कंटक
मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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मैं तुम्हें तोड़ती हूं कंटक
क्यों बार-बार उग आते हो
तन्हाईयों में यादों को
कुरेदने के लिए
मेरे जख्मों को हरा कर,
तुम्हें क्या मिलेगा
सुख, संतोष,
या मुझे तड़पन।
अतीत की यादों की
जंजीर लंबी है
कहीं कोई गांठ नहीं,
कोई फास नहीं
तुमसे तो हरी घास की
कोंपल अच्छी
जो आंखों को ठंडक,
मन को संतोष देती है।
एक ही धरा पर
जनित हो तुम दोनों
पर कर्मानुसार फल लेने में
तुम्हारा कोई सानी नहीं
तुम्हारा कोई सानी नहीं।
परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों...