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जमाने का चलन देखा
कविता

जमाने का चलन देखा

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कभी मायूस देखा, कभी हँसते हुए देखा। खुद के बनाये जालों में कभी, फँसते हुए देखा।। कभी ना नजरें मिलाते जो, सलाम आज करते हैं। मतलब बिना जमाने को, ना कभी,झुकते हुए देखा।। उनको मिली है जिंदगी जीने की तहज़ीब फिर भी। बर्बादी की राह पर आदमी को आगे, बढ़ते हुए देखा।। ना मिला सुकून ना चैनो-अमन खुद से जिन्हे। दूसरों की जिन्दगी में खलल, करते हुए देखा।। ढेरों लोग हैं छोड़ी नहीं जाती जिनसे आदतें बुरी। भरी महफ़िल में उनको नसीहतें, पढ़ते हुए देखा।। सिधा सा रास्ता है दिल में उतर जाने का 'इंद्र' जान ले। तुझे प्यार से गले इंसान के, ना कभी, मिलते हुए देखा।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र...
जमीं पर नहीं पैर मेरे!
कविता

जमीं पर नहीं पैर मेरे!

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जाने क्यों आज, जमी़ पर नहीं पैर मेरे ! मैं होंसलों के पंख लगा, एक नई उडा़न भरना चाहती हूँ नील गगन में। मैं पंछी बन स्वच्छंद, ऊँचाइयाँ चूमना चाहती हूँ नील गगन में। मीलों दूर चली जाऊंँ अनंत आकाश में, खिसक न जाए जमीं पैरों से मेरे, मैंआना चाहती हूँ पुनः घरोंदों में, पैर सदा रहें जमी पर मेरे। जाने क्यों आज जमी पर नहीं पैर मेरे! सागर में गहराई जितनी हृदय में इतनी थाह ले, जीवन का हर संघर्ष मैं जीतना चाहती हूँ जिंदगी के बाद भी अस्तित्व मेरा बना रहे, पैर सदा रहें जमीं पर मेरे। जाने क्यों आज ज़मीं पर नहीं पैर मेरे! मैं अतीत, मैं वर्तमान हूँ, मैं जननी भविष्य की हूँ, मेरी संतति, मेरी संस्कृति मेरेअस्तित्व की जड़ें सागर की गहराई सी. जमी रहें हर काल में, उपस्थिति सदा रहे मेरी, नीलाम्बर की ऊँचाइयो...
ऐ दुनिया वालो
कविता

ऐ दुनिया वालो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** ना खुरचो परत मेरे जख्मों से ऐ दुनिया वालो। ब-मुश्किल फरेरा किया है मैंने गमों के जख्मों को, ये गहरे घाव न बन जाएंँ तुम्हारी बेरूखी से, ऐ दुनिया वालो। बार बार गिरा हूँ लड़खड़ाया हूँ, मगर चौखट पर आकर उसकी फिर संभला हूँ, ऐ दुनिया वालो। मुझे सहारा दे देना मैं रुह को अपनी रब से मिलाने आया हूँ ऐ दुनिया वालो। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कव...
लो आ गई होली
कविता

लो आ गई होली

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** लो आ गई होली मन में है उल्लास दिलों मे भरा उत्साह आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली हर घर-आँगन गाँव-मढैया होली गावें हर गाँव गवैया वृंदावन की कुंज गलिन में प्रेम रंग में रंगकर होली खेलें रास रचैया भक्ति रस में डूब-डूबकर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली गाँव-नगर चौपाल-क्लब आ गए बालम और कुमार भांग खुमार, रंग, गुलाल बोला सबके सर चढ़कर होली के रंगों में रंग कर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली क्या हिन्दू क्या मुस्लिम क्या सिख-इसाई मनमुटाव द्वेष बुराई भुला कर दुनिया को भाईचारे की राह दिखा कर मानवता के रंग में रंगकर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली बच्चों की पिचकारी रंगों से भरे गुब्बारे जीवन में भर रहे रंग बारम्बार विविध रंगों से विद्यमान आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली एक अनोखा...
नियति ही प्रारब्ध है
कविता

