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Tag: सुधीर श्रीवास्तव

कुहासा
कविता

कुहासा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** क्या कहूँ? मेरी जीवन में तो हमेशा ही छाया रहता है, बेबसी, लाचारी, भूख का कभी न मिटने वाला कुहासा। औरों का तो छंट भी जाता है मौसमी कुहासा, पर मेरा कुहासा तो छँटने का नाम ही नहीं लेता। ऐसा लगता है ये कुहासा भी जैसे जिद किये बैठा है, जो आया है मेरे जन्म के साथ और पूरी निष्ठा से मेरे साथ यारी निभा रहा है, जैसे प्रतीक्षा कर रहा है मेरे अंत के साथ ही छँटने की। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, जिला-गोण्डा (उ.प्र.) वर्तमान निवास : शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव जिला-गोण्डा, उ.प्र. शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई.,पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार) साहित्यिक गति...
जीवन : एक यात्रा
आलेख

जीवन : एक यात्रा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** मानव जीवन जिंदगी के विभिन्न पड़ावों को पार करते हुए अपनी अंतिम यात्रा तक पहुंच कर खत्म होती है। परंतु यह विडंबना ही है कि इस यात्रा के किसी। भी पड़ाव पर आपको ठहरने की आजादी नहीं है। जीवन के हर पल में आपको अपनी सतत यात्रा जारी रखनी होती है। आपके हालात, परिस्थिति और समय कैसे भी हों, आपकी यात्रा जारी ही रहती है। आप खुश हैं, दुखी हैं, सुख में हैं या किसी परेशानी में है। आपकी अन्य गतिविधियां, क्रियाकलाप ठहर सकते हैं, मगर कभी ऐसा नहीं देखा गया कि जीवन यात्रा ग्रहों की तरह ही चलायमान है। संभवत ऐसा इसलिए भी है कि यह हमें प्रेरित करने, चलते रहने का सूत्र दे रहा है और हम उसे नजरअंदाज करने की कोशिश में भ्रम का शिकार बने बैठे हैं। यदि हमें अपनी जीवनयात्रा को सरल, सुगम और निर्विरोध बनाना है तो हमें बुराइयों से बचना होगा। ईर्ष्या, ...
जिम्मेदारी
कविता

जिम्मेदारी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** ये देश हमारा है बस इसी गुमान में मत रहिए देश से प्यार भी कीजिए, आपकी भी कुछ जिम्मेदारियां भी हैं उसका भी निर्वाह कीजिए। देश और देश के संसाधनों पर आपका भी हक है इसमें नया क्या है? देश के प्रति आपकी भी कुछ कर्तव्य भी उसे भी तो कीजिये। ये मत भूलिए कि देश आपका है आपसे नहीं है, आप देश से हैं देश आपसे नहीं है। गुरुर भर मत कीजिए कि देश हमारा है, अपनी जिम्मेदारी निभाइए देश को आगे बढ़ाइए देश को सबसे आगे ले जाना है एकता और विकास का परचम लहराना है, आइए !आप भी कंधे से कंधा मिलाइए हम सब अपनी अपनी यथोचित जिम्मेदारी निभायें तब कहें देश हमारा है तो हमारी जिम्मेदारी भी है। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरि...
धरोहर
कविता

धरोहर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** हम सबके लिए हमारे बुजुर्ग धरोहर की तरह हैं, जिस तरह हम सब रीति रिवाजों, त्योहारों, परम्पराओं को सम्मान देते आ रहे हैं ठीक उसी तरह बुजुर्गों का भी सम्मान बना रहना चाहिए। मगर यह विडंबना ही है कि आज हमारे बुजुर्ग उपेक्षित, असहाय से होते जा रहे हैं, हमारी कारस्तानियों से निराश भी हो रहे हैं। मगर हम भूल रहे हैं कल हम भी उसी कतार की ओर धीरे धीरे बढ़ रहे हैं। अब समय है संभल जाइए बुजुर्गों की उपेक्षा, निरादर करने से अपने आपको बचाइए। बुजुर्ग हमारे लिए वटवृक्ष सरीखे छाँव ही है, उनकी छाँव को हम अपना सौभाग्य समझें, उनकी सेवा के मौके को अपना अहोभाग्य समझें। सबके भाग्य में ये सुख लिखा नहीं होता, किस्मत वाला होता है वो जिसको बुजुर्गों की छाँव में रहने का सौभाग्य मिलता। हम सबको इस धरोहर को हर पल बचाने का प्रयास करना चाहिए, बुज...
आस्तीन के साँप
कविता

आस्तीन के साँप

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** आजकल के इन साँपो को पहचानना बड़ा मुश्किल है, कौन आस्तीन का साँप है कब डस लेगा जानना और मुश्किल है। वैसे तो आजकल हमारे इर्द गिर्द ऐसे जहरीले साँपों का हर समय डेरा है, हमारा ही शुभचिंतक बन कौन कब डस लेगा अहसास कर पाने में सब विफल हैं, क्योंकि ऐसे आस्तीन के बहुतेरे साँप हमारे तो बड़े शुभचिंतक हैं। किसको कैसे पहचानें प्रश्न कठिन है, डसे जाने के बाद समझ में आने का ही क्या मतलब है? देखने में भोले भाले आपके लिए जान की बाजी भी लगाने को तैयार हैं, मौके की तलाश में वो कुछ भी करने को तैयार हैं। बस एक मौके का ही उन्हें इंतज़ार है, इधर मौका मिला नहीं कि बस ! डसकर फुर्र हो जायेंगे कोई नहीं एतबार है। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीव...
सरहद पर चाँद
कविता

सरहद पर चाँद

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** आज करवा चौथ है मगर थोड़ा अफसोस भी है कि मेरी चाँद अपनी चाँदनी से दूर सरहद की निगहबानी में मगशूल है। फिर भी मुझे अपने चाँद पर गर्व है, माँ भारती की सेवा/रक्षा सबसे पहला धर्म है। माना कि मेरा चाँद मुझसे दूर है, तो क्या हुआ? मैं तो मन वचन कर्म से अपना कर्तव्य निभाऊंगी, खूब सज सवंर कर नई नवेली दुल्हन बन मन के भावों से अपने साजन को दिखाऊंगी, हँसी खुशी व्रत, पूजा पाठ कर सारे धर्म निभाऊंगी, माँ पार्वती, शिव,गणेश, करवा माई से अपनी अरदास लगाऊँगी, पति की सलामती का आर्शीवाद लेकर रहूंगी, चंद्रदेव का दर्शन कर अर्घ्य चढ़ाऊँगी आरती उतारुँगी, फिर अपने चाँद का चाँद में ही दीदार करुँगी, तब जल ग्रहणकर करवा चौथ का सुख पाऊंगी, खुशी से अपने चाँद की खातिर जी भरकर नाचूंगी, इतराऊँगी। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : ...
आज का रावण
कविता

आज का रावण

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** कौन कहता है? रावण हर साल मरता है, सच मानिए रावण हर साल मरकर भी अमर हो रहा है। देखिए न आपके चारों ओर रावण ही रावण घूम रहे हैं, जैसे राम की विवशता पर अट्टहास कर रहे हैं। ये कैसी विडंबना है कि मर्यादाओं में बँधे राम विवश हैं, कलयुगी रावण उनका उपहास कर रहे हैं। हमारे हर तरफ लूटपाट, अनाचार, अत्याचार, भ्रष्टाचार, अपहरण, हत्या, बलात्कार भला कौन कर रहा है? ये सब कलयुग के रावण के ही तो सिपाही हैं। अब तो लगता है कि रावण के सिपाही सब जाग रहे हैं, तभी तो वो मैदान मार रहे हैं। रक्तबीज की तरह एक मरता भी है तो सौ पैदा भी तो हो रहे हैं। जबकि राम के सिपाही या तो सो रहे हैं या फिर रावण के कोप से डरकर छिप गये हैं, तभी तो राम भी लड़ने से बच रहे हैं। आज का रावण अब सीता का अपहरण नहीं करता, छीन लेता है, मुँह खोलने पर मौत की धमकी देता है। त...
नारियाँ : अबला या सबला
आलेख

नारियाँ : अबला या सबला

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                                       ये ऐसा विषय है जिस पर पूरे विश्वास से कोई कुछ भी नहीं कह सकता। क्योंकि इस परिप्रेक्ष्य में सिक्के के दोनों पहलुओं का अपना अपना मजबूत पक्ष है और किसी भी एक पक्ष को कम करके आंकना खुद को धोखा देना ही कहा जायेगा। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि नारियां नित नये मुकाम पर पहुंच रही हैं। जिंदगी के हर क्षेत्र में अपने आप को न केवल सिद्ध कर रही हैं। बल्कि खूद को स्थापित कर खुद को खुद से ही चुनौती पेश कर कदम दर कदम अपने बुलंद हौसले की मिसाल भी पेश कर रही हैं।शिक्षा, कला, साहित्य, विज्ञान, सेना, खेलकूद, प्रशासन, राजनीति हर जगह अपनी मजबूत उपस्थिति का अहसास करा रही हैं। यही नहीं चूल्हा चौका से बाहर भी नारियां अपनी नेतृत्व क्षमता का भी लोहा मनवा रही हैं। इसलिए ये कहना गलत ही होगा कि नारिया...
कब तक?
कविता

कब तक?

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** आखिर कब तक हम बेटियों के साथ हो रही दरिंदगी को देखते रहेंगे। कब तक सख्त कदम उठाने का ढोल पीटते रहेंगे। सख्त कारवाई और कड़ी सजा की आड़ में हम बेटियों की लाशों पर बेशर्म बन रोते रहेंगे। आखिर कब तक हम बेटियों से होती दरिंदगी के बाद हो रही उनकी मौतों पर, उनकी वीभत्स लाशों पर यूँ ही घड़ियाली आँसू बहाते रहेंगे। कब तक हम बेटी बचाओ और बेटी दिवस के नाम पर बेटियों को झुनझुना पकड़ाते रहेंगे। कब तक हम यूँ ही खुद को समझाते रहेंगे। एक और बेटी के साथ हो दरिंदगी की सिर्फ़ बाट जोहते रहेंगे, फिर वही अपना कोरा राग कड़ी कारवाई ,सख्त सजा का राग अलापते रहेंगे। बेटी डर कर जिये या दरिंदगी का शिकार हो मरती रहे हम मुगालते का शिकार हो कब तक खुद को बहलाते रहेंगे। बटी की दर्द पीड़ा से खुद को बचाते रहेंगे। आखिर कब तक.....कब तक और कब तक। परिचय :- सु...
कर्ज
लघुकथा

कर्ज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                         आज रामू काका की बेटी संध्या का आईआईटी में प्रवेश का परिणाम आया। सब बहुत खुश थे कि एक गरीब की बेटी तमाम आर्थिक झंझावातों के बीच सफलता की सीढियां चल रही थी, खुद रामू को तो जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था। उनके लिए तो ये सब सपना जैसा था।क्योंकि बेटी को उँचाई पर देखने का सपना देखने वाले रामू काका अथक प्रयासों के बाद भी उसे वो सुविधा नहीं दे पा रहे थे जिसकी उसे दरकार थी। अचानक सारी खुशियों को ग्रहण लग गया, रामू काका पक्षाघात का शिकार हो गये। घर में इतने पैसे नहीं थे कि ढंग से इलाज हो सके। तभी अचानक क्षेत्रीय विधायक रामू काका के दरवाजे पर आ गये। सन्नाटे का माहौल देख वे अचंभित से हुए तभी संध्या बाहर आई और विधायक जी को देखकर रोने लगी। विधायक जी ने उसे ढांढस बँधाया, पूरी जानकारी ली और तुरंत ही अपनी गाड़...
भीख
लघुकथा

भीख

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                          कहते हैं लाचारी इंसान को कितना बेबस बना देती है। कुछ ऐसा ही मि.शर्मा को अब महसूस हो रहा है। कहने को तो चार बेटे बहुएं नाती पोतों से भरा पूरा परिवार है। मगर सब अपने अपने में मस्त हैं। महल जैसे घर में मि.शर्मा अकेले तन्हाई में सिर्फ मौत की दुआ करते रहते हैं। शरीर कमजोर है, आँखों से कम दिखाई देता है। कानों से भी कम ही सुनाई देता है। भोजन पड़ोसी दीपक के यहां से आता है। दीपक एक बेटे की तरह ही उनका ध्यान रखते हैं। उनके बच्चे भी समयानुसार देखभाल कर ही देते हैं। पति-पत्नी तीज त्योहार पर आकर उनके पैर छूकर आशीर्वाद भी लेते हैं। ये सब किसी लालच में नहीं करते बल्कि अपने मां बाप की कमी के अहसास को महसूस कर मि.शर्मा में उनका अक्स दिखने और बुजुर्ग के आशीर्वाद की आकांक्षाओं के कारण करते हैं। आखिरकार मि.शर्मा...
जिंदा मुर्दा बाप
कहानी

जिंदा मुर्दा बाप

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** इस समय पितृ पक्ष चल रहा है। हर ओर तर्पण श्राद्ध की गूँज है। अचानक मेरे मन में एक सत्य घटना घूम गई। रमन (काल्पनिक नाम) ने कुछ समय पहले मुझसे एक सत्य घटना का जिक्र किया था। रमन के घर से थोड़ी ही दूर एक मध्यम वर्गीय परिवार रहता था। बाप रिटायर हो चुका था। दो बेटे एक ही मकान के अलग अलग हिस्सों में अपने परिवार के साथ रहते थे। पिता छोटे बेटे के साथ रहते थे। क्योंकि बड़ा बेटा शराबी था। देखने में सब कुछ सामान्य दिखता था। दोनों भाईयों में बोलचाल तक बंद थी। अचानक एक दिन पिताजी मोहल्ले में अपने पड़ोसी से अपनी करूण कहानी कहने लगे। हुआ यूँ कि दोनों बेटों ने उनके जीवित रहते हुए ही उनका फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाकर एक दूसरा मकान, जो पिताजी ने नौकरी के दौरान लिया था, उसे अपने नाम कराने की साजिश लेखपाल से मिलकर रच डाली। संयोग ही था क...
सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन : महान व्यक्तित्व
आलेख

सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन : महान व्यक्तित्व

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                     प्रख्यात दर्शन शास्त्री, महान हिंदू विचारक, चिंतक, शिक्षक सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्णन का जन्म ०५ सितम्बर १८८८ में मद्रास (अब चेन्नई) से करीब २०० किमी. दूर तिरूमती गांव में गरीब ब्राह्मण (हिंदू) परिवार में हुआ था। राधाकृष्णन चार भाई व एक बहन थी। इनके पिता सर्वपल्ली विरास्वामी बहुत विद्वान थे। इनकी माता का नाम सिताम्मा था। इनकी प्राथमिक शिक्षा गाँव में ही हुई। गरीबी के कारण इनके पिता इन्हें पढ़ाने के बजाय मंदिर का पुजारी बनाना चाहते थे। आगे की शिक्षा के लिए इन्हें क्रिश्चियन मिशनरी संस्था लुथर्न मिशन स्कूल तिरूपति में प्रवेश दिलाया गया। जहाँ ये सन् १८९६ से १९०० तक चार साल रहे। सन् १९०० में बेल्लूर के शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत मद्रास क्रिश्चियन कालेज, मद्रास में अपनी स्नातक शिक्षा प्रथम श्रेणी के साथ इ...
१००८ कोरोनानंद जी महाराज
व्यंग्य

१००८ कोरोनानंद जी महाराज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** नमस्कार दोस्तों, सबसे पहले शुभकामनाओं की एक खेप स्वीकार कर लीजिए। ज्यादा उलझने की जरूरत नहीं है कि शुभकामनाऔं का ये झोंका आखिर किस पुण्य प्रताप के फलस्वरूप आप को दुर्भाग्यवश अरे नहीं-नहीं भाई सौभाग्य का पारितोषिक प्रसाद स्वरूप आपको सुशोभित हो रहा है। कुछ समझ में आया हो तो बता ही डालिए, ताकि शुभकामनाओं का एक और गुच्छा मैं आपकी ओर अबिलम्ब उछाल दूँ। नहीं समझ में आया तो भी कोई बात नहीं है, निराश होने की जरूरत नहीं है आपको फ्री में एक शुभकामना दे ही देता हूँ। हाँ तो बात शुभकामनाओं की चल रही थी। सबसे पहले मैं आपको शुभकामनाओं के साथ बता दूँ कि मेरी शुभकामनाएं एकदम नये किस्म की हैं जिसमें दिल का कोई कनेक्शन ही नहीं है। आजकल शुभकामनाओं का रोग बेहिसाब बढ़ गया है, इतना बढ़ गया है बेचारा कोरोना भी खौफ में है। यही नहीं गुस्से में भ...
मैं यमराज हू्ँ
कहानी

मैं यमराज हू्ँ

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                      देर रात तक पढ़ने के कारण बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई। पढ़ाई के लिए मैनें शहर में एक कमरा किराए पर ले रखा था। मकान मालिक, उनकी पत्नी और मैं कुल जमा तीन प्राणी ही उस मकान में थे। मकान मालिक पापा के परिचित थे, इसलिए मुझे रहने को कमरा दे दिया वरना इतना बड़ा मकान और रहने को मात्र दो प्राणी, मगर शायद किसी अनहोनी के डर से किसी को किराए पर रखने के बारे में नहीं सोचते रहे होंगे। खैर.........। मैं कब बिस्तर पर आया और कब सो गया, कुछ पता ही न चला। तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी। मुझे लग भी रहा था पर मुझे लगा कि शायद ये मेरा भ्रम है। लेकिन जब रूक रूक कर लगातार दस्तक होती रही तो न चाहते हुए भी मै उठा और दरवाजा खोला तो सामने जिस व्यक्ति को देखा, उसे मैं जानता नहीं था। मैनें उससे पूछा कि आप कौन है? उसनें शालीनता स...
शहीद का बाप
कविता

शहीद का बाप

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** बेटे के सेना में भर्ती होने का समाचार सुन बूढ़ा बाप खुशी से झूम उठा, क्योंकि सेना में जाकर देशसेवा का भाव बेटे रूप में आज फिर से जाग उठा। अपने समय में किया हर जतन आज बेटे ने पूरा कर उसके सपने को साकार कर दिया। और आज फौजी न सही फौजी का बाप कहलाने का बड़ा गर्व महसूस हुआ। देखते देखते वह दिन भी आ गया, जब दुश्मन ने धोखे से देश पर हमला बोल दिया। कुछ जवानों की शहादत से देश तो युद्ध जीत गया, परंतु उसका बेटा दुश्मनों की मक्कारी का शिकार हो गया। पर न वो रोया, न ही पछताया, देश पर बेटे की कुर्बानी से बड़ा गर्व हो आया। आज शहीद का बाप होने का उसने सम्मान जो पाया। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक नि...
उपहार
कहानी

उपहार

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************      आज रक्षाबंधन का त्योहार था। मेरी कोई बहन तो थी नहीं जो मुझे (श्रीश) कुछ भी उत्साह होता। न ही मुझे किसी की प्रतीक्षा में बेचैन होने की जरुरत ही थी और नहीं किसी के घर जाकर कलाई सजवाने की व्याकुलता। सुबह सुबह ही माँ को बोलकर कि एकाध घंटे में लौट आऊंगा। माँ को पता था कि मैं यूँ ही फालतू घर से बाहर नहीं जाता था। इसलिए अपनी आदत के विपरीत उसनें कुछ न तो कुछ कहा और न ही कुछ पूछा। उसे पता था कि मेरा ठिकाना घर से थोड़ी ही दूर माता का मंदिर ही होगा। जहाँ हर साल की तरह मेरा रक्षाबंधन का दिन कटता था। मैं घर से निकलकर मंदिर के पास पहुँचने ही वाला था सामने से आ रही एक युवा लड़की स्कूटी समेत गिर पड़ी, मैं जल्दी से उसके पास पहुंचा, तब तक कुछ और भी लोग पहुंच गये। उनमें से एक ने स्कूटी उठाकर किनारे किया। फिर एक अन्य व्यक्ति की सहायता...
समय
कविता

समय

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** समय की भी अजीब माया है, कभी खुशियों की बारिश तो कभी दु:खों का साया है। समय की महिमा कभी समझ नहीं आती, ये जब तब सबको है भरमाती । समय का अपना ही अंदाज है, जैसे चमकती धूप में भी, झमाझम बरसात है। समय चक्र के खेल से कोई नहीं बच पाया, अमीर, गरीब, छोटा या बड़ा या ऊँच नीच कोई भी, समय चक्र से कौन कहाँ बच पाया? परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, जिला-गोण्डा (उ.प्र.) वर्तमान निवास : शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव जिला-गोण्डा, उ.प्र. शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई.,पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार) साहित्यिक गतिविधियाँ : विभिन्न विधाओं की कविताएं, कहानियां, लघुकथाएं...
कोरोना हल
हाइकू

कोरोना हल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** कोरोना हल आपके हाथ में है, बस बचाव। भूखा मरता गरीब रोता भी है, दुआ भी देता। जीवन क्या? जीवन मूल्य बन, खुद लड़ना। आवाज मंद बुढ़ापे का संकेत, मान लीजिए। रोता रहता ठोकरें खाता जीता, सच्चा इंसान। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, जिला-गोण्डा (उ.प्र.) वर्तमान निवास : शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव जिला-गोण्डा, उ.प्र. शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई.,पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार) साहित्यिक गतिविधियाँ : विभिन्न विधाओं की कविताएं, कहानियां, लघुकथाएं, आलेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि का १०० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प...