जब-जब कलम मौन होती है
अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत"
निवाड़ी (मध्य प्रदेश)
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कह दो अब खामोश कलम से,
तुझको लिखना होगा।
जीवन के संग्राम समर में,
आगे दिखना होगा।
जब-जब कलम मौन होती है,
पाप तभी बढ़ता है।
तब तब पाप निरंकुश होकर,
सबके सर चढ़ता है।
पेनी तलवारों से ज्यादा,
धार कलम की होती।
जब-जब पापाचार देखती,
तभी कलम है रोती।
रही समर में सदा लेखनी,
सबका जोश बढ़ाया।
अपने लेखन से अपंग को,
ऊँचे शिखर चढ़ाया।
छोटी है पर बड़ी साहसी,
तेरी ताकत भारी।
कभी नहीं खामोश हुई तू,
कभी न हिम्मत हारी।
जाने क्यों खामोश हो गई,
समझ नहीं मैं पाया।
क्रियाकलाप देख कलयुग के,
तेरा मन घबराया।
इसीलिए खामोश हुई तू,
तूने लिखना छोड़ा।
सच्चाई लिखने से तूने,
क्यों अपना मुख मोड़ा।
खामोशी को तोड़ कलम तू,
लिखना सबकी पीड़ा।
सभी कलयुगी पाप मिटाने,
कलम उठाना बीड़ा।
परिचय :- अंजनी कु...