ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन
अनुपमा पांडेय 'भारतीय'
शालीमार गार्डन (साहिबाबाद)
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संसद की पावन देहरी से,
रक्त दुर्ग की अटारी से,
संविधान की गूंजती ऋचाओं से,
रावी की झंकृत लहरों से,
मां के सुने आंचल से,
कफन में लिपटे तिरंगे से,
आवाज यही गूंजेगी सदा,
आवाज यही गुजरेगी सदा..
ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन,
ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन,
नमन नमन नमन नमन,
नमन नमन नमन नमन,
एक बार नहीं शत बार नमन,
शत बार नमन,
शत बार नमन...
हिमालय की तुंग शिखरों से,
हिंद सागर के उफानो से,
गांधी के अहिंसा के चरखों से,
सुभाष के गरजते अंगारों से,
फांसी को चूमते भगत,
सुख, राज के नारों से,
सेलुलर जेल की सलाखों से,
जलिया वाले बाग की दीवारों से,
सरफरोशी के बसंती चोला से,
बिस्मिल की आजादी की गजलों से,
इंडिया गेट पर जलती अमर ज्वालों से,
आवाज यही गूंजेगी सदा ....
ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन.....
ऐ मातृभूमि तुम्हें नमन....
नमन नमन नमन नमन,
एक बार नहीं ...