नियति ही प्रारब्ध है

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मत गुमान कर ऐ चाँद अपनी खूबसूरती पर। मत भूल कुछ दाग तो हैं, तेरे भी चेहरे पर। माना कि तेरी चांदनी की बराबरी किसी से नहीं, तेरे मुखमण्डल की आभा किसी से छिपी नहीं, पूर्णिमा की रात- चाँद की शीतलता किसी से सिमटी नहीं। कैसा विधि का विधान है महाकाल के ललाट पर गंगा की भांति मिला सम्मान है। किंतु यह भी सत्य है, प्रति-पल मानो अस्तित्व तेरा घटने लगता है, खूबसूरती का खुमार (रंग) प्रति क्षण उतरने लगता है। तिमिर अमावस्या की रात का, चंद्र की चांदनी को आगोश में ले लेता है, देखकर व्यथा तेरी हृदय सिहर उठता है। यह नियति ही है शून्य की गोद में समाने तक निरंतर घटना, किंतु हार न मानना, फिर प्रति पल संपूर्णता (यौवन) की ओर निरंतर आगे बढना। सुख-दुख, उतार-चढ़ाव यश-अपयश मानो जीवन चक्र है, सुर, जीव, मनुज सब नियति ...
आ गया ऋतुराज बसंत
कविता

आ गया ऋतुराज बसंत

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** आ गया ऋतुराज बसंत, मन हो रहा मगन। मनोहर छटा बिखेरता मदमस्त गगन, खिल रहा सूर्यरश्मियों से धरा का मुखमंडल समस्त भूमण्डल बन रहा उत्तम उपवन। पुहुप रस पी-पीकर मधुकर कर रहे गुंजन, बन रहा प्रकृति में सहज संतुलन। आ गया ऋतुराज बसंत मन हो रहा मगन। धारण किया धरा ने पीत वसन, प्रकृति ने किया श्रंगार सहज। आज सज रही ऋतुराज की दुल्हन, मानो कामदेव-रति का हो रहा मंगल-मिलन। आ गया ऋतुराज बसंत, मन हो रहा मगन। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। घोषणा पत्र : मैं यह प्...
मस्तक की बिंदी है हिंदी
कविता

मस्तक की बिंदी है हिंदी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत मां के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भारत मां का अलंकार है हिंदी, भारत मां का शीश सुशोभित करती है हिंदी, देव-भाषा की अनमोल कृति है हिंदी, जन गण मन की शक्ति है हिंदी, भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति है हिंदी, नन्हे मुन्नो की तुतलाई बोली है हिंदी विद्वानों की विद्वता को परिभाषित करती है हिंदी जब-जब इस पर संकट की परछाईं भी दिखती, कलमकारों की कलम से निकली हर हुंकार हिंदी रक्षण में आंदोलन करती, भारत मां के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भाषाओं में सर्वोपरि राष्ट्रभाषा है हिंदी हर जन मानस में रची बसी है हिंदी हर भारतवासी को एक सूत्र में बांधती है हिंदी, भारत मां के मस्तक की बिंदी है हिंदी। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति :...
तू दिन को रात कर देगा …
कविता

तू दिन को रात कर देगा …

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तू दिन को रात कर देगा, शबों को आग कर देगा। जहाँ बरसें हों अंगारें, वहाँ तू बाग कर देगा।। भरी तुझमे वो मस्ती है, छुपी तुझमें वो शक्ति है। हुए वीराँ नगर हैं जो, उन्हे आबाद कर देगा।। इरादों में तड़प देखी, ज़िगर तेरे धड़क देखी। बुझे कोई जो चिंगारी, तू उनमे ख़्वाब भर देगा।। तेरि इन सुर्ख आँखों में, हिन्दोस्ताँ ही बसता है। अपना बन ठगा जिसने , उन्हें क्या माफ़ कर देगा।। अर्जुन बन तू माधव का, हनुमत बन तू राघव का। थमे जो ना दुराचारी, तू उनका नाश कर देगा ? जननी है जन्मभूमि, तारणी है कर्मभूमि। चुकाने को कर्ज़ इसका, 'इंद्र' अपना सर देगा।। ऐसा तू है परवाना, शमा को जो करे रोशन। नहीं मरने का भय रखना, तू मरकर भी अमर होगा।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदे...
अंधकार को चीरता सूरज
कविता

