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पितरों की शान्ति
आलेख

पितरों की शान्ति

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पिंड और प्राण का संयोग कोई विशेष लक्ष्य लिए होता है। वह पूरा होते ही वियोग निश्चित होता है। तात्पर्य यह हैं कि शरीर और आत्मा ये दोनों ही अलग है। आत्मा अविनाशी, चेतन ज्योति बिन्दु, शान्त स्वरूप होती है। शरीर हाड, मांस, रक्त से बनी भगवान की अनुपम कृति है। जिस अवचेतन में चेतनता आत्मा के संयोग से आती है। आत्मा में ८४, जन्मों के कर्मों का लेखा-जोखा जमा होता है। वह उसे जन्म मृत्यु के चक्र में पूरा करती है। इस प्रकार चार युग सतयुग त्रेता युग, द्वापर युग, कलियुग में आत्मा अपने घर ब्रह्म तत्व से स्थुल लोक पृथ्वी पर समय अनुसार आकर अपना पार्ट इस शरीर के माध्यम से सृष्टि रुपी रंगमंच पर अदा करती है। ठीक पांच हजार साल के सृष्टि चक्र में उसे चक्र लगाना होता है। अतः देह से ही सारे संबंध होते हैं। आत्मा ने देह छोड़ा वैसे ही सारे संबंध दूसरे जन्...
कमाल की दवाई
लघुकथा

कमाल की दवाई

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "कमरे से बाहर जाओ ... !!" सुहानी ने बच्चों को डांटते हुए कहा। "नहीं हम बाहर नहीं जायेंगे। हम होस्टल से घर हमारी दादी से मिलने आये हैं। पूरा समय उनके साथ रहेंगे। सुहानी नर्स थी। परेशान हो गई। बच्चों को डांटने लगी। आवाज सुनते ही दादी ने आंखें खोली। और सुहानी को कहा, बच्चे मेरी ताकत है। तुम्हें मेरी देखभाल के लिए नियुक्त किया है। इन्हें डांटने के लिए नहीं। दादी मैं तो आपकी भलाई के लिए कह रही हूं, रूआंसी हुई सुहानी कमरे को संवारने लगी, कनखियों से दादी को देखते हुए आश्चर्य चकित थी। अस्पताल से डाक्टर ने यूं कहकर घर भेज दिया था कि ये कुछ दिनों की मेहमान है। उसने सुना बच्चे कह रहे थे, दादी, मम्मी पापा तो आफिस गये हैं आप ही हमें आपने हाथ से खिला दो ना। दादी का चेहरा चमक रहा था। सुहानी को आवाज लगाई। मुझे रसोई में ले चल। बच्चों को मैं अपने ह...
फागुनी बयार
कविता

फागुनी बयार

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन की हर घड़ी, रंगीला एहसास दे जाती। शीत भय को हर लेती, मोहक बहारें वसन्त की। टेसू के फूलों की, सरसों की पीली चूनरी ओढ़े धरा गौरी प्यारी सी। उमंग उल्लास से भरी फागुनी बयार बौराई सी। पतझर के बाद सजती, ये शाखाएं नव कोंपलों से। आम्रमंजरी से शोभित होती, अमराई मन मोह लेती। डाल पर बैठी कुहू कुहू करती, कोयल झूमने लगती। ऐसे फागुनी बयार खुशी की, दस्तक दे जाती, पुराने किस्सों को ताजा कर देती। लगी मस्ती की पाठशाला, चहुंओर गूंज उठी, फागुनी गीतों की ध्वनि । ऐसे फागुन की हर घड़ी, रंगीला एहसास दे जाती। परिचय :- अमिता मराठे निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुकेशन, अनेक प्रशिक्षण जो दिव्यांग क्षेत्र के लिए आवश्यक है। वर्तमान में मूक बधिर संगठन द्वारा संचालित आई.ड...
विश्व में हिन्दी का परचम
आलेख

