मन की वेदना
सुश्री हेमलता शर्मा
इंदौर म.प्र.
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हे पथिक तू चला किधर, नव पथ है, है नवीन डगर
दृष्टिपात होता है जिधर, कंटक है, नहीं पुष्प्प उधर
तन बोझिल है, मन गंभीर, हृदय व्यथित हो रहा अधीर
दुविधा तज तू हिम्मत कर, मत घबरा, चलता जा डग भर ।।
हे पथिक तू चला किधर, नव पथ है, है नवीन डगर
मन मस्तिष्क में मचा है द्वंद्व, मन व्याकुल कर रहा पुकार
कहां गयी संवेदनशीलता, जागो, अंर्तमन की ये चित्कार
कौन सुनेगा, किसे बुलाउ, दीन-हीन अब हाथ पसार
तन-मन बोल रहा अब, मत सहो वेदना कर प्रतिकार
हे पथिक तू चला किधर, नव पथ है, है नवीन डगर
क्या ’भोली’ से बन जाउं विषधर, या संहार करूं बन चक्रधर
या बन शारदा, ज्ञान प्रचार, या फिर चण्डी बन पीयु रूधीर,
मातृ शक्ति को है आव्हान, छोड राग ले हाथ खडग-तुणीर
बन दुर्गा हो सिंह सवार, कर दो नर पिषाच संहार
हे पथिक तू चला किधर, नव पथ है, है नवीन डगर
परिचय :- सुश्री...