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Tag: हंसराज गुप्ता

तुम ब्रह्मज्योति हो
कविता

तुम ब्रह्मज्योति हो

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** मैं सूखा पत्ता हूँ, पतझड़ का, तुम नये बसंत का नया कँवल, मेरा परिचय खोने वाला है, तुम बीजांकुर जड पौध नवल, मैं सुर्ख तना, अब त्यक्तमना, तुम मधु मधुकर शुक पिक अरू फल, मैं आज शाम का ढलता सूरज, तुम ऊषा भोर अरुणोदय कल, मैं उलझी समस्या, बुझता दीपक, तुम ब्रह्म-ज्योति हो, सबका हल, मेरा जीवन, मैली चादर, तुम अमृत, निर्झर का पावन जल, हाथ पकडकर चढ़े शिखर, तुम छांँव बनाओ, ठाँव सफल, अंधक्षितिज, मैं पथिक त्राण का, तुम पथ, ज्योति, किरणें उज्ज्वल, मैं प्रतिबिंब, बिखरती, जर्जर कृति, तुम अनुपम आभा बलराम संबल, मैं ठहरा नीर, पीर हूँ गहरी, तुम प्रबल प्रवाह शिव सत्य अटल, मैं आतुर व्याकुल नम सिकताकण, तुम्हें पाना हिम के शिखर धवल, चट्टानें टूटी, अनुनादों से, दीपक-राग रतन ठुमरी है, उर में कितने तिमिर समेटे, तब मोहन मूरत उभरी है, मेरी र...
अनसुलझी अजब पहेली
कविता

अनसुलझी अजब पहेली

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** कौन भटकता, घन जिसको? गगन कहाँ? कोना ना मिला! वह मिटी, धरा की प्यास बुझी, बगिया में सुंदर फूल खिला, सुमन देख, इठलता कौन? थपकी दे, लोरी गाता है, चुप रह चलते-हलके हलके, पलकन में मंद मुस्काता है। कौन बिछड़ के, तेज तपन से, फिर फिर बादल बन जाता, फूल कहीं मुरझा जाए! वह उमड-घुमड कर अकुलाता, बार-बार गिरि से टकराकर, कौन स्वयं मिट जाता है? दिखता है, जब फसल उगाये, फसल पके, कित जाता है? कौन है वो? कुछ भेद बताऊं, थोड़ा सा, संकेत बताऊं? ममता की क्षमता से निर्मल, दूध की सरिता बहती है, लल्ला बनकर पलना झूलें, देवों के मन में रहती है, अंजनी थी, हनुमान के लिए, राम की कौशल्या, हरि की जसोदा, बोलो जल्दी बोलो क्या तुमने सोचा? वह नहीं होती तो मैं नहीं होता? सारे मिलकर काम करें जो, कर लेती थी एक अकेली, पूरी उम्र समझ ना पाया, माँ, अन...
लो पूरा जीवन बीत गया
कविता

लो पूरा जीवन बीत गया

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** लो पूरा जीवन बीत गया समर्थ समय था, व्यर्थ गया, होता जीवन का अर्थ नया, अनमोल समय, हर घड़ी घड़ी, लिख जाते हम संगीत नया, लो पूरा जीवन बीत गया, लो जीवन पूरा बीत गया। १। लिया ना राम का नाम कभी, और करने हैं शुभ काम सभी, कल थी जवानी, परसों बचपन आज बुढ़ापा मीत नया, लो पूरा जीवन बीत गया, लो जीवन पूरा बीत गया।२। श्याम-श्वेत कभी छद्म-वेष, और प्यार प्रेम कभी कलह क्लेश, आने-जाने उठने-सोने, खाने-पीने हंसने-रोने, ये दौड़ भाग आपाधापी, और उठा पटक दूरी नापी, मन की गुन-गुन, सबकी सुन-सुन, परिवेश वही फिर जीत गया, लो पूरा जीवन बीत गया, लो जीवन पूरा बीत गया।३। रिश्ते जनम करम के गहरे, पलकों में रहते जो चेहरे, सपनों की तन्द्रा से अपना, पल में ही नाता टूट गया, हर साथी पीछे छूट गया। सोने से जडा, माटी का घडा, था सुघड सलौना, फूट ...
ओ मेरे बचपन के साथी
कविता