अंधकार को चीरता सूरज

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। अंधी रातें, काली रातें सर्दी के यौवन में जमती जीवन की राहें। अंधकार ने जब अपने यौवन का जाल बिछाया ठिठुरती सर्दी ने अंधकार को दीनों-दुखियों बच्चों-बूढ़ों का कठिन काल बताया, देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। मत घबराओ, मत घबराओ पप्पू-गप्पू,चीनू-लक्की, अम्मा-बाबा, नाना-नानी, नहीं रहा सदा समय एक सा अंधकार अब हुआ है बूढ़ा, यौवन भी इसका हुआ ढला ढला सा। देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। काली रातें, बीती रातें भोर हुआ अब नभ जग थल में व्योमनाथ आए लिये रश्मियां संग में मानो प्राणी मात्र को जीवन दान मिला रश्मियों से। सात घोड़ों के रथ में होकर सवार देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। नई आशाओं का अंकुर जन्मा, समय भी फिर से अंगड़ाई लेकर नए कलेवर में आया तुमको, मुझको, हमको,...
महिमा
कविता

महिमा

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सच है तेरी लज्जा - मर्यादा भी, नारी तेरा हथियार है । उद्देश्य निकलने का घर से, प्रथम देहली से तू बोलना।। जब भी अवसर आये, अवगुण या आसुरी वृत्ति हो। प्रकट होता शक्ति अवतार, भीतर अपने टटोलना ।। नहीं अरी कोई तेरा, तू सबको देती प्रेम है। हृदय के विशाल महलों से, घृणा के ताले खोलना।। घर के संस्कारों का, सच्चा दर्शन होता वाणी से । स्फुटीत होने वाले शब्दों को, पहले काँटे पर तोलना ।। समर्पण संतोष भाव, दिया प्रभु ने तुझको सहज । थोड़ा मिला ज्यादा मिला, सीखा तुने स्वीकारना।। असीम गुणों का और भी, तुझमे अमित भंडार माँ। निज संतती को देना, और, कहना इसे संभालना ।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से ले...
आओ मिलकर दीप जलाएँ
कविता

आओ मिलकर दीप जलाएँ

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** आओ प्रदूषण रहित दिवाली मनाएं, सबके जीवन में खुशियॉं लाएँ आओ मिलकर दीप जलाएँ। हर घर आँगन चौवारों पे, मन मन्दिर और शिवालयों में, यह रात अमावस्या की धोखा खा जाए, आओ मिलकर दीप जलाएं। किसी झोपड़ी, किसी गली और चौराहे पे, कहीं अंधेरा रह न जाए आओ प्रदूषण रहित दिवाली मनाएँ, सबके जीवन में खुशियाँ लाएँ, आओ मिलकर दीप जलाएँ। नहीं जलाएँगे आतिशबाजी, नहीं जलाएँगे बम धमाके, प्रण ऐसा जन-जन में कर जाएँ, जीवन को न नरक बनाएँ, वातावरण शुद्ध बनाएंँ आओ प्रदूषण रहित दिवाली मनाएँ, सबके जीवन में खुशियाँ लाएँ, आओ मिलकर दीप जलाएँ। अध्यात्म, विज्ञान का लाभ उठाकर, घर आँगन लक्ष्मी बुलाकर, पर्यावरण का दीप जलाकर, राष्ट्र प्रेम का दीप जलाकर, आओ प्रदूषण राहित दिवाली मनाएँ , सबके जीवन में खुशियाँ लाएँ, आओमिलकर दीप ज...
कर्मयोगी बनो
कविता

