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Tag: अख्तर अली शाह “अनन्त”

पायल की झंकार
गीत

पायल की झंकार

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** बार-बार करती रहती क्यों, मेरे जहन पर वार। पायल की झंकार तेरी ये, पायल की झंकार।। रिश्ता तेरा मेरा है क्या, तू गुल अलग चमन का। तुझे सींचता माली दूजा, तेरे ही गुलशन का।। तेरे पैर की ये पैजनिया, क्यों पर मुझे बुलाए। मेरे हृदय को भेद रही क्यों, सोचूँ बारंबार।। पायल की झंकार तेरी ये..... पायल क्या कहती ना समझा, इतना पर जाना है। दुखी तेरी पायल है बस ये, मैंने पहचाना है।। मुझे करें आकर्षित इसके, घुंघरू बजकर सारे। मेरी आरजू इसको, चाहे, मेरा ये दीदार।। पायल की झंकार तेरी..,,... क्या "अनंत" अब होगा केवल, ऊपरवाला जानें। ज्ञात मुझे ये खुशियों के हैं, उसके पास खजानें।। मिलन लिखा यदि होना ही है, कौन उसे रोकेगा। आज अगर पतझड़, लाएगी, कल ये नई बहार।। पायल की झंकार तेरी ये..... परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : १...
नजर से नजर मिली तो
गीत

नजर से नजर मिली तो

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिली तो खजाना मिल गया।। वो सुहाना वक्त था जब मिले नयन-नयन। जब मिले अधर अधर जब मिले बदन-बदन।। पंख लगे आरजूओं को हंसी गगन मिला। पंछियों को पर यूँ फड़फड़ाना मिल गया।। तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिलीतो खजाना मिल गया।। हुस्न और इश्क का मिलन बड़ा अजीब है। मरना जिंदगी के लिए हो गया करीब है।। तीर तेज करके रखे थे वो अनायास ही। मुस्कुराए छूने को निशाना मिल गया।। तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिलीतो खजाना मिल गया।। रूप का महल कहूँ या कहूँ कि ताज है। मरमरी बदन तेरा, जो हंसता आज है।। हट सकी नजर नहीं जम गई तो जम गई। लड़खड़ाते कदमों को ठिकाना मिल गया।। तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिलीतो खजाना मिल गया।। ज...
हो बंद शहादत सीमा की
गीत

हो बंद शहादत सीमा की

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** सीमाएं आग उगलती जब, सैनिक जब मारे जाते हैं। व्यवहार बिगडते मुल्कों के, आंसू जनता के आते हैं।। भूमि के टुकड़ों के खातिर, क्या लड़ना बुद्धिमानी है। सरकारों का यूँ बैर भाव, रखना लोगों नादानी है।। सीमाएं जब तय हो जाती, क्या रोज बदलती रहती हैं। दीवारें क्या मानव हैं जो, उठ-उठकर चलती रहती हैं।। फिर क्या होता है सीमा पर, क्यों शांत पड़ोसी लड़ते हैं। हथियारों को हाथों में ले, इक दूजे पे क्यों चढ़ते हैं।। हो राजाओं का राज अगर, सीमाओं का विस्तार करें। निर्दोष जहां कुचले जाएं, बेरहम सिपाही वार करें।। अब राजाओं का राज नहीं, सब की ही इज्जत होती है। हो छोटा बड़ा भले कोई, वोटर है ताकत होती है।। जब बने पड़ोसी दुःख क्यों दें, मानवता का विस्तार करें। सुख-दुख बांटें मिल बैठ सभी, मिल-जुल के सब त्योहार करें।। इन्सानी गरिमा को समझें , ह...
नई उर्जा नया संबल
ग़ज़ल

