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कंटक
कविता

कंटक

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैं तुम्हें तोड़ती हूं कंटक क्यों बार-बार उग आते हो तन्हाईयों में यादों को कुरेदने के लिए मेरे जख्मों को हरा कर, तुम्हें क्या मिलेगा सुख, संतोष, या मुझे तड़पन। अतीत की यादों की जंजीर लंबी है कहीं कोई गांठ नहीं, कोई फास नहीं तुमसे तो हरी घास की कोंपल अच्छी जो आंखों को ठंडक, मन को संतोष देती है। एक ही धरा पर जनित हो तुम दोनों पर कर्मानुसार फल लेने में तुम्हारा कोई सानी नहीं तुम्हारा कोई सानी नहीं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों...
देश गान
कविता

देश गान

कुंदन पांडेय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** ओजस्व नहीं मेरे अंदर, तू स्वयं ओज गुण दाता है। संपूर्ण कलाधर हे जननी, तू हीं इस जग की त्राता है। हर क्षण-क्षण, हर पल पूजा हो, बस यही आश मन धरती हूं। तेरे कारण मेरा वजूद, मैं तुम्हें नमन नित करती हूं। है लिया जन्म जिस धरती पर, न उसको नित निश प्राण करो। तुम जग के कुल उद्धारक हो, इस वसुधा का सम्मान करो। जो त्याग अरति इतिहास रचे, नव युग उसके गुण गाता है । संपूर्ण कलाधर हे जननी,तू हीं इस जग की त्राता है। उठ जाओ शुखमय आश्रय से, तुम नित त्रासों का वरण करो जग-मग कर डालो वशुधा को, कुल दीपों का तुम तरण करो। हो कर अब निश्चल अविरल तुम, भारत माता का ध्यान करो। गर राष्ट्र प्रेम तुम करते हो, हर प्राणी का सम्मान करो। जो कण-कण तज दे धरणीं पर, हर शब्द उसे हीं ध्याता है। संपूर्ण कलाधर हे जननी, तू हीं इस जग ...
बेटी तो वरदान है
कविता

बेटी तो वरदान है

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी तो वरदान है नही हे अभिश्राप, दोनों कुल को तारती बेटी तो हे महान, बेटी लक्ष्मी बेटी दुर्गा सीता सयानी राधा सी प्यारी, मीरा कर्मा द्रोपति उत्तरा और अहिल्या शबरी अनुसूया, कोई रक्षा भारत की करती, कोई पिता का मान बढ़ाती, कोई प्यार को हे तज देती, कोई खिचड़ा भात खिलाती, कोई कृष्ण को है पुकारे, कोई गर्भ के प्राण बचावे, कोई पत्थर की नारी बनती, कोई झूठे हे बेर खिलाती, कोई बचपन सा लड़ाती, कोई देश की रक्षा करती, कोई न्याय का पाठ पढ़ाती, कोई ब्रह्म को धरती पर लाती, पुत्र रूप में गोद खिलाती, हर शास्त्र बेटी की वंदना, सरस्वती मीणा की वंदना, बेटी के कितने एहसान, धरती पर परब्रह्म का निवास, हर क्षेत्र में परचम भारी, कलम शस्त्र से लिखती हे भारी, धरती से आकाश उसी का, नहीं करो अपमान उसी का, नहीं कोख मे...
ईश्वर का अनुपम वरदान है बेटी
कविता

ईश्वर का अनुपम वरदान है बेटी

गायत्री ठाकुर "सक्षम" नरसिंहपुर, (मध्य प्रदेश) ********************  ईश्वर का अनुपम वरदान है बेटी, सरस्वती और लक्ष्मी का रूप है बेटी। घर रोशन करने वाला चिराग है बेटी। नसीब वालों को ही मिलती है बेटी। दोनों कुलों की लाज निभाती है बेटी, माता, बहन, भार्या का रूप है बेटी । माता का तो अरमान होती है बेटी । पिता का सम्मान भी होती है बेटी । माता के साथ काम कराती है बेटी। भाई बहनों का ध्यान रखती है बेटी। खुद को भूल सबकी चिंता करती बेटी सुख-दुख में भी साथ निभाती है बेटी। कभी घरों में बंद रहती थी रानी बेटी, पंछी की तरह उड़ रही है आज बेटी। कदम मिलाकर साथ चल रही है बेटी जमीं से आसमां तक उड़ रही है बेटी। समंदर की लहरों पर चल रही है बेटी। देश और राष्ट्र को भी चला रही है बेटी। घर एवं काम का समन्वय है आज बेटी। सौम्य, शांत, सुशील तो होती है बेटी। पर समय पर दुर्गा भी बन जाती बेटी। सा...
चामर छंद
छंद

चामर छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (चामर छंद- (दीर्घ+लघु) ×७+१ दीर्घ - २ = १५ वर्ण, दो या चारों सम पदान्त, चार-चरण) बाम अंग बैठ के उमा महेश संग में । चंद्रमा निहारतीं भरे बड़े उमंग में ।। हैं गणेश कार्तिकेय नंदि पास में खड़े । सोहते सभी अतीव एक एक से बड़े ।। गंग लोरतीं कपार घूमतीं यहाँ-वहाँ । मुंडमाल क्षार देह है पुती कहाँ-कहाँ ।। हैं अनंत हैं अनादि देव जे पुकारते । देव है बड़े महान दु:ख ते निवारते ।। रूद्र देव आदि देव धूम्र वर्ण धूर्जटी । विश्वरूप आयुताक्ष* भंग रात-द्यौ घुटी ।। कामरूप सोमपा शिवा शिवा शिवा शिवा । शंकरा महेश्वरा अराधिए नवा शिरा ।। कंठ है पवित्र गंग केश में बहा करें । नृत्य तांडवा शिवा डमड्ड पे किया करें ।। ग्रीव में भुजंग माल हार ज्यूँ झुला करे । तीन नेत्र अग्नि रूप माथ पे दहा करे ।। शंभु पूजिए अवश्...
भारतीय गणतन्त्र के सात दशक
आलेख

भारतीय गणतन्त्र के सात दशक

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** परिवर्तन का जोश भरा था, कुर्बानी के तेवर में। उसने केवल कीमत देखी, मंगलसूत्री जेवर में।। हम खुशनसीब हैं कि इस वर्ष २६ जनवरी को ७४वाँ गणतन्त्र दिवस मना रहे हैं। १५ अगस्त सन् १९४७ को पायी हुई आजादी कानूनी रूप से इसी दिन पूर्णता को प्राप्त हुई थी। अपना राष्ट्रगान, अपनी परिसीमा, अपना राष्ट्रध्वज और अपनी सम्प्रभुता के साथ हमारा देश भारत वर्ष के नवीन रूप में आया था। हालाँकि इस खुशी में कश्मीर और सिक्किम जैसे कुछ सीमावर्ती या अधर में लटके राज्य कसक बनकर उभरे थे। देश को एक संविधान की जरूरत थी। संविधान इसलिए कि किसी भी स्थापित व्यवस्था को इसी के द्वारा सुचारु किया जाता है। संविधान को सामान्य अर्थों में अनुशासन कह सकते हैं। संविधान अनुशासन है, यह कला सिखाता जीने की। घट में अमृत या कि जहर है, सोच समझकर पीने की।। २ वर्ष...
वाचिक गंगोदक सवैया
गीत

वाचिक गंगोदक सवैया

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** वाचिक गंगोदक सवैया भारती मातु की आरती के दिये टिमटिमाते रहें झिलमिलाते रहें। वर्तिका हम बनें और घृत हो लहू, प्राण का अर्घ्य यूँ ही चढ़ाते रहें।। छोड़ निज स्वार्थ को छोड़ परमार्थ को, छोड़ माँ-बाप परिजन सखा आइए। प्रीति के जोड़ अनुबंध निज देश से, राष्ट्र सिद्धांत प्रांजल निभा जाइए।। कर्म ही धर्म यह मर्म जानें सभी, स्वप्न साकार माँ के बनाते रहें। वर्तिका हम बनें और घृत हो लहू, प्राण का अर्घ्य यूँ ही चढ़ाते रहें।। विश्व में राष्ट्र का मान सम्मान हो, मूल्य नैतिक कभी भी भुलाएँ नहीं। लोक कल्याणकारी रहे भावना, वासना को हृदय में बसाएँ नहीं।। इस प्रजातंत्र के उन्नयन मंत्र को, श्लोक जैसा समझ गुनगुनाते रहें। वर्तिका हम बनें और घृत हो लहू, प्राण का अर्घ्य यूँ ही चढ़ाते रहें।। शाँति सुख और संवृद्...
भारत देश महान
गीत