कर्मयोगी बनो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** शब्द सारगर्भित हों अंदाज में तुम्हारे स्वाभिमान हो। जिंदगी जीने की कसक हृदय में हो, तो मृत्यु से भयभीत न हो। शांतमन के आकाश में सप्तर्षियों का ज्ञान भरो। कभी भौतिक भटकाव से ग्रसित हो तो आध्यात्म (हृदय) की आकाशगंगा में स्वयं पवित्र हो। राजमहलों में प्रेम न खोजो, जहाँ कुटिलताओंं का जाल बिछा हो, इंद्रधनुषीय रंगों सी छटा बिखेरता निश्छल प्रेम पाना हो तो झोपड़ियों की ओर चलो। तुम निष्काम निस्वार्थ रचनाकार हो गुदड़ी के सपूतों का मर्म रचो। सम्मान में उनके स्वतंत्र कलम तुम्हारी सदैव तत्पर हो। जीवन के महायज्ञ में कर्म को प्रधान जान कर्मयोगी बनो। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इ...
मैं क्या हूँ …?
कविता

मैं क्या हूँ …?

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं क्या हूँ ? स्वयं का अहम हूँ, कौन हूँ? पानी का एक बुलबुला हूँ, फिर भी इठला रहा हूँ । क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। अपने जीवन और अस्तित्व से भली भांति परिभाषित हूँ , किंतु अहम के आवरण से ढका हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। अस्तित्व में आने के लिए सदैव कसमसाता हूँ, किंतु काल के गाल में कब समा जाऊं ! यह जानने के लिए, नियति को प्रतिपल मनाता हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। सहसा क्या देखता हूं ! काल के सम्मुख स्वयं को पाता हूँ संभलना चाहता हूँ, नादानियों का प्रायश्चित करना चाहता हूँ, किंतु संभल ही नहीं पाता हूँ। क्योंकि मैं "मैं" हूँ।। फिर भी सौभाग्यशाली हूँ, अहम को छोड़कर पाप-पुण्य को त्याग कर, जीवन-चक्र को भूलकर, मुक्ति के आगोश में चला जाता हूँ। क्योंकि मैं अब "मैं" नहीं हूँ, पानी का बुलबुला हूँ। कर...
कर्मभूमि के पथ पर
कविता

कर्मभूमि के पथ पर

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** कर्मभूमि के पथ पर चलते-चलते जीवन की इस यात्रा में थक जाऊंँ तो साथ मेरा तुम छोड़ न देना।। सत्कर्म के कठिन मार्ग पर चलते-चलते ठोकर खाकर गिर जाऊंँ तो हाथ मेरा तुम छोड़ न देना।। जीवन संघर्षों से लड़ते-लड़ते लड़खड़ा जाऊँ तो मनोबल मेरा तोड़ न देना।। असत्य, अधर्म, अनीति के चक्रव्यूह में अभिमन्यु की भांँति घिर जाऊँ तो जीवन रण में एकाकी छोड़ न देना।। श्री चरणों में भक्ति करते-करते राह यदि भटक जाऊँ तो शरण में अपनी ले लेना।। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर...
दीप प्रज्वलित करेंगे जरूर
कविता

दीप प्रज्वलित करेंगे जरूर

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** हम दीप प्रज्वलित करेंगे जरूर। निर्धन, पीड़ित, शोषित की आशा और विश्वास के लिए, असहाय ,मजबूर, निर्बल की सहायता और सहारे के लिए, हम दीप प्रज्वलित करेंगे जरूर। कुव्यवस्था, अन्याय, बेबसी के शिकार, जिन पर न घर है न काम, जो हर हाल में हैं बेहाल, उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए, हम दीप हम दीप प्रज्वलित करेंगे जरूर। अंधकार में प्रकाश के लिए, राष्ट्रोत्थान की कामना के लिए, जन-गण-मन कल्याण के लिए, हम दीप प्रज्वलित करेंगे जरूर। साम्प्रदायिक सौहार्द के मानवता की मंगलकामना के लिए, जो चले गए उनकी आत्मशांति के लिए, हम दीप प्रज्वलित करेंगे जरूर। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़...
माँ क्या होती है
कविता