नई उर्जा नया संबल

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** नई उर्जा नया संबल, तेरी मुस्कान देती है। खुशी के यूँ मुझे दो पल, तेरी मुस्कान देती है।। तुझे बस देखने से दिल, मेरा तस्कीन पाता है। समंदर में नई हलचल, तेरी मुस्कान देती है।। उदासी दूर करती है, नए अरमां जगाती है। रवानी खून में अविरल, तेरी मुस्कान देती है।। तेरे रुखसार पे लाली, बनी जब धूप छाती है। मुझे गर्मी ए दिल निश्चल, तेरी मुस्कान देती है।। तेरे मादक नयन जिस दम, मये उल्फत पिलाते हैं। दवा तब होश की चंचल, तेरी मुस्कान देती है।। अकेला हार कर जब मैं, सभी हथियार रखदेता। अचानक ढेर सारा बल, तेरी मुस्कान देती है।। मुझे संजीवनी दे दे, जरा पर्दा उठा जालिम। "अनंत" कोये जीवन जल, तेरी मुस्कान देती है।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पत...
रंग का त्यौहार आया
ग़ज़ल

रंग का त्यौहार आया

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** रंग का त्यौहार आया, खेलने दे यार रंग। भर रहा चाहत के नक्शे, में नया फिर प्यार रंग।। अपने रुखसारों को रंगने, दे मुझे भी प्यार से। हसरतों का दिल की मेरे, कर सके इजहार रंग।। प्यार के बीमार को, रंग दे तू अपने रंग में। यार यह एहसान कर दे, डाल दे एक बार रंग।। आज फिर रंगीन कर दे, इस तरह जीवन मेरा। याद सदियों तक रहे, यूं खेलना पल चार रंग।। मुस्कुराहट जिंदगी की, हमसफ़र बन जाएगी। आप जो खेलेंगे मेरे, साथ में सरकार रंग।। हम हुए शोला बदन, जैसे हो जंगल में पलाश। राख हो जाने से पहले, खेल लें दिलदार रंग।। तू मुझे उस रंग में अब, भीग जाने दे "अनन्त"। जो मोहब्बत घोलकर, तूने किया तैयार रंग।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस) सम्प्रति : अधिवक्ता पता : नीमच जिला- नी...
पायल छनक गई
गीत

पायल छनक गई

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** बहुत संभाले रखा मगर अवसर क्या पाया, चंचल मना वो बावली पायल छनक गई।। मैं नहीं चाहती मन के, पट धड़कन खोले, मैं नहीं चाहती पायल, की रुनझुन बोले। मैं नहीं चाहती सोचो, में हो खलल कोई, मैं नहीं चाहती प्रीतम, का तन मन डोले।। पर क्या करती पग फिसला, बेबस हुए कदम, सागर लहराया अखियां, मेरी छलक गई। बहुत संभाले रखा मगर अवसर क्या पाया, चंचल मना वो बावली पायल छनक गई।। वो मेरी ही यादों में शायद खोए थे, मनहर वो ख्वाब मिलन के कई संजोए थे। मैं खुशियों की सौगातें लेकर आई थी, सावन प्यासे अधरों पर साजन बोए थे।। तड़पी थी मैं आलिंगन, में उस पल उनके, दिल बहका मेरा मेरी, सांसें महक गई। बहुत संभाले रखा मगर अवसर क्या पाया, चंचल मना वो बावली पायल छनक गई।। यूं दर्ज समय के पृष्ठों पर पल हुए विकल, मन में थी मीठी दोनों तरफ बहुत हलचल। बातें होती थी आंखों की तब आं...
तेरे ही सपने आते हैं
गीत

तेरे ही सपने आते हैं

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** रात दिवस सोते जगते बस, तेरे ही सपने आते हैं। तू क्या रूठी रूठ गए सब, नैना सावन बरसाते हैं।। तेरी आदत पड़ी हुई है, पीछा नहीं छुड़ा पाता हूँ। पलपल-पगपग पर तेरे ही, साए से मैं बतियाता हूँ।। अधर लिए पर अमृत तेरे, मुझे दूर से तरसाते हैं। तू क्या रूठी रूठ गए सब, नैना सावन बरसाते हैं।। अभी यहां थी, अभी वहां थी, मन कैसे समझाऊं अपना। छलिया वक्त छल गया मुझको, चैन कहां से लाऊं अपना।। पीछे दौड़ न नश्वर जीवन, के नश्वर पल समझाते हैं। तू क्या रूठी रूठ गए सब, नैना सावन बरसाते हैं।। ख्वाबों में तू राह बताती, जो चाहे वो करवाती है। जिस्म भले दो होकर रह लें, जान जुदा कब हो पाती है।। यादों के बादल आ आकर, के दिश-दिश से टकराते हैं, तू क्या रूठी रूठ गए सब, नैना सावन बरसाते हैं।। कहां छुपाऊं मैं पागलपन, तुझे देखती आंखें मेरी। मेरी आंखों में तुझको पा, खोज ...
संघर्षो के नाम किया है
गीत

संघर्षो के नाम किया है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** हाथ उठाने वालों की तुम, लाइन में हमको मत रखना। हमने जीवन का ये गुलशन, संघर्षों के नाम किया है।। ऊपर वाले ने जो हमको, सोच समझ की दौलत दी है। अच्छा और बुरा समझें हम, बुद्धि दी है ताकत दी है।। हमने कब अपना माना ये, उसका जीवन उसका माना। इसीलिए तो सारा जीवन, संघर्षों के नाम किया है।। हमने जीवन का ये गुलशन, संघर्षों के नाम किया है।। अपमानों के लड्डू पेड़ों, से इज्जत की रोटी प्यारी। हमने मेहनत की खुशबू से, अपनी किस्मत सदा संवारी।। हाथ पसारे नहीं रहे हम, नहीं मांगकर हमने खाया। लम्हा-लम्हा हर परिवर्तन, संघर्षों के नाम किया है।। हमने जीवन का ये गुलशन, संघर्षों के नाम किया है।। आग लगाने वालों ने तो, हरदम आग लगाई बढ़कर। झुलसाकर अपने मधुबन को, हम ने आग बुझाई बढ़कर।। नहीं देखती आग राह के, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों को। हमने सत्य न्याय का आंगन, स...
निराला के प्रति चार मुक्तक
मुक्तक

निराला के प्रति चार मुक्तक

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** एक नई पहचान बनाई, नई कविता दे कर के। नश्वर जग में अमर हो गए, सदा निराला यूं मरके।। कविता उनकी सीधे-सीधे, दर्दों से संवाद रही। उनकी आंखों में आंसू थे, जिनके दिल थे पत्थर के।। इंसानों की खिदमत में वे, रहे सर्वदा कब हारे। झुके गर्विले पर्वत उनके, आगे देखें हैं सारे।। वही किया जो सोचा मन में, कथनी करनी एक रही। नहीं निराला बने भूलकर, मानवता के हत्यारे।। दान नहीं स्वीकार किया है, लड़कर के अधिकार लिया। वही किया है इस दुनिया में, जब-जब जो-जो धार लिया।। सत्य धर्म के रहे निकट वे, महाप्राण मानवतावादी। इसीलिए जनता का दिल से, प्यार "अनंत" अपार लिया।। सूर्यकांत निराला के जो, व्यवहारों का दर्शन भी। सफल हुए करने में लोगों, लाए है परिवर्तन भी।। भरते थे वे खाली झोली, "अनंत," करते हमदर्दी। उनकी देखा देखी करलो, सदा करें मन नर्तन भी।। परिचय :- अख्त...
दरदर का बना दिया जिसको
ग़ज़ल

दरदर का बना दिया जिसको

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** दरदर का बना दिया जिसको, बेघर वो मजा चखाएगा। धरने पर बैठा अब तक जो, हलधर वो मजा चखाएगा।। सर्दी की ठिठुरन से खेला, मौसम का कहर बहुत झेला। टप-टप टपका जो दर्दों का, छप्पर वो मजा चखाएगा।। खुरदरे वक्त के पत्थर ने, नादानो धार जिसे दी है। मिलते ही मौका देखोगे, खंजर वो मजा चखाएगा।। तूफान समेटे रहता है, मत खेलो गहरे दिल से तुम। उफना तो मातम पसरेगा, सागर वो मजा चखाएगा।। बच्चों की खुशियों के आगे, हर बाधा बोनी होती है। जो शपथ उठाई है उसका, हर अक्षर मजा चखाएगा।। जिद की सत्ता ने सड़कों पे, इतिहास लिखा खूँ से अक्सर। घायल दिल को जो चीरगया, नश्तर वो मजा चखाएगा।। अभिमान नहीं अच्छा होता, उड़ने वालों ना भूलो ये। पगड़ी जब जूतों में होगी, मंजर वो मजा चखाएगा।। कमजर्फ जिसे तुमने समझा, पर काट अपाहिज कर डाला। "अनंत" देखना तुम्हें कभी, बेपर वो मजा चखाएगा।...
सोच समझकर वोट किया तो
गीत