भारत देश महान

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत देश महान वंदे मातरम् करते इसे प्रणाम वंदे मातरम् छब्बीस जनवरी का यह दिन हम सबको याद दिलाता है बलिवेदी पर चढ़-चढ़ कर इस आजादी को पाया है झंडे को झुकाए शीश वंदे मातरम् भारत देश महान वन्दे मातरम्।। राम कृष्ण की जन्मभूमि है गौतम की यह तपोभूमि है कबीरा की ये समर भूमि है गांधी की यह कर्मभूमि है थे तेरे पूत महान वंदे मातरम भारत देश महान वंदे मातरम।। गंगा की यहां पावन धारा नदियों का यहां संगम प्यारा कश्मीर महके केसर प्यारा महके दक्षिण चंदन सारा प्रकृति का है वरदान वंदे मातरम। भारत देश महान वंदे मातरम।। सत्य अहिंसा यहां की शान शिवाजी पर हमें अभिमान पद्मिनी सी करती हैं जौहर आन पे मर मिटने को तत्पर झांस रानी हमारी शान वन्दे मातरम भारत देश महान वंदे मातरम।। विज्ञान ने भी धूम मचाई अंतरिक्ष तक दौड़ लगाई नार...
जय हिन्द
कविता

जय हिन्द

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम मुझे खून दो ... मैं तुम्हें आजादी दूंगा।। "बलिदानी" इस नारे से युवाओं में नेताजी ने जोश जगाया था। मातृभूमि की आजादी के लिए रक्त अभिषेक से भी न, अपना कदम पीछे हटाया।। मातृभूमि पर वालीदानी यहां, सर्वस्व न्यौछावर करने से नही डरते! आजादी अभिव्यक्ति कि यहां हर पल स्वतंत्रता ही एक संग्राम है।। अपनी आजादी की खातिर बलिदानी सुभाष जी ने जब अंग्रेजों को हर जवाब में, ईंट से पत्थर दे डाला महात्मा गांधी भी चकित रहे सुभाष ने अपने अंदाज में कुछ बेहतर ही कह डाला जोश जुनून जगाया भारत के वीर कुमारों में आजाद हिंद फौज गठित कर क्रांतिकारी वीर सपूतों का देश की माटी से किया तिलक इसी को चंदन, इसी को केसर कह डाला।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ...
कोशिश हो रफ्तार की
कविता

कोशिश हो रफ्तार की

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की। बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की। तानों से कुछ भटके तो, गानों से फिर महके भी शानों में कभी जो अटके, सम्मानों संग चहके भी जीवन के हैं स्वर्ण रथी, सारथी सोच परिहार की। अश्व चाल के चिन्ह मिले, जहां दिशा परिवार की उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की। बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की। आधी दोस्ती मतलब ही, दुश्मनी आधी सुनते हैं। शतरंज मोहरे जैसे फिर, कदम चाल में घिरते हैं। खट्टे मीठे अनुभव पाते, ऐसी बातें कुछ यार की। कपट विश्वास का पुल, नैय्या कथा मझधार की। उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की। बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की। गाड़ी जैसा होता जीवन, समतल पर रुकावट भी मिले सही डॉक्टर मिस्त्री, थोड़ी कभी बनावट भी थकावट वाले कलपुर्जे, चाहत सच्चे हथियार की।...
कर्तव्यबोध
लघुकथा

