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कंटक
कविता

कंटक

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैं तुम्हें तोड़ती हूं कंटक क्यों बार-बार उग आते हो तन्हाईयों में यादों को कुरेदने के लिए मेरे जख्मों को हरा कर, तुम्हें क्या मिलेगा सुख, संतोष, या मुझे तड़पन। अतीत की यादों की जंजीर लंबी है कहीं कोई गांठ नहीं, कोई फास नहीं तुमसे तो हरी घास की कोंपल अच्छी जो आंखों को ठंडक, मन को संतोष देती है। एक ही धरा पर जनित हो तुम दोनों पर कर्मानुसार फल लेने में तुम्हारा कोई सानी नहीं तुम्हारा कोई सानी नहीं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों...
देश गान
कविता

देश गान

कुंदन पांडेय रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** ओजस्व नहीं मेरे अंदर, तू स्वयं ओज गुण दाता है। संपूर्ण कलाधर हे जननी, तू हीं इस जग की त्राता है। हर क्षण-क्षण, हर पल पूजा हो, बस यही आश मन धरती हूं। तेरे कारण मेरा वजूद, मैं तुम्हें नमन नित करती हूं। है लिया जन्म जिस धरती पर, न उसको नित निश प्राण करो। तुम जग के कुल उद्धारक हो, इस वसुधा का सम्मान करो। जो त्याग अरति इतिहास रचे, नव युग उसके गुण गाता है । संपूर्ण कलाधर हे जननी,तू हीं इस जग की त्राता है। उठ जाओ शुखमय आश्रय से, तुम नित त्रासों का वरण करो जग-मग कर डालो वशुधा को, कुल दीपों का तुम तरण करो। हो कर अब निश्चल अविरल तुम, भारत माता का ध्यान करो। गर राष्ट्र प्रेम तुम करते हो, हर प्राणी का सम्मान करो। जो कण-कण तज दे धरणीं पर, हर शब्द उसे हीं ध्याता है। संपूर्ण कलाधर हे जननी, तू हीं इस जग ...
बेटी तो वरदान है
कविता

बेटी तो वरदान है

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी तो वरदान है नही हे अभिश्राप, दोनों कुल को तारती बेटी तो हे महान, बेटी लक्ष्मी बेटी दुर्गा सीता सयानी राधा सी प्यारी, मीरा कर्मा द्रोपति उत्तरा और अहिल्या शबरी अनुसूया, कोई रक्षा भारत की करती, कोई पिता का मान बढ़ाती, कोई प्यार को हे तज देती, कोई खिचड़ा भात खिलाती, कोई कृष्ण को है पुकारे, कोई गर्भ के प्राण बचावे, कोई पत्थर की नारी बनती, कोई झूठे हे बेर खिलाती, कोई बचपन सा लड़ाती, कोई देश की रक्षा करती, कोई न्याय का पाठ पढ़ाती, कोई ब्रह्म को धरती पर लाती, पुत्र रूप में गोद खिलाती, हर शास्त्र बेटी की वंदना, सरस्वती मीणा की वंदना, बेटी के कितने एहसान, धरती पर परब्रह्म का निवास, हर क्षेत्र में परचम भारी, कलम शस्त्र से लिखती हे भारी, धरती से आकाश उसी का, नहीं करो अपमान उसी का, नहीं कोख मे...
ईश्वर का अनुपम वरदान है बेटी
कविता

ईश्वर का अनुपम वरदान है बेटी

गायत्री ठाकुर "सक्षम" नरसिंहपुर, (मध्य प्रदेश) ********************  ईश्वर का अनुपम वरदान है बेटी, सरस्वती और लक्ष्मी का रूप है बेटी। घर रोशन करने वाला चिराग है बेटी। नसीब वालों को ही मिलती है बेटी। दोनों कुलों की लाज निभाती है बेटी, माता, बहन, भार्या का रूप है बेटी । माता का तो अरमान होती है बेटी । पिता का सम्मान भी होती है बेटी । माता के साथ काम कराती है बेटी। भाई बहनों का ध्यान रखती है बेटी। खुद को भूल सबकी चिंता करती बेटी सुख-दुख में भी साथ निभाती है बेटी। कभी घरों में बंद रहती थी रानी बेटी, पंछी की तरह उड़ रही है आज बेटी। कदम मिलाकर साथ चल रही है बेटी जमीं से आसमां तक उड़ रही है बेटी। समंदर की लहरों पर चल रही है बेटी। देश और राष्ट्र को भी चला रही है बेटी। घर एवं काम का समन्वय है आज बेटी। सौम्य, शांत, सुशील तो होती है बेटी। पर समय पर दुर्गा भी बन जाती बेटी। सा...
चामर छंद
छंद

चामर छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (चामर छंद- (दीर्घ+लघु) ×७+१ दीर्घ - २ = १५ वर्ण, दो या चारों सम पदान्त, चार-चरण) बाम अंग बैठ के उमा महेश संग में । चंद्रमा निहारतीं भरे बड़े उमंग में ।। हैं गणेश कार्तिकेय नंदि पास में खड़े । सोहते सभी अतीव एक एक से बड़े ।। गंग लोरतीं कपार घूमतीं यहाँ-वहाँ । मुंडमाल क्षार देह है पुती कहाँ-कहाँ ।। हैं अनंत हैं अनादि देव जे पुकारते । देव है बड़े महान दु:ख ते निवारते ।। रूद्र देव आदि देव धूम्र वर्ण धूर्जटी । विश्वरूप आयुताक्ष* भंग रात-द्यौ घुटी ।। कामरूप सोमपा शिवा शिवा शिवा शिवा । शंकरा महेश्वरा अराधिए नवा शिरा ।। कंठ है पवित्र गंग केश में बहा करें । नृत्य तांडवा शिवा डमड्ड पे किया करें ।। ग्रीव में भुजंग माल हार ज्यूँ झुला करे । तीन नेत्र अग्नि रूप माथ पे दहा करे ।। शंभु पूजिए अवश्...
भारतीय गणतन्त्र के सात दशक
आलेख

भारतीय गणतन्त्र के सात दशक

डॉ. अवधेश कुमार "अवध" भानगढ़, गुवाहाटी, (असम) ******************** परिवर्तन का जोश भरा था, कुर्बानी के तेवर में। उसने केवल कीमत देखी, मंगलसूत्री जेवर में।। हम खुशनसीब हैं कि इस वर्ष २६ जनवरी को ७४वाँ गणतन्त्र दिवस मना रहे हैं। १५ अगस्त सन् १९४७ को पायी हुई आजादी कानूनी रूप से इसी दिन पूर्णता को प्राप्त हुई थी। अपना राष्ट्रगान, अपनी परिसीमा, अपना राष्ट्रध्वज और अपनी सम्प्रभुता के साथ हमारा देश भारत वर्ष के नवीन रूप में आया था। हालाँकि इस खुशी में कश्मीर और सिक्किम जैसे कुछ सीमावर्ती या अधर में लटके राज्य कसक बनकर उभरे थे। देश को एक संविधान की जरूरत थी। संविधान इसलिए कि किसी भी स्थापित व्यवस्था को इसी के द्वारा सुचारु किया जाता है। संविधान को सामान्य अर्थों में अनुशासन कह सकते हैं। संविधान अनुशासन है, यह कला सिखाता जीने की। घट में अमृत या कि जहर है, सोच समझकर पीने की।। २ वर्ष...
वाचिक गंगोदक सवैया
गीत

वाचिक गंगोदक सवैया

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** वाचिक गंगोदक सवैया भारती मातु की आरती के दिये टिमटिमाते रहें झिलमिलाते रहें। वर्तिका हम बनें और घृत हो लहू, प्राण का अर्घ्य यूँ ही चढ़ाते रहें।। छोड़ निज स्वार्थ को छोड़ परमार्थ को, छोड़ माँ-बाप परिजन सखा आइए। प्रीति के जोड़ अनुबंध निज देश से, राष्ट्र सिद्धांत प्रांजल निभा जाइए।। कर्म ही धर्म यह मर्म जानें सभी, स्वप्न साकार माँ के बनाते रहें। वर्तिका हम बनें और घृत हो लहू, प्राण का अर्घ्य यूँ ही चढ़ाते रहें।। विश्व में राष्ट्र का मान सम्मान हो, मूल्य नैतिक कभी भी भुलाएँ नहीं। लोक कल्याणकारी रहे भावना, वासना को हृदय में बसाएँ नहीं।। इस प्रजातंत्र के उन्नयन मंत्र को, श्लोक जैसा समझ गुनगुनाते रहें। वर्तिका हम बनें और घृत हो लहू, प्राण का अर्घ्य यूँ ही चढ़ाते रहें।। शाँति सुख और संवृद्...
भारत देश महान
गीत