सोच समझकर वोट किया तो

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** अपने मत से तुम्हें बनानी, है कल की सरकार प्रिये। सोच समझकर वोट किया तो, हों सपने साकार प्रिये।। लिए पोटली अब वादों की, नेताजी द्वारे द्वारे। जाकर बांट रहे गारंटी, कर देंगे वारे न्यारे।। कहते हैं कल नहीं रहेगा, है जो हाहाकार प्रिये। सोच समझकर वोट किया तो.... भूखे को हम खाना देंगे, बेघर को हम घर देंगे। शिक्षा बिजली गैस विवाह का, इंतजाम भी कर देंगे।। बिन मेहनत कैसा होगा सुख, सपनों का संसार प्रिये। सोच समझकर वोट किया तो... हरे लाल भगवा नीले सब, सेवा की ही .बात करें। सेवा के पर्दे के पीछे, देखा अक्सर घात करें।। कहते चाय पकौड़ी बेचो, अच्छा है व्यापार प्रिये। सोच समझकर वोट किया तो... धनवानों को बेच न दें ये, देश अमन के रखवाले। जरा गौर से देखो इनके, जीवन के चिट्ठे काले।। है अडानी अंबानी इनके, सचमुच खेवनहार प्रिये। सोच समझकर वोट किया तो......
सुभाषचन्द्र बोस
कविता

सुभाषचन्द्र बोस

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** देश सुरक्षित और सुखी हो, इस हेतु जो खार बने। हो चरित्र सुभाष का जिसमें, अपना पहरेदार बने।। युद्ध घोष 'जय हिन्द" रहा है, लोगों जिसका जीवन में। देशभक्ति का रक्त रगों में, कुर्बानी मन आंगन में।। रही भूमिका जिसकी पावन क्रांतिकारी परिवर्तन में। कहां मरा जिंदा सुभाष है, देखो आज हरेक मन में।। ऐसे देशभक्त रहबर का, सचमुच जो अवतार बने। हो चरित्र सुभाष का जिसमें, अपना पहरेदार बने।। आजादी पे मरने वाले, परवानों से प्यार करे। आजादी की कीमत खूं है, सच्चाई स्वीकार करे।। हाथ उठा कर पदवी लेने, वालों पर जो वार करे। भ्रस्टव्यवस्था जिसे देखकर, लोगों हाहाकार करे।। स्वाधीनता प्यारी जिसको, पराधीनता भार बने। हो चरित्र सुभाष का जिसमें, अपना पहरेदार बने।। जहां कहीं भी रहे हमेशा, बस माता का ध्यान रहे। सोते जगते जिसके ख्वाबों, में बस देश प्रधान रहे।। हो न्योछाव...
बेबस पंछी ना कट जाएं
गीत

बेबस पंछी ना कट जाएं

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** चीनी मांझे हत्यारे हैं, उन्हें कदापि ना अपनाएं। याद रखें चीनी मांझों से, बेबस पंछी ना कट जाएं।। आज मकर संक्रांति है तो, तिल गुड़ के हम लड्डूखाएं। गुल्ली दंडा खेलें या फिर, मनचाही हम पतंग उड़ाएं।। ध्यान रखें पर दाना लाने, पंछी जो आकाश में जाएं। उनके जीवन की हम रक्षा, करें अपाहिज नहीं बनाएं।। जो मांझे विपदा बरसाते, घर बच्चे भूखे मर जाते। क्यों गुणगान करें उनका हम, क्यों खरीद के हम ले आएं।। चीनी मांझे हत्यारे हैं, उन्हें कदापि ना अपनाएं। याद रखें चीनी मांझों से, बेबस पंछी ना कट जाएं।। पौष मास में मकर राशि में, जब सूरज आ जाता लोगों। फसलों का त्योहार पर्व ये, घर-घर रंग दिखाता लोगों।। खिचड़ी पोंगल ये कहलाता, लोहड़ी नाम सुहाता लोगों। पूजा की जाती प्रकाश की, जीवन गीत सुनाता लोगों।। देसी मांझे अपने मांझे, उनपे ही विश्वास जताकर। रंग बिरंगी उड़...
राष्ट्रभाषा बने एक दिन
गीत

