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मेरे गुरु
कविता

मेरे गुरु

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** विद्या और ज्ञान सागर सा मेरे गुरु चुन चुन मोती देते जब भी राह भटक मैं जाती अपने हाथ पतवार थामते ईश्वर को कब जाना मैंने गुरु में उनकी छवि देखा कभीं सख्त कभी सरल हैं जग का बोध गुरु कराते हैं गलतियों को सदा सुधारते सत् पथ पर लेकर चलते हैं भ्रम के जालों को मिटाकर मन में ज्ञान ज्योति जलाते हैं जीवन में उत्कर्ष हमारा होता अनुशासन जीवन में वो लाते हर मुश्किल से लड़ने को हमें गुरु ही हमको तैयार करते हैं परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्री...
जब-जब मेरी कलम ने…
कविता

जब-जब मेरी कलम ने…

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा हैवानियत छटपटाने लगी दरिंदगी का दम घुटने लगा। ईर्ष्या स्वयं से जलने लगी नफरतों का नाश होने लगा। जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा रुढियाँ रोने लगी घृणा स्वयं से घृणित होने लगी पाखंड पांव पीटने लगा। जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा रूहें सिसकियाँ भरने लगीं आंसुओं की बारिश होने लगी हर पत्थरदिल पिघलने लगा जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा वैमनस्य की कालिमा छंँटने लगी मानो गंदगियाँ दिलों की धुलने लगी अंधकार अमावस्या की रात्रि का लुप्त होने लगा नभ-जल-थल में सूर्य का प्रकाश प्रकाशित होने लगा हर हृदय पटल पर प्रेम और विश्वास का आह्लाद होने लगा। जब-जब मैंने दर्द ए इंसानियत लिखा। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शि...
चला आऊं शहर में तेरे
कविता

चला आऊं शहर में तेरे

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** तु कह दे तो मैं चला आऊं शहर में तेरे, बुला तो सही एक बार मुझे शहर में तेरे, मैं भी देखूं शान-ओ-शौकत शहर की तेरे, मैं भी घुमू लूं गली-गली शहर की तेरे, छोटा सा गांँव है मेरा बसता है दिल में मेरे, निकल कर गांँव से अपने देख लूं शहर को तेरे, चकाचौंध की जिंदगी सुनी है मैंने शहर की, वो सब देख लूं आकर एक बार शहर में तेरे, डर मुझे है लगता कहीं खो ना जाऊं भीड़ में, तूं भी कहीं ना पहचाने मुझ को शहर में तेरे, है रोशनाई मेरे गांँव के प्यार में ज्यादा, देख लूं आकर आबोहवा शहर में तेरे, यों ना कहना आया नहीं गांँव को छोड़ कर, मिलने तुम से आ रहा हूंँ अब शहर मेेंं तेरे, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है...
गणेश स्तवन
भजन, स्तुति

गणेश स्तवन

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** जय जय जय गणपति महाराजा मंगल भरण गणपति शुभ काजा विद्या बुद्धि सबको देते हैं गणेशा अंधकार उर का हर लेते महराजा गौरीसुत शिवनंदन गणपति देवा प्रथमपुज्य देवों में गणनायक देवा ऋद्धि सिद्धि के स्वामी हैं गणेशा मंगल मूरत शुभ फलदायक देवा पीताम्बर ओढ़े चार-भुजा धारी मनमोहनी सूरत भक्तन सुखकारी मोदक भोग गणेशा अति भायी मूषक वाहन की करते हैं सवारी जो भी द्वार पे तिहारे आ जाता खाली कभीं भी नहीं वो जाता विध्न-विनाशक गणनायक देवा मनवांछित फल के तुम हो दाता तेरे दर आकर मैं पुकार लगाऊँ विपदा सुना कर अरज लगाऊँ विध्न हरो हे गणेशा मैं पुकारूँ श्रद्धा पुष्प अर्पित कर मैं जाऊँ परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित...
कलमकार
कविता

कलमकार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** मृत हुए जन दिल को जिंदा कर देता, लौकिक जीवन रंगमंच का जादूगर हूं। प्रबल निराशा में मैं आशा की किरण, प्रेरक और मार्गदर्शक कलमकार हूं।। जननी की आंसुओं को लेकर हथेली, चंदन तिलक बना लगा लेता मस्तक। जब-जब पुकारती है नारी दुःखी स्वर, रक्षक वीर योद्धा बन देता हूं दस्तक।। सरहद पर डटे सिपाहियों के हृदय में, राष्ट्रप्रेम और विजय का भाव जगाता। मातृभूमि के लिए प्राण न्यौछावर करो, उनके नस-नस में लोहित लहू दौड़ाता।। किसान की दशा, मजदूर की मजबूरी, बदन से निकलता रात-दिन ज्वालाएं। मन की पीड़ा सुनता नहीं सत्ता राजन, मेहनत का हक देकर दूर करो बाधाएं।। देख दीन-हीन बेगार की करुणा दशा, खून के आंसू पी लेता समझ गंगाजल। दिवस जगाता मुक बधिर को बैगा रुप, पाठ पढ़ाता अधिकार का करने मंगल।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली,...
मेरी परी
कविता

मेरी परी

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज अभी-अभी तो दुनिया में आई थी मेरी दुनिया में खुशियां लाई थी छोटी सी मुस्कान उसके मुख पर आई थी मेरे दिल में उसने ममता जगाई थी। छोटी-छोटी उंगलियों ने मेरी उंगली को कसा था उसका यह प्यारा नन्ना सा चेहरा मेरे दिल में बसा था उसकी तोतली बोली मेरे होश उड़ा गई नन्हे कदमों में पायल की छम-छम से मेरा मन हॅंसा था कभी नाराज, तो कभी उसकी ढेर सारी बातें पूरी दिनचर्या की, कभी न खत्म होने वाली बातें दिल को प्यारी लगती है उसकी मुझे ये सारी बातें उसे देख कर ही बीत जाती है मेरी प्यारी रातें हर पल हर लम्हा उसे देखकर मैंने जिया है हद से ज्यादा मैंने उसे प्यार किया है जिंदगी की हर खुशी मिले आपको सूरज की तरह नाम मिले आपको प्रभु भी अपनी कृपा बनाए रखें और आप पर आशीर्वाद बनाए रखें सफलता कदम चूमे आपके बड़ों का आशीर्वाद रहे सदा साथ आ...
गणपति वंदना
कविता

गणपति वंदना

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** भादो मास तिथि चतुर्थी, प्रभु विराजते पृथ्वी पर। भक्तजन उनकी सेवा करें, विनायक सबके कष्ट हरें। बुद्धि ज्ञान के तुम हो दाता, प्रथम पूज्य देवेश्वरा। मेरी तुमसे याचना, विघ्न हरो विघ्नेश्वरा। महादेव के तुम हो नंदन, कार्तिकेय के भ्राता। रिद्धी-सिद्धी के तुम हो स्वामी, लाभ शुभ प्रदाता। मूसक को वाहन बनाया, हे! वक्रतुण्ड महाकाय। मोदक का तुम्हें भोग लगे, हे! अष्टसिद्धी के दाता। मैं बालक नादान हूँ स्वामी, निशदिन करूँ आराधना। सबके विघ्नों का नाश करो, स्वीकार करो मेरी प्रार्थना। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी ...
कविराज
कविता

कविराज

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** प्रिय से फुलवारी में मिलकर प्रेम की वर्षा, अद्भुत आनंद की अनुभूति करता रसराज। एकांत में किसी दिन डूब जाता गहरी सोच, शब्द जाल फैला काव्य लिखता कविराज।। भावों को अभिसिंचित अभिव्यक्ति देकर, बनता हूं रचनात्मक क्रान्तदर्शी महाकवि। जाता कहीं भी कल्पनाओं की उड़ान भर, घोर अंधकार को उजाला करता मैं हूं रवि। गगन से उतार देता हूं जमीन पर चांद को, मैं बनाकर विश्वसुंदरी, मनमोहिनी,अप्सरा। टिमटिमाते तारों से जड़ित अंग आभूषण, नील परिधान से सुसज्जित लगती सुंदरा।। छंदों में बंध कर नाचती अपनी नृत्यशैली, अलंकारों से बढ़ता रूपवती वनिता शोभा। गुण विशिष्टता से परिपूर्ण कविता की रानी, नव शब्दशक्ति से फैलाती चहुंओर आभा।। रुप यौवन की रोशनी मुझ पर हुई आभासी, समा गई दिलदार दिल मुझे करके दीवाना। उनसे बात करता हूं अकेले में चुपके-चुप...
ना निराश हो
कविता

ना निराश हो

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** ख़ुश नहीं हो आजकल, क्या बात है मुझ से निराश हो, क्या यही जज़्बात हैं, हम ने तो दे दिया है, ये दिल अब तुम्हें, तुम ही बताओ, फिर दिल क्यों निराश है, रहते हैं तेरे प्यार में, हम तो मशगूल यहाँ, तुम भी संग चलो मेरे, यहीं ख्यालात हैं, रहकर भी दूर तुम से, है वफ़ा हमें वहीं, जान जाओ अब, मेरे दिल का यही हाल है, ना नाराज रहो हम से, हम हैं तुम्हारे, मिल कर तो देख लो, हमारी वहीं बात है, इश्क लगाया है, सिर्फ तुम से ही मैंने, मेरा तो अब दिल, तुम से ही गुलज़ार है, ना निराश हो कभी, जीवन में अपने तुम, जब तक है जिंदा हम, निराशा की क्या बात है, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अ...
भारत देश की आजादी
कविता

भारत देश की आजादी

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी थी भारत मां, अपने महावीर लाल से लगा रही थी गुहार। पराधीन बनकर खो दी मैंने अपनी अस्मिता, कोई तो सुन लो अपने जननी की पुकार।। मां की करुणा देख उठ खड़े हुए भारतवासी, जो जन थे पहले बेबस, मायूस और लाचार। शंखनाद करके बिगुल बजा दिए संग्राम की, नहीं सहेंगे राक्षस रूपी अंग्रेजों के अत्याचार।। कृषिक्षेत्र में काम करते किसान हल लेकर दौड़े, फावड़ा ले-लेकर निकले श्रम करते हुए मजदूर। तोप और बंदूक लेकर घेर लिए रक्षक तीनों सेना, उतर गए मैदान में नेता राजनीति सीख भरपूर।। सून गोरे तुम्हारी गोलियों ने हमारे खून को पीया, अभी भी हमारे तन में है तुम्हारे कोड़ों के निशान। हम लोग जुल्म को सहकार बन गए हैं फौलादी, भारत माता की कसम मिटा देंगे तुम्हारी पहचान।। एक गोरा ने कहा मरे हुए दिल अब जिंदा हो गए, म...
क्या ख़ता थी मेरी
कविता

क्या ख़ता थी मेरी

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** क्या ख़ता थी मेरी जो भूला दिया हैं तुम ने, मुझ को कर किनारा, किनारे लगा दिया है तुम ने, अब अकेले रहकर ही खुश रहो आबाद रहो, मुझ को तो अब बर्बाद बना दिया तुम ने, सोचा था तुम को पाकर बन जाएं ज़िन्दगी, ठुकरा कर मुझ को ठिकाने लगा दिया तुम ने, मंज़िल सी मिल गई थी तुम्हारे साथ रहकर, ख़ता क्या हुई मुझ से जो दिल जला दिया तुम ने, अब जीना सीख लेंगे तेरे बैगर भी हम, छोड़ मेरा साथ दिल रुला दिया तुम ने, ख़ुश था मैं तो तेरे संग-संग चलकर, रास्ते पर छोड़ मुझे अनजान बना दिया तुम ने, कर दिया था ये दिल तेरे हवाले मैंने, दिल ही से पूछ लेते ये क्या कर दिया तुम ने, माना की तेरे संग रहकर अमीर था मैं, देकर सिला जुदाई का कंगाल बना दिया तुम ने, परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित कर...
परिवार का महत्व
कविता

परिवार का महत्व

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** परिवार देता हमें पहचान है इसका जरूरतमंद हर इंसान है। परिवार में जब पलता है बच्चा दिन ब दिन निखरता है बच्चा। बच्चों में आते संस्कार है मिलता उसे अपनों का प्यार है। मिलजुल सब रहते हैं जहाँ मुश्किलें कहाँ टिक पाती वहाँ। बड़ी-बड़ी समस्या हो जाती धराशायी जब मिलकर रहते हैं भाई-भाई। बुजुर्गों का अनुभव और आशीर्वाद रखता है परिवार को आबाद। त्यौहारों में मजा आता है खूब होली दिवाली राखी या भाईदूज। टूटते हुए परिवार चिंता का विषय है संयुक्त परिवार में रिश्तों की खूबसूरती, आज भी मौजूद है। परिवार का महत्व हमें समझना होगा मतभेद भूल साथ-साथ चलना होगा। ईश्वर से गुज़ारिश सबको परिवार मिले माता-पिता व अपनों का प्यार मिले। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमा...
मुझसे तुम प्यार करो
कविता

मुझसे तुम प्यार करो

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** बोल दो जो मन में है, प्यार का इजहार करो। सुन स्वर्ग की अप्सरा, मुझसे तुम प्यार करो।। तुम मुझे, मैं तुझे पसंद, क्यों खामोश बैठी हो। छीन ली मुस्कान मेरी, तुम बहुत ही हठी हो।। मेरे दिल को दुखा कर, आखिर क्या मिलेगा। मुझसे बात ना करके, मन बाग कैसे खिलेगा।। मैं जा रहा हूं दूर तुमसे, एक बार आवाज दो। लेकर यादों की परछाई, राह में मेरा साथ दो।। रखूंगा सदा पलकों में, दुःख को सुख में ढ़ाल। हमारा प्यार अमर रहेगा, प्रेमी जन देंगे मिसाल।। झलक पाकर मैं दीवाना, तुझे अपना मान बैठा। बंद आंखों के सपने, खुली आंखों में था झूठा।। बना गायक प्रेम का, गलियों में गीत गाने लगा। बैठ तुम्हारी द्वार पर, मधुर नाद से रिझाने लगा।। लाल गुलाब की कली, मधुकर को बुलाने लगी। आओ मीठा रसपान करो, बदन में आग लगी।। छू लो मुझे एक बार, सहला दो नर्म पं...
हम सब भारतीय हैं
कविता

हम सब भारतीय हैं

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हमने जन्म लिया जिस धरती पर वो धरा परम पूजनीय है उस धरा का नाम है भारत हम सब भारतीय हैं। वंदना करते हम जिसकी वो धरा वंदनीय है उस धरा का नाम है भारत हम सब भारतीय हैं। सर्व धर्म समभाव है गौरव वो धरा गौरवमयी है उस धरा का नाम है भारत हम सब भारतीय हैं। विविधता में एकता जहां पर दिल से सब हिंदुस्तानी हैं उस धरा का नाम है भारत हम सब भारतीय हैं। किसान और जवान हैं शक्ति इनकी शहादत विस्मरणीय है उस धरा का नाम है भारत हम सब भारतीय हैं। हिंदुस्तान का नाम विश्व में गरिमा इसकी उदाहरणीय है उस धरा का नाम है भारत हम सब भारतीय हैं। गर्व है जन्मे हिन्दुस्तान में रग-रग हिन्दुस्तानी है उस धरा का नाम है भारत हम सब भारतीय हैं। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाध...
आज़ाद भारत में गुलाम मानसिकता
कविता

आज़ाद भारत में गुलाम मानसिकता

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** एक गुरु ने ही शिष्य के प्राण हर लिये यहांँ, पढ़ा लिखा गुरु भी ऐसी मानसिकता रखता यहाँ, मटकों को रखता है स्कूलों में छिपाकर अपने, सामंतवादी सोच पर हर समय चलता है यहांँ, ख़ून की जरूरत हो, या हो जंग जीवन से, तब जाति का भेदभाव ना दिखता है यहाँ, पशु मुत्र पीकर पवित्र हो जाती आत्मा जिनकी, मटके को छूने से बालक के प्राण हरता है यहाँ, है आतंकियों से ख़तरनाक मानसिकता जिनकी, उनके बीच जी रहे जाति का दंश झेल कर यहाँ, ना जाने कितनी मौतें कर चुका और कितनी करनी है, बचपन को भी अब तो चैन से नहीं जीने दे रहा यहाँ, इन आतंकियों को कब सजा मिलेगी कहना मुश्किल है, हर जगह ठिकाने बनाए बैठा इनका समूह यहाँ परिचय :-  रामेश्वर दास भांन निवासी : करनाल (हरियाणा) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह...
तिरंगा
कविता

तिरंगा

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** तीन रंगो से सजा तिरंगा, देश की शान बढ़ाता है। रंग केसरिया, श्वेत, हरा संदेश हमें दे जाता है। रंग केसरिया त्याग सिखाये, श्वेत रंग शांति गुण गाये। हरा रंग समृद्धि लाये, सब मिल देश का मान बढ़ाये। जब भी तिरंगा लहराये, हर भारतवासी हर्षाये। मन गर्व से भर जाये, आँखों में चमक आ जाये। तिरंगे का सम्मान करें, नहीं कभी अपमान करें। देश की आन बचाने को, अपना सर्वस्व कुर्बान करें। परिचय - सोनल सिंह "सोनू" निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविता...
रक्षासूत्र
कविता

रक्षासूत्र

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** सुन मेरी प्यारी सहोदरा, राखी बांधने आना तुम। देखता रहूंगा राह तुम्हारी, मुझे भूल ना जाना तुम।। खरीदना बाजार से राखी, लाना लड्डू मीठी मिठाई। लगाना भाल विजय तिलक, पुकार रही है खाली कलाई।। भेंट करुंगा एक नया उपहार, खुशी से झूम कर नाचोगी। सुख, समृद्धि कामना करके, रक्षासूत्र जीवन का बांधोगी।। जब संकट में घिर जाओगी, मेरा नाम लेकर देना आवाज। कहना, अभी मेरा भाई जिंदा है, मेरे लिए लड़ेगा वो है जांबाज।। जब कोई मानव,अमानव बन, दुःख और दर्द तुझे पहुंचाएगा। उस दिन बनकर योद्धा रक्षक, तेरा ये भाई दौड़ा चला आएगा।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पुरस्कार से सम्मानित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिक...
बारिश की बूँदें
कविता

बारिश की बूँदें

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** देखो धरा अम्बर से, मिलन की गुहार लगाये, थाल भर मोती माणिक अम्बर ने खूब सजाये, मन के आँगन बरस रही है मीठी मीठी सी फुहार, प्यासी धरा भी आँखें मींचे आशा की झोली फैलाये।। खुशियों भरी काग़ज़ की नाव ग़मों को बहा ले जाए देखो न बाल मन का कोना-कोना कैसे खिलखिलाये, छपाक छप, छपाक छप बारिश का कंचन जल कहे, भर लो अमृत चुल्लू में ज़िन्दगी तो हरदम ही ज़हर पिलाये।। खिली है हर कली कली, पत्ता पत्ता भी मुस्काये, नवल धवल हुए खेत खलियानशशि चन्द देख कृषक गदगद हो जाये, सौंधी सौंधी माटी, श्वास-श्वास मातृभूमि के रक्षकों की महकाये, बुलंद हौसलों की बारिश के बीच, शान से तिरंगा लहराये।। धानी चुनर ओढ़, अधरों पर धर लाज का घूँघट, सजनी चली साजन घर, जब मन भावन सावन आये प्रीतम ने अमियाँ की डाल पे प्रेम पुष्पों का झूला डाला, कृष्ण राधिका स...
लहराओ तिरंगा प्यारा
कविता

लहराओ तिरंगा प्यारा

रामेश्वर दास भांन करनाल (हरियाणा) ******************** घर गाँव शहर सब में, आजादी का जश्न मनाओ तुम, पायी थी कुर्बानियों से आज़ादी, शहीदों का मान बढ़ाओ तुम, चरखा, अनशन चले थे गांधी जी के, उसका ध्यान लगाओ तुम, सत्य अहिंसा का जीवन अपना, देश में यहाँ बिताओ तुम, लहराकर तिरंगा प्यारा देश का, भारत की शान बढ़ाओ तुम, हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, आपस में मिल जाओ तुम, देखें जो देश को बुरी नियत से, उसको सबक सिखाओ तुम, है हिन्द की शान तिरंगा, तिरंगे की शान बढ़ाओ तुम, पढ़ लिख कर बनो शेर यहाँ, खुब दहाड़ लगाओ तुम, कर देश का नाम रोशन अपने, विश्व को दिखलाओ तुम, सीमा पर जो खड़े देश के प्रहरी, हथेली पर है प्राण लिए, लहराकर तिरंगा प्यारा, उनका स्वाभिमान बढ़ाओ तुम, बन जाओ सब देश के प्रहरी, अपना फर्ज निभाओ तुम, तिरंगा है जान से प्यारा, तिरंगे को लहराओ तुम, परिचय :-  रामेश्वर दास...
जिंदगी की डगर
कविता

जिंदगी की डगर

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जिंदगी की हर डगर तू रख हर कदम फूँक-फूँक कर। नहीं आसान जिंदगी की कोई डगर मिलेंगी चुनौतियाँ कदम-कदम, करना है तुझे संघर्ष जिंदगी की हर डगर । कभी होगी छोटी डगर तो कभी काटे न कटने वाली बड़ी लंबी नीरस सी होगी जिंदगी की डगर। राह ऐसी है कौन सी जहाँ न हों शूल और पत्थर जब-तक नहीं दर्द का अनुभव कड़वी है सुकून की हर डगर। तू तनिक भी न डर साथ तेरा साया भी न दे अगर हौंसले अपने बुलंद रख तू राह में अकेला ही चल पीना भी पड़े पानी खुद कुआँ खोदकर। तू चले जा अकेला ही निरंतर, न रुक कभी जिंदगी के पथरीले पड़ावों पर भी मंजिल मिल नहीं जाती जब तक तू चले जा फिर से जिंदगी में नई डगर बनाकर। कहते हैं मन के हारे हार है तो फिर मन के जीते जीत भी लेकर दृढ़ संकल्प हो निडर तू सबके मन को जीत जीवन लक्ष्य अंगीकृत कर हर पल होकर सजग अपने...
कौमी एकता
कविता

कौमी एकता

सोनल सिंह "सोनू" कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़) ******************** ईश्वर की सुंदरतम कृति है मानव क्या मानव मेंशेष रहा है मानव? जाति-पाति मजहब में बंटा है मानव मजहब की बात पर डटा है मानव। जाने किसने ये कौमें बनाई चहुँ ओर वैमनस्यता फैलाई। मानव को मानव से लड़ाया देश को दावानल सा दहकाया। अधिकाधिक पाने की चाहत मानव को दानव सा बनाया। मजहब के नाम पर बहलाया फूट पड़ी तो तीसरे ने लाभ उठाया। कौमी एकता तो बनी जुमलेबाजी है आज कौन इसमें राजी है ? सभी तैयार खड़े पलटने को बाजी है आपस में ये कैसी नाराजी है? कौमी एकता तो दिवा स्वप्न सी लगती है। वास्तव में हर किसी को ये चुभती है। भाई को यहाँ चारा बनाते देर नहीं लगती। मानवता यहाँ दूर खड़ी तड़पती है। काश कोई ऐसी पाठशाला हो जो इंसान को इंसान बनाये। इंसानियत का पाठ पढ़ाये जाति धर्म के बंधन तोड़ जाये। सम्पूर्ण मानव जाति एक हो सबके ...
ज्ञानमणि
कविता

ज्ञानमणि

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** कोई बन सपेरा नचा रहा है मुझे? अपनी बीन के सुमधुर धुन पर। लहराकर, झूमकर नाच रहा हूं, जादुई आवाज को सुन-सुन कर।। मेरे चारों ओर फैलाया मंत्र जाल, मुझे कोड़ा से पीट रहा है प्रेत दूत। तू ही रास्ता दिखाता है विश्व को, निकालो मस्तक से जो है अद्भुत।। मेरे पास है दिव्यमान ज्ञानमणि, जन मन को करता है प्रकाशित। छीनकर मुझसे ले जाएगा वंचक, जिसे दिया था गुरुदेव कर्मातीत।। फिर क्या रह जाएगा जीवन में ? इसे खोने के बाद तमस-ही-तमस। बन अंधा टकराऊंगा शिलाओं पर, सिर पटक करूंगा आत्म सर्वनाश।। कोई छीन नहीं सकता मेरी प्रतिभा ? बदलूंगा अपना रूप,मैं हूं इच्छाधारी। कर्म करके प्रभु से मिला है वरदान, जय आशीष दिया है भोले भंडारी।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : सहायक शिक्षक सम्मान : मुख्यमंत्र...
सुविधा पाबो
आंचलिक बोली

सुविधा पाबो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जुरिस गाँ ह सड़ग ले भईया, अउ मन कस सुविधा पाबो चिखला चांदो के दिना ल, हमन अब तो भुलाबो बारी बखरी के साग भाजी, अब सहर मं बेचाही लेबो कमा जीये के पूरती, नी डउकी लइका ललाही धराय हे गहना खेत खार ह, ओला मुक्ता के लाबो चिखला.. बड़े इस्कूल मं लइकन पड़ही, अउ कालेज घलो जाही साहेब, सिपाही जम्मो बनके, जिनगी भर सुख पाही दुनो परानी हमन देखत, भाग ल सँहराबो चिखला.. रई आय पहिली कहूँ ल त ओ, बिन गोली के मरे कतको घोर्री घसन तभो, डॉक्टर ह नी हबरे एक सौ आठ ल बलवाके, निरोग काया ल बनाबो चिखला.. परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय...
बादल
दोहा

बादल

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** काले बादल नभ चढ़े, घटा लगी घनघोर। शीतल मन्द पवन चली, नाच रहे वन मोर। कोयल पपिहा कुंजते, दादुर करें पुकार। काले बादल देखकर, ठंडी चली बयार। काले बादल नभ चढ़े, बरसे रिमझिम मेह। गौरी झूला झूलती, साजन सावन नेह। घटा गगन शोभित सदा, बादल बनकर हार। मेघ मल्लिका रूपसी, धरा सजे सौ बार। प्यासी धरती जानकर, बादल झरता नीर। लहके महके वनस्पति, बरसे जीवन क्षीर। धरती दुल्हन हो गई, बादल साजन साथ। यौवन में मदमस्त है, प्रीत पकड़ कर हाथ। बादल से वसुधा करी, स्नेह सुधा का पान। गागर सागर से भरी, स्वर्ण कलश सम्मान। मूंग मोठ तिल बाजरा, यौवन में मदमस्त। धान तुरही लता चढ़ी, बादल पाकर उत्स। श्वेत नीर फुव्वार से, भीगे गौरी अंग। खुशी खेत में नाचती, बादल हलधर संग। दुल्हा बनकर चढ़ चला, बादल तोरण द्वार। दुल्हन प्यारी सज गई...
तू मेरा जहां…!
कविता

तू मेरा जहां…!

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** एक तू..., बस तू..., सिर्फ तू..., है मेरी जां..., एक तू..., बस तू..., सिर्फ तू..., है मेरी जां...। तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां, तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां। "एक तू मेरी जां..., बस तू धड़कन..., सिर्फ तू है जहां...।" तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां, तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां। तू मेरा जहां...।। दुआं मैं करूं, जुदां मेरी जां, सिर्फ तू है, जहां से, जी ना सकूं, बिन तेरे जहां, लग जा गले, प्यार से। जो तू नही, तो मैं नही, जो तू नही, तो मैं नही, आज तू कहां..., कल तू वहां..., दिल-ए-जवां..., तू मेरा जहां...। "एक तू..., बस तू..., सिर्फ तू..., है मेरी जां...।" तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां, तू मेरी है धड़कन, तू मेरा जहां। तू मेरा जहां...।। सुना ऐ जहां, तू जानले, मेरे हमसफर, तू देर ना ...