भारत देश महान

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत देश महान वंदे मातरम् करते इसे प्रणाम वंदे मातरम् छब्बीस जनवरी का यह दिन हम सबको याद दिलाता है बलिवेदी पर चढ़-चढ़ कर इस आजादी को पाया है झंडे को झुकाए शीश वंदे मातरम् भारत देश महान वन्दे मातरम्।। राम कृष्ण की जन्मभूमि है गौतम की यह तपोभूमि है कबीरा की ये समर भूमि है गांधी की यह कर्मभूमि है थे तेरे पूत महान वंदे मातरम भारत देश महान वंदे मातरम।। गंगा की यहां पावन धारा नदियों का यहां संगम प्यारा कश्मीर महके केसर प्यारा महके दक्षिण चंदन सारा प्रकृति का है वरदान वंदे मातरम। भारत देश महान वंदे मातरम।। सत्य अहिंसा यहां की शान शिवाजी पर हमें अभिमान पद्मिनी सी करती हैं जौहर आन पे मर मिटने को तत्पर झांस रानी हमारी शान वन्दे मातरम भारत देश महान वंदे मातरम।। विज्ञान ने भी धूम मचाई अंतरिक्ष तक दौड़ लगाई नार...
जय हिन्द
कविता

जय हिन्द

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम मुझे खून दो ... मैं तुम्हें आजादी दूंगा।। "बलिदानी" इस नारे से युवाओं में नेताजी ने जोश जगाया था। मातृभूमि की आजादी के लिए रक्त अभिषेक से भी न, अपना कदम पीछे हटाया।। मातृभूमि पर वालीदानी यहां, सर्वस्व न्यौछावर करने से नही डरते! आजादी अभिव्यक्ति कि यहां हर पल स्वतंत्रता ही एक संग्राम है।। अपनी आजादी की खातिर बलिदानी सुभाष जी ने जब अंग्रेजों को हर जवाब में, ईंट से पत्थर दे डाला महात्मा गांधी भी चकित रहे सुभाष ने अपने अंदाज में कुछ बेहतर ही कह डाला जोश जुनून जगाया भारत के वीर कुमारों में आजाद हिंद फौज गठित कर क्रांतिकारी वीर सपूतों का देश की माटी से किया तिलक इसी को चंदन, इसी को केसर कह डाला।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ...
कोशिश हो रफ्तार की
कविता

कोशिश हो रफ्तार की

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की। बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की। तानों से कुछ भटके तो, गानों से फिर महके भी शानों में कभी जो अटके, सम्मानों संग चहके भी जीवन के हैं स्वर्ण रथी, सारथी सोच परिहार की। अश्व चाल के चिन्ह मिले, जहां दिशा परिवार की उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की। बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की। आधी दोस्ती मतलब ही, दुश्मनी आधी सुनते हैं। शतरंज मोहरे जैसे फिर, कदम चाल में घिरते हैं। खट्टे मीठे अनुभव पाते, ऐसी बातें कुछ यार की। कपट विश्वास का पुल, नैय्या कथा मझधार की। उमर असर तो होगा पर, कोशिश हो रफ्तार की। बस इतनी चले जुबान, चर्चा सुनो कुछ धार की। गाड़ी जैसा होता जीवन, समतल पर रुकावट भी मिले सही डॉक्टर मिस्त्री, थोड़ी कभी बनावट भी थकावट वाले कलपुर्जे, चाहत सच्चे हथियार की।...
गर्वित अटल बिहारी
कविता

गर्वित अटल बिहारी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** पैतृक गाँव बटेश्वर में ही, जन्म आपने पाया। कृष्ण बिहारी, कृष्णा देवी, का घर धन्य बनाया। पच्चीस दिसंबर सन चौविस में, जन्मे अटल बिहारी। मात-पिता परिजन हर्षित थे, छाई खुशियाँ भारी। सरस्वती शिक्षा मंदिर सँग, वे कॉलेज पढ़े थे। शिक्षा अरु कौशल के दम पर, ऊँचे शिखर चढ़े थे। नमिता और नंदिता दोंनों, गोद लिए बेटी थीं। लाड प्यार से पाला उनको, दोनों परम चहेतीं। जनमानस की सेवा करना, ध्येय बनाया अपना। निर्बल, निर्धन सभी सुखी हों, मन में देखा सपना। राजनीति में पहुँच आपने, जनसंघ को अपनाया। प्रथम सांसद बन दुनिया में, यश सम्मान कमाया। अपनी वाणी पर संयम रख, सबका मन हर्षाया। देश विदेशों में भारत का, था परचम लहराया। रहे सांसद और मंत्री, प्रखर अग्रणी वक्ता। राजनीति में जगह आपकी, कोई नहीं ले सकता। ...
सृजन
कविता

सृजन

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** शीतल-शीतल चंदा की किरण है। महकी-महकी आज पशन है। तरल-तरंग मनमें उमडे है उमड-उमड मन गीत है गाता। सुख है, दु:ख है समझ ना पाये मन भी बडा चपल चंचल है। डाल-डाल पर भँवरा मंडराये कली-कली को फूल बनाये। दूर कही बांसुरी बजाए राधा-राधा किशन बुलाए। मनवा महके, तनवा दहके सृष्टी का कैसा सृजन है। परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके ...
हिम जैसे अटल
कविता

हिम जैसे अटल

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अटलजी सचमुच थे तुम हिम जैसे अटल। भारतमाँ के सच्चे सपूत थे अद्भुत विरल।। शरीर दिव्य हो गया आवाज मौन हो गई, अटलजी की आत्मा आज अमर हो गई। बात कहते थे सटीक शांत मन निर्मल, अटलजी सचमुच थे तुम हिम जैसे अटल। मौन है आज आस्मां मौन है सारी जमीं, मौन है शीतल पवन मोहन है मां भारती। देश- प्रेम अलख जगाई थे हृदय निश्छल, अटलजी सचमुच थे तुम हम जैसे अटल। शब्दों का भंडार, भावनाओं का ज्वार थे कुशल राजनीतिज्ञ, भाषण धुआंधार थे। आरोप-प्रत्यारोप से विरोधी हो जाते तरल, अटलजी सचमुच थे तुम हिम जैसे अटल। समुद्र सम गंभीर थे, स्पष्टवादी धीर थे, प्रेम-शांति के मसीहा, सच्चे कर्मवीर थे। सत्यनिष्ठ, स्वाभिमानी, थे मन के सरल, अटलजी सचमुच थे तुम हिम जैसे अटल। जीवन-युद्ध विजेता कष्टों में भी हंसते, बाधाओं को परे हटा राह स्वयं चुनते। थे संघर्षर...
सर्दी आई
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सर्दी आई

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** सर्दी आई, सर्दी आई ठिठुरन भी संग ले आई अम्मा ने टोपा जर्सी खूब पहनाई, फिर भी नहीं आई गरमाई सर्दी आई, सर्दी आई। आसमान में घटा छाई सूरज दादू से गुहार लगाई, वह भी खेल रहे लुका-छुपाई सांझ हुई शीत लहर दौड़ी आई, सर्दी आई, सर्दी आई । तन बदन में कंपकंपी आई अम्मा दे दो मुझको मोटी सी एक रजाई तब आएगी खूब गरमाई। खाएंगे मूंगफली गजक मिठाई। सर्दी आई, सर्दी आई। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
मेरा सफर…
कविता

मेरा सफर…

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** सफर पर निकले पीछे कदम ना करना जो आये मुश्किल रफ्तार तेज करना।। कांटे बहुत है मंजिल में मेरे चल रहे है मगर साथ है कोई अपना।। दुश्मन अंधेरा क्या करेंगे पग-पग पर मेरे दिए की रोशनी में चलना सीखा है मैने।। थक कर जब मैं बैठा चलना बहुत था दिख रही थी मंजिल हाथ थामा औऱ चल दी अम्मा।। बहुत मिली रुकावटे राह टेढ़ी-मेढ़ी थी चल रहे थे हम क्योकि साथ थी अम्मा।। पहुँचना मुश्किल लगा सफर में जब भी याद किया माँ को तो हिम्मत मिली हमे।। आराम करेंगे फुर्सत से अभी चलना बहुत है मिले जो लोग राह में भटकाया बहुत है।। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह...
भारत की आब पंजाब
कविता

भारत की आब पंजाब

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** पंच और आब से बना पंजाब यह पांच नदी का उद्गम है इसी धरा ने जनधन पाला, महां स्तंभ भारत का है। प्यारे देशवासियों ऋग्युग के, ना ऐसी बात करें जिससे टुकड़े हों भारत के अखंडता को खतरा‌ हो। भारत की सीमाएं उत्तर में, यूरोप की निकटवर्ती थीं दक्षिण में हिंदमहासागर‌की, अंतिम सीमा भी अपनी थी उन द्वीपों में बसी आज भी भारत की संस्कृति है आर्यों की प्राचीन कथाएं, वहां आज भी‌ प्रचलित हैं गुरु तेग बहादुर, गुरु नानक की वाणी को याद करें अखंडता और रहे एकता गुरवाणी को याद करें भारत के वीरों की भूमि, यह वीरों की आंखों का पानी ‌है इन वीरों की गाथाएं धरती पर लासानी हैं तोड़फोड़ की बात करें ना, ना भाई से भाई बिछुडें कोई विदेशी तोड़ न पाए, हम सब भारत के बेटे हम अपने ऊपर हावी नहीं किसी को होने देंगे हम भारतवासी ...
मत वहन करो
कविता

मत वहन करो

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मत वहन करो मेरे विचार को मुझे भी नहीं चाहिए तुमसे अलंकार के भूषण। मत वहन करो मेरी वाणी को मुझे भी नहीं चाहिए तुमसे छंदों के बंधन। मत वहन करो मेरे अंतर्द्वंद को मुझे भी नहीं चाहिए तुमसे परिछंदों के द्वंद। मत वहन करो मेरे अंत:वेगों को मुझे भी नहीं चाहिए तुमसे रागों की रागनी। मत वहन करो मेरे हृदय तल की असवादों को मुझे भी नहीं चाहिए तुम्हारे रसों से उत्पन्न रसायन। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित...
जीवन
कविता

जीवन

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एक बिन्दु से लेकर अनंत तक असंपूर्णता असंपन्नता से सम्पूर्ण सम्पन्नता तक जीवन संग्राम गाथा है हर घड़ी, हर पल हर दिवा हर रात्रि कष्ट में सुख में, नींद में स्वप्न में मनुज में जीव में, चहुँ ओर प्रकृति में निरन्तरता है जीवन निरंतर ये जीवन कर्म की परिभाषा, चुनौती का पर्याय शतरंज सा है जीवन कहीं रुकाव नहीं कहीं ठहराव नहीं हारे हुए योद्धा पर अनवरत चलता है जीवन कुछ कर गुजरने की तमन्ना, लक्ष्य साध मंजिल पाने की चाह बदलते हुए समीकरण, सब्रता के अपने अपने चरण सहनशीलता से विकास, कहीं उग्रवादिता से विनाश यश अपयश के साथ, रिक्त हो रहे धैर्य व साहस के संग कहीं कशमकश से जूझता, कहीं परिपक्व है जीवन एकाग्र कर्म पथ पर चलने का नाम जीवन जीवन का लक्ष्य केवल अंत है, मगर.... मृत्यु के बाद भी तो है "जीवन...
एक लड़की गुड़िया सी
कविता

एक लड़की गुड़िया सी

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** एक गुड़िया सी लड़की घर में, बातें बहुत बनाती है। है नटखट शैतान बहुत, पर सबके दिल को भाती है। घर भर को है खूब रिझाती, अपनी मीठी बोली से। कॉपी सारी रँगती रहती, बना बना रंगोली से। बात बात पर धमकी देकर, सबपर हुकुम चलाती है। है नटखट शैतान बहुत, पर सबके दिल को भाती है। इस कमरे से उस कमरे में, दिन भर चलती रहती है जरा डाट पर रो देती, पर बिलकुल नही सुधरती है। मम्मी पापा भाई बहन, वह सब पर प्यार लुटाती है। है नटखट शैतान बहुत, पर सबके दिल को भाती है। कभी डॉक्टर, कभी वो टीचर, फौजी भी बन जाती है। क्या क्या मुझको करना है, वह अच्छे से समझाती है। देख देख कर दर्पण बिटिया, खुद को खूब सजाती है। है नटखट शैतान बहुत, पर सबके दिल को भाती है। परिचय :-  रमाकान्त चौधरी शिक्षा : परास्नातक व्यवसाय : वकालत नि...
लेखन का दम
कविता

लेखन का दम

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कवियित्री 'अनामिका अंबर’ को पढ़ने से रोक वजह से सृजित मेरी नई छंद रचना। सृजनकारों की आन-बान-शान लेखन सृजन का पुरातन इतिहास स्वाधीनता युद्ध तक और रीति भक्ति काल तक ले जाता है। आव्हान है पुराने युग के साहित्यकारों के देश में प्रखर कलम चलती रहे और देश के सही मुद्दों पर लिखती रहे। आभार सहित। हिंदुस्तान में लेखन का दम, गुजरे युग परखा होगा। तुलसी कबीर मीरा रहीम, लेखन युग बदला होगा। आजादी अमृत महोत्सव, जनता पुलकित भारी है। कवि कवियित्री पे सीधी रोक, 'अनामिका’ बेचारी है। हरेक घर कविता निकलेगी, अंबर तक की बारी है। भक्ति रीति युग रचनाओं में, खूब निपुणता पा जाते। गंगा यमुना सरयू गाथा में, साहित्य झलक महकाते। कदंब पेड़ काव्य ’सुभद्रा’, पावन यमुना दिखलाती। विषैली यमुना नदी जल को, कालिया मर्दन कराती। पर्यावरण जो वर्तमान में, समझना कलम क...
मकान का रिश्ता
कविता

मकान का रिश्ता

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नाना-नानी का मकान जहाँ बिताई गर्मी की छुट्टियाँ नाना का लाड नानी का दुलार नाना के हाथों लाई इमरती नानी का झूला नानी की कहानी। मेरे मस्ती करने पर नानी मुझे नहीं माँ को डांटती दुलार के डाट से ढक देती नाना-नानी बन चुके जो तारे गर्मी की छुट्टियों में सूने घर में नहीं मिलती नाना-नानी की मुझे बुलाती आवाजे। नहीं झूलते हवाओं से झूले रातों को आकाश में सूने नयन उन्हें निहारते नाना-नानी का आशियाना टूट चूका उनकी उम्र की तरह यादें तस्वीरों में कैद आँखों में आँसू लिए रिश्ते निहार रहे ढहते मकान। नयापन लौट आएगा नई उमंगों के साथ ये वैसा ही लगेगा जैसे बुजुर्गों के गुजर जाने के बाद नन्हें बालक ने लिया हो जन्म नए रिश्तों के साथ नई उमंगों के साथ बुजुर्गों के आशीर्वाद के साथ नयापन समेटे। परिचय :- संजय वर्मा "...
बेटियां
कविता

बेटियां

रामेश्वर पाल बड़वाह (मध्य प्रदेश) ******************** दोनों घरों की पहचान होती है बेटियां एक बहू दूसरे में मां की शान होती है बेटियां। बहू बेटियां ही चलाती हैं घर और सबको खिलाती है रोटियां पिता की खुशी और मां का अरमान होती है बेटिया। कितनी भी मुसीबत आए नहीं घबराती है बेटियां दर्द का एहसास और खुशियां की पहचान कराती है बेटियां। बहता है नीर आंखों से जब रोती है बेटियां कैसे चलता यह संसार जब ना होती बेटियां। बड़े-बड़े आंसू रुलाती है बेटियां विदा होकर जब घर से जाती है बेटियां। परिचय :-  रामेश्वर पाल निवासी : बड़वाह (मध्य प्रदेश) विधा : कविता हास्य श्रृंगार व्यंग आदि। प्रकाशित काव्य पुस्तक : पाल की चांदनी। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
अब से पहले
कविता

अब से पहले

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** पहले भी रात होती थी ...चांद होता था। तारों के साथ -साथ आसमान होता था। उन तमाम रातों में, जो चटक जाते थे तारे, उन्हें देख कर ख्वाब बुना करता था। मैं जागता था ...अनगिनत सपने देखने के लिए। मैं तलाशता था उन राहों को जो है .......मेरे लिए। जिंदगी की राह में लेकिन..... सब बदल गया। रात तो वही है ....लेकिन आसमान बदल गया। क्या ......मैं सोचता था.. अब क्या मैं सपने बुनूं। यह कहाँ ठिठक गया .... किससे कहूँ। वो भरम कि मैं अकेला नहीं.... मेरी तन्हाई से वो भी पिघल गया। अब सोचता हूँ..... कहूँ भी तो क्या कहूँ। आज भी जाग रहा हूँ....... पहले की तरह। लेकिन ख्वाबों का सिलसिला लगता है कि थम-सा गया। जिंदगी जो मृगतृष्णा दिखा रही थी और ..... मैं तो प्यासा ही रह गया। टूटे हुए ख्वाबों के आईने में, फिर से अपन...
सातों जन्म मांगती तुझको हूं
कविता

सातों जन्म मांगती तुझको हूं

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** क्या हुआ मुझे दिया नहीं कभी लाखों का हार, पर जीवन के हर पल को माला में संजोया है। क्या हुआ मुझे कभी दिया नहीं कीमती उपहार पर अपने जीवन के कीमती पल मेरे नाम किए हैं। क्या हुआ कभी मुझे महंगी साड़ी गिफ्ट नहीं की पर हमारे रिश्तो को एक-एक धागे में पिरोए रखा है। क्या हुआ ऊंचे महलों में नहीं बिठाया कभी हमें पर छोटे से घर की एक-एक ईंट में प्यार भर दिया है। क्या हुआ कभी हम गए नहीं विदेश घूमने तो स्वदेश के हर सुनहरे संगीत से रूबरू करवाया है। कभी किया नहीं झूठा वादा कि ताज महल बनवा दूंगा पर घर के एक कोने में सुंदर सा कमरा हमारे नाम किया है। क्या हुआ कभी हम धन-दौलत से भरा नहीं हमारा घर प्यार भरपूर देकर हमें रहीस बना दिया है। दुनिया से अलग है मेरे हमसफर झूठे वादे करते नहीं मुझे हमेशा खुश रखते हैं हमारे लिए वही...
शिक्षा व्यवस्था
कविता

शिक्षा व्यवस्था

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षा जीवन का सार है, संस्कारों का मीठा संसार है, आत्मा का परमात्मा से मिलन का... एकमात्र यही सच्चा द्वार है।। दिनचर्या हो कैसी, व्यवहार हो कैसा, कोरे मन पे लिखो बस न ऐसा वैसा.. कलम ही सारथी बेड़ा लगाती पार, शिक्षा ना खरीदी जाती देकर पैसा।। भगवान राम कृष्ण भी पढ़े गुरुकुल में, सर्व शिरोमणी बने तब रघुकुल में..। जीवन ज्योति के आखर आखर जोड़, गीताधारी कहलाए जगतकुल में।। युग बीते परिवर्तन हुए बदली नियमावली, विद्या मंदिरों में लगने लगी हाट बाजारों की गली, विद्यार्थी जीवन सिमटने लगा किताबों में.. मां सरस्वती की वीणा रूदन कर विदा हो चली।। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था चलती ठेकों पे, कलम से कलाम बनना हुआ दूर, परीक्षा उत्तीर्ण होती आज नेगों से....।। ज्ञान का प्रकाश नहीं.. लाचारी भरी शिक्षकों की जेबों में....।। देश के ...