विश्व में हिन्दी का परचम

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्तजी ने कहा था कि हिन्दी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है‌। दुनिया भर में हिन्दी का विकास, प्रचार प्रसार करने के उद्देश्य से हर साल विश्व हिन्दी दिवस दस जनवरी को मनाया जाता है। हिन्दी अब अपने साहित्यिक दायरे से बाहर निकलकर व्यापक क्षेत्र में प्रवेश करते हुए अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में अपना गौरव फ़ैलाने की तैयारी में है‌। संयुक्त राष्ट्र की अधिकारिक भाषाओं में हिन्दी को स्थान दिलाने का प्रयास अविरत चल रहा है। इसके पूर्व देश में सरल, सुबोध, सशक्त, मीठी हिन्दी भाषा के प्रति सम्पूर्ण जागरूकता एवं अनुराग पैदा कर देश का हर बच्चा कहें हिन्दी मेरी राष्ट्र भाषा है। हिन्दी की वैश्विक प्रभुता, उपयोगिता और महत्ता दर्शाने के उद्देश्य से आयोजित हो रह...
नाक रगड़ना
लघुकथा

नाक रगड़ना

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अबे साले, आज भी तूने स्कूल के सामने खड़े होकर लड़कियों को छेड़ा। तुझे शर्म आनी चाहिए। कुछ उम्र का तो लिहाज रखता, कहते हवलदार ने आव देखा न ताव, हाथ का डंडा पीठ पर दे मारा। वह हे राम ! कहते, लड़खड़ाते नीचे गिर पड़ा। अब राम याद आ रहा है। घूरकर देखते समय आंखें निकाल लेता, मारने के लिए हवलदार के हाथ का डंडा ऊपर ही रह गया। सोहन ने हाथ पकड़ कर कहा, देखो हवलदार साब आप सही नहीं है, जानकारी पूरी लेकर हाथ चलाना चाहिए। सोहन गुरुकुल का समझदार लड़का था। प्यारेलाल फटेहाल प्रौढ़ था। वह अक्सर स्कूल से घर जाती बालिकाओं पर नजर इसलिए रखता था कि, कहीं मनचले लड़के तंग न करें। चल जा, "बड़ा आया अपनी ताक़त दिखाने वाला। तुम्हें क्या मालूम ये आदमी कैसा है।" सोहन को झटककर बाजू में कर दिया। प्यारेलाल ने हवलदार के सामने ख़ूब नाक रगड़ी, लेकिन उसने उसे छोड़ा नही...
सूर्य का अक्षय भंडार
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सूर्य का अक्षय भंडार

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विश्व की सभी समस्याओं का समाधान किसमे हो सकता है? यदि इस प्रश्न का उत्तर खोजें तो पता चलेगा, अनादि, आदि, अविनाशी, सूर्य की असीम शक्ति इनका निराकरण सहज करती है। सूर्य के पास ज्ञान, तेज, अद्भुत शक्ति का अक्षय स्त्रोत है। सूर्य दर्शन, सूर्य नमस्कार, सूर्य अर्घ्य, सूर्य पूजा सभी भारतीय संस्कृति में महत्व रखते हैं। तात्पर्य चमकता हुआ अप्रतिम सूर्य सौन्दर्य की खान तथा उत्साह, विकास, आशा का प्रतीक है। सम्पूर्ण सृष्टि पर निरन्तर कर्मनिष्ठ गतिशील सूर्य प्राणी जगत के लिए प्रेरणा स्त्रोत है। यदि हमें सूर्य का प्रकाश कम मिले तो आलस्य सुस्ती तथा शारीरिक व्याधी में वृध्दि हो जाती है। सूर्य का सभी सभ्यताओं तथा मानव प्राणी के साथ सीधा संबंध रहा है। क्यों कि सूर्य अपना कार्य सभी के कल्याणार्थ सम्पन्न करता है। देश के अनेक पर्व भी सूर्य से संबं...
प्रकाश का महापर्व
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प्रकाश का महापर्व

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** धन त्रयोदशी से पांच दिन दीपावली महापर्व आरम्भ होता है। इस पर्व का साल भर बेसब्री से इंतजार होता है। ये सनातन धर्म का महा उत्सव है। रूप चौदस, महालक्ष्मी पूजन, गोवर्धन पूजा से होते हुए पांचवें दिन भाई दूज पर पूरा होता है। लेकिन उसका आनन्द मन में तुलसी विवाह तक बना रहता है। भारतीय संस्कृति में इस त्यौहार की महत्ता बहुत अधिक है। यही जीवन का सर्वोच्च आनन्द बिंदु है। खुशी, विजय, उल्लास, सामाजिक जुड़ाव और उजास के इस पर्व में प्रेम, स्नेह से मिलन समारोह मनाये जाते हैं। अनेक वर्षों के मन मुटाव भी मीट जाते हैं। भाई-बहन का अटूट प्रेम का प्रतीक भाई दूज पर्व पांच दिन की खुशियां बटोरकर झोली में डाल देता है। बीते दो वर्षों में इस पर्व पर कोरोना रुपी दानव का साया छाया हुआ था। इस संक्रमण के रोग के कारण हम इस उजास के पर्व को उत्साह से नहीं मना पाये ...
अहंकार
कविता

अहंकार

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अहंकार की राजशाही इस कदर हावी होती त्रुटि स्वीकार न होती दर्प में लवलीन होती। सोच लो ज़रा रुक जाओ देख तो लो कौन है सही। अनबन हो या गलती गर्व से शुरू होती । अहंकार की राजशाही इस कदर हावी होती। अंतिम दृश्य विनाश का देख रही है ये दृष्टि समस्याओं का मूल कारण हमारी घमंड़ वृत्ति। सारा खेल बिगाड़ती दुःख के दिन देखती। व्यक्तित्व का पतन चरित्र का होता हनन। सदा अभद्र व्यवहार करती दुराचार व्यभिचार की जननी। आंखों पर बंधी अहंकार की पट्टी। स्वीकारने की वृत्ति एक कदम आगे लाती। ईश्वर अर्थ समर्पित कर हर कर्म सार्थक करती। ग़लत और सही का भेद जानकर दे दो अहंकार की आहुति। तब समाप्त होगी अहंकार की राजशाही। परिचय :- अमिता मराठे निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुके...
गणपति बप्पा
कहानी

गणपति बप्पा

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मम्मा बहुत रो रही थी। उसकी आंखें रोते हुए सूज गई थी। लाल आंखों से सूना पूजा घर देखते ही फफक पड़ती थी। पापा ने सभी मूर्तियां फोटो एक बेग में भरकर रख दिए थे। उन्हें नदी में विसर्जित करने के लिए गाड़ी बाहर निकालने के लिए चले गये। मम्मा रोते हुए बोल रही थी, इसमें इन देवी देवताओं का क्या दोष है। भले घर में रहने दो पूजा अर्चना नहीं करेंगे। ऐसा सूना पूजा घर अच्छा नहीं लगता है। पलट कर पापा ने कहा, सारा दिन देवताओं की कृपा कहना और सही पुरुषार्थ को राम राम कहना। करतबगार बनना, देवो जैसा बनना ये भावनाएं तो बाजू में रह गई, बस सब कुछ भगवान की कृपा कहते इतीश्री करना, ऐसा धंधा किसने कहा। सुनकर भी मैं थक गया हूं। क्रोध से भरें पापा ने पीछे देखा ही नहीं और गेट की ओर चल पड़े हाथ में झोला था। उसे गाड़ी में रख दिया। गणेश चतुर्थी के लिए भी चार दिन ही ...
कुछ संकल्प कुदरत के नाम …
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कुछ संकल्प कुदरत के नाम …

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भोर के साथ ही हमारे कर्म प्रारंभ हो जाते हैं। इतनी व्यस्त और विशिष्ट जिन्दगी की गति कैसे दिन रात गुजार लेती है, इसकी सुध लेने की भी फुर्सत नहीं होती। लेकिन विचारणीय है कि जो काम हम कर रहे उसका प्रभाव पर्यावरण पर कैसा डाल रहे हैं। हमारी गतिविधियां ही पर्यावरण के प्रति हमारी सोच को दर्शाती है। उम्मीदों से भरे इस नववर्ष में हर कोई संकल्प लेता है लेकिन हम उन बातों को नजर अंदाज कर जाते हैं, जो हमारे लिए सबसे जरूरी है।कुदरत जो प्राणवायु से लेकर हर जरूरतों को पूरा करता है। उसके लिए हमें इस वर्ष भी नया संकल्प लेना चाहिए। जैसे प्लास्टिक का उपयोग या जीवाष्म ईंधन का उपयोग न हो। हमें यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि हमारी वजह से पर्यावरण को कोई नुक़सान न हो। पानी और ऊर्जा की बचत करें। गंदगी एवं कचरा स्वयं की ओर से कहीं न डालें। नियमों के मुताबिक चर्य...
स्वास्थ्य के प्रति हम कितने सजग
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स्वास्थ्य के प्रति हम कितने सजग

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "मानव प्राणी का स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है" देह की सुरक्षा एक प्रमुख कर्तव्य है। देही का सुरक्षा कवच है। सदा स्मृति में रहे कि मैं देही इस काया रुपी मंदिर में विराजमान हूं। शरीर के शीर्ष स्थान पर दोनों भृकुटी के बीच अकाल तख्त पर बैठी हूं। शरीर के समस्त कर्म इन्द्रियों की राजा हूं। "जब आत्मा स्वस्थ हैं तब तन पर शासन भी स्वस्थ होगा।" हमारा प्रश्न है हम स्वास्थ्य के प्रति कितने सजग है तो समझना होगा "स्वास्थ्य ही शारीरिक, मानसिक, सामाजिक कल्याण की स्थिति है। "क्योंकि मुझे उसमें रहना है। लेकिन वातावरण परिस्थितियां, परम्पराएं बहुत तेजी से बदल रही है। जो स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं है। लेकिन बाल, युवा वृध्द प्रदूषित वायुमंडल से गहराई से प्रभावित हो रहा है। वह भूल चुका है कि मैं कौन, कहां से आती हूं, क्या करना है। अज्ञान अंधेरे में भटकते स...
लिहाज
लघुकथा

लिहाज

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घानू का नशा उतर गया था। वह घर की बालकनी में आराम से बैठे चाय की चुस्की के साथ पेपर पढ़ रहा था। उसकी नजर उन खबरों पर थी जहां दारू के अड्डे पर छापे पड़ रहे थे। कहीं नशा मुक्ति अभियान के तहत महिलाएं जुलूस निकाल रही थी, तो कहीं युवाओं से बच्चों से शपथ दिलवाई जा रही थी। लेकिन घानू मुस्करा रहा था। 'पार्वती बड़े प्रेम से पति के पास आई और बोली, देखो जी आज सर्व पितृ अमावस्या है। आप आज के नशे के पैसे बचाकर पितरों के फोटो के लिए फूलो का हार लेकर आयेंगे तो बच्चों को भी समझ पड़ेगी कि ये हमारे पूर्वज है। घानू ने झिड़क कर जवाब दिया, "क्या दिया पितरों ने जो हार फूल चढ़ाना। जाओ अपना काम करो।" तुम्हें रहने के लिए छत दी है। कहीं सड़क या नाले के हवाले तो नहीं किया है। तुम्हें पढ़ाया लिखाया काम पर भी लगवा दिया। "लेकिन ये सौत ने तुम्हें हड़प लिया, ज...
कुछ तो है उसमें
कहानी

कुछ तो है उसमें

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सीमा घर में प्रवेश करने के बाद सीधे बेडरूम में चली गई थी। "मैं बहुत थक गई हूं।" सुनो जी कोई बुलाये या माँ पुकारे तो भी उठाना नहीं। आदेश देने के लहजे से कहकर, सीमा पलंग पर हाथ पैर फैलाये पसर गई थी। सेहल सीमा के नाटक को गौर से देख रहा था। माँ सुबह से काम में व्यस्त रहती फिर भी कुछ नहीं बोलती, थकान, चिन्ता को जैसे निगलना जान गई हो। आखिर "माँ'" है ना! सीमा करवटें बदलती सोने का उपक्रम करके पड़ी थी। थोड़ी देर बाद सेहल सीमा के पास आया, हां वाकई में थक गई हैं। नींद के आगोश में गये चेहरे को देखकर सेहल के मन में ढेर-सा लाड़ उमड़ आया। लेकिन इस वक्त हिम्मत जुटाना मुश्किल था। भरी दोपहर के दो बज रहे थे। माँ अभी भी रसोईघर में काम निपट रही थी। सीमा का यूं सोना भी उसे अखर रहा था। बैठक से भी रसोई का कमरा दिखाई देता था। सेहल ने माँ की ओर देखा वह...
आत्म संघर्ष
लघुकथा