कर्तव्यबोध

माधवी तारे लंदन ******************** दरवाजे की बेल बजी– “आंटीजी दरवाजा खोलो मैं आई हूं” ये कामवाली की आवाज थी. द्वार खोलते ही मैंने उससे कहा – “अरे... तुम्हारे पति शांत हो गए हैं न ... तुमने अपनी जगह दूसरी बाई दी थी। वो दो दिन से अच्छी तरह से काम कर रही है फिर तुम आज कैसे?” “आंटीजी माफ करना, काहे का पति, और काहे का बच्चे का पिता... आज २५ साल पहले बिना कहे वो मुझे और मेरे चार साढे चार साल के बेटे को बेसहारा छोड़ कर गया था... हमें नहीं मालूम, तब से आज तक उसने ये तक न पूछा कि हम जिंदा हैं कि मर गए... अपने कर्तव्य से मुंह फेर कर गुलछर्रे उड़ा रहा था... पर कर्म ने किसे छोड़ा है क्या ! २५-२७ साल तक न उन्हें हमारी याद आई न अपने परिवार की.... पर अबकी बार बीमार हो कर अपनी बहन के घर आ गया।” ननंद जी को मैंने कहा कि “आपने मुझे क्यों बताई ये बात... जबसे गया तभी से मैंने बेटा बड़ा किया, उसकी प...
ओ मेरे बचपन के साथी
कविता

ओ मेरे बचपन के साथी

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** गुड्डे-गुडिया, चूरन की पुडिया, किसकी मां किसको दे जाती, सांझ-सवेरे, खेल-घनेरे, बेईमानी सबको भाती, कुश्ती मस्ती खींचातानी, हों-हों खो-खो बहुत सुहाती, ओ मेरे बचपन के साथी! अजीतगढ़ से चिमनपुरा, फिर से पैदल की मन में आती, सबका कब रास्ता कट जाता, जाने कब मंजिल दिख जाती, ओ मेरे बचपन के साथी! बायकाट किया, हड़ताल हुई, पड़ताल एक ही सवाल उठाती, उदंडी कोई, दंड सभी को, चुगली मुख पे, क्यों ना आती ? ओ मेरे बचपन के साथी! स्कॉलरशिप के पैसे मिलते, किसने किसकी फीस चुका दी, नई पोथी के टुकड़े करते, भोजन की हो जाती पाँती, ओ मेरे बचपन के साथी! जिम्मेदार हुए, घर बार छोड़कर, सारे साथी बिछुड़ गए, सेवानिवृत्त हो रही सभी अब, इतने दिन यूं ही पिछुड़ गए, जल्दी जल्दी दिन ढलते हैं, जल्दी जल्दी रातें जाती, ओ मेरे बचपन के साथी! ...
मैं बटर कहाँ से लाऊँ
कविता

मैं बटर कहाँ से लाऊँ

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** भूखे आकर, गाली खाकर। खून जलाकर, स्वेद बहाकर।। रोटी-भात जुटाऊँ। मैं बटर कहाँ से लाऊँ! दिनभर खटकर, पल-पल मरकर। विपदा सहकर, रोकर-हँसकर।। रूखा-सूखा खाऊँ। मैं बटर कहाँ से लाऊँ! सर की चाहत, दारू की लत। गंदी आदत, मिले न राहत।। कैसे उन्हें मनाऊँ? मैं बटर कहाँ से लाऊँ! टूटी पायल, चिथड़ा आँचल। मन भी घायल, महँगा ऑयल।। खाऊँ या कि लगाऊँ? मैं बटर कहाँ से लाऊँ! दिन को रातें, उल्टी बातें। नकली खाते, चालें-घातें।। देखूँ, चुप रह जाऊँ? मैं बटर कहाँ से लाऊँ! जा रे जा जा, सबका खा जा। सच, झुठला जा, बन जा राजा।। अवध न शीश झुकाऊँ। मैं बटर कहाँ से लाऊँ! परिचय :- डॉ. अवधेश कुमार "अवध" सम्प्रति : अभियंता व साहित्यकार निवासी : भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) शपथ : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह र...
चाँद-चकोर
कविता

चाँद-चकोर

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आकाश की आँखों में रातों का सूरमा सितारों की गलियों में गुजरते रहे मेहमां मचलते हुए चाँद को कैसे दिखाए कोई शमा छुप छुपकर जब चाँद हो रहा हो जवां। चकोर को डर भोर न हो जाएँ चमकता मेरा चाँद कहीं खो न जाए मन बेचैन आँखे पथरा सी जाएगी विरह मन की राहें रातें निहारती जाएगी। चकोर का यूँ बुदबुदाना चाँद को यूँ सुनाना ईद और पूनम पे बादलो में मत छुप जाना याद रखना बस इतना न तरसाओ मेरे चाँद तुम खुद मेरे पास चले आओ। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्...
हम ही आज है, कल भी हम ही है…
कविता

