की तरह मेरे जीवन मे रंग भर जाए रंगीले फागुन की तरह। मैं तेरा संगीत बन जाऊँ फागों के सरगम की तरह मेरा मन-मयूरा झूम जाए बांवरा भ्रमरों की तरह। मैं तेरा भ्रमर बन जाऊँ फूलों के दीवानों की तरह ये तनमन मदहोश हो जाए मधु के पीने वालों की तरह। मैं तेरा प्रेम दूत बन जाऊँ वसन्त के कोयल की तरह मेरे जीवन में मदहोशी आए अमराई के बौरों की तरह। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
पिता का साया
कविता

पिता का साया

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** जीवन मे पिता का साया होती है सुकून भरी छाया। पिता से है जो प्यार पाया जीवन में आनन्द समाया। पिता हैं बच्चों का साया जो बुरी नजरों से बचाया। जिसने प्यार सदा लुटाया तभी पिता वो कहलाया। पिता ने गिरने से बचाया अपने को बैसाखी बनाया। पिता ने चलना सिखाया गिरते हुए हृदय से लगाया। पिता ने मुझे खड़ा कराया मंजिल का राह दिखाया। पिता ने कष्टों को भगाया मेरे बोझ कंधों से उठाया। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
होली के रँग में…
कविता

होली के रँग में…

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मैं होली के रँग में... मैं होली के रँग में रँग जाना चाहता हूँ मैं होली रँग में भीग जाना चाहता हूँ मैं रँगों में सराबोर हो जाना चाहता हूँ मैं गीले शिकवे भूल जाना चाहता हूं मैं होली के रँग में..... मैं सारे इर्ष्या द्वेष मिटा देना चाहता हूँ मैं नफरत की दीवारें गिराना चाहता हूँ मैं उँच-नीच की खाई पाटना चाहता हूँ मैं दुश्मन को भी गले लगाना चाहता हूँ मै होली के रँग में.... मैं बुराई की कालिख मिटाना चाहता हूँ मैं अच्छाई की रँग लगा देना चाहता हूँ मैं प्यार अमन का पैगाम देना चाहता हूँ मैं मानवता रँग दिलों में भरना चाहता हूँ मैं होली के रँग... मैं अधर्म के झगड़े मिटा देना चाहता हूँ मैं अनीत की होली जलाना चाहता हूँ मैं असुरता की होली जलाना चाहता हूँ मैं सुरता के राम राज्य लाना चाहता हूँ मैं होली के रँग.... परि...
नजरिया
लघुकथा

नजरिया

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** ठंड का प्रातःकालीन समय। हवाओं में ठंडकता घुल रही है। हल्की-हल्की छवाएँ भी चल रही है। इस कारण थोड़ी सिहरन महसूस हो रही है।ठीक ऐसे ही समय मे तीन दोस्त प्रातः कालीन सैर करते हुए खेत-खलिहानों की तरफ निकल जाते हैं। ऐसे प्रातःकालीन सौंदर्य को देखकर, एकटक देखते हुए तीनो दोस्त ठिठककर रह जाते हैं। और अनायास अपने आप बोल उठते है "वाह! कितना प्यारा मनोरम दृश्य है।" प्रकृति के इस अनन्त रमणीयता को देखकर सिर झुकाते हुए पहला दोस्त बोल पड़ता है। "वाह! यदि यह हंस चिड़िया मुझे मिल जाए तो बाजार में अच्छे दाम मिल जाएंगे।" दूसरा दोस्त अपनी थैली को सहलाते हुए बोल पड़ता है। "वाह! यदि इस हंस चिड़िया को शिकार करके खाने को मिल जाए तो मजा आ जाए।" तीसरा दोस्त जीभ को होठों से घुमाकर चटकारा लगाते हुए कहता है। दूसरे और तीसरे दोस्त के इस बेवकूफी भरी बातों को ...
पेट की आग
लघुकथा

पेट की आग

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** सुबह के दस बजे का समय सड़क पर काफी चहल-पहल शुरू हो गई थी, ठीक ऐसे समय मे एक सरकारी कार्यालय का चपरासी रामु अपने कार्यालय को खोलने और साफ-सफाई करने के लिए घर से निकलता है, तभी उसको पास में नास्ता करते हुए कचड़ा बीनने वाले को जलपान करते हुए देखा। यह वही कचड़ा बीनने वाला बिरजू था, जो रोज की तरह आज भी नास्ता कर रहा है। यह बिरजू रामु की पड़ोस में ही रहता था। जब आज रामु से रहा नही गया तो उसने पूछ ही लिया। क्यों रामु? तुमको बीमारी से डर नही लगता? बिरजू ने पूछा क्यो? तब रामु ने कहा- "अरे भई बिरजू तुम कचड़ा बीनने का काम करते हो, तुम यहाँ वहाँ घूमते रहते हो, तुम्हारे हाथ पांव कितने खराब रहते हैं, साबुन से अच्छे से धोकर जलपान किया करो, तुमको बीमारी हो सकती है।" तब वह बिरजू कहता है- "रामु काका तुम ठीक कहते हो पर क्या करें? ये हमारी मजबूरी है ब...
नही आती है चिड़िया
कविता

नही आती है चिड़िया

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** घर के चौखट में टँगी है धान की बालियाँ घर-आँगन सुनी है नही आती हैं चिड़ियाँ। खन-खनाती झालर में लगे धान के दाने ज्यों का त्यों है, नही आती चिड़िया खाने। अब शांत हो गई है चिड़ियों का कलरव आँगन में बेला पुष्पित है पर छाई नीरव। ये चिड़िया हमसे नाराज हैं,सहमी हुई है ये चिड़िया हम से लोगों से जख्मी हुई है। ये चिड़िया हमारे हितैषी हमारे साथी हैं इससे प्रकृति के उषा में खनक आती है। चिड़ियों से प्यार करो, घर को घर बनाओ प्रकृति गुलजार करो, इन्हें भी चहकाओ। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर...
हमारी संस्कृति हमारा आस्तित्व
आलेख

हमारी संस्कृति हमारा आस्तित्व

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मानव जीवन पुरी तरह से संस्कृति पर आधारित होता है। बिना सस्कृति के जीवन निर्वाह सम्भव नही है। संस्कृति हमारी और अपने देश की पहचान होती है। वैसे तो हर देश की हर प्रांत की अपनी अलग-अलग संस्कृति होती है। और सभी को अपनी संस्कृति से बेहद प्यार भी होता है। और इसी संस्कृति से ही मानव, समाज, देश उन्नति-प्रगति के मार्ग पर अग्रसर हो पाता है। और इसी से ही वह अपनी परम्पराएँ रीति-रिवाज, धर्म-आस्था-विस्वास, सामाजिक-एकता, खान-पान, रहन-सहन को अक्षुण बना पाता है। और इस प्रकार से वह अपनी संस्कृति का पोषण कर पाता है। और वह पुष्पित पल्लवित हो पाता है। आने वाली नई पीढ़ी के लिए वह मार्गदर्शन का काम करती है। और उसी मार्ग पर चल कर वह अपने आप को एक सुसभ्य इंसान बनाने में सफल हो पाता है। एक तरह से यह संस्कृति हमारी थाती है। हमारा धरोहर है। हमारी पूंजी है। हम...
साहित्य की सबसे बड़ी धरोहर वसन्त ऋतु
आलेख

साहित्य की सबसे बड़ी धरोहर वसन्त ऋतु

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** "जीवन में उत्साह का प्रतीक- वैदिक साहित्य से लेकर उपनिषद वेद पुराण और महाभारत,रामायण सहित कालिदास और हिंदी साहित्य के इतिहास पर जब हम दृष्टि डालते हैं तो हम यह पाते हैं कि इन सभी कालों के कवियों ने ऋतुओं पर एक से बढ़कर एक सुंदर साहित्य सृजन किया है। पर वसन्त ऋतु के सौंदय पर जो वर्णन हुआ है,वह कहीं और अन्यत्र देखने को नही मिलता। विशेष करके कामदेव की ऋतुराज वसन्त पर जो लेखनी चली है वह साहित्य के इतिहास की अनमोल धरोहर मानी जाती है। जिसने हिंदी को उपकृत ही नही किया बल्कि इसे पुष्पित पल्लवित और सुरभित भी किया है। इस ऋतु में प्रकृति सोलह सृंगार से युक्त पलास महुए आम की सौरभता मदमस्त कराती सुरभित सुंदरता। फागुन के फाग की मस्ती और रंगीली वातावरण को उत्साह से भर देती है। इस वसन्त का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इस दिन विद्या दायिनी माँ...
मेरा प्यारा गांव
कविता

मेरा प्यारा गांव

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मेरा सुंदर सबसे प्यारा गाँव है मेरा सुंदर सबसे न्यारा गाँव है। जहाँ बरगद का शीतल छाँव है जहाँ पीपल का शीतल छाँव है। जहाँ पंछी का चाँव-चाँव है जहाँ सुर-संगीत का भाव है। जहाँ रवि को पहले प्रणाम है जहाँ करते पहले ये काम है। जहाँ करते जलाभिषेक है जहाँ करते काम विशेष है। जहाँ ग्वाल-बाल गायें चराते हैं जहाँ बंशी की धुन मन भाते हैं। जहाँ गायें व बछड़े रम्भाते हैं जहां ग्वालों के टेर सुनाते हैं। जहाँ रहँट-घिरनी की धुन आती है जहाँ पनघट की आभाष कराती है। जहाँ खेतों में फसल लहलहाते हैं जहाँ खुशी के गीत गुनगुनाते हैं। जहाँ बगीचों में फूल मुस्काते हैं जहाँ रसीले फल मन लुभाते हैं। जहाँ तालों में कमल मुस्काते हैं जहाँ स्वच्छ जल लहरा लगाते हैं। जहाँ जंगल-पठार मन को भातें हैं जहाँ के हरियाली मन को सुहाते ...
मेरा हिन्दू नव वर्ष
कविता

मेरा हिन्दू नव वर्ष

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मैं इस धन्य-धरा का हिन्दू हूँ मेरा घर-संसार हिंदुस्तान है। मैंने इस मिट्टी में जन्म लिया इसका बहुत मुझे अभिमान है। हम भारतवासी सच्चे हिन्दू हैं हम सब विक्रम संवत मनाएंगे। चैत्र प्रतिपदा तिथि को मिलके हिन्दू जनजन नव वर्ष मनाएंगे। आओ नमन करें हम जनजन विक्रमादित्य महान सम्राट को। आओ अभिनन्दन, स्वागत करें ऐसे प्रतापी महाराजा विराट को। आइए हम सब बहिष्कार करें विदेशी सभ्यता, संस्कृति को। आइए हम और अंगीकार करें सनातन भारतीय संस्कृति को। आइए भगवा झंडा फहराएंगे भारत की जयकारा लगाएंगे। अपने धर्म का सम्मान बढाएंगे भारत माँ का सर ऊंचा उठाएंगे। तुझसे ही हम सबकी पहचान है तुझसे ही हमारा स्वाभिमान है। तू ही सर्वस्व हमारा सब कुछ है तू ही हम सब का अभिमान है। हे माता तेरी मिट्टी की सौगंध है हम तेरी लाज सदैव बचाएंग...
तेरे बुलंद में सितारे हैं
कविता

तेरे बुलंद में सितारे हैं

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** जोश-जज्बा मत खोना तेरे बुलंद में सितारे हैं कभी आशाएँ मत खोना मंजिल राह निहारें हैं। मुकद्दर तू ही लिखेगा फैसला तेरे ही हाथों है तेरी किस्मत चमकेगी तेरा सितारा भी चमकेगा। जीवन एक लड़ाई है जहाँ संघर्षों का रेला है ये आसान नही जीवन पग-पग में झमेला है। पसीना जब तू बहायेगा तभी तू इतिहास बनाएगा हौशला जब तू दिखायेगा सितारा तभी जगमगायेगा। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां,...
तुम चाँद हो पूनम का
कविता

तुम चाँद हो पूनम का

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** तुम चाँद हो पूनम का मैं तेरा ही चितचोर हूँ। तुम चाँद....मैं तेरा... तुम सावन की फुहार हो मैं प्यासा उमस का थार हूँ तुम शीतल ठंडी बहार हो मैं पतझर का तलबगार हुँ। तुम चाँद....मैं तेरा.. तुम बाग के खिलते फूल हो मैं मंडराता बांवरा भ्रमर हूँ, तुम सुरभित फुल बयार हो मैं प्रतिक्षित राही डगर हूँ। तुम चाँद....मैं तेरा.. तुम उषा सिंदूरी लाली हो मैं आतुर दिवस वासर हूँ। तुम सुनहरी लाली आभा हो मैं तुमसे ही होता उजागर हूँ। तुम चाँद....मैं तेरा.. तेरे बिना मेरा कुछ नही है तू तो मेरा सर्वस्व संसार है तू ही आसरा तू ही आधार है तुमसे जीवन ये खुशगवार है परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्...
स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
कविता

स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा मंगल-बेला है अति प्यारा। नव-किरण है नव प्रभात नव-दिवस की है शुरुवात। रवि की दमकी है कांतियाँ फैल रही है स्वर्ण-रश्मियाँ। स्वागत करने को है मगन खग-वृन्द बंदी ये जन-जन। चहुँ-दिसि है प्रसन्नता छाई कण-कण में है रंगत आई। बागों में है फूल खिल आई कलियाँ भी देखो मुस्काई। नव वर्ष देखो अब आया है नई आशा मन मे समाया है। नई संकल्पों का संचार करें नई उम्मीदों पर ऐतबार करें। नव वर्ष में कुछ नया करेंगे मन मे हम प्रीत के रंग भरेंगे। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन...
तेरी ईर्ष्या में …
गीत

तेरी ईर्ष्या में …

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** तेरी ईर्ष्या में क्या रखा है, जरा प्यार करके तो देख। यह जिंदगी बड़ी प्यारी है जरा यकी करके तो देख। ये जिंदगी कितनी हसीन होगी, किसी को उपहार दे के तो देख। तेरी ईर्ष्या में..... इस ईर्ष्या में बड़ी तपन है, इसे शीतल करके तो देख। यह शोला है और अगन है, तू इसको बुझा के तो देख। इसी धरा में जन्नत उतर जाएगी, किसी को उपकार करके तो देख। तेरी ईर्ष्या में..... ये ईर्ष्या ये जलन बड़ी बुरी है, इस जलन को तू बुझा के देख। मन को मन से ये करती दूरी है, तू जरा सा पास आ के देख। ये जिंदगी तेरी सवँर जाएगी, तू जरा सा प्यार करके तो देख। तेरी ईर्ष्या में..... परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं...
प्यार बाँटना सीखो
कविता

प्यार बाँटना सीखो

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** अपनो के लिए हम सभी जी लेते हैं कभी गैरों के लिए भी जीना सीखो। सिर्फ अपने लिए जिया तो क्या जिया कभी गैरों के लिए कुछ करना सीखो। इंसान है तो इंसानों का फर्ज भी निभा कभी गैरों के लिए इंसानियत सीखो। यह खुशियाँ तुझ पर खूब मेहरबान है कभी गैरो के लिए इसे लुटाना सीखो। किसी को गम देना तुझे खूब आता है कभी गैरों के लिए आँसू पोछना सीखो। किसी के चेहरे को रुलाना खूब आता है कभी गैरों के लिए मुस्कान देना सीखो। यह जिंदगी सदा खुशियों से भर जाए कभी गैरों के लिए प्यार बाँटना सिखो परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
मेरे देश की पावन मिट्टी
कविता

मेरे देश की पावन मिट्टी

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मेरे देश की पावन मिट्टी, तुझको शत-शत प्रणाम है। तुझको मेरा तनमन अर्पण ये जीवन बस तेरे नाम है। तू मेरा आस विश्वास है, तू ही मेरा स्वाभिमान है। तुझमे ही मेरी आस्था है, तू ही तो जग में महान है। तू ही तो त्याग की मूरत है, तू ही धैर्यता की मिशाल है। तुझमे ही सहनशीलता है, तू अद्वितीय है बेमिशाल है। साश्वत तेरा अस्तित्त्व है सत्ता को तेरा आभार है। तू ही सबका पालनहार है तू ही तो सबका आधार है। तेरी महिमा बड़ी महान है तेरी कृपा सभी को समान है हम करे सब यही आभार है तेरा सब पर रहे उपकार है। मैं तेरा ऋण क्या चुकाऊंगा, ये सामर्थ्य मैं नही ला पाऊंगा। तुझमे बस ये तनमन अर्पित है, ये धृष्टता बस मैं कर जाऊंगा। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मै...
जज्बा ये जोश बाक़ी है।
कविता

जज्बा ये जोश बाक़ी है।

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** अभी भी हमारे दिलों में जज्बा ये जोश बाक़ी है। मेरे देश को आंच न आये अभी होशो-हवास बाकी है। अपने वतन के लिए ये जिस्मो-जान बाकी है। कुछ काम आ सके हम वक्त पर ये जज्बात बाकी है मिट्टी का रखो ध्यान इस मिट्टी का एहसान बाकी है। मिट्टी के बिना हम कुछ नही इसका मोल चुकाना बाकी है। वतन के राह जो फना हुए उनके लिए जीना बाकी है। उनकी शहादत जाया न हो उनके लिए इबादत बाकी है। उनकी शहादत को सलाम है अभी हमारी खिदमत बाकी है। उन्होंने जो समर्पण किया है उसका कीमत चुकाना बाकी है। ओ आसमा से जमी को देखते होंगे अभी भी हम में कुछ कमी बाकी है। जीते जी कुछ अच्छा करलो यारों अभी भी वक्त और जज्बा बाकी है। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता...