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Tag: सुधा गोयल

थोड़ा सा इंतजार …
कहानी

थोड़ा सा इंतजार …

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ********************                         "राम-राम रामधन काका"- दोंनो हाथ जोड़ दिए मेघा ने। काका को देखकर मेघा के चेहरे पर खुशी नाच उठी। "सुखी रहो बिटिया। कैसी हो?" अच्छी हूं काका, सामने तो खड़ी हूं"-हंस पड़ी मेघा "वही तो देख रहा हूं क्या बढ़िया कोठी है। देखकर आंखें जुड़ा गईं। अरे बिटिया बाहर जो चौकीदार खड़ा है अंदर ही ना आने दे रहा था। मैंने भी कड़क कर कहा कि तुम हमें जानत ना हो। हम साब की ससुराल से आए हैं। सो बिटिया वो हमें नीचे से ऊपर तक देखने लगा। हमें फिर जोश आ गया। अबे ऐसे क्या देखत हो कभी आदमी नहीं देखा। जा मेरी बिटिया को बुला ला और तभी आवाज सुनकर तू बाहर निकल आई। ससुरा अंदर भी आने देता या बाहर से ही लौट जाना पड़ता"- कहते-कहते काका ने अपने दोनों पर सोफे पर रख दिए। पर्दे के पीछे खड़े राही और गौरा ने देखा तो हंस पड़े और बोले -"स्टूपिड... पता न...
लक्ष्मी उवाच
व्यंग्य

लक्ष्मी उवाच

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ********************                             "सुनो विष्णु, तुम्हारे पांव दबाते सदियां निकल गई। मेरे हाथ दुखने लगे हैं। आखिर कोई तो सीमा होगी। कब तक दबाऊंगी? मैं तुम्हारे पांव के आगे की दुनिया देख ही नहीं पाती।" भगवान विष्णु चौंक कर शेषनाग की शैय्या से एकदम उछल कर बैठ गये। उन्होंने लक्ष्मी को छूकर देखा। उनकी बातों से बगावत की बू आ रही थी। विस्मय से पूछा- "क्या हुआ भगवती? आज मुझे नाम लेकर पुकार रही हो। अभी तक तो प्राणेश्वर या जगदीश्वर कहकर बुलातीं थीं। आज सीधे नाम पर आ गई। और यह क्या कह रही हो कि चरण नहीं दबाओगी। क्यों? पृथ्वीलोक का चक्कर लगा कर आ रही हो?" "मुझसे क्यों पूछते हो विष्णु? तुम तो तीनों लोकों के अन्तर्यामी और स्वामी हो। मेरे मन में हाहाकार मचा है। क्या तुम मेरा मन नहीं पढ़ सकते? आखिर कब तक सोते रहोगे। बहुत सो लिए, अब नहीं सोने दूंगी। स्...
पाती
कविता

पाती

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** ये पाती अनुबंध न कोई भावों का अनुदान न कोई जाने कितने स्वप्न सलोने कितने अभिलाषा के सागर कितने सौगंधों के ढेर पार न कोई। वहीं तुम्हारी प्यारी बतियां डस लेती हैं काली रतियां मन की भाषा ही पढ़ती है तन से है संबंध न कोई। पुरवा के झोंके सी खुशबू मन प्राणों में महके खुशबू तन में महक समाई ऐसे महक उठा हो उपवन कोई। भावों का छलका घट सारा भुजबंधों का मिला सहारा फिर कोई सूरज उग आया भीगे वर्षाजल में जैसे मन की धरती धूप नहाई। फिर गरजे हैं बादल काले रिमझिम रिमझिम बरसे सारे पता नहीं क्यों तुमसे अब तक टूटा है तटबंध न कोई। परिचय :- सुधा गोयल निवासी : बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
बीस साल बाद
कहानी

बीस साल बाद

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** "बीजी, देखो मेरा करनू घर लौट रहा है पूरे बीस साल बाद। मैंने एक ही नजर में पहचान लिया। जरा भी नहीं बदला है। सुलेखा-सुचित्रा, तुम भी देखो। "खुशी से उछलती कूदती अखबार हाथ में लिए सावित्री अंदर भागी। "सवि पुत्तर, कौन करनू? तू किसके लौटने की खुशी में पागल हो रही है। यहां तो कोई करनू नहीं है। "बीजी ने आश्चर्य से पूछा। "देखो, वहीं करनू जो बीस साल पहले गुम हो गया था। "कहते हुए सावित्री ने अखबार बीजी के सामने फैला दिया और अंगुली से इशारा कर करनू का चित्र दिखाने लगी। उसकी आंखों में उमड़ी खुशी छुपाए नहीं छुप रही थी या कि बाहर आने को मचल रही थी। उसने बीजी के सामने से अखबार उठाया और करनू के चित