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म्हारो मालवो
कविता

म्हारो मालवो

सुषमा दुबे इंदौर ******************** छाई बसंती बयार झूमे-झूमे म्हारों मालवों म्हारा मालवा को कई केणों, यो तो है दुनिया को गेणों इका रग रग मे बसयो है दुलार, झूमे झूमे म्हारों मालवों। छाई बसंती बयार .... मालव माटी गेर गंभीर , डग डग रोटी पग पग नीर यां की धरती करे नित नवो सिंगार , झूमे झूमे म्हारों मालवों छाई बसंती बयार .... यां की नारी रंग रंगीली, यां की बोली भोत रसीली इका कण कण मे घुलयों सत्कार, झूमे झूमे म्हारों मालवों छाई बसंती बयार .... नर्बदा मैया भोत रसीली, सिप्रा मैया लगे छबीली चंबल रानी करे रे किलोल, झूमे झूमे म्हारों मालवों छाई बसंती बयार .... मालवा को रंग सबके भावे, जो आवे यां को हुई जावे पुण्यारी धरती करे रे पुकार , झूमे झूमे म्हारों मालवों छाई बसंती बयार .... मिली जुली ने तेवर मनावे, जो आवे उखे गले लगावे यां तो अन्न धन का अखूट भंडार, झूमे झूमे म्हारों मालवों छाई बसंती बय...
तुमको ना भूल पाएंगे….
संस्मरण

तुमको ना भूल पाएंगे….

====================== रचयिता : सुषमा दुबे मैं ही नहीं पूरा देश स्तब्ध है उनके यूं अचानक छोड़कर चले जाने से। देश की आन, बान, शान, आशा, उमंग, आदर्श सरस्वती पुत्री...... सुषमा चली गई। अपने साथ ले गई एक विचारधारा जिस पर हर भारतीय महिला को नाज है। हर महिला उनके जैसी बनना चाहती है, मुझे लगता है हर महिला को अपने स्तर पर उनके जैसा मुखर, शक्ति स्वरूपा और दमदार बनने की कोशिश करना चाहिए, यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी। वे हमारे बीच सदा रहेगी एक आदर्श भारतीय नारी की मिसाल बनकर। सौम्य, शालीन किंतु मुखर। हमेशा मुस्कुराती, तेज चाल से चलती। संसद में जब भाषण देती टीवी से नजरें हटाने का मन ही नहीं करता। हमेशा भारतीय परिधान में लिपटी, माथे पर बड़ी सी हिंदी, साड़ी पर जैकेट पहने परंपरा और सादगी की प्रतिमूर्ति किंतु सबसे जुदा अंदाज। जब बोलती थी अच्छे अच्छों के छक्के छूट जाते थे, आवाज़ में एक ...