ओ मेरे बचपन के साथी

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** गुड्डे-गुडिया, चूरन की पुडिया, किसकी मां किसको दे जाती, सांझ-सवेरे, खेल-घनेरे, बेईमानी सबको भाती, कुश्ती मस्ती खींचातानी, हों-हों खो-खो बहुत सुहाती, ओ मेरे बचपन के साथी! अजीतगढ़ से चिमनपुरा, फिर से पैदल की मन में आती, सबका कब रास्ता कट जाता, जाने कब मंजिल दिख जाती, ओ मेरे बचपन के साथी! बायकाट किया, हड़ताल हुई, पड़ताल एक ही सवाल उठाती, उदंडी कोई, दंड सभी को, चुगली मुख पे, क्यों ना आती ? ओ मेरे बचपन के साथी! स्कॉलरशिप के पैसे मिलते, किसने किसकी फीस चुका दी, नई पोथी के टुकड़े करते, भोजन की हो जाती पाँती, ओ मेरे बचपन के साथी! जिम्मेदार हुए, घर बार छोड़कर, सारे साथी बिछुड़ गए, सेवानिवृत्त हो रही सभी अब, इतने दिन यूं ही पिछुड़ गए, जल्दी जल्दी दिन ढलते हैं, जल्दी जल्दी रातें जाती, ओ मेरे बचपन के साथी! ...
घर के दीप संभाल जरा…
कविता

घर के दीप संभाल जरा…

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** घर के दीप, संभाल जरा, कहीं बिजली धोखा दे जाये। मन्द ताप, बाटी बनती, भट्टी में सेके, जल जाये, यात्रा, उडान, श्रम की थकान, अपने घर में ही उतरे, घर आंगन की तरुणाई ही, उर अन्तर की प्यास भरे, हाथी पागल हो जायें, पर पिल्लै साथ निभायेंगे, सांपों को दूध पिलाने वाले, सर्पदंश ही पायेंगे, देख भीड को बहको मत, कहीं खुद का बच्चा खो जाये, घर के दीप, संभाल जरा, कहीं बिजली धोखा दे जाये। भाई हो कमजोर कोई, यदि उनका भार उठायेंगे, वक्त पडे, किसी कठिन दौर में, वे ही साथ निभायेंगे, मेड का कूँचा ऊँचा हो तो, साख फसल सुख पाता है, वही श्मशान में खुद जलता, औरों की चिता जगाता है, कुश्ती है, कंधे टेको मत, कोई बाजी कब अपनी ले जाये, घर के दीप, संभाल जरा, कहीं बिजली धोखा दे जाये। रंगा सियार बन चहको मत, चेहरा कब असली दिख जाये, झूठे क...
फिर से मिल जाये
कविता

फिर से मिल जाये

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** वह नशा कहां, जब निशा जगाकर, बातों में खो जाते थे, दशा दिशा से श्वास मिलाकर, हाथों में सो जाते थे, बचपन में लौट के देखा तो, मिली कहीं ना तन्हाई, जाड़े की रातें, घोर अंधेरा, लिपट भाई के रात बिताई, सपने लेकर, भोर जगाते, सूर्यदेव से गर्मी पाते, बाहों में बाँह डाल इतराते, सबकुछ खोकर मुझे मनाते, जंगल में दंगल कर रूठा तो, मेरे हंसने पर खुशी मनाये, काश! मेरे बचपन का भाई, एक बार फिर से मिल जाये। एक पेट से जन्म लिया है, एक ही मां का दूध पिया है| पोशाक सिलाई, थान एक, पढे पढ़ाये, एक दीया है, मुझे जिताकर, जोर की ताली, मेरी थाली रहे न खाली, होती कोई चीज निराली, अपने हिस्से की मुझको डाली, भूलूं कैसे, मुझे चोट लगे, तेरी आंखों से आंसू आये, काश! मेरे बचपन का भाई,एक बार फिर से मिल जाये। चुका देता, मेरा उधार, लड्डू मुझको,चूरा खुद खाये,...
पनघट पे नीर भरेगा कौन
कविता

पनघट पे नीर भरेगा कौन

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** भक्ति दान नेह धर्म कर्म, जन्मों तक साथ निभाते हैं, परिपाटी, घर देह चौपाटी, माटी में मिल जाते हैं, पूरी आहुति सांसों से, खुद को ही देनी होती है, अवशेष धर्म की बागडोर, सबको मिल लेनी होती है, गंभीर समय की सीमा में, अधीर हो, पीर हरेगा कौन, अभीष्ट ईष्ट के स्वागत को, पनघट पे नीर भरेगा कौन, रैन सुखचैन, दे सेन लुभाने, छुप छुप नयनन में उतरे, अमर प्यार की ज्योति जगाने, बनके बाती घृतधार जरे, थके हंस की हार मिटाने, निश दिन पांवों में विचरे, प्रेम कहानी, मीठी वाणी, हियभर अधरों से उचरे, गहरे घावों पर भावों से, धीरे मधुचीर धरेगा कौन, अवशेष समर, सरसाने को, पनघट पे नीर भरेगा कौन ।। शरदरात्रि को अक्षय पात्र में, चँदा से अमृत लाते थे, व्रत घृत मधु करवा घरवा, दीपों की थाल सजाते थे, होली मंगल कर जल झलका, रंग चंग त...
आंख के हर आंसू की, अपनी एक अलग कहानी है
गीत

आंख के हर आंसू की, अपनी एक अलग कहानी है

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** गीता रामायण वेद महावीर, गुरु ग्रंथ कबीर की वाणी है, खोना पाना आना जाना, यह जीवन बहता पानी है, संग रहने, सुख दुख सहने की, कहने की रीत पुरानी है, आंख के हर आंसू की, अपनी एक अलग कहानी है !१! हार जीत खुशी आघात प्रीत, जो शब्द नहीं कह पाते हैं, भाव भरे निज आंखों से, गिरते आंसू कह जाते हैं, टप टप गिरते आंसू ही, उस पल की अमिट निशानी है, आंख के हर आंसू की, अपनी एक अलग कहानी है !२! बिना मां के बच्चों की व्यथा, कितनी मायें बन जाती हैं, सौतेली मां चाची ताई, मौके पर काम ना आती हैं, सब जानते हो तुम श्याम प्रभु, क्या छुपी है, जो समझानी है, आंख के हर आंसू की, अपनी एक अलग कहानी है !३! भूखे मां-बाप का दर्द नहीं, वे भोजन बांटने जाते हैं, माँ के दूध की शर्म नहीं, कुत्ते बिल्ली को दूध पिलाते हैं, अपमान पी आशीष दे...
पचपन में बचपन की बातें
कविता

पचपन में बचपन की बातें

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** जब जब नववर्ष मनाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं, पचपन में बचपन की बातें, हँस बच्चों संग बतियाते हैं. साथ मनाते दिन त्योहार, कहीं हाल पूछने जाते हैं, मोरपंख शंख हो बस्ते में, साथी मिल जाये रस्ते में, एक दूजे को खडे खडे, जीवन पूरा कह जाते हैं, पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं। पहला प्यार, छाती की धार, सृजन का सुख, सारा संसार, रुदन उत्पात में दूध दुलार, सोई-जागी संग लोरी-मल्हार, सूखा मुझको, गीले में आप, सर्वस्व समर्पण,सोच ना ताप, गुस्सा, लात, दोष सब माफ, प्रतिकार मुझसे,कहलाता पाप. अब नन्हा-माँ दोनों शर्माते, दूध बोतल में, चाय पिलाते, तब दही छाछ,माखन खाते, पकडी बकरी,मुँह धार लगाते, हँसते सब धूम मचाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं, पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, वि...
हम नवयुग का दीप जलायें
कविता

हम नवयुग का दीप जलायें

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** थे हिम्मतवाले, वे मतवाले, शांत, सनेही, भोले-भाले, पाँव बिवाई, हाथ में छाले, मेहनत पूरी, रोटी के लाले, नेकी मन में, रखते ना ताले, बोले ना मुंह से, प्रबंध निराले, जो कुछ था सब साथ मिलालें, बात वही मिल बांट के खा लें, साथ रहें मिल बांटें खायें, हम नवयुग का दीप जलायें. ऐसा हो, घर कौन संभाले, पड़ौसी ने तब दो घर पाले, बड़ों का निर्णय सभी निभा लें, बाबा की पाग थी, कौन उछाले, यही कहानी थी, हर घर की, बड़ा कहे, सबने हाँ भर दी, सम्मान मूंछ, उम्र, अनुभव का, कह दें वे तो सब संभव था, बुजुर्ग वही प्रतिष्ठा पायें, हम नवयुग का दीप जलायें. गाय हकदार की ताजी रोटी, भिखारी कुत्ता,अंतिम व छोटी, बिल्ली नाग को दूध पिलाते, मंदिर में सीधा भिजवाते, रस्ते में जहां पेड़, परिंडे थे, अंडों के लिए बरिंडे थे, आटा चींटी को, जोगी को, कडवी गोली...
कान्हा की कृपादृष्टि
कविता

कान्हा की कृपादृष्टि

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** जब छोटी छोटी बातों से ही, महाभारत हो जाती है तनिक द्वैष मोह त्रुटियों से ही, महाभारत हो जाती है, मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती है जब फलीभूत हो अहंकार, मानवता होती तार तार अवशेष ना हो कोई उपचार, भूचाल तमस में करुण पुकार उत्ताल उफनती लहरों में भी, नौका पार हो जाती है मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती है धृष्ट सृष्ट अदृष्ट अणु, सृष्टि को आँख दिखाता है गुण तत्व विक्षोभ भय, प्रलय की अलख जगाता है उत्कृष्ट पृष्ठ में शक्ति कोई, सीमारेखा समझाती है मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती है भूलो मत तिल्ली चिनगारी से, बडी आग लग जाती है सह...
संबंध अनूठा राखी का
कविता

संबंध अनूठा राखी का

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** संबंध अनूठा राखी का प्यारा यह रक्षाबंधन है मधुर अटूट संबंध अनोखा भाई बहन का बंधन है संबंध अनूठा राखी का प्यारा यह रक्षाबंधन है जैसे नारियल में पानी डोरी में रेशम होती है मिठाई में मिठास वैसे भाई की बहना होती है सावन की पावन पूनम को भाई से बहनें मिलती हैं बहिनों का हिवडा भरता भाई की बाँहें खिलती हैं भाई बहन का जीवन तो जैसे सुगंध और चंदन है संबंध अनूठा राखी का प्यारा यह रक्षाबंधन है नारियल मिश्री, स्नेह हृदय में कच्चे धागों में पक्का प्यार कुंकुम तिलक आशीष अमर यश दीर्घायु ऊर्जा भण्डार आजीविका और शस्त्र शास्त्र उपहार में सीखूंगी मैं हूँ लक्ष्मी दुर्गा सरस्वती अपना इतिहास लिखूँगी मैं बहना घर का गहना है भाई घर का रघुनन्दन है संबंध अनूठा राखी का प्यारा यह रक्षाबंधन है कर्मा का जौहर याद ...
योग
कविता

योग

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** पतंजली का चित्तवृत्ति निरोध, योगेश्वर कृष्ण का समत्व बोध. नित्य सब लोग, करेंगे योग. होंगे बलवान सुखी नीरोग, युक्ति युक्त सोयें, खेलें खायें, ईश गुण गायें, ना कहीं विरोध... पतंजली का चित्तवृत्ति निरोध, योगेश्वर कृष्ण का समत्व बोध. सत्कर्म, ज्ञान, समर्पित भक्ति, प्राणायाम व्यायाम की शक्ति, प्राकृत न्याय, हों सभी सहाय, करें स्वाध्याय, परमात्मबोध.... पतंजली का चित्तवृत्ति निरोध, योगेश्वर कृष्ण का समत्व बोध. सभी निर्दोष, मन में संतोष, हर हाथ काम, पूरा परितोष. तितिक्षा तप दान, निधि धान विधान, रहे सबका ध्यान, वैश्विक अवबोध... पतंजली का चित्तवृत्ति निरोध, योगेश्वर कृष्ण का समत्व बोध. शुद्ध जल जीवन, पवन उपवन, साफ आकाश, आनन्द हवन. सिंचित सोंधी माटी, आँचल बाल गुलाटी, चमन भवन चौपाटी, हरी हर पौध.... पतंजली का चित्तवृ...
संवाद
कविता

संवाद

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** सोचिये एक माँ जिसकी असमय ही अंतिम विदाई थी शरीर शिथिल हो चला था उसने एक बार आँखें खोली पति और छोटे छोटे बच्चों की तरफ देखा उस पल संकेतों में जो संवाद हुआ प्रस्तुत है:- एक माँ की असमय विदाई नयनन पीडा, फिर भी मुस्काई गालों बालों पर पति के हाथ निःशब्द संवाद फिर छूटा साथ तब तुमसे संवाद हुआ था, इस घर को कौन चलायेगा. आगे निशा अंधकार है, ऊषा बन कौन जगायेगा. सूरज किरण, आभा से चंदा, तारा टिमटिम से भाता है. बाती से ज्योति दीपक की, तम हरता चमक जगाता है. तुमने धीरे से कहा, भ्रमर! इस भ्रम में समर न खो देना. मीठा जल है, उपजाऊ मिट्टी, श्रेष्ठ पौध हैं, बस बो देना. मैं शक्तिरूप में साथ रहूँगी, जब विषाद उन्माद करोगे. संवाद का वचन दिया प्रियतम, जब तुम मुझको याद करोगे. तुलसी कालीदास प्रसाद की, तुम ही तो कथा सुनाते थे. 'ब...