हम ही आज है, कल भी हम ही है…

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** हम ही आज है, कल भी हम ही है......! हम ही रीत है, रिवाज भी हम ही है......!! हम ही आजादी है, बेडियां भी हम ही है......! हम ही पंछी है, पिजरा भी हम ही है.....!! हम ही अभिमन्यु है, चक्रव्यूह भी हम ही है.....! हम ही मोहन है, बाँसुरी भी हम ही है.....!! हम ही पेड़ है, कुल्हाड़ी भी हम ही है......! हम ही नफ़रत है, प्रेम का प्रतीक भी हम ही है......!! हम ही तो आशा है, निराशा भी हम ही है......! हम ही तो पाप है, पून्य भी हम ही है......!! हम ही नदियों की कलकल है, अशुध्दियाँ भी हम ही है......! हम ही आस्तिक है, नास्तिक भी हम ही है......!! हम ही छल है, निच्छल भी हम ही है......! हम ही विध्या है, अनपढ़ भी हम ही है......!! हम ही धूप है, छाँव भी हम ही है......! हम ही शहर है, गाँव भी हम ही है......!! हम ही गीता है, कुरा...
दूध जलता क्यों है
कविता

दूध जलता क्यों है

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कभी-कभी दूध जल जाता है दूध जलता क्यों है दूध तो अमृत समान है, सभी खाद्यों में प्रधान है दूध विश्व का पालनहार है, दूध पर संदेह निराधार है दूध गर्भ में भी सभी को पालता है दूध सभी रोगों का उपचार है, फिर भी दूध कभी-कभी जल जाता है क्योंकि उसे मनुष्य का संपर्क मिल जाता है परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय की‌ मांग भी‌ है। आजकल देशभक्ति लुप्तप्राय हो गई है। इसके पुनर्जागरण के लिए प्रयत्नशील हूं। घोषणा पत्र : ...
बगावत भी जरूरी
कविता

बगावत भी जरूरी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जो बैठा है खाली पेट, बगावत वहां से उठ सकता है, किसान, विद्वान, नादान, अंजान, बेजुबान, सताए स्त्री पुरूष इंसान, मदमस्त सत्ताईयों के सुख चैन लूट सकता है, हाँ मालूम है की सत्ता हमारी हलक से निवाला खींच सकता है, लम्पटों, महामूर्खों, अंधभक्तों की फसल को वाहियात बातों में उलझा सींच सकता है, मत भूलिए की जिसके सीने में वतन के लिए लगावट है, वहीं कर सकता बगावत है, बगावत का, विरोध का डर न हो तो सत्ताधारी बेलगाम, मदमस्त हो जाता है, उनके लिए हर गैरजरूरी काम जरूरी हो जाता है, पर ये नहीं सोचता कि अंदर ही अंदर बहती लावा ज्वालामुखी बन कभी भी फूट सकता है, आसमान की ओर निहारता, लिया बैठा सूखा खेत, बगावत वहां से उठ सकता है, इन नामुरादों की दुनिया लूट सकता है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी...
आदत से मज़बूर हूं
कविता

आदत से मज़बूर हूं

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** प्रमोटेड हुआ हूं आदत से मज़बूर हूं बहुत छोटे पद से बड़े पद पर प्रमोटेड हुआ हूं भ्रष्टाचारी चाय पानी नहीं छोड़ा हूं कुर्सी पर बैठकर ग्राहक ढूंढता रहता हूं प्रमोटेड हुआ हूं आदत से मज़बूर हूं पूरा घरखर्चा इसी ऊपरी कमाई से निकालता हूं पगार को गुटका ठर्रा तंबाकू अय्याशी में उड़ाता हूं मिलीभगत तंत्र से काम चलाता हूं प्रमोटेड हुआ हूं आदत से मज़बूर हूं नए वर्ष में हितधारकों का काम किया हूं किसी को बताना मत घूसखोरी बहुत लिया हूं लगातार पंद्रह दिन न्यूईयर पार्टी ड्यू किया हूं प्रमोटेड हुआ हूं आदत से मज़बूर हूं अधीनस्थ कर्मचारियों पर रौब जमाता हूं धीरे से घूसखोरी की हिस्सेदारी मांगता हूं जो नहीं देता उसे ऑफिसबैठक ट्रांसफर करता हूं प्रमोटेड हुआ हूं आदत से मज़बूर हूं मैं जनता का नहीं जनता मेरी नौकर है सम...
अनुभव भरा खजाना
कविता

