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Tag: सुरेश सौरभ

ये परोपकार कमाने वाले
व्यंग्य

ये परोपकार कमाने वाले

सुरेश सौरभ लखीमपुर-खीरी (उत्तर प्रदेश) ********************  हाथ दिया वह रूक गये। ‘कोई सवारी नहीं मिल रही आज लिए चलो बाबू जी! मेरे विनयपूर्वक आग्रह को वे टाल न सके। आफिस के सहकर्मी जो ठहरे। मसाला भरा मुंह पीछे घुमाकर बैठने का इशारा किया। मैं उनके पीछे बाइक पर लद लिया। अभी चन्द दूरी ही चले होंगे..पिच पिच.पिच..गला खंगालकर बोले-नई गाड़ी है। डबल सवारी नहीं बैठाता, हां कभी-कभी हल्की-फुल्की डाल लेता हूं। और ट्रिपलिंग तो कभी नहीं?..हां हां बिलकुल नहीं... बाइक पर कभी भी तीन नहीं बैठना चहिए।... अब बैठ लिया तो क्या कहें, रपट पड़े तो हर गंगा वाला मेरा हाल था। साथ यह भी खयाल था कि मेरे पचास किलो वजन पर बेचारे ने तरस खाया है। अपने गन्तव्य पर पहुंच कर उन्हें ऐसे सलामी दी, जैसे बड़ी मुसीबत झेल, बेचारे ने दुश्मन का बार्डर पार करा के लाया हो मुझे। कई दिन बाद मैं बस अड्डे पर, आफिस जाने के लिए...
सफाई अभियान
लघुकथा

सफाई अभियान

सुरेश सौरभ निर्मल नगर लखीमपुर खीरी ********************** वह लड़का कंधे पर बोरी लटकाए कूड़ा बीन रहा था, तभी उसके सामने एक लग्जरी गाड़ी आकर रुकी। उसका दिल बैठने लगा। गाड़ी में कुछ सूट-बूट वाले बाबू लोग बैठे थे। उनमें से एक बाबूजी बाहर निकले और लड़के से बोले-ऐ! लड़के इधर आ। लड़का डरता हुआ बाबूजी के करीब आया । उसकी बोरी की ओर इशारा करके थोड़ा ऐंठ कर-ऐ! लड़के, ये बोरी १०० रुपए की देगा। लड़का सकते में आ गया। बीस-तीस रुपए बोरी बिकने वाले कूड़ा को कोई सौ रूपए की मांग रहा है, यह सोच वह हैरत में था, फिर भी थोड़ा हिम्मत जुटा कर बाबू जी से बोला-साहब दो सौ लगेंगे। "ठीक है। ये पकड़ दो सौ, पीछे डिग्गी में डाल दे। "कूड़े की बोरी डिग्गी में पहुंच गई। दो सौ रुपए पाकर उसकी बांछें खिल गईं। बाबू लोग फुर्र से उड़ गए। उन बाबूओं ने अपने कार्यालय पहुंच कर बड़े साहब से कहा-काम हो गया।तब बड़े साहब बहुत खुश ह...