राष्ट्रभाषा बने एक दिन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** सारी जनता भारत की जब, इसको गले लगाएगी। विश्वगगन में हिंदी ऊँचा. तब परचम लहराएंगी।। हिंदी के पहरेदारों से, मेरी सतत यही आशा। राष्ट्रभाषा बने एक दिन, हिंदी ये है अभिलाषा।। हिंदी में साहित्य सृजन ही, नई भोर को लाएगी। विश्व गगन में हिंदी ऊँचा, तब परचम लहराएंगी हिंदी को मां समझने वालों, हिंदी में व्यवहार करो। लिखना पढ़ना हिंदी में हो, मत इससे इनकार करो।। गौरवमयी राष्ट्रभाषा की, पदवी जब मिल जाएगी। विश्वगगन में हिंदी ऊँचा, तमिल तेलुगू मलयालम हो, भले मराठी गुजराती। सब हिंदी की छोटी बहनें, कोई नहीं खुराफाती।। बड़ी बहन का साथ दिया तो, शिखर नए छू पाएगी। विश्व गगन में हिंदी ऊँचा, तब परचम लहराएगी।। चाहे जितनी भाषा सीखें, हिंदी का सम्मान करें। ममता सदा मातृभाषा ही, दे सकती है ध्यान करें।। अनंत पहुंची दूर तलक तो, हिंदी यह रंग लाएगी। विश्वगगन में ...
देश मालामाल है
कविता

देश मालामाल है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** क्यों फिक्र तुम्हें देश की है क्या मलाल है। क्या देखते नहीं हो देश मालामाल है।। स्टेचू गगन चुंबी यहां हैं हमारे पास। आश्चर्य जहां का है ताज हमारी मिरास।। किले बड़े-बड़े हैं ऐसे किसके हैं निवास। संसदभवन अब औरनया बन रहा हैखास।। दुनिया के साथ हमने मिलाए कदम सदा। हरअपना कदम इस जहां में बेमिसाल है।। क्यों फिक्र तुम्हें देश की है क्या मलाल है। क्या देखते नहीं हो देश मालामाल है।। अब माल हैं बड़े-बड़े करोड़ों के गोदाम। आश्वस्त हैं इसओर चल रहा हैऔर काम।। महंगाई तरक्की की शक्लहै करो सलाम। मदिरा सरे बाजार बिक रही है सरे आम।। हरहाथ मेंअब काम है दुनिया का ज्ञान है। घर बैठे पूंछ लेते हैं क्या हाल-चाल है।। क्योंफिक्र तुम्हें देश की है क्या मलाल है। क्या देखते नहीं हो देश मालामाल है।। अब देखिए रेलों की ही रफ़्तार देखिए। मेट्रो का कितना हो रहा विस्ता...
नया वर्ष मुबारक हो
कविता

नया वर्ष मुबारक हो

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** नये वर्ष का नया सूर्य यूं किरणे नई बिखेरे। गमके अंधियारे मिट जाएं खुशियां डाले डेरे।। सुख सागर में जीवन नौका बढे निरंतर आगे। बगियामें गुल खिलने वाले रहें न कोई अभागे।। समृद्धि की अमर बेल फिर जीवन पे छा जाये। फिरअभावकी असि नकोई जख्मकभी देपाये।। नूतन स्वर सुख के फूटे कानों में अमृत घोलें। जीवन कानन में अवसर के मोर पपीहे बोलें।। प्यारमिले सागर से गहरा मीत मिले सुखदायी। दूर रहे तन मन से दर्दों की काली परछाई।। इतनीमिले संपदा निशदिन घर छोटापड़ जाये। पांव उठानेसे पहले मंजिल चलकर खुद आये।। नवगतिनवलय अवचेतन मनको करदें स्पंदित। मनवीणा की मधुररागिनी तनकरदेआल्हादित।। आराधन करते करते आराध्य बने आराधक। फर्क मिटे दोनों में दाता कौन, कौन है याचक।। पीकर अमर प्रेम की हाला देह अमर हो जाये। जीवन मरण चक्र से जीवन ऊपर हो मुस्काये।। परिचय :- अख्तर अली ...
सुख के नगमे ही गाए हैं
गीत

