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Tag: सुधीर श्रीवास्तव

वो जमाना
कविता

वो जमाना

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** छंद मुक्त कविता आज जब अपने पिताजी की उस जमाने की बातें याद आती हैं, तो सिर शर्म से झुक जाता है। माँ बाप और अपने बड़ों से आँख मिलाने में ही डर लगता था, उनकी किसी बात को नकारने की बात सोचना भी सपना लगता था। घर में भी अपने बड़ों के बराबर बैठना सिर्फ़ सोचना भर था, अपने लिए कुछ कहना भी कहाँ हो पाता था। बस चुपके से धीरे से अपनी बात दादी, बड़ी माँ या माँ से कहकर भी खिसकना पड़ता था। रिश्तों के अनुरूप ही सबका सम्मान था, परंतु हर किसी के लिए हर किसी के मन खुद से ज्यादा प्यार था। उस समय दूश्वारियां भी आज से बहुत ज्यादा थीं, परंतु प्यार, लगाव, सबकी चिंता हर किसी के ही मन में हजार गुना ज्यादा थीं। आज भी मुझे इसका अहसास है क्योंकि मैंने भी ऐसा ही काफी कुछ देखा है, अपने बाप को बड़े ...
निर्मल साहित्य एक पहल” का कवि सम्मेलन संपन्न
साहित्यिक

निर्मल साहित्य एक पहल” का कवि सम्मेलन संपन्न

निर्मल साहित्य एक पहल संस्था के तत्वाधान में १६.०४.२०२१ बुधवार को द्वितीय ऑनलाइन कवि सम्मेलन का आयोजन गूगल मीट के माध्यम से किया गया आ.ऋचा मिश्रा रोली जी के संचालन में अनेकों कवि/ कवयित्रियो के काव्य पाठ के साथ संपन्न हुआ। संस्था के संस्थापक आदरणीय निर्मलजी ने सभी कवियों /कवयित्रियों का स्वागत अभिनंदन किया। नारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हुई आदरणीया वंदना खरे जी के द्वारा मां शारदे का आवाहन किया गया और इसके पश्चात आ.अशोक राय वत्स जी ने अपनी पंक्तियां पढ़ी "जब राणा की शमशीरों से समरांगण का रंग लाल हुआ, तब लगा स्वयं रणचंडी ही शत्रु खून पीने निकली, आ.प्रेम करेला जी ने अपनी ओजस्वी वाणी में पढ़ा "अधरों पे वंदे मातरम वंदे मातरम का गुणगान होना चाहिए, सब कुछ बाद में सबसे पहले दिल में हिंदुस्तान होना चाहिए", आ.वंदना खरे जी ने अपनी पंक्तियां पढ़ी "चिडियों को उड़ने दो, चहकने दो चिडियों को, अभी तो घो...
झूठ का बोलबाला
कविता

झूठ का बोलबाला

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** बस ये ही तो गड़बड़झाला है तुझे ये सब कहाँ समझ में आने वाला है। तुझे तो सत्यवादी बनने का भूत जो सवार है। अरे मूर्खों ! तुम सब क्यों नहीं समझते? आज के खूबसूरत परिवेश में सत्य का मुँह काला है। उसका कुर्ता मुझसे सफेद क्यों है? यार ! अब तो समझ लो ये सब झूठ का बोलबाला है। खबरदार, होशियार बहुत हो चुका झूठ की जी भरकर बेइज्जती अब और सहन नहीं करूंगा, झूठ का अपमान किया तो मानहानि का केस करूंगा। झूठ के गड़बड़झाले की तो बात भी मत करना, सत्य को तुम चाटते आ रहे हो बचपन से बुढ़ापे तक, क्या मिला तुम ही बता दो आखिर तुमको अब तक। झूठ का गुणगान किया मैने अब तक, तुम खुद ही तो कहते हो तू तो है सिंहासन वाला। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९ शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रकृति की भी अजब माया है निःस्वार्थ बाँटती है भेद नहीं करती है, बस कभी-कभी हमारी उदंडता पर क्रोधित हो जाती है। हर जीव जंतु पशु पक्षी के लिए खाने, रहने और उसकी जरूरतों का हरदम ख्याल रखती है, बिना किसी भेदभाव के यथा समय सब कुछ तो देती है, हमें प्रेरित भी करती सीख भी देती है, कितना कुछ करती है, क्या क्या सहती है परंतु आज्ञाकारी प्रकृति हमें देती ही जाती है, हम ही नासमझ बने रहें तो प्रकृति की क्या गलती है? अपनी गोद से वो हमें कब अलग-थलग करती है? हाँ हमारी नादानियों, उदंडताओं पर खीछती, अकुलाती, परेशान होती है, हमें बार-बार संकेत कर चेताती, समझाने की कोशिश करती, थक हारकर अपने क्रोध का इजहार करने को विवश हो जाती, फिर भी हम समझने को तैयार जब नहीं होते, तब वो भी बस! अपना संतुलन...
मेरे जीवन साथी
पत्र

मेरे जीवन साथी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** मेरे जीवन साथी, हृदय की गहराईयों में तुम्हारे अहसास की खुशबू समेटे आखिरकार अपनी बात कहने का प्रयास कर रहा हूँ। यह सही है कि मुझे गुस्सा कुछ अधिक ही आता है, मैं समझता भी हू्ँ, पर क्या करूँ तुम साथ होती तो शायद कुछ बदलाव हो भी जाता, पर ये नापाक पाक के समझ में कहाँ आता है? पाकिस्तान सिर्फ़ हमारे मुल्क का ही नहीं कहीं न कहीं हम दोनों का भी दुश्मन है। वह तो बस जैसे इसी ताक में रहता है कि इधर हम अपनी महरानी के पास पहुंचे और वो बार्डर पर कुछ न कुछ बघेड़ा खड़ा कर दे। हमारा दुर्भाग्य देखो कि जब जब लम्बी छुट्टियां मिली भी, ये नापाक पाक कबाब में हड्डी बन ही जाता है। मगर तुम निराश मत हो, मैं भी अपनी टुकड़ी के साथ सालों की नाक में दम करता रहता हूँ।खैर...छोड़ो। मैं कह नहीं पा रहा हू्ँ फिर भी कोशिश कर रहा हू्ँ। ये अलग बात...
सेवादार बनिए
कविता

सेवादार बनिए

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए आज हम सब अपनी संस्कृति और परंपरा का एक नया अध्याय लिखें, सेवाधर्म का नया आयाम गढ़ें पुरातन व्यवस्था को ध्यान में रखकर ही सही सेवाधर्म का नया पाठ पढ़ें । कोरोना महामारी की जब हर ओर दहशत है, सेवाभाव से आओ मिलकर इसका प्रतिकार करें। दो गज दूरी का संदेश फैलाएं मास्क, सेनेटाइजर कितना जरूरी है ये सबको बताएं, समझाएं,। रोजी रोजगार की समस्या बहुत कठिन है लेकिन, कोई भूखा न रहे आसपास हमारे हम सब की जिम्मेदारी है कि उसके खाने का प्रबंध कराएं। सबका टीकाकरण हो ये सुनिश्चित कराएं, कोरोना पीड़ितों का मनोबल बढ़ायें। अफवाह, भ्रम, दहशत न फैलने पाये जनमानस को इससे हम सब बचाएं। कोरोना रोग है महामारी है, हौसला रखें, डरें नहीं, इलाज कराएं ठीक हो जायेंगे विश्वास दिलाएं, ये दौर भी गुजर जायेगा सबके मन मे...
सिसकियां
कविता

सिसकियां

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** हर ओर अफरातफरी है हर चेहरे पर खौफ है, दहशत है। घर, परिवार का ही नहीं बाहर तक फिज़ा में भी अजीब सी बेचैनी है। माना सिसकियां भी सिसकने से अब डर रहीं। आज सिसकियां भी मानव की विवशता देख सिसक रहीं। सिसकियों में भी संवेदनाओं के स्वर जैसे फूट पड़े है, मानवों के दुःख को करीब से महसूस कर रहे हैं। पर ये भी तो देखो सिसकियां भी मानवीय संवेदनाओं से जुड़ रहीं, हमें नसीहत और हौसला दोनों दे रहीं, अपनी हिचकियों के बहाने से हमें खतरे से आगाह भी कर रहीं। अक्षर ज्ञान नहीं सिसकियों को इसीलिए अपने आप में ही सिसक रहीं अपनी हिचकियों से संवेदनाओं को व्यक्त कर रहीं। सुन सको तो सुन लो, सिसकियां तुमसे क्या कह रहीं? न हार मानों तुम शत्रु से न उसे अजेय मानों। रख मन में पूरी आशा करो खुद पर भरोसा कस कर कमर अपनी प्रयास करो जोर से, दूर होगी सारी दुश्वा...
सीढ़ियां
कविता

सीढ़ियां

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** अपने ख्वाब पूरे करने हों तो शाम, दाम, द़ंड, भेद के साथ हर हथकंडे भी स्थिति के अनुसार अपनाने में कोई हर्ज नहीं है, ख्वाब साकार हो रहा हो तो किसी भी हद तक गुजर जाना या यूँ भी कह लें किसी की लाश पर तम्बू लगाने में तनिक भी गुरेज नहीं है। आपकी तरह मैं बेवकूफ नहीं हूँ, अपना जमीर जिंदा है मात्र दिखाने के लिए अपनी कामयाबी को पीछे ढकेल दूँ मुझे मंजूर नहीं है। मेरे ख्वाब जितने ऊँचे मेरा जमीर उतना ही नीचे है, आप भी ये जान लें अपने ख्वाबों को मैंने खून से सींचे हैं, अपना तो जमीर जिंदा नहीं है यारों तभी तो कामयाबी की सीढ़ियां चढ़कर यहां तक आखिरकार पहुंचे हैं। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९ शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार) पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर...
माँ
कविता

माँ

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** विश्वास नहीं होता है, चली गई यूं छोड़ हमें, सारी दुनियाँ दिखती है, पर तू दिखती नहीं हमें। अंर्तमन से चित्र एक पल, धुंधला कभी नहीं होता, एक बार आकर तू क्यों, गले लगाती नहीं हमें। अपने अंर्तमन की पीड़ा का, भंडार छिपाये रखा था, आकर क्यों पीड़ा की गठरी, खोल दिखाती नहीं हमें। नादान तेरे हैं ये बच्चे, तनिक तरस न आता क्या? सपने में ही आकर बस, ममता अपनी दिखला दे हमें। भूल तो बच्चे करते रहते, तू ये बात समझती है, ऐसी गुस्ताखी क्या कर दी, जो सजा असहय दे रही हमें। माफ करो हे माँ हमको, हम सब हँसना भूल गये, गुस्सा छोड़ अब आ जाओ, गले लगाओ जल्द हमें। या फिर ऐसा कर माते, हमें बुला ले वहीं हमें, ऐसी मजबूरी थी क्या, क्यों इतनी कठिन सजा दी हमें। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९ शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक...
परिवर्तन
कविता

परिवर्तन

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** संसार में परिवर्तन अकाट्य सत्य है, जीवन है तो मृत्यु भी है निर्माण है तो विनाश भी दिन है तो रात भी राजा है तो रंक भी जो बनेगा बिगड़ेगा भी जन्मेगा तो मरेगा भी। परिवर्तन सतत चलने वाली अविचलित प्रक्रिया है, संसार के कण कण के साथ कभी न कभी परिवर्तन होगा ही। ये प्रकृति का नियम है, सजीव हो या निर्जीव यही सबके साथ है। इसमें बदलाव असंभव है चाहे तो सर्वशक्तिमान ईश्वर भी इसे बदल नहीं सकता। आज हंस रहे हैं कल को रोयेंगे भी अच्छे बुरे पल भी आते जाते रहेंगे। परिवर्तन प्रकृति का शास्वत सत्य है, ऐसा हो ही न ये तो नामुमकिन है। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९ शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार) पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : सं...
मजदूर
आलेख

मजदूर

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** हमारे देश में मजदूरों की दशा कभी भी अच्छी नहीं रही। यह अलग बात है कि वर्तमान में सरकारों के द्वारा मजदूरों के लिए काफी कुछ किया गया। लेकिन मजदूरों की दशा में मूलभूत सुधार नहीं हो पाया। आज भी हमारे देश का मजदूर अपने मूलभूत जरूरतों के दल-दल को पार नहीं कर पाया है। मजदूरों की अपनी समस्याएं हैं। परिवार स्वास्थ्य शिक्षा उनकी मूलभूत समस्याएं हैं। जिस पर कार्य किए जाने की जरूरत सभी प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार का उत्तरदायित्व है कि मजदूरों के लिए प्रभावी योजनाएं बनाएं और उसका सख्ती से पालन कराएं। सरकारों को यह भी देखना होगा कि उनके द्वारा घोषित योजनाओं का क्रियान्वयन कितना धरातल पर उतर रहा है। कोरोना काल में मजदूरों की जो दुर्दशा हुई है, वे जिस दर्द से गुजरे हैं वह काफी असहनीय और राष्ट्र समाज के शर्मनाक भी है और दर्दनाक भी। ...
कोरोना का संदेश
कविता

कोरोना का संदेश

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** धरती के प्रबुद्ध प्राणियों माना कि तुम सब संसार के सबसे जहीन प्राणी हो। मगर ऐसा तुम सोचते हो, मेरी नजर में तो तुम बुद्धिहीन ही नहीं सबसे बड़े बुद्धिहीन हो। क्योंकि तुम स्वार्थी हो,निपट कलंकी हो, खुद को इंसान कहते हो, पर इंसान कहलाने के लायक नहीं हो। गलतियां करके भी औरों को दोष देना तुम्हारी फितरत है, तुम्हें तो अपने आप से भी नफरत है। तुमने तो भगवान को भी हमेशा दोषी ठहराया, अपने कर्मों में कभी खोट न नजर आया, जबसे मैं आया तुम्हारे तो भाग्य खुल गए भाया। मैं कोई रोग नहीं दहशत भर हूँ, बहुत कुछ देखने सुनने तुम्हें समझाने भी आया हूँ तुम्हारी औकात बताने आया हूँ। क्या तुमने इंसानी धर्म निभाया? अपने माँ बाप, परिवार, समाज को तुमने क्या-क्या नहीं दिखाया? लूट, हत्या, अनाचार, अत्याचार षडयंत्र, भ्रष्टाचार का नंगा नाच दिखाया। प्रकृति...
धरती की संतान
कविता

धरती की संतान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** हम सब धरती की संतान हैं अच्छा है, समझ है हममें, हम है समझदार भाइयों-बहनों हमारा क्या कहना इसलिए तो भगवान ने हमें बनाया साहित्यकार धरती की भलाई करने को हम सदा है तैयार। हमें अब बहुत कुछ करने की ज़रूरत है आखिर जब धरती माँ ने अपना विशाल आँचल फैला रखा है हमें कष्ट न हो इसीलिए एक विशाल परिवार बना रखा है। हमारे खाने पीने जीने के लिए लाखों लाख जतन कर रही है। लायक बच्चों पर धरती माँ अब नाज़ कर रही है। नदी, झील, झरने, नदियां जलस्रोतों को हम बचाने का कर रहे उत्तम प्रयास इसलिए तो रचनाकार है धरती माँ के बालक खास। पेड़-पौधों से भरी रहे धरा हर तरफ हो वृक्ष हो हरा-हरा। प्राकृतिक संपदाओं का हो संरक्षण खुशहाल बने सभी का जीवन पशु-पक्षी, पेड़ पौधे, जीव जंतु सदा के लिए हो सुरक्षित। हमें अपनी धरती माँ की शान बढ़ानी है सचमुच तभी तो हम ज्ञ...
घटते पाठक, बढ़ती चिंता
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घटते पाठक, बढ़ती चिंता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************   यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि शिक्षा और साहित्य के विस्तार के बावजूद पाठक वर्ग का अभाव बढ़ता जा रहा है, जो कि चिंता का विषय बनता जा रहा है। यह कैसा जूनून है कि हम लिखते जा रहे हैं, औरों से अपने सृजन को पढ़कर प्रतिक्रिया भी चाहते हैं। परंतु अफसोस कि हम औरों को पढ़ना ही नहीं चाहते। आखिर हम जो सोचते हैं, वैसा ही कुछ और लोग भी तो सोचते हैं। तभी भी रचनकार अधिक और प्रतिक्रिया देने वाले मात्र गिने चुने ही होते प्रायः दिख जाते हैं। जो हमें ही आइना दिखाते प्रतीत होते हैं। हो भी क्यों न? बढ़ते आधुनिकीकरण ने हर क्षेत्र में सकारात्मक/नकारात्मक असर डाला है। फिर भला सृजन, पाठन कैसे अछूता रह सकता है। आज जब सृजन क्षमता का विकास अत्यधिक तेजी से हो रहा है, नये सृजनकार तेजी से बढ़ रहे हैं, विशेष कर कोरोना काल में साहित्य के क्षेत्र मे...
दयाभाव
कविता

दयाभाव

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** चिलचिलाती धूप में राष्ट्रीय राजमार्ग पर दुर्घटना ग्रस्त बाइक सवार को देख पहले तो मैं घबड़ाया, फिर हिम्मत करके अपनी बाइक को किनारे लगाया। घायल युवक के पास गया, उसकी हालत देख मैं काँप गया, फिर वहाँ से भाग निकलने का विचार किया। परंतु दया भाव से मजबूर हो गया। अब आते-जाते लोगों से मदद की उम्मीद में सड़क पर आते-जाते लोगों से दया की भीख माँगने लगा। बमुश्किल एक अधेड़ सा व्यक्ति आखिर रुक ही गया, मेरी उम्मीदों को जैसे पंख लग गया। मैंने हाथ जोड़ मदद की गुहार की, मेरी बात उसे बड़ी नागवार लगी। उसने समझाया लफड़े में न पड़ भाया, तू बड़ा भोला दिखता है फिर लफड़े में क्यों पड़ता है? ऐसा कर तू भी जल्दी से निकल ले पुलिस के लफड़े से बच ले। ये तेरा सगेवाला नहीं है मरता है तो मरने दो दया धर्म का ठेकेदार न बन, तुम्हारे दया धर्म के चक्कर में वो मर गया...
मतदान
कविता

मतदान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** दान की परम्परा का एक बार फिर निर्वहन करते हैं, आइए! साथ चलकर मतदान करते हैं। मतदान हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है, परंतु देश के नागरिक हैं इसलिए कर्तव्य भी। बस यही याद रखिए कर्तव्य की बलिबेदी पर खुद को न बेंचिए, राष्ट्र, समाज और खुद के लिए मत दान से पहले खूब सोचिए, बिचारिए, किसी के बहकावे में कभी न आइए। खुद ही फैसला कीजिए सही क्या है? अपना ही नहीं राष्ट्र का भविष्य जिन्हें सौंप रहे हैं, उनके बारे में भी तनिक विचार कर लीजिये फिर मतदान कीजिए। क्योंकि तब पाँच साल सिर्फ़ पछताना न पड़ेगा, सब ओर खुशियों का परचम जो फहरेगा । परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, ज...
मित्र और मित्रता
कविता

मित्र और मित्रता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** मित्रता का अपना-अपना उसूल होता है, मित्रता के अनुभव भी बहुत खट्टे-मीठे होते हैं। सच तो यह है कि मित्र बनाये नहीं जाते बन जाते हैं, हम चाहें या न चाहें बस दिल में उतर जाता है। न जाति धर्म मजहब न ही स्त्री या पुरुष का भाव बस वो अपना सिर्फ अपना ही नजर आता है। उसका हर कदम,हर भाव उसकी सोच, उसकी चिंता अपनेपन का बोध कराता है। उसके हर विचार रूठना, मनाना, डाँटना, समझाना, और तो और अधिकार समझना गुस्से में लाल तक हो जाना भी, तो कभी-कभी आँसू बहाना हमारे दुर्व्यवहार को भी शिव बन पी जाना, माँ, बाप, बहन, भाई, मित्र जैसे रिश्ते निभाना, हमारी खुशी के लिए सब कुछ सहकर भी हँसकर टाल जाना, पूर्व जन्म के रिश्तों का अहसास दे जाना सच्चे मित्र की पहचान है। उम्र का अंतर मायने नहीं रखता क्योंकि हमें खुद बखुद उसके कदमों में झुक जाने का मन भी करत...
इंसान बनो
कविता

इंसान बनो

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** जीवन भर हम खुद को मकड़जाल में उलझाए रखते हैं, सच तो यह है कि हमें बनना क्या है? ये ही नहीं समझ पाते। मृग मरीचिका की तरह भटकते रहते हैं, इंसान होकर भी इंसान नहीं रहते हैं। हम तो बस वो बनने की कोशिशें हजार करते हैं, जो हमें इंसान भी नहीं रहने देते हैं। हम खुद को चक्रव्यूह में फँसा ही लेते हैं, और इंसान होने की गलतफहमी में जीते रहते हैं। काश ! हम इतना समझ पाते इंसानी आवरण ढकने के बजाय वास्तव में इंसान बन पाते, काश ! हम अपने विवेक के दरवाजे का ताला खोल पाते जो बनना है वो तो हम बन ही जायेंगे मगर अच्छा होता हम पहले इंसान तो बन पाते। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनिय...
संयोग
आलेख

संयोग

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                             अब इसे संयोग नहीं तो और क्या कहूँ आप ही बताइए कि आभासी संचार माध्यमों ने कुछ ऐसे नये रिश्तों को जन्म दे दिया कि कल्पना करना कठिन लगता है कि इन रिश्तों के मध्य उपजे आत्मिक संबंध कहीं से भी वास्तविक रिश्तों से कम महत्वपूर्ण अहसास नहीं कराते। बहुतों के साथ हुआ होगा, हो रहा होगा या आगे भी होता ही रहेगा। जहाँ आपको रिश्तों की मिठास, अपनापन, प्यार, तकरार, एक दूसरे की चिंता और वो सब कुछ मिलता है, जो कभी कभी वास्तविक रिश्तों में भी नहीं मिलता, तो ऐसा भी होता है कि जिस रिश्ते का अधूरापन आपको सालता रहता है, वह आभासी माध्यम से बने रिश्तों से पूरा हो जाता है। हालांकि ये कहने में भी कोई संकोच न कि हर जगह कुछ न कुछ गलत भी हो जाता है, लेकिन ऐसा वास्तविक रिश्तों में भी तो होता है। अक्सर आभासी दुनियाँ में ...
ईश्वर की आवाज
आलेख

ईश्वर की आवाज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                             सभी जानते, मानते हैं कि हम ईश्वर की ही सृष्टि हैं, ईश्वर का ही निर्माण हैं। फिर यह भी यथार्थ है कि बिना ईश्वरीय विधान के पत्ता तख नहीं हिलता। ऐसे में कर्ता तो मात्र ईश्वर ही हुआ न। फिर भी मानव अपने स्वभाव के अनुरूप खुद को ही सर्व समर्थ मानने की गर्वोक्ति करता रहता है। परंतु सच यह है कि ईश्वर के हाथों में ही हमारे सारे क्रियाकलापों की डोर है, तब यह मानना ही पड़ता है कि जो भी हम करते हैं वह ईश्वरीय इच्छा है। ठीक इसी तरह हम जो भी बोलते हैं वह ईश्वर की ही आवाज़ है, हम वही बोलते हैं जो ईश्वर चाहता है या यूं कहें कि हम मात्र ईश्वरीय प्रतिनिधि के तौर पर इस दुनियाँ में हैं और प्रतिनिधि को वही सब करने की बाध्यता है, जो उसका नियोक्ता चाहता है। ऐसे में यह हमें अच्छी तरह जितनी जल्दी समझ में आ जाये तो ब...
पत्थर में भगवान
कविता

पत्थर में भगवान

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** ये महज विश्वास है कि पत्थर में भगवान है, परंतु यही विश्वास हमें बताता भी है भगवान कहाँ है? तभी तो हम मंदिर, मस्जिद गिरिजा, गुरुद्वारों के चक्कर तो लगाते हैं, परंतु कितना विश्वास कर पाते हैं। विडंबनाओं पर मत जाइये अपने हर कठिन, मुश्किल हालात के लिए बिगड़े काम के लिये भगवान को ही दोषी ठहराते हैं, अपनी खुशी में भगवान को शामिल करना तो दूर याद तक नहीं करते, सारा श्रेय खुद ले लेते हैं। जिस भगवान का हम धन्यवाद तक नहीं करते कष्ट में उसी को याद भी करते हैं, पत्थर के भगवान से जिद करते,अड़ जाते हैं विश्वास करके भी नहीं करते। क्योंकि हम खुद पर भी विश्वास कहाँ करते? हमारे अंदर भी तो भगवान बैठा है यह सब जानते हैं, उस पर जब हम विश्वास नहीं करते, तब पत्थर के भगवान पर विश्वास कैसे जमा पाते? हम तो बस औपचारिकताओं में जीते जीते मर जाते, ...
छुटकी
सत्यकथा

छुटकी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                               दिसंबर २०२० के आखिरी दिनों की बात है। सुबह-सुबह एक फोन काल आता है। नाम से थोड़ा परिचित जरूर लगा, परंतु कभी बातचीत नहीं हुई था, क्योंकि ऐसा संयोग बना ही नहीं। उधर से जो आवाज सुनाई दी कि मन भावुक सा हो गया। उस आवाज में गजब का आत्मविश्वास ही नहीं, बल्कि अपनत्व का ऐसा पुट था कि सहसा विश्वास कर पाना कठिन था कि वो मुझे जानती न हो। जिस अधिकार से उसनें अपनी बात रखी, उससे उसका हर शब्द यह सोचने को विवश कर रहा था कि किसी न किसी रुप में हमारा आत्मिक/पारिवारिक संबंध जरूर रहा होगा, भले ही वह पिछले जन्म का ही रहा हो। उससे बात करने के बाद मन इस बात को मानने को तैयार नहीं था कि उससे किसी न किसी रुप में मेरे साथ माँ, बहन या बेटी जैसा रिश्ता नहीं रहा होगा। अब तो मेले में बिछुड़े भाई बहन सरीखे किस्से कहानियो...
खुद का निर्माण करें
आलेख

खुद का निर्माण करें

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ********************                          मानव जीवन अनमोल है, इस बात से इंकार कोई नहीं करता। परंतु यह भी विडंबना ही है कि ईश्वर अंश रूपी शरीर का हम उतना मान सम्मान नहीं करते, जितना वास्तव में हमें करना चाहिए। यह सच है कि हम अपने मिट्टी के पुतले सरीखे शरीर के ऊपरी सौंदर्य की चिंता बहुत करते हैं, अनेकानेक सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग निरंतर करते हैं, किंतु इस शरीर के भीतर बैठे ईश्वर और उसके निवास रुपी मंदिर के प्रति कभी सचेत होना ही नहीं चाहते। इसीलिए हम वाहृय निर्माण और भौतिक सुख दुख के चक्रव्यूह में उलझे रह जाते हैं और खुद के निर्माण के प्रति लापरवाह बने रहते हैं।जिसका खामियाजा न केवल खुद हमें बल्कि परिवार, समाज, राष्ट्र और समूचे संसार को किसी न किसी रुप में भुगतना ही पड़ता है। आज की अगर सबसे बड़ी जरूरत की बात करें तो वह है खुद के निर्...
काश! मै प्रधानमंत्री होता
कविता

काश! मै प्रधानमंत्री होता

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** काश! मैं देश का प्रधानमंत्री होता तो पाक को आखिरी सबक सिखाता फिर भी न मानता तो इतिहास में रह जाता। जाति धर्म का भेद मिटाता आरक्षण हटाता, हर गरीब को शिक्षा के लिए आर्थिक सुविधा का कानून बनाता मजहब के नाम पर फूट डालने वालों दंगा करने/कराने वालों को आजीवन कैद का कानून बनाता। देश विरोधी बयान या कृत्य वालों का नागरिक अधिकार छीन लेता। हर जन प्रतिनिधि की जवाबदेही तय करता। जनता को चुने जन प्रतिनिधियों को वापस बुलाने का अधिकार देता। नाम के साथ जाति लिखना बंद करा देता। एक देश, एक विधान, एक संविधान सख्ती से लागू करता। बहन बेटियों से जो भी करता अनाचार/अत्याचार उसको जीवनभर जेल में रखने का प्रावधान करता। नकसलियों, आतंकवादियों, उपद्रवियों को सीधे गोली मारने का फरमान सुनाता। पूरे देश में गौहत्या पर रोक का कानून बनाता। समान ना...
कुहासा
कविता

कुहासा

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** क्या कहूँ? मेरी जीवन में तो हमेशा ही छाया रहता है, बेबसी, लाचारी, भूख का कभी न मिटने वाला कुहासा। औरों का तो छंट भी जाता है मौसमी कुहासा, पर मेरा कुहासा तो छँटने का नाम ही नहीं लेता। ऐसा लगता है ये कुहासा भी जैसे जिद किये बैठा है, जो आया है मेरे जन्म के साथ और पूरी निष्ठा से मेरे साथ यारी निभा रहा है, जैसे प्रतीक्षा कर रहा है मेरे अंत के साथ ही छँटने की। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, जिला-गोण्डा (उ.प्र.) वर्तमान निवास : शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव जिला-गोण्डा, उ.प्र. शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई.,पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार) साहित्यिक गति...