आत्म संघर्ष

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शरीर और आत्मा दोनों ही अलग हैं। लेकिन आत्मा को कर्म में आने के लिए शरीर का आधार लेना ही पड़ता है। काया के सौन्दर्य को इतना महत्व देने के बजाय आचरण और व्यवहार अधिक महत्वपूर्ण होता है। बाहरी सौन्दर्य पर लोग भ्रमर के भांति आकर्षित होते हैं। यदि आचरण सही है तो उसका चरित्र ही सत्य सौन्दर्य है‌। इस सोच के साथ बेला पति रोहन और माँ को तीव्रता से याद कर रही थी। आफीस से लौटी बेला व्याकुल होकर सोफे पर निढाल बैठी थी। आज आफिसर श्रेयस का व्यवहार चूभ रहा था। वहीं रोहन के शब्द कानों पर टकरा रहे थे। बेला, "इतनी चंचल वृत्ति काम की नहीं। सौन्दर्य का नशा झटके में कोई उतार न दे।" वह बेसब्री से रोहन की राह देख रही थी। शायद उसे देखते ही मन हल्का हो जाय। इसी अपेक्षा से उसे एकान्त प्रिय लग रहा था। कई प्रश्न उभर रहें थे। उसके उत्तर भी वही खोज रही थी। मुझे...
शालू
कहानी

शालू

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज शालू गुमसुम बैठी थी। मन में कई प्रकार के गुब्बारे उड़ रहे थे। सभी स्वछंद होकर बिना रोक-टोक के उड़ना चाह रहे थे। पढ़ाई जहां इंसान की बुध्दि का विकास करती हैं, वहीं नियम कायदे और अनुशासन किसी हद तक बांधने की कोशिश करते हैं। घर में ममा जहां बुद्धिजीवियों में श्रेष्ठ थी वहीं पापा चार क़दम आगे थे। सदा व्यस्त रहना पसंद करते थे। दोस्तों के साथ चौबीस घंटे गप लगाने को मिल जाए तो भी तैयार रहते थे। बातों में सारी दुनिया सिमट जाती थी। वैसे भी हमारे घर में प्राचीनता और आधुनिकता का संगम दिखाई देता था। दादी कहती "आजकल समाज का रवैया अजीब हो गया है। इसलिए चाल चलन, रहन सहन, बाल कटाने वाली तथा जींस का पहराव कतई नहीं होना चाहिए। ममा, पापा तो कभी लीक से जुड़कर चलते तो कभी लीक से हटकर चलते। मैं तो घबरा जाती हूं। जब मेरा रिंकू के साथ घूमना, उसके घर ...
पारदर्शी स्नेह
लघुकथा

पारदर्शी स्नेह

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नभ में सूर्यास्त की लालीमा छाई थी। धीरे सेअंधकार ने वातावरण को घेर लिया था। सुभाष ऑफिस से आते ही हाथ मुंह धोकर गैलरी में आ खड़ा हुआ। उदासी के बादल अभी छंटे नहीं थे।उसे घर के कोने कोने में बाबूजी का एहसास होता था। सुहानी उसकी मनःस्थिति समझकर भी विवश थी। सोचती थी शाम का धुंधलका सुबह होते ही दूर हो जाता है। वैसे ही सुभाष के जीवन में आई रिक्तता को भर तो नहीं सकती लेकिन सामान्य करने की कोशिश जरूर करूंगी। मैं उसकी जीवन संगिनी हूं। बाबूजी के एकाएक चले जाने से सुभाष के सभी अरमान लुप्त हो गये थे। मैं उन्हें पुनः जागरुक करूंगी। बाबूजी की आत्मा भी तो यहीं चाहती थी ना कि सुभाष सरकारी अफसर बनकर देश सेवा करें। ईमानदारी और कर्मठता का प्रदर्शन करें। "फोन की घंटी बजते ही, सुहानी ने आवाज लगाई।" "सुभाष जरा फ़ोन उठा लो मैं चाय नाश्ता बनाने में व्यस...
गुरुनानक देव
आलेख

गुरुनानक देव

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दुनिया के हर समाज में पथ प्रदर्शक के रूप में गुरु का स्थान श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण होता है। वह दिव्य ज्ञान दाता होता है। गुरू नानक देव सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले ऐसे गुरु थे जिनकी शिक्षाऐं धर्म विशेष ही नहीं, पूरी मानव जाति को नया प्रकाश दिखाती है। इसलिए उनके जन्मदिवस को प्रकाश पर्व के रुप में मनाया जाता है। ज्ञान से झोली भरने आये गुरु से सिख समाज "वाहे गुरुजी का खालसा वाहे गुरु जी की फतेह" कहते प्रेम से ज्ञान की समझ लेकर झोली भरते हैं। १५ वी सदी में भारत के पंजाब क्षेत्र में सिख धर्म का आगाज हुआ। इसकी धार्मिक परम्पराओं को गुरु गोविंद सिंह जी ने ३० मार्च १६९९ के दिन अंतिम रूप दिया। विभिन्न जातियों के लोगों ने सिख धर्म की दीक्षा लेकर खालसा धर्म सजाया था। गुरु नानक देव ने समाज में समरसता के लिए प्रयास किए। उन्होंने शोषण, ज़...
सबसे बड़ी अमानत
कविता

सबसे बड़ी अमानत

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्राणों को इस माटी में न्योछावर करता। देश का सैन्य बल, हमारी सबसे बड़ी अमानत है। सीमा पर डटे वीर जवान, कर्तव्य निभाना मात्र लक्ष्य है। कड़कड़ाती ठंड में, चिलचिलाती गर्मी में, धुआं धार बारिश में, माँ भारती की रक्षा यही समर्पण भाव है। फ़र्ज़ है देशवासियों का सैन्य शक्ति का करें सम्मान। मुख्य पदासीन नेतृत्व को, मिलकर करना हमें मजबूत। जल, थल, नभ सैन्य शक्ति, देश रक्षा में जी जान से जुटी है। कर्तव्य हमारा हौसला बढ़ाना, करें शुभ भावना का दान। सेना की सुविधाओं में, नयी तकनीकों के साधन हुए बहाल, सेना की ताकत है, योग्य सरकार। सरकार की शक्ति, योग्य जन समुदाय। देश का सैन्य बल हमारी सबसे बड़ी अमानत है। परिचय :- अमिता मराठे निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुके...
रेलगाड़ी की खिड़की
कहानी

रेलगाड़ी की खिड़की

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावन की छुट्टी खतम हो गई थी। वह अष्टमी से बासी दशहरे के अवकाश पर गाँव आया था। जब से साबरमती में जाॅब लगा वह बहुत खुश था। माँ ने आवाज देकर कहा सावन सामान पूरा पेक कर दिया है। दो तीन कमरों वाला मकान ढूंढ ले तब सब आसान हो जायेगा। हां माँ, "आप ठीक कह रही हैं।" रेलगाड़ी समय पर चल पड़ी। गाँव के दोस्तों को अलविदा कहते सावन गाड़ी में बैठते ही खिड़की से सभी प्रियजन लद ओझल होने तक हाथ दिखाता रहा। फिर आराम से सामान जमाया और अपने आसपास देखने लगा। दूसरी खिड़की के पास एक वृद्ध महिला सिमटी हुई बैठी थी। उसने सामान भी सीट पर अपने आसपास लगाकर रखा हुआ था। शायद वह अकेली थी। आप कहां जा रही है? पूछने पर कुछ अस्पष्ट जवाब दिया। फिर सावन भी चुप हो खिड़की के बाहर देखने लगा। वृद्धा टकटकी लगाए बाहर देख रही थी। हर स्टेशन पर वह खिड़की के बाहर झुककर ऐसी देखती ...
सावित्री
कहानी

