जमाने का चलन देखा
महेश बड़सरे राजपूत इंद्र
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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कभी मायूस देखा, कभी हँसते हुए देखा।
खुद के बनाये जालों में कभी, फँसते हुए देखा।।
कभी ना नजरें मिलाते जो, सलाम आज करते हैं।
मतलब बिना जमाने को, ना कभी,झुकते हुए देखा।।
उनको मिली है जिंदगी जीने की तहज़ीब फिर भी।
बर्बादी की राह पर आदमी को आगे, बढ़ते हुए देखा।।
ना मिला सुकून ना चैनो-अमन खुद से जिन्हे।
दूसरों की जिन्दगी में खलल, करते हुए देखा।।
ढेरों लोग हैं छोड़ी नहीं जाती जिनसे आदतें बुरी।
भरी महफ़िल में उनको नसीहतें, पढ़ते हुए देखा।।
सिधा सा रास्ता है दिल में उतर जाने का 'इंद्र' जान ले।
तुझे प्यार से गले इंसान के, ना कभी, मिलते हुए देखा।।
परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र
आयु : ४१ बसंत
निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश)
विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन
घोषणा पत्र...