अनुभव भरा खजाना

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** हैं अनमोल धरोहर घर की, बूढ़ी दादी नानी। इनके पास छड़ी जादू की, दोनों बड़ी सयानी। नुस्खों का भंडार भरा है, अनुभव भरा खजाना। इनके पास दवा खाना है, नहीं वैद्य घर जाना। जीवन के अनुभव संग्रह कर, रखतीं दादी नानी। बतलातीं निरोग वो रहता, पियें गुनगुना पानी। सुबह शाम जो पैदल चलता, उसे रोग ना घेरे। वे धनवान सदा रहते हैं, जगते बड़े सवेरे। जिनको सूरज रोज जगाता, वे रोगी हो जाते। जो सूरज को स्वयं जगाते, रोग पास ना आते। जीवन जीना हमें सिखातीं, कौशल भी बतलातीं। कैसे रहे निरोगी काया, योगासन सिखलातीं। सारे घर को बाँध नेह से, हैं परिवार बनातीं। अगर रूठता कोई परिजन, जाकर उसे मनातीं। अनुशासन का पाठ पढ़ातीं, हैं सम्मान सिखातीं। कोई परिजन राह भटकता, उसको राह दिखातीं। सारे घर को एक बनाना, दादी ना...
नूतन वर्ष मंगलमय हो
कविता

नूतन वर्ष मंगलमय हो

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** नूतन वर्ष मंगलमय हो, सारा जहां रोशन रहे। दिन दुनी रात चौगुनी हो, खुशियों की सौगात रहे। पुलकित मन सबका हो, ऐसा मन में विश्वास रहे। खुशियों भरा जीवन हो, भाईचारे का विस्तार रहे। इच्छाओं की पूर्ति हो, शतबुद्धि हमारे पास रहे। धन संपदा घर में हो, सुख समृद्धि का वास रहे। फूलों की तरह महक हो, गुलिस्तां का बागवान रहे। प्रेमभाव और समागम हो, सदा ईश्वर का वरदान रहे। मूलमंत्र है सहज जीवन हो, सद्द्विचारों का सम्मान रहे। नववर्ष की पावन बेला हो, अनुपम रिश्तों में सुधार रहे। परिचय :-  हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" निवासी : गंजबासौदा, जिला- विदिशा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
नववर्ष का उपहार
कविता

नववर्ष का उपहार

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** कोहरे की चादर फैली थी जीवन में हो गया विहान सूरज आया चौबारे में आनन विहँसा कमल समान। हौले-हौले किरणें बिखरीं छँटी धुंध था स्वर्णिम काल उजला-उजला लगा दीखने रक्तिम पुष्प खिला ज्यों ताल। मादक सुगंध के प्रसरण से महक उठे गृह के कोने गौरीसुत ने आशीष दिया तन-मन के कष्ट लगे खोने। पुष्पमाल गज कण्ठ विलग ज्यों गिरे धरा पर अभयदान ऐसे ही तन-मन शून्य हुआ मिल गया तोष जीवन समान। अरुण अरुणिमा तन पर धारे गोदी में था अति प्रिय लाल मैं नेत्रांभूषित वात्सल्य भरे निरख रही ज्यों विजय माल। उपहार भरा मेरा जीवन तू वत्स! प्रफुल्लित पुष्पित हो आशीष मातृ का तुझको है सूरज-सा हर पल गौरव हो। परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुर...
बसंत बहार
कविता

बसंत बहार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** वसुंधरा में फिर से नव बहार आ गयी है। जन जीवन में नवीन खुशियां छा गयी है।। शिशिर ऋतु में हरित धरती वीरान थी। जीर्ण-शीर्ण तरुओं से दुनिया मसान थी।। बूढ़े पत्ते और फूलों का दर्द कौन समझे? प्रकृति के प्राणी पुनर्जन्म चक्र में उलझे।। हवाएं गीत गाती, लहराती, नाच रही है। अपनी प्रेम और वेदना को भांप रही है।। अमृतफल के डालियों में कोयल कुहूकी। पुष्प पल्लव के खुशबू से वादियां महकी।। हर्षित प्राणीजन कर रहे उत्सव की तैयारी। पंख फैलाकर उड़ रही है तितलियां प्यारी।। प्रणय की धुन बजा रहे हैं मतवाले मधुकर। हवा में नाच रही है कलियां झूम-झूम कर।। हरित आभा को देखकर चकित है संसार। देखो चहूंओर फैली है खुशियों का अंबार।। करो सहृदय कविराज बसंत का गुणगान। भरलो मन में भव्य कल्पनाओं की उड़ान।। उल्लासित हो स्वागत करो बसं...
नमन नववर्ष का
कविता

नमन नववर्ष का

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** आओ! करें नमन नववर्ष का भूल पुरानी यादों के समंदर को मना ले नवल का त्यौहार मिलझूल झूमे गीत गाए। भूले दुःख-दर्द बीते वर्ष के माफ करे दिए कष्ट जिन्होंने इस नववर्ष की बेला पर बना लेते हैं शत्रु को भी मित्र। चलेंगे संग में पुराने सखा भुला देंगे दुःख भरी यादों को अपनों का आशीर्वाद साथ में नववर्ष को लगा लो गले। शीत-ऋतु की ठंड में करें आगाज मन के मतवाले बन छा जा जग में एक-दूजे का साथ निभा ले दोस्ती आलस त्याग संघर्ष को लगाओ गले। परिचय :-  सीमा रंगा "इन्द्रा" निवासी :  जींद (हरियाणा) विशेष : लेखिका कवयित्री व समाजसेविका, कोरोना काल में कविताओं के माध्यम से लोगों टीकाकरण के लिए, बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ हेतु प्रचार, रक्तदान शिविर में भाग लिया। उपलब्धियां : गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से प्रशंसा पत्र, दैनिक भास्...
सर्द भरे इस मौसम में
कविता

सर्द भरे इस मौसम में

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** सूनी सड़कें, सूनी गलियांँ, हो जाती हैं इस मौसम में, ठंड कड़ाके की पड़ती है, सर्द भरे इस मौसम में, पहाड़ों पर बर्फ की चादर, सुहानी लगती है इस मौसम में, सफेद रंग में रंगे हैं पर्वत, मानो शान्ति चाहते इस मौसम में, गांँव शहर सब में ठंडक, आग जलाते इस मौसम में, सर्द हवाओं का जो चलना, बड़ा सताता इस मौसम में, खेतों में जो खड़ी फसल हैं, दाना लेती इस मौसम में, लहलाती हैं पीली सरसों, मन भा जाती इस मौसम में, गर्म रजाई ओढ़े मैया, दुबकी रहती इस मौसम में, छत पर जाकर धूप सेकते, लोग लुगाई इस मौसम में, सूर्य देव भी रूठे रहते हैं , कोहरे में खो जाते इस मौसम में, इंतजार सभी किरणों का करते, कब निकले सूरज इस मौसम में, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
बचपन सुहाना
कविता

बचपन सुहाना

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** बीता हुआ वो गुजरा जमाना, दिल चाहे वहाँ लौटकर जाना। होता था जहाँ नित नया फसाना, याद आता है वो बचपन सुहाना। बगीचे से अमरूद चुराना, कागज की कश्ती तैराना। दोस्ती के लिए हद से गुजर जाना, याद आता है वो बचपन सुहाना। बेफिक्री का वो अफसाना, गूंजता हुआ खूबसूरत तराना। नासमझी में कुछ भी कर जाना, याद आता है वो बचपन सुहाना। माँ का लाड लडाना, पापा की डाँट से बचाना। दोस्तों संग मौज मनाना, याद आता है बचपन सुहाना। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्री...