माँ क्या होती है

गायत्री ठाकुर "सक्षम" नरसिंहपुर, (मध्य प्रदेश) ******************** कोख में रखकर नौ महीने, सौ सौ तखलीफें सह सह कर। रात रात भर, जाग-जाग कर, खुद गीले में रह-ह कर। बच्चे को सुलाती सूखे में, प्यार भरी थपकी देकर। बड़े चाव से सेवा करती, कभी न उसमें नागा करती। हो जाए बड़ा, कितना ही बालक, हर विपदा से उसे बचाती, बन करके, उसका रक्षक। नहीं है कोई दुनिया में, उसके जैसा, त्याग, तपस्या और प्रेम की मूरत जैसा। माथे पर उसके, देख शिकन, हो जाती व्याकुलता से बेचैन। बालक के सुख से होती सुखी, बालक के दुख से होती दुखी। माँ की कीमत वो ही जाने, मिली न "सक्षम" जिन्हें देखने। परिचय :- गायत्री ठाकुर "सक्षम" निवासी : नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
हाहाकार
कविता

हाहाकार

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कोरोना ने मचाया हाहाकार कृष्णजी लगा दो नैया पार बेचारे बच्चे पूछ रहे हैं कब हम बाहर निकलेंगे? कब हम स्कूल जाएंगे ? कब हम मैदान में खेलेंगे ? सुन लो भक्तों की पुकार कृष्णजी लगा दो नैया पार।। बड़े -बूढ़े प्रार्थना कर रहे, घर में कब तक बंद रहेंगे? हाथ धोए सब परेशान हुए शुद्ध हवा कब सांस लेंगे ? जीना हो गया अब दुश्वार, कृष्णजी लगा दो नैया पार।। मजदूर बेचारे बिलख रहे दाने -दाने को तरस रहे हैं। कामकाज सब छूट गए, घर बार अब टूट रहे हैं।। दाने-दाने को हुई दरकार कृष्णजी लगा दो नैया पार।। जब-जब होवे धर्म की हानि तब तब तुम जग में आते हो कोरोना दानव ताण्डव नृत्य क्यों नहीं अब चक्र उठाते हो? वादे को करो अब साकार। कृष्णजी लगा दो नैया पार।। मानवता अब जाग गई है सर्वत्र सेवा भावना आ गई डॉक्टर, पुलिस, कर्मचारी तन मन...
गुरु नवचेतना वर दो
कविता

गुरु नवचेतना वर दो

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** ज्ञान चाहता है अंतर्मन हर्षित हो जाएं जन जन करते मन में हम यह प्रण शिक्षा का करें अभिनंदन अनुपम प्रकाश भर दो गुरु नवचेतना वर दो। चारों ओर है घोर अंधेरा कर सकते हो तुम उजेरा ज्ञान का होवे यहाँ बसेरा सुख सूर्य का रोज सवेरा ऐसी शक्ति भर दो। गुरु नवचेतना वर दो। नफरत और ईर्ष्या मिट जाए ऊंच-नीच का फर्क मिट जाए जाति-पांति का भेद मिटजाए परस्पर समता भाव लहराए ऐसा ज्ञान भर दो। गुरु नवचेतना भर दो। आज समय की मांग पुकारे कर सकते हो तुम्हें उबारे तुम्ही हो भारत के रखवाले राष्ट्र निर्माता पूज्य हमारे ऐसे गुरु भक्ति दो। गुरु नवचेतना भर दो।। जगती का उद्धार तुम्हीं हो मुक्ति का सही मार्ग तुम्हींहो प्रेम का सद्व्यवहार तुम्हीं हो नैया की पतवार तुम्हीं हो बुद्धि विकास वर दो। गुरु नवचेतना वर दो।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, स...
गजानन सुनलो हमारी पुकार
कविता