सावित्री

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावित्री ने बाबा को खांसी की दवाई दी और पैरों में तथा छाती पर सरसों के तेल से मालिश की और बोली बाबा अब आराम से सो जाओ। मैं भी सोती हूं। कल से ऑफिस भी जाना है। वह जानती थी बाबा अभी चुप है लेकिन उन्हें बहुत कुछ बोलना है। बाबा ने कहा, "बेटी थोड़ा और रूक जाओ।" 'मीठी को छोड़ आई।' हां कहते वह दरवाजे की ओर जाने लगी। वह रो रही थी ना! नहीं, बाबा शान्त थी लेकिन कहती थी बाबा बहुत याद आयेंगे। वहां का माहौल कैसा था बेटा? बाबा आज ही सब सवाल पूछोगे, अभी सो जाओ, कल बातें करते हैं कहते सावित्री ने बाबा को चादर ओढ़ा दी और कमरे बाहर हो गई थी। रात के दो बज रही थी, जाते हुए मीठी ने एक चिट्ठी दी और बोला था, दीदी इसे घर पर पढ़ना। सोचकर भी सावित्री ने चिट्ठी नहीं खोली थी। मुझसे गुस्सा हुई मीठी ने चिट्ठी में मुझे गाली दी होगी और क्या लिखती वह। नींद भी त...
शिक्षा
कहानी

शिक्षा

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  "वाह भगवान आपने मेरी अर्जी सुन ली। इसलिए शुक्रिया अदा करता हूं।" बहू, आज कुछ मीठा बना लेना भोजन में।' बाबूजी प्रार्थना तो भगवान ने मेरी सुनी है। रोज पीछे पड़ती थी। डिग्री बहुत सी हो या फिर अकल तेज तर्राट हो। "अरे बेटा जो हुआ अच्छा हुआ ना।" दर्शन भी नयी नौकरी पा कर बहुत खुश थे। आज कम्पनी जाॅईन कर घर लौटे थे। आते ही आदेश देते जा रहे थे...... हमने कम्पनी के पास ही, पाॅश काॅलोनी में फ्लेट ले लिया है‌। हां वहां आरज़ू नाम का लड़का है। उसे पेकिंग का काम सौंप दिया है। उससे काम करवा लेना, और जरा फ्लेट के नल पाइप बिजली तथा रसोई घर की व्यवस्था में सुधार चाहिए तो देखने चलना है, तैयार रहना। दर्शना देवी सी मूक हो दर्शन को देख रही थी। दो दिन में कितना बदल गया है। कितना आत्म विश्वास आ गया है सारे व्यक्तित्व में! चेहरा भी रौबदार हो गया है। हा...
नमामि गंगे
आलेख

नमामि गंगे

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जलवायु परिवर्तन और दुनियाभर में गहराते जल संकट के बीच विकास की नई कहानी वही देश लिखेगा जो पानी का धनी होगा। तात्पर्य यह कि आज जो देश जितना पानी बचायेगा, वह भविष्य में उतनी ही बड़ी शक्ति के रुप में उभरेगा। यूनाइटेड नेशन वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट के अनुसार एक समय ऐसा आयेगा जब दुनिया के लोगो के पास पीने का पानी उपलब्ध नहीं होगा। इस समस्या को भारत गहराई से समझ रहा है। इस दिशा में तेजी से चल रही पहल प्रशंसनीय है, फिर भी जन भागीदारी से ही सभी प्रयास सफल सिद्ध होंगे। तभी जल शक्ति मंत्रालय का गठन की पहल मील का पत्थर साबित होगी। देश के घर घर में स्वच्छ पानी पहुंचाने की व्यवस्था में सक्रिय नमामि गंगे परियोजना, के जरिए गंगा के पुनरुद्धार के साथ साथ अन्य नदियों की सफाई कार्य अत्यंत आवश्यक कार्य है। नया साल नई उम्मीदों का खजाना लेकर आया है, ...
अरुण यह मधुमय देश हमारा था
कविता

अरुण यह मधुमय देश हमारा था

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** छंद मुक्त कविता सृष्टि के दैवी आदिकाल में, देवी-देवताओं का राज्य था। सुख, शान्ति, समृध्दि विचरे, धरातल स्वर्ग सा गौरवमय था। अरुण यह मधुमय देश हमारा था। यहां ऋषि मुनियों का बसेरा, महान भूमि पर संतों का डेरा। भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, तप, श्रध्दा, त्याग, धैर्य, निष्काम, भावना। अरुण ऐसा मधुमय देश हमारा। उज्वल धरा पर उदित हुए, जन नायक, जगतवंद महात्मा। लोककल्याण के परम साधक, सात्विक पावन जीवन प्यारा। अरुण यह मधुमय देश हमारा। एक जाति, एक धर्म, एक भाषा, चहूं ओर पवित्रता का राज्य था। विकार मुक्त, निर्विकारी दशा का, सत्य, स्वतंत्र, स्वराज्य अधिकार था। अरुण यह मधुमय देश हमारा था। एकमत, एकरस, एकता का भाव, व्यक्ति समाज पूर्णता में प्रसन्न था। लोकोदय के ऊंच लक्ष्य से परस्पर, भारत भू का जीवन मंगल प्रेरित था अरुण यह म...
आईना
लघुकथा

आईना

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बहुत दिनों से कमरे में पड़े आईने को देखा ही नहीं था। शायद वह बुला रहा है, मन विचलित हुआ। धीरे से उसे उठाया ऊपर धूल की परत जमी थी। साड़ी के पल्लू से ही धूल साफ की। "अचानक अतीत ने मुस्कराते हुए हाथ पकड़ लिया।" अरे! अभी कुछ जिन्दगी बाकी है। आईना तो देख लिया करो। "खुश हो ना ! "हां हां, सब चित्र सामने है, वो देखो कहते, मैंने कार स्टार्ट करती मधु की ओर संकेत किया।' आई ! 'मैं दोस्त के साथ घूमने जा रही हूं, दस बजे तक लौट आऊंगी।" कार से जाती हुई मधु को मैंने दरवाजे की आड़ से देख लिया था। बीए एल एल बी कर रही मधु राष्ट्रीय खिलाड़ी, स्व. निर्णय की धनी तथा बड़ी समझदार पोती का मुझे गर्व था। उसकी हर हरकतें मेरी जिन्दगी से मिली जुली थी। फर्क इतना ही था उसे उसकी प्रत्येक ख्वाइश पूरी करने के अवसर थे, आधुनिक साधन उपलब्ध थे समाज की हर गतिविधि से वह पर...
रंगमंच
कहानी

रंगमंच

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नाटक और अभिनय के शौकिन रघुवीर जी आज शांत मुद्रा में लाॅन में बैठे थे। मौन चिंतन में मग्न थे। वे अपने अतीत की रमणीक स्मृतियों में विचरण करने लगे। रंगमंच से उपजा प्यार कब स्नेह पाश में बंध गया पता ही नहीं चला था। सीमा के साथ गृहस्थी की गाड़ी सुख से चलाते पचास साल गुजर गये थे। वाह ! 'सभी प्रकार के रोल अदा करने के बाद 'उम्र ने भी आराम करने का संकेत दे दिया था।' लेकिन रघुवीर का मन अभी भी अभिनय करना चाहता था। उन्हें याद आया, पत्नी सीमा भी बार बार कहती हैं, अब नाटक देखने नहीं जाना चाहिए और रंगमंच पर अभिनय भी नहीं करना चाहिए। उठने, बैठने, चलने में होने वाली तकलीफ कहती हैं रघुवीर जी अब घर में आराम करो। सीमा जानती है टीवी पर आने वाले नाटक, शहर के बड़े हाॅल में रंगमंचित नाटक देखना ही इनका जीवन था। अपने नाटक के हुनर को दिखाने के लिए जब-तक रंगम...