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Tag: सुनीता पंचारिया

पुस्तकें
कविता

पुस्तकें

सुनीता पंचारिया गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) ******************** जीवन का आदर्श, जीने का अंदाज, बच्चों में नव निर्माण, आदमी को इंसान, आदाब जिंदगी के सिखाती है पुस्तकें। राह दिखाती भूले को, तकदीर बनाती भटके की, लक्ष्य प्राप्ति तक पहुंचाती है पुस्तकें। गुणों का भंडार चरित्र का निर्माण , संस्कारों की खान, सद्गुणों का आधार, लाभ ही लाभ प्रदान करती है पुस्तकें। गमों को भुलाती, खुशियों को बढ़ाती जीत की हार की आज की कल की, कहानियां प्यार की होती है पुस्तकें। वाणी की मिठास, कवियों व संतो की जान, अनुभव से आभास, चंचल मन को शांत, सबसे अच्छा दोस्त होती है पुस्तकें। भाषा का ज्ञान ,कुछ नया ख्वाब, प्रेरणा का स्रोत, एकांत का साथी, मनोरंजन का आनंद करवाती है पुस्तकें। मैं हूं पुस्तक, किसी का सवाल, किसी का जवाब, ज्ञान का भंडार, ज्योति का पुंज, भवसागर से पार करवाती है पुस्तकें। परिचय : सुनीता पंचारिया शिक्षिका ...
प्रकृति और मानव
कविता

प्रकृति और मानव

सुनीता पंचारिया गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) ******************** प्रकृति और मानव का, रिश्ता बहुत पुराना है, हम प्रकृति से, प्रकृति हम से है, साधु संतों के आध्यात्म में, विश्व की सभ्यता के विकास में, मनुष्य की चीर सहचरी, ईश्वर प्रदत्त उपहार है। भावाभिव्यक्ति का उद्गम स्थल, सर्वव्यापी सत्ता का भाव है। प्रकृति नदियों की कलकल, समुंदर की हलचल, रिमझिम सावन की बरसात है, मौसम का मिजाज है। लेकिन..... जब मानव मन में लालच जन्मा, ताप बढ़ा धरती का, धरती कांपी अंबर कांपा कांपा ये संसार, बूंद बूंद पानी को तरसा ये सारा जहान, गुस्सा फूटा प्रकृति का किया जो तूने खिलवाड़, बढाधरती पर भूकंप बाढ़ व सुखा सैलाब का तूफान, नहीं बचा पाएगा तू अपना सम्मान रे। मानव तू नहीं सुधरा तो, दूर नहीं विनाश रे, मुझ पर कहर खूब ढाया, अब बारी मेरी है। मैं थी और मैं हूं और मैं रहूंगी, पर तेरा अस्तित्व नहीं रहेगा, यह कहावत सिद्ध हो पाई "जै...
स्त्री….. तुम हो
कविता

स्त्री….. तुम हो

सुनीता पंचारिया गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) ******************** घर आंगन की दहलीज में, पूजा घर की महक में, तुम हो ....... रसोईघर के स्वाद में, बर्तनों की खन -खनाहट में, तुम हो.... भोर का सूर्य, सांझ का तारा, तुम हो ...... बगिया का महकता फूल, और फूल की खुशबू, तुम हो......... निर्झर झरनों में, नदियों की कल -कल में तुम हो.... बाल मन की किलकारियो में, बुजुर्गों के अंतर्मन में तुम हो .... बहनों का दुलार, भाइयों का रक्षा सूत्र, तुम हो...... ममता की छाँव, और प्यार की आस में तुम हो....... मान मर्यादाओं में, विचारों व संस्कारों में, तुम हो ....... संगीत के सुरों में, वायु के झोंकों में, तुम हो........ होली के रंगों में, विजय की लक्ष्मी, तुम हो..... गौतम की यशोधरा, और राम की सीता, तुम हो...... क्योंकि ....................... मां में ............ बहन में ...... बेटी में ....... बहू में ......... पत्नी में ....