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पर्व पर आनंद मनाऊं कैसे
कविता

पर्व पर आनंद मनाऊं कैसे

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** देखा था रोशनी जिन अपनों संग, बिछुड़ उनसे दीप जलाऊं कैसे ? रूठे बैठे है जो अपने सगे संबंधी, बिन उनके मैं तिमिर हटाऊं कैसे ? रिश्तों में उपहार साथ मिला था, रस्म निभाने का बात मिला था। फिर उनके बिन पर्व मनाऊं कैसे ? जिनसे जन्मों का साथ मिला था ।। मेरे अपने मुझसे मुख मोड़ बैठे है, फिर गैरों संग दीप जलाऊं कैसे ? त्योहारों पर छूटा यदि साथ अपना, तो इस पर्व पर आनंद मनाऊं कैसे ? परिचय : अंकुर सिंह निवासी : चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां...
तुम अब वापस आओ
कविता

तुम अब वापस आओ

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** (यहां लड्डू एक छोटा बालक है, जो माता-पिता से एक अनुरोध कर रहा है कि उसके खातिर अपने रिश्ते कभी ना तोड़े) मम्मा तुम अब वापस आओ, अपने लड्डू को गले लगाओ। अगर हुई है पप्पा से तू-तू, मैं-मैं, उससे तुम मुझे ना बिसराओं।। पप्पा माफी मांगे तो माफ करना, आंख दिखा उनको सचेत करना। आपसी झगड़े में मम्मा-पप्पा, अपने लड्डू को भूल ना जाना।। पप्पा ने कहा यदि कुछ मम्मा को, या मम्मा ने कुछ कहा पप्पा को। भूल कहासुनी में कही बातों को, प्यार देना अपने इस लड्डू को। मम्मा पप्पा आपसी झगड़ों से, मैं होऊंगा एक प्रेम से वंचित। मां मैं हूं आप दोनों का लड्डू , क्यों रहूं फिर प्रेम से बंधित।। पप्पा-मम्मा रिश्ते तोड़ने के पहले, इस लड्डू का ख्याल कर लेना। सपने देखें थे आपने जो मेरे संग, मिलकर उसे पूरा कर देना। मम्मा मेरे खातिर रि...
बिखरे ना प्रेम का बंधन
कविता

बिखरे ना प्रेम का बंधन

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** अबकी जो तुमसे बिछड़ा, जीते जी मैं मर जाऊंगा। भले रहूं जग में चलता फिरता, फिर भी लाश कहलाऊंगा।। रह लो मुझ बिन तुम शायद, पर, जहां मेरा तुम बिन सूना। छोड़ तुम्हें अब मैं ना जाऊंगी, भूल गई क्यों ऐसा कहा अपना? एक प्रेम तरु के हम दो डाली, कैसे तुम बिन हवा के टूट गई? जीना चाहा था तुम्हारे वादों संग, फिर तुम मुझसे क्यों रूठ गई? कभी तुम सुना देती थी कभी मैं, लड़ रातें सवेरे एक हो जाते थे। जिस रात तुम्हें पास न पाया, उस रात मेरे नैना नीर बहाते थे।। सात जन्मों का है जो वादा, हर हाल है उसे निभाना। मिलकर हम खोजेंगे युक्ति, जग बना यदि प्रेम में बाधा।। अबकी जो तुमसे बिछड़ा, आहत मन से टूट गया हूं। पढ़ रही हो तो वापस आओ, तुम बिन मैं अधूरा हूं ...।। मांगता हूं गलतियों की क्षमा, हाथ जोड़ कर रहा कर वंदन। गलत...
बिखरे ना परिवार हमारा
कविता

बिखरे ना परिवार हमारा

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** भैया न्याय की बातें कर लो, सार्थक पहल इक रख लो। एक मां की हम दो औलादें, निज अनुज पे रहम कर दो।। हो रहा परिवार की किरकिरी, गली, नुक्कड़ और बाजारों में। न्यायपूर्ण आपसी संवाद छोड़, अर्जी दिए कोर्ट कचरी थानों में।। लिप्सा रहित हो सभा हमारी, निष्पक्ष पूर्ण हो संवाद हमारा। मैं कहूं तुम सुनों तुम कहो मैं, ताकि खत्म हो विवाद हमारा ।। कर किनारा धन दौलत को, भाई बन कुछ पल बात करों। मां जैसे देती रोटी दो भागों में, मिलकर उस पल को याद करों।। बिन मां बाप का अनुज तुम्हारा, मां बाप बनके आज न्याय करों।। हर लबों पे अपनी खानाफूसी, बैरी कर रहे अपनी जासूसी। भैया, गर्भ एक लहू एक हमारा, कंधों पे झूलने वाला मैं दुलारा। आओ मिलकर रोक दे दूरियां, ताकि बिखरे ना परिवार हमारा।। ताकि बिखरे ना.......... ।। परिचय : अंकुर...
शिक्षक
कविता

शिक्षक

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रणाम उस मानुष तन को, शिक्षा जिससे हमने हैं पाया। मातृ-पितृ के बाद, जिसकी है हम पर छाया पुनः उनके श्रीचरणों में नमन, जो शिक्षा दे शिक्षक कहलाएं। अच्छे बुरे का फर्क बतला उन्नति का मार्ग हमें दिखलाएं।। शिक्षक, अध्यापक और गुरु संग, आचार्य जैसे है अनेकों पदनाम। कभी भय तो, कभी प्यार जता, करते हमें सिखाने का काम।। कभी डांट तो कभी फटकार कर, कुम्हार के भांति हमें पकाया। अपने लगन और अथक मेहनत से, शिक्षक ने हमें सर्वश्रेष्ठ बनाया।। गुरु तो है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश से भी महान। गुरु की दी शिक्षा ही हमें, दिला रही आज सम्मान।। शिक्षा के बिना तो, ये मानव जीवन है बेकार। शिक्षक ने हमें शिक्षित कर, कर दिया अनेकों उपकार।। अपनी शिक्षा से सफल हमें देख, शिक्षक का होता हर्षित मन। पांच सितंबर क्या, मैं तो कर...
गजानन महाराज
कविता

गजानन महाराज

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** भाद्र शुक्ल की चतुर्दशी, मनत है गणपति त्योहार। सवारी जिनका मूषक डिंक मोदक है उनका प्रिय आहार।। उमा सुत है प्रथम पूज्य, कहलाते गजानन महाराज। ऋद्धि सिद्धि संग पधार, पूर्ण करो मेरे सब काज। प्रिय मोदक संग चढ़े इन्हे, दूर्वा, शमी और पुष्प लाल। हे लंबोदर ! हे विध्न नाशक ! आए हरो मेरे सब काल।। हे ऋद्धि, सिद्धि दायक, हे एकदंत ! हे विनायक ! गणेश उत्सव को द्ववार पधारो बनो सदा हमारे सहायक।। बप्पा गणपति पूजा हेतु, दस दिवस को आए। पुत्र शुभ लाभ संग पधार, सारी खुशियां भर लाए।। फूल, चंदन संग अक्षत, रोली, हाथ जोड़ बप्पा हम करते वंदन। हे गणाध्यक्ष!, हे मेरे शिवनंदन, करो स्वीकार अब मेरा अभिनन्दन।। परिचय : अंकुर सिंह निवासी : चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार स...