सुख के नगमे ही गाए हैं

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस, इसीलिए सुख के नगमे ही गाए हैं। वक्त चाल से अपनी ही चलता हरपल, हमको तो बस अपने फर्ज निभाने थे। जैसा आया मौसम भोग लिया हमने, आलस ने पर ढूंढे कई बहाने थे।। अपने मन का होतो सुख ना हो तो दुख, मन पर अंकुश ने ही सुख बरसाए हैं। जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस, इसीलिए सुख के नगमे ही गए हैं।। अलविदा बीस, इक्कीस विदाई देता है, नहीं शिकायत तुमसे तुम इतिहास बने। याद करेंगे लोग तुम्हें ना भूलेंगे, वे सारे तुम जिनके खातिर खास बने।। कुछ व्यक्ति भगवान बने जीवन देकर, कुछ ने सेवा कर जीवन उजलाए हैं। जीवन लक्ष्य रखा आंखों में हमने बस, इसीलिए सुख के नगमे ही गए हैं।। घर में रहकर जीने का आनंद लिया, छोड़ी भागम भाग तो राहत पाई है। काम "अनंत" दूसरों के आए तब ही, दूर गई दु:ख दर्दो की परछाई है।। जनहित से जो भटक गए रहबर अपने,...
जलियांवाला बाग सुनाता
गीत

जलियांवाला बाग सुनाता

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** अमर शहीदों ने खूं से जो, लिख दी उसी कहानी को। जलियांवाला बाग सुनाता, डायर की मनमानी को।। ब्रिटिश हुकूमत ने जब हम पर, रौलट एक्ट लगाया था। स्वतंत्रता के मतवालों को, नहीं एक्ट वो भाया था।। उसका ही विरोध करने को, सभा एक बुलवाई थी। जनरल डायर को लेकिन वो, फूटी आंख न भाई थी।। महंगा पड़ा मगर उसको भी, करना इस नादानी को। जलियांवाला बाग सुनाता, डायर की मनमानी को।। शांत सभा पर चली गोलियां, कत्लेआम हजारों का। भला नहीं यह काम विश्व ने, माना था हत्यारों का।। तब चूलें अंग्रेजी शासन, की डोली तम छाया था। आजादी के सूर्योदय का, समय निकट यूँ आया था।। और अंततः हुए स्वतंत्र हम, हरा के दुश्मन जानी को। जलियांवाला बाग सुनाता, डायर की मनमानी को।। वाहक "अनंत" समरसता का, था उधमसिंह निर्भीकमना। तीनों धर्म जोड़ने को ही, राम, मोहम्मद, सिंह बना।। उसने ही तब दो गोली...
अगर प्रधानमंत्री मैं होता
गीत

अगर प्रधानमंत्री मैं होता

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** जरूरतें सब पूरी करता, नहीं भीख को कर फैलाता। अगर प्रधानमंत्री मैं होता, सबको अपने हक दिलवाता।। लक्ष्य आर्थिक आजादी का, रखते मेरे साथी रहबर। पक्के भवन खड़े इठलाते, नहीं दीखते कच्चे छप्पर।। शहरों की निर्भरता होती, कमतो कृषक सभी सुख पाते। नहीं पलायन होता मिलकर, गांवों को ही स्वर्ग बनाते।। दूध दही की नदियां बहती, भारत जग में गौरव पाता। अगर प्रधानमंत्री मैं होता, सबको अपने हक दिलवाता।। घर-घर में उद्योग चलाता, गांव-गांव कलपुर्जे ढलते। विकेंद्रित करता उत्पादन, कम पूंजी में काम निकलते।। श्रमको मिलता पूरा प्रतिफल, बेकारी का नाम ना होता। साहूकारों के चक्कर में, घर आंगन नीलाम ना होता।। धन पर पूरा अंकुश होता, खुदपर निर्भर देश बनाता। अगर प्रधानमंत्री मैं होता, सबको अपने हक दिलवाता।। हर तरह की स्वतंत्रता का, भोग यहां पर जनता करती। समानता जन-जन मे...
मानव से मानव को जोड़े
गीत

मानव से मानव को जोड़े

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** नफरत की दीवारें तोड़ें। मानव से मानव को जोड़ें।। यकसांखून बनाया सबका, यकसां जान बनाई है। स्वीकारें ये इसमें लोगों, सबकी छिपी भलाई है।। हमको जन्म मिला यूं प्यारा, जन-जन को दें सदा सहारा। जितने भी प्राणी हैं जग में, दर्जा सबसे अलग हमारा।। कोई भी हम मजहब माने। मानवता के सभी खजाने।। कभी किसी में वैर भाव की, दिखी नहीं परछाई है। स्वीकारें ये इसमें लोगों, सबकी छिपी भलाई है।। प्यार सिखाते हैं सब मजहब, नफरत किसने सिखलाई कब। किसने दर्द नहीं समझा है, पैरोंकार दया के हैं सब।। पर पीडा को कौन बढ़ाता। हिंसा से किसका है नाता।। धरती पे दुख कैसे कम हों, सबने अलख जगाई है। स्वीकारें ये इसमें लोगों, सबकी छिपी भलाई है।। हम मजहब के लिए नहीं हैं, कहो नही क्या बात सही है। हमें जरूरत मजहब की तो , अपने हित के लिए रही है।। कैसे जीवन अपना तारें। दीनो दुनिया यहां...
भारत की कुर्बानी को
गीत

भारत की कुर्बानी को

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** मानवता के महायज्ञ से, उपजी अमिट निशानी को। नहीं भुला पाएगी दुनिया, भरत की कुर्बानी को।। करी तेरहवी, तेरह दिन में, बंगलादेश बनाया है। हमने पाकिस्तानी सेना, को घुटनों पर लाया है।। 'विजय दिवस' सोलह दिसंबर, को यूँ देश मनाता है। भारत की सेना के आगे, कौन भला टिक पाया है।। सजा मिली है इस दुनिया में, हर हरकत शैतानी को। नहीं भुला पाएगी दुनिया, भारत की कुर्बानी को।। इंदिरा की आँधी ने उसको, दो टुकड़ों में बांट दिया। बंगलादेश अलग करके धड़, पाकिस्तानी काट दिया।। दुनिया ने इंदिरा को समझा, था नाजुक अबला नारी। उसने ही दुनिया को अपना, दिखला रूप विराट दिया।। हमने लोगों बेमतलब की, कुचल दिया मनमानी को। नहीं भुला पाएगी दुनिया, भरत की कुर्बानी को।। सैनिक तानाशाह याहिया, खां का सपना तोड़ दिया। दुनिया के नक्शे में बंगला, देश नया एक जोड़ दिया।। तिराणवे...
किसानों के हमदर्द
कविता

किसानों के हमदर्द

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** कब तक कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। हम जय जवान जय किसान कहेंगे शान से। आते हैं हम भी हलधरों के खानदान से।। प्यारे हैं सभी आप हमें अपनी जान से। परखेगें मगर अपने ही चश्मे से ज्ञान से।। कबत क कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। कीचड़ से निकालेंगे करो मत उधम, सुनो। खेती परंपरा की नहीं रखती दम, सुनो।। मत रोको रास्तों को नहीं हम भी कम सुनो। कानून को हाथों में न लो बन अधम सुनो।। कब तक कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। तुम टूट चुके क्या करोगे और बिखर कर। रोते रहे कम कीमतों को ले इधर-उधर।। खेती नहीं है लाभ का धंधा चलो शहर। पक्के मकान देंगे तुम्हें चैन उम्र भर।। कब तक कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। ...
किसको दर्पण दिखा रहा हूं
गीत

किसको दर्पण दिखा रहा हूं

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** कहता हूं नाचीज स्वयं को, रुतबा कितना जता रहा हूँ। किस पर करता हूँ घमंड मैं, किसको दर्पण दिखा रहा हूँ।। मैं किस खेतकी मूली हूं जो, अपना भाव बढ़ाया मैंने। कोल्हू का हूँ बैल फकत मैं, पका पकाया खाया मैंने।। क्यों हजार का नोट बना मैं, भार बदन का बढ़ा रहा हूँ। किस पर करता हूँ घमंड मैं, किसको दर्पण दिखा रहा हूँ।। अपनी मर्जी से ना जन्मा, नहीं मरण हाथों में मेरे। क्यों अंगारे उगल रहा हूँ, हैं अंधियारे मुझको घेरे।। क्यों घमंड है इतना मुझको, क्या सूरज का सगा रहा हूँ। किस पर करता हूँ घमंड मैं, किसको दर्पण दिखारहा हूँ।। खुद अपनीतारीफ करूं क्यों, क्या चरने को अकल गई है। गंदे कतरे से यह जीवन, है लोगों क्या बात नई है।। क्यो आकाश उठाके सिर पे सबको उल्लू बना रहा हूँ। किस पर करता हूँ घमंड मैं, किसको दर्पण दिखा रहा हूँ।। उंगली पकड़ेबिना चला कब, कंध...
चलो चलें अब सर्दी आई
गीत

चलो चलें अब सर्दी आई

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** चलो चलें अब सर्दी आई, इसका भी तो लाभ उठाएं। सौ रूपये के कंबल बांटें, दोसौ के फोटो खिंचवाएंं।। लाभ उठाना अपना मकसद, जीवन धन्य बनाएं ऐसे। रामबाण है दिल खुश करना, खुशियों को हम लाएं ऐसे।। आज प्रदर्शन का युग भाई, नहीं बुरा दो दें सौ पाएं। सौ रूपये के कंबल बांटे, दोसौ के फोटो खिंचवाएं।। ले तो नहीं रहे कुछ उनसे, क्या बिगड़े जो ढाल बनालें। मदद भले छोटी है उनकी, अपनी भी तो प्यास बुझालें।। दुनिया है बाजार बडा ये, बुद्धिमान हैं लाभ कमाएं। सौ रुपए के कंबल बांटें, दोसौ के फोटो खिंचवाएं।। नहीं जुबां होती निर्बल के, यह "अनंत" जग जान रहा है। बोलो तो बूरा भी बिकता, इस सच को पहचान रहा है।। हम हैं ऊंचे बोलने वाले, अखबारों में आओ छाएं। सौ रूपये के कंबल बांटें, दोसौ के फोटो खिंचवाएं।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ ...
घर घर दीप जलाएं हम
कविता

घर घर दीप जलाएं हम

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** ज्योतिर्मय जग कर दें तो सुख पाएं हम। आओ मिलकर घर घर दीप जलाएं हम।। दीप जलाएं मेटें मिलकर अंधियारे, रोशन कर दें अवनी अम्बर हम सारे। ये त्यौहार नहीं है सिर्फ अकेले का, याद उन्हें भी रक्खें जो हैं दुखियारे।। उनको भी खुशियों में भागीदार करें, पल खुशियों के आए भूल न जाएं हम। ज्योतिर्मय जग कर दें तो सुख पाएं हम, आओ मिलकर घर घर दीप जलाएं हम।। सुख बांटो तो कई गुना बढ़ जाता है, रगरग से ये स्नेहसुधा बरसाता है। इंसानों की एक अलग पहचान रही, मिलजुल करके खाना इनको आता है।। हम दानव के वंशज नहीं न दानव हैं, इंसां हैं, ये इसां को समझाएं हम। ज्योतिर्मय जग कर दें तो सुख पाएं हम, आओ मिलकर घरघर दीप जलाएं हम।। धन प्रकाश का सुन्दरता का वर ले लें, लक्ष्मी माता से अपने जेवर ले लें । विजय न्याय की होती है विश्वास करें, अन्यायी का उठें उतारें सर ले लें।। स...