गजानन सुनलो हमारी पुकार

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** गजानन सुनलो हमारी पुकार। गजानन लाओ खुशियां अपार।। विघ्नों के हर्ता हो कष्टों के हर्ता हो मंगलदायक तुम सुखों के कर्ता हो भर दो समृद्धि का भंडार गजानन लाओ खुशियांँ अपार।। कोई काम शुरू हम करते पहले नाम तुम्हारा ही लेते हर संकट करे निवार। गजानन लाओ खुशियाँ अपार।। अज्ञान का छाया है अंधेरा कर सकते हो तुम्ही उजेरा ज्ञान की रोशनी अपार गजानन लाओ खुशियाँ अपार।। विपदाओं का लगा है डेरा कोरोना का है रूप घनेरा। कृपा की कर दो बौछार। गजानन लाओ.खुशियां अपार। कोरोना को तुम दूर भगाओ कष्टों से तुम मुक्ति दिलाओ करो मानवता का उद्धार गजानन लाओ खुशियां अपार गजानन सुन लो हमारी पुकार।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिकोहाबाद (आगरा) निवासी - इंदौर म.प्र....
आओ साथी अयोध्या चलकर राम- पर्व मनाएँ
कविता

आओ साथी अयोध्या चलकर राम- पर्व मनाएँ

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** राम हमारी अयोध्या जन्मे कण-कण राम बसे हैं, सरयू नदी के तट पे अयोध्या पावन नगरी बसे हैं। पावन नगरी अयोध्या को हम राम- नगरी बनाएँ, आओ साथी अयोध्या चलकर राम- पर्व मनाएँ। राजा दशरथ परम प्रतापी अयोध्या नरेश हुए थे, कैकेई सुमित्रा और कौशल्या के चार पुत्र हुए थे। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के दर्शन कर आएँ, आओ साथी अयोध्या चलकर राम- पर्व मनाएँ। राम हैं मर्यादा पुरुषोत्तम परम पूज्य कहलाए, सीता मैया आदर्श जननी जग में पूजी जाएँ। राम सीता के मंदिर को हम जाकर शीश नवाएँ, आओ साथी अयोध्या चलकर राम- पर्व मनाएँ। राम की महिमा गाने से ही कष्ट निवारण होता, राम नाम लेने से ही बस मोक्ष प्राप्त हो जाता। हम भी आज राम दर्शन से थोड़ा पुण्य कमाएँ, आओ साथी अयोध्या चलकर राम पर्व मनाएँ। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा -...
आज होली खेलें अपने आंगन में
कविता

आज होली खेलें अपने आंगन में

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** आज होली खेलें अपने आंगन में। रंगों का त्योहार मनाएं फागुन में।। टेसू के रंग यूँ बरसाए , तन मन पीला हो जाये। ईर्ष्या-नफरत दूर रहे, मन प्रेम से भर भर जाए। रिश्तो के फूल खिलाए गुलशन में। आज होली खेले अपने आंगन में। हरा रंग हम ऐसे बरसाए , कण-कण हरियाली होजाए । जन-जन की भूख मिटे , घर पर खुशहाली आजाए। मेहनत के फूल खिलाए उपवन में। आज होली खेलें अपने आंगन में। वंशी कीतुम तान सुनाओ, राधा बन हम रंग बरसाएं। रंग पिचकारी भर-भर के , मन का सार संसार लुटाएं। हम तुम दोनों रास रचाए मधुबन में। आज को खेलें अपनी आंगन में। .परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिकोहाबाद (आगरा) निवासी - इंदौर म.प्र. व्यवसाय - सेन्ट पाल हा. सेकेंडरी स्कूल इन्दौर से सेवानिवृत्त शिक...
सिसक रहे आज होली के रंग
कविता

सिसक रहे आज होली के रंग

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** सिसक रहे आज होली के रंग। महंगाई ने करदिया रंग बदरंग।। लाल रंग अब लहू बनके बह रहा पीत वर्ण कायर बन छुपकर रोरहा हरी-भरी वसुंधरा अब कहाँ रही? ऊंची-ऊंची इमारतें आस्माँ छू रही। रह गया बस अब होली का हुड़दंग महंगाई ने कर दिया रंग बदरंग।। बच्चों की पिचकारी औंधे मुंह पड़ी, बिन पानी-रंग टंकी शुष्क सी पड़ी। महंगाई-मार रंग फुहार फीकी पड़ी, फागुनी बयार मन्द-शांत चल पड़ी। बिन पानी कैसी होली पिया के संग। महंगाई ने कर दिया रंग-बदरंग पावन पर्व अस्त-व्यस्त हो रहे , पर्वों की गरिमा क्षत-विक्षत रो रहे। वन-उपवन टेसू के फूल मुरझा रहे खाद्य पदार्थ-भाव आस्माँ छू रहे। मथुरा भी गाये बिन होली सूने अंग महंगाई ने कर दिया रंग-बदरंग।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिक...
औरत
कविता

औरत

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** पराधीनता का है नाम न उसकी कोई पहचान न अपना कोई काम उसका कुछ अपना नहीं सोचा हुआ सपना नहीं जन्म से मृत्यु तक अधीन अन्यथा है वह श्री विहीन है देवी, पूज्यनीया और जननी, जो अपने लिए नहीं, औरों के लिए जीती है। आंखों में आंसू लेकर, औरों को खुशियां देती है। ममता, त्याग, दया की देवी पल-पल, जीती-मरती है। पढ़ी-लिखी होने पर भी, पुरुषों से कम आती जाती है। दहेज के कारण आज भी, भ्रूण हत्या का शिकार होती है। बचपन से लेकर मरण तक जीवन भर चुप रह सहती है। घर-परिवार को संभाल कर, देश की बागडोर भी संभालती है। पर, परतंत्रता में ही उसका अस्तित्व है। स्वतंत्र होकर तो और भी परितंत्र है। वो बेटी, बहना, पत्नी, मां बनती है, तभी तो औरत का गहना पहनती है। आदर्श की बलिवेदी पर वही आग में झोंकी जाती है पवित्रता की आड़ में, वही छली जाती है। सांसें ...
नई सुबह आ रही
कविता

नई सुबह आ रही

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे नव उमंग जाग रही नये गीत रचेंगे।। खेत की माटी बोल रही, ओ कर्मवीर उठ जाओ। प्राणों में अब हुंकार भरो, मेहनत की फसल उगाओ। नई रोशनी आरही अंधविश्वास दूर भगेंगे नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे।। जीत उसे हासिल होती, आशा के बल पर जीते। बाधाओं को दूर हटाके, वे नील गगन छू लेते। कर्म-आँधी चलरही श्रम- फूल खिलेंगे। नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे।। सारे बंधन तोड कर, नई ऊर्जा से भर दें। खौफ का साया जहाँ, हौंसलों के पंख दे दें। नई लहर आ रही आत्मविश्वास जगेंगे। नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे। चुनौतियों का सामना करो, भाग्य भरोसे बैठो नहीं। पुरुष हो पुरुषार्थ करो , बाधाओं से डरो नहीं। कर्मभूमि सज रही ज्ञानदीप जलेंगे। नव उमंग जाग रही नये गीत रचेंगे।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एव...
मकर संक्रांति
कविता

मकर संक्रांति

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** मकर संक्रांति का पावन पर्व। हम भारतीय करते इस पर गर्व। तिल गुड़ की है इसमें मिठास दूर करती रिश्तों की खटास। तिल- गुड़ रखते काया निरोग खाओ-खिलाओ तिलगुड़-भोग। प्रेम-भाव से खूब उड़ाओ पतंग हिल-मिल रहो सभी के संग। गुड़ से मीठे रिश्ते महकते रहें परस्पर सम्बन्ध चहकते रहे। जीवन में खुशियों का रंग भरदे वासंती खुशनुमा उल्लास भरदे। रखो ऊँचा उठने की स्वकामना दूसरों को आगे बढ़ने की प्रेरणा। संक्रांति पर सभी को शुभकामना उउन्नति सफलता यश की कामना ।।   परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिकोहाबाद (आगरा) निवासी - इंदौर म.प्र. व्यवसाय - सेन्ट पाल हा. सेकेंडरी स्कूल इन्दौर से सेवानिवृत्त शिक्षिका) प्रकाशन कृतियां - तीन काव्य संग्रह - राष्ट्र को नमन...