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नारी का बदलता स्वरूप
कविता

नारी का बदलता स्वरूप

हेमी सिंह पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** टूटने लगे जब सदियों के बन्धन, दिल उड़ान भरने लगा, नारी तेरे अरमानों को तब, नया आसमां मिलने लगा। कभी ख़्वाब देखे और भुला दिये, लबों पे न कोई ज़िक्र आया, आज हर ज़िक्र ख़्वाब से शुरू ख़्वाबों पे ख़त्म होने लगा। अब चेहरा न कोई चांद सा, न हिरनी जैसी चाल है, अब चांद मुठ्ठी में लिये, सितारों पे दिल आने लगा। कल हर क़दम था दायरे में, दहलीज़ का पाबन्द बना, आज लांघकर सीमा वो, सीने दुश्मन के दलने लगा। पहले भीड़ में दूर तक कहीं, तेरी न कोई शुमार थी, आज सिर पर सजा हर ताज तेरा, पहचान एक बनने लगा। परिचय :- हेमी सिंह निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र) विशेष : चालीस‌ वर्षों का गद्य एवं पद्य लेखन अनुभव । शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी) बी.एड घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी ...