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मैं बहती नदी हूं
कविता

मैं बहती नदी हूं

अर्चना तिवारी वड़ोदरा (गुजरात) ******************** मैं बहती नदी हूं मुझे बहने दो न..... अपूर्णता ही मेरी पहचान है पहाड़ों से जल भर सागर तक मुझे बहने दो न..... पूर्ण होते ही रुक जाऊंगी कईयों की निर्भरता है मुझ पर उनकी तृष्णा बुझाने दो न .... पूर्ण होते ही सिमट जाऊंगी मुझे अपनी अपूर्णता पर मिलती खुशियां है..... हां कुछ कमियां है मुझ में पर यह कमियां मेरी पहचान बने ..... ये खुशियां बरकरार रहने दो न मैं बहती नदी हूं मुझे बहने दो न.... परिचय :- अर्चना तिवारी निवासी : वड़ोदरा (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवान...
सहेजना
कविता

सहेजना

अर्चना तिवारी वड़ोदरा (गुजरात) ******************** हम औरतें सहेजने का हुनर खुद ब खुद सीख जाती है बचपन की यादों को सहेज मायके से विदा होती हैं जिंदगी के सुखद पलों को दोस्तों के संग बिताए किस्सों को सहेजती किसी खजाने की तह में नहीं होती है ऊब कभी उन्हें पुरानी यादों में डूबने पर घंटों खुद से खुद ही बातें करती हैं खुद की तलाश में विचरती हैं सहेज न पाती है वह अपनों से मिली उपेक्षा को बेवजह के दिए उनके पीड़ा को उस दर्द को असह्य हो निकल पड़ती जब सैलाब आ जाता अश्कों का तरती उबरती रहती उसमें सहेज न पाती बिखरती सागर की लहरों को दिखा न पाती अपने नासूर को परिचय :- अर्चना तिवारी निवासी : वड़ोदरा (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय ...