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Tag: हिंदी साहित्य

कर गुजरने की चाह रख
कविता

कर गुजरने की चाह रख

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** कुछ कर गुजरने की चाह रख, राह तो मिलेंगी अवश्य तू ह्रदय में दृढ़ संकल्प रख। तू कुछ कर गुजरने की चाह रख। राह मिलेंगी अनेक अवश्य किस राह पर चलना है यह निश्चय तू स्वयं ही कर क्योंकि जब हृदय में कर्म को सत्कर्म में बदलने की होती है चाह कदमों में आ जाती हैं अनेक स्वर्णिम राह कुछ कर गुजरने की चाह रख। तू हर कदम सशक्त कर और संभल-संभलकर रख जब इच्छा शक्ति होगी दृढ़ मंजिल तुझे मिलेगी अवश्य, ह्रदय में जीवनलक्ष्य साध कर, तू कुछ कर गुजरने की चाह रख। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओ...
निकलेगा सूरज
कविता

निकलेगा सूरज

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये रात ही तो है कब तक रहेगी निकलेगा सूरज फिर तो ढलेगी ।। उम्मीदों से भरा है आसमान, आशाओं पर टिकी है धरती । ऐ दुनिया तू छल ले, कब तक छलेगी ।। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। एक सोच पर ही तो नहीं है पहरा, ना ही कोई, रोक-टोक है। सोच ऊंची रही है, ऊंची रहेगी ।। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। आते हैं दु:ख-दर्द मुझको परखने, और जाते है बनाकर मजबूत मुझे । देख लो ध्यान से ये आंखें ना बही है ना बहेंगी । ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढलेगी ।। दीवार होंसलों की हिला नहीं पाए कोई, पर्वत सी अटल और वज्र सी प्रबल हो । जीगर आग जब जली हो, किस तरह बुझेगी। ये रात हि तो है, कब तक रहेगी । निकलेगा सूरज, फिर तो ढ...
हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२ कार्यक्रम सम्पन्न
साहित्यिक

हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२ कार्यक्रम सम्पन्न

इंदौर म.प्र.। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच एवं दिव्योत्थान एजुकेशन एंड वेलफ़ेयर सोसायटी के सँयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के पोर्टल hindirakshak.com की एक करोड़ पाठक संख्या का महोत्सव के तहत एवं दिव्यांग भाई बहनों के सहायतार्थ "हिन्दी गौरव राष्ट्रीय सम्मान २०२२" कार्यक्रम मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति इंदौर, पुस्तकालय के सभागृह में आयोजित किया गया। राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच के सम्मान समारोह में मुख्य रूप से प.पू. गो. १०८ दिव्येशकुमारजी महाराज श्री इंदौर (नाथद्वारा), मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार एवं देवपुत्र पत्रिका के प्रधान सम्पादक श्री कृष्णकुमारजी अष्ठाना, कार्यक्रम के अध्यक्ष हिन्दी साहित्य अकादमी भोपाल के निदेशक श्री विकासजी दवे, विशिष्ट अतिथि कुशाभाऊ ठाकरे विश्वविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़ के पूर्व कुलपति महोदय प्रो.डॉ. मानसिंहजी परमार एवं रेनेसां विश्वविद्यालय सांवेर रो...
हवाओं में बिखरने दो
कविता

हवाओं में बिखरने दो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझे हवाओं में बिखरने दो मुझे हवाओं की नजाकतोंमेंं घुले विष को निगलने दो। इन गमगीन सी बयारों से नीरस अहसासों को समेटने दो, फिर सुमन का सुमधुर इत्र बनकर मुझे हवाओं मेंं महकने दो । मुझे हवाओं में बिखरने दो। तपती गर्मी के ताप से झुलसती लूओं के झोकों मेंं चंद्रमा की शीतलता बनकर मुझे चांदनी बिखरने दो। मुझे हवाओं में बिखरने दो। हाड़ चीरते शीत मेंं सूर्य की ऊष्मा बनकर मुझे (जीवन को) राहत भरी सांस लेने दो मुझे हवाओं में बिखरने दो। आसुरी प्रवृत्तियों के प्रदूषण से आत्मशुद्धीकरण हेतु पंचतत्त्व से निर्मित देह को नभ-जल-थल, पावक-पवन के हवन कुंड में मुझे आहुति बनकर बिखरने दो। मुझे हवाओं मेंं बिखरने दो। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र ब...
साहित्य की देवी
कविता

साहित्य की देवी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** हे ! महादेवी हिंदी साहित्य की तपस्विनी तुम वर्तमान कलमकारों की प्रेरणा स्रोत बनीं। नीहार में भरी रसधार प्रेम की तुम आधुनिक मीरा हिंदी साहित्य की बनीं। दुख, संवेदनशीलता तो कभी सुख व प्रसन्नता के भावों की रचनाओं में प्रकाशित मिश्रित अभिव्यक्ति बनीं। हिंदी छायावादी युग का सशक्त स्तंभ बनीं। इतना ही नहीं तुम गद्यलेखन व रेखाचित्र की भी महान हस्ताक्षर बनीं। नवीन आयामों को स्थापित करती हिंदी छायावादी युग का एक सशक्त स्तंभ बनी नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्य गीत, अग्नि रेखा, सप्तपर्णा यामा में मानो आपकी ही आत्मा हैं रची बसी। हे ! महादेवी, तपस्विनी तुम भारत माँ की स्वतन्त्रता में सहभागी बनीं। सामाजिक कल्याण, महिला उत्थान की नवल पथप्रदर्शक बनीं। तुम वर्तमान कलमकारों की प्रेरणा स्रोत बनीं। परिचय :-  प्रभ...
भारत के मस्तक की बिंदी है हिंदी
कविता

भारत के मस्तक की बिंदी है हिंदी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भारत मां का अलंकार है हिंदी, भारत मांँ का शीश सुशोभित करती है हिंदी, देव-भाषा की अनमोल कृति है हिंदी, भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। जन -गण-मन की शक्ति है हिंदी, भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति है हिंदी, नन्हे मुन्नो की बोली है हिंदी विद्वानों की विद्वता को परिभाषित करती है हिंदी जब-जब इस पर संकट की परछाईं भी दिखती, कलमकारों की कलम से निकली हर हुंकार हिंदी रक्षण में आंदोलन करती, भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भाषाओं में सर्वोपरि राष्ट्रभाषा है हिंदी जन-गण-मन में रची बसी है हिंदी हर भारतवासी को एक सूत्र में बांधती है हिंदी, भारत मांँ के मस्तक की बिंदी है हिंदी। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा :...
जब-जब मेरी कलम ने…
कविता

जब-जब मेरी कलम ने…

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा हैवानियत छटपटाने लगी दरिंदगी का दम घुटने लगा। ईर्ष्या स्वयं से जलने लगी नफरतों का नाश होने लगा। जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा रुढियाँ रोने लगी घृणा स्वयं से घृणित होने लगी पाखंड पांव पीटने लगा। जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा रूहें सिसकियाँ भरने लगीं आंसुओं की बारिश होने लगी हर पत्थरदिल पिघलने लगा जब-जब मेरी कलम ने दर्द ए इंसानियत लिखा वैमनस्य की कालिमा छंँटने लगी मानो गंदगियाँ दिलों की धुलने लगी अंधकार अमावस्या की रात्रि का लुप्त होने लगा नभ-जल-थल में सूर्य का प्रकाश प्रकाशित होने लगा हर हृदय पटल पर प्रेम और विश्वास का आह्लाद होने लगा। जब-जब मैंने दर्द ए इंसानियत लिखा। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शि...
बारिश की बूँदें
कविता

बारिश की बूँदें

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** देखो धरा अम्बर से, मिलन की गुहार लगाये, थाल भर मोती माणिक अम्बर ने खूब सजाये, मन के आँगन बरस रही है मीठी मीठी सी फुहार, प्यासी धरा भी आँखें मींचे आशा की झोली फैलाये।। खुशियों भरी काग़ज़ की नाव ग़मों को बहा ले जाए देखो न बाल मन का कोना-कोना कैसे खिलखिलाये, छपाक छप, छपाक छप बारिश का कंचन जल कहे, भर लो अमृत चुल्लू में ज़िन्दगी तो हरदम ही ज़हर पिलाये।। खिली है हर कली कली, पत्ता पत्ता भी मुस्काये, नवल धवल हुए खेत खलियानशशि चन्द देख कृषक गदगद हो जाये, सौंधी सौंधी माटी, श्वास-श्वास मातृभूमि के रक्षकों की महकाये, बुलंद हौसलों की बारिश के बीच, शान से तिरंगा लहराये।। धानी चुनर ओढ़, अधरों पर धर लाज का घूँघट, सजनी चली साजन घर, जब मन भावन सावन आये प्रीतम ने अमियाँ की डाल पे प्रेम पुष्पों का झूला डाला, कृष्ण राधिका स...
जिंदगी की डगर
कविता

जिंदगी की डगर

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जिंदगी की हर डगर तू रख हर कदम फूँक-फूँक कर। नहीं आसान जिंदगी की कोई डगर मिलेंगी चुनौतियाँ कदम-कदम, करना है तुझे संघर्ष जिंदगी की हर डगर । कभी होगी छोटी डगर तो कभी काटे न कटने वाली बड़ी लंबी नीरस सी होगी जिंदगी की डगर। राह ऐसी है कौन सी जहाँ न हों शूल और पत्थर जब-तक नहीं दर्द का अनुभव कड़वी है सुकून की हर डगर। तू तनिक भी न डर साथ तेरा साया भी न दे अगर हौंसले अपने बुलंद रख तू राह में अकेला ही चल पीना भी पड़े पानी खुद कुआँ खोदकर। तू चले जा अकेला ही निरंतर, न रुक कभी जिंदगी के पथरीले पड़ावों पर भी मंजिल मिल नहीं जाती जब तक तू चले जा फिर से जिंदगी में नई डगर बनाकर। कहते हैं मन के हारे हार है तो फिर मन के जीते जीत भी लेकर दृढ़ संकल्प हो निडर तू सबके मन को जीत जीवन लक्ष्य अंगीकृत कर हर पल होकर सजग अपने...
सुविधा पाबो
आंचलिक बोली

सुविधा पाबो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जुरिस गाँ ह सड़ग ले भईया, अउ मन कस सुविधा पाबो चिखला चांदो के दिना ल, हमन अब तो भुलाबो बारी बखरी के साग भाजी, अब सहर मं बेचाही लेबो कमा जीये के पूरती, नी डउकी लइका ललाही धराय हे गहना खेत खार ह, ओला मुक्ता के लाबो चिखला.. बड़े इस्कूल मं लइकन पड़ही, अउ कालेज घलो जाही साहेब, सिपाही जम्मो बनके, जिनगी भर सुख पाही दुनो परानी हमन देखत, भाग ल सँहराबो चिखला.. रई आय पहिली कहूँ ल त ओ, बिन गोली के मरे कतको घोर्री घसन तभो, डॉक्टर ह नी हबरे एक सौ आठ ल बलवाके, निरोग काया ल बनाबो चिखला.. परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय...
ज़ुल्म और दर्द
कविता

ज़ुल्म और दर्द

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** होती जब-जब अस्मिता की हानि, उठती ज़ुल्म और दर्द की आंधी, पौरुष तो रहता जन्मजात अंधा, स्त्रियाँ भी नेत्रों पर पट्टियां बांध लेती हैं।। भीष्म प्रतिज्ञा लेने वाले गंगा पुत्र भी भरी सभा बीच मौन हो पछताते हैं.., गुरुजन और नीति श्रेष्ठ विदुर भी,, हाथ पे हाथ धरे फफकते रह जाते हैं।। झूठी दुनिया के संगी साथी देव पुत्र, हर कर अपना सब कुछ हाय कैसे, ये दांव अपनी ही स्त्री को लगाते हैं, बाजुओं के बल पर धिक्कारे जातें हैं।। खींचता है जब साड़ी दुर्शासन., झूठे रिश्तों से भीख मांग हरती अस्मिता, तब कृष्णा को फिर कृष्ण ही याद आते हैं, और अम्बर से चीर बढ़ा वो..., रेशम के एक धागे का मोल चुकाते हैं..।। कटी थी जब ऊंगली केशव की.., कृष्णा ने अपने आंचल का चीर फाड़, कृष्ण की ऊंगली पर बांधा था..., कृष्ण एक भाई का फर्ज निभाने आते हैं...
नेता वफादार चाहिए
कविता

नेता वफादार चाहिए

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत को नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए। मंदिर में पंडित का मस्जिद में मौलवी का बहकावा नहीं सच्ची पूजा चाहिए। भारत का नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए । चर्च में पॉप का गुरुद्वारे में ग्रंथियों का बहकावा नहीं सत्उपदेश चाहिए। भारत को नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए। मत पथ भ्रमित हो मेरे भारत के युवान अंतर्मन का करो जागरण- तुम ही में छिपा है राम का चरित्र ही तुम ही में छिपी है शक्ति हनुमान की तुम ही में छिपा है सतीत्व सीता का ही बस ह्रदय में लो यह संकल्प ठान- तुम्हें तो आधुनिक रावणों का वध करना चाहिए, आधुनिक रावणों का वध ही नहीं वर्तमान कंसों का अंतिम संस्कार करना चाहिए। भारत को नेता गद्दार नहीं वफादार चाहिए। भारत को भगतसिंह सा देशभक्त, लक्ष्मीबाई सी वीरांगना, टैगोर सा विश्वकवि सुभाष बोस सा नेता चा...
तब ही भारत बन पाता है
कविता

तब ही भारत बन पाता है

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नव उदय नव युवानों का नव कर्म प्रवीण महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है दिग् दिगंत दिवाकर बनकर दौड़ रहे दिक्पाल ये तनकर नव संप्रेरक इन महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है प्रचंड ज्वाल आँखों में पुरुषार्थ प्रबल हाथों में पाषाण लौह मिश्रित पुष्ट रक्त महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है तिलक लगाकर तत्पर बनकर तुणीर थामे तेजस रणवर तापस संघ महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है अरि के संमुख अडिग अचल अस्त्र-शस्त्र प्रहार प्रबल आयुध-वीर महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता है तब ही भारत बन पाता है नहीं भ्रमित नहीं व्यथित उपहासों से नहीं श्रमित निःशंक तल्लीन महानों का जब रूप राष्ट्र को भाता ...
हमारी संस्कृति हमारी विरासत
कविता

हमारी संस्कृति हमारी विरासत

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** धरा से अम्बर तलक विस्तृत है, हमारी "भारतीय संस्कृति", देती है जो हर जड़ चेतना को, सारगर्भित जीवन की स्वीकृति।। है संगम यहाँ विविधता का, पर लेष मात्र भी नहीं है कोई विकृति, संविधान ने दिए हैं कई अधिकार, जन जन में एकता ही एक मात्र संतुष्टि।। यहाँ बच्चा बच्चा राम है, और हर एक नारी में माँ सीता है, यहाँ हर प्राणी को मिलती माँ के आँचल में प्रेम की गीता है।। बहती नदियों की धारा में आस्था और विश्वास के दीपक जलते हैं, कि मल मल धोये कितना ही तन को, मगर श्रेष्ठ कर्मों से ही पाप धुलते हैं।। इतिहास बड़ा पुराना है शिलालेखों में कई राज़ हमराज से मिलते हैं, मार्ग मिले चार ईश वंदन के, मगर एक ही मंजिल पर जाकर रुकते हैं।। रक्त-रक्त में मिलता एक दिन, यहाँ ना कोई जात धर्म का ज्ञाता है, "रहीमन धागा प्रेम का है", दिलों से रिश्...
हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम
कविता

हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम माँ भारती तव पुत्र-सेवक हम हिन्दी विश्व भाल पर चन्दन प्रथम करते हम मातृ वन्दन राष्ट्र-धरा के हैं उपासक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम अनाहद नाद ने संस्कृत रची माँ शारदा आकर उसमें बसी संस्कृत से हिन्दी को पाते हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम भाषा जिसमें विज्ञान आधार स्वर-व्यंजन-संयोजन विस्तार मानव भाषा के आराधक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम संस्कृत से जीवन में संस्कार सर्व जगत ने किया स्वीकार जीवन विकास के साधक हम हिन्दी संस्कृत के हैं रक्षक हम परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक...
ऐ जिंदगी….
कविता

ऐ जिंदगी….

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मुझ पर विश्वास तो कर ऐ जिंदगी, मैं तुझ से खफा नहीं। लोग समझते हैं तू बेवफा हो गई, मगर तेरी रजा है ही निराली, जिसने जैसे तुझे अपनाया, तू उसके लिए वैसी ही बन गई ऐ जिंदगी। किसी के लिए स्वप्न तो किसी के लिए रंंगमच बन गई जिंदगी। तू किसी के लिए गमों का खारा सागर तो किसी के लिए प्यार का गीत बन गई ऐ जिंदगी। किसी के लिए संघर्ष तो किसी के लिए पुष्पों की सेज बन गई जिंदगी। इंसान का असली चेहरा दिखाने के लिए आईना बन गई ऐ जिंदगी। किसी के लिए अभिशाप तो किसी के लिए वरदान बन गई जिंदगी। सच कहूँ तो हमने तुझे जीना सीखा ही नहीं ऐ जिंदगी। जीने का जज्बा ग़र दिलों में जगा हो, संघर्षों और मुफलिसी के अंधकार को आशाओं की किरणो से प्रकाशित कर, बुलंद हौसलों की उड़ानों से नित नए मार्ग प्रशस्त करती है जिंदगी। हस...
जमाने का चलन देखा
कविता

जमाने का चलन देखा

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कभी मायूस देखा, कभी हँसते हुए देखा। खुद के बनाये जालों में कभी, फँसते हुए देखा।। कभी ना नजरें मिलाते जो, सलाम आज करते हैं। मतलब बिना जमाने को, ना कभी,झुकते हुए देखा।। उनको मिली है जिंदगी जीने की तहज़ीब फिर भी। बर्बादी की राह पर आदमी को आगे, बढ़ते हुए देखा।। ना मिला सुकून ना चैनो-अमन खुद से जिन्हे। दूसरों की जिन्दगी में खलल, करते हुए देखा।। ढेरों लोग हैं छोड़ी नहीं जाती जिनसे आदतें बुरी। भरी महफ़िल में उनको नसीहतें, पढ़ते हुए देखा।। सिधा सा रास्ता है दिल में उतर जाने का 'इंद्र' जान ले। तुझे प्यार से गले इंसान के, ना कभी, मिलते हुए देखा।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र...
जमीं पर नहीं पैर मेरे!
कविता

जमीं पर नहीं पैर मेरे!

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जाने क्यों आज, जमी़ पर नहीं पैर मेरे ! मैं होंसलों के पंख लगा, एक नई उडा़न भरना चाहती हूँ नील गगन में। मैं पंछी बन स्वच्छंद, ऊँचाइयाँ चूमना चाहती हूँ नील गगन में। मीलों दूर चली जाऊंँ अनंत आकाश में, खिसक न जाए जमीं पैरों से मेरे, मैंआना चाहती हूँ पुनः घरोंदों में, पैर सदा रहें जमी पर मेरे। जाने क्यों आज जमी पर नहीं पैर मेरे! सागर में गहराई जितनी हृदय में इतनी थाह ले, जीवन का हर संघर्ष मैं जीतना चाहती हूँ जिंदगी के बाद भी अस्तित्व मेरा बना रहे, पैर सदा रहें जमीं पर मेरे। जाने क्यों आज ज़मीं पर नहीं पैर मेरे! मैं अतीत, मैं वर्तमान हूँ, मैं जननी भविष्य की हूँ, मेरी संतति, मेरी संस्कृति मेरेअस्तित्व की जड़ें सागर की गहराई सी. जमी रहें हर काल में, उपस्थिति सदा रहे मेरी, नीलाम्बर की ऊँचाइयो...
ऐ दुनिया वालो
कविता

ऐ दुनिया वालो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** ना खुरचो परत मेरे जख्मों से ऐ दुनिया वालो। ब-मुश्किल फरेरा किया है मैंने गमों के जख्मों को, ये गहरे घाव न बन जाएंँ तुम्हारी बेरूखी से, ऐ दुनिया वालो। बार बार गिरा हूँ लड़खड़ाया हूँ, मगर चौखट पर आकर उसकी फिर संभला हूँ, ऐ दुनिया वालो। मुझे सहारा दे देना मैं रुह को अपनी रब से मिलाने आया हूँ ऐ दुनिया वालो। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कव...
लो आ गई होली
कविता

लो आ गई होली

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** लो आ गई होली मन में है उल्लास दिलों मे भरा उत्साह आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली हर घर-आँगन गाँव-मढैया होली गावें हर गाँव गवैया वृंदावन की कुंज गलिन में प्रेम रंग में रंगकर होली खेलें रास रचैया भक्ति रस में डूब-डूबकर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली गाँव-नगर चौपाल-क्लब आ गए बालम और कुमार भांग खुमार, रंग, गुलाल बोला सबके सर चढ़कर होली के रंगों में रंग कर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली क्या हिन्दू क्या मुस्लिम क्या सिख-इसाई मनमुटाव द्वेष बुराई भुला कर दुनिया को भाईचारे की राह दिखा कर मानवता के रंग में रंगकर आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली बच्चों की पिचकारी रंगों से भरे गुब्बारे जीवन में भर रहे रंग बारम्बार विविध रंगों से विद्यमान आओ हम सब खेलें होली। लो आ गई होली एक अनोखा...
नियति ही प्रारब्ध है
कविता

नियति ही प्रारब्ध है

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** मत गुमान कर ऐ चाँद अपनी खूबसूरती पर। मत भूल कुछ दाग तो हैं, तेरे भी चेहरे पर। माना कि तेरी चांदनी की बराबरी किसी से नहीं, तेरे मुखमण्डल की आभा किसी से छिपी नहीं, पूर्णिमा की रात- चाँद की शीतलता किसी से सिमटी नहीं। कैसा विधि का विधान है महाकाल के ललाट पर गंगा की भांति मिला सम्मान है। किंतु यह भी सत्य है, प्रति-पल मानो अस्तित्व तेरा घटने लगता है, खूबसूरती का खुमार (रंग) प्रति क्षण उतरने लगता है। तिमिर अमावस्या की रात का, चंद्र की चांदनी को आगोश में ले लेता है, देखकर व्यथा तेरी हृदय सिहर उठता है। यह नियति ही है शून्य की गोद में समाने तक निरंतर घटना, किंतु हार न मानना, फिर प्रति पल संपूर्णता (यौवन) की ओर निरंतर आगे बढना। सुख-दुख, उतार-चढ़ाव यश-अपयश मानो जीवन चक्र है, सुर, जीव, मनुज सब नियति ...
आ गया ऋतुराज बसंत
कविता

आ गया ऋतुराज बसंत

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** आ गया ऋतुराज बसंत, मन हो रहा मगन। मनोहर छटा बिखेरता मदमस्त गगन, खिल रहा सूर्यरश्मियों से धरा का मुखमंडल समस्त भूमण्डल बन रहा उत्तम उपवन। पुहुप रस पी-पीकर मधुकर कर रहे गुंजन, बन रहा प्रकृति में सहज संतुलन। आ गया ऋतुराज बसंत मन हो रहा मगन। धारण किया धरा ने पीत वसन, प्रकृति ने किया श्रंगार सहज। आज सज रही ऋतुराज की दुल्हन, मानो कामदेव-रति का हो रहा मंगल-मिलन। आ गया ऋतुराज बसंत, मन हो रहा मगन। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। घोषणा पत्र : मैं यह प्...
मस्तक की बिंदी है हिंदी
कविता

मस्तक की बिंदी है हिंदी

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** भारत मां के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भारत मां का अलंकार है हिंदी, भारत मां का शीश सुशोभित करती है हिंदी, देव-भाषा की अनमोल कृति है हिंदी, जन गण मन की शक्ति है हिंदी, भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति है हिंदी, नन्हे मुन्नो की तुतलाई बोली है हिंदी विद्वानों की विद्वता को परिभाषित करती है हिंदी जब-जब इस पर संकट की परछाईं भी दिखती, कलमकारों की कलम से निकली हर हुंकार हिंदी रक्षण में आंदोलन करती, भारत मां के मस्तक की बिंदी है हिंदी। भाषाओं में सर्वोपरि राष्ट्रभाषा है हिंदी हर जन मानस में रची बसी है हिंदी हर भारतवासी को एक सूत्र में बांधती है हिंदी, भारत मां के मस्तक की बिंदी है हिंदी। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति :...
तू दिन को रात कर देगा …
कविता

तू दिन को रात कर देगा …

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तू दिन को रात कर देगा, शबों को आग कर देगा। जहाँ बरसें हों अंगारें, वहाँ तू बाग कर देगा।। भरी तुझमे वो मस्ती है, छुपी तुझमें वो शक्ति है। हुए वीराँ नगर हैं जो, उन्हे आबाद कर देगा।। इरादों में तड़प देखी, ज़िगर तेरे धड़क देखी। बुझे कोई जो चिंगारी, तू उनमे ख़्वाब भर देगा।। तेरि इन सुर्ख आँखों में, हिन्दोस्ताँ ही बसता है। अपना बन ठगा जिसने , उन्हें क्या माफ़ कर देगा।। अर्जुन बन तू माधव का, हनुमत बन तू राघव का। थमे जो ना दुराचारी, तू उनका नाश कर देगा ? जननी है जन्मभूमि, तारणी है कर्मभूमि। चुकाने को कर्ज़ इसका, 'इंद्र' अपना सर देगा।। ऐसा तू है परवाना, शमा को जो करे रोशन। नहीं मरने का भय रखना, तू मरकर भी अमर होगा।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदे...
अंधकार को चीरता सूरज
कविता

अंधकार को चीरता सूरज

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। अंधी रातें, काली रातें सर्दी के यौवन में जमती जीवन की राहें। अंधकार ने जब अपने यौवन का जाल बिछाया ठिठुरती सर्दी ने अंधकार को दीनों-दुखियों बच्चों-बूढ़ों का कठिन काल बताया, देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। मत घबराओ, मत घबराओ पप्पू-गप्पू,चीनू-लक्की, अम्मा-बाबा, नाना-नानी, नहीं रहा सदा समय एक सा अंधकार अब हुआ है बूढ़ा, यौवन भी इसका हुआ ढला ढला सा। देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। काली रातें, बीती रातें भोर हुआ अब नभ जग थल में व्योमनाथ आए लिये रश्मियां संग में मानो प्राणी मात्र को जीवन दान मिला रश्मियों से। सात घोड़ों के रथ में होकर सवार देखो अंधकार को चीरता सूरज आया। नई आशाओं का अंकुर जन्मा, समय भी फिर से अंगड़ाई लेकर नए कलेवर में आया तुमको, मुझको, हमको,...