गाँधी
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सुभाष बालकृष्ण सप्रे
भोपाल म.प्र.
विधा:-- गीतिका (छँद मापिनी मुक्त)
“वो खुद पर भरोसा करते थे,
सब को साथ लेकर चलते थे,
लोगोँ की माली हालत जानने,
दूर दराज़ के गाँवोँ मेँ फिरते थे,
ज़ब एक बार ज़ो बात ठान ली,
उस इरादे से कभी न डिगते थे,
अहिँसा को बनाया,हथियार तो,
दुनिया मेँ लोग, उन्हेँ पूजते थे,
कथनी,करनी मे न रहा फर्क,कभी,
बात से अपनी,कभी न पलटते थे,
महात्मा ने किया नाम देश का,
काम से,दुनिया को रोशन करते थे.’
लेखक परिचय :-
नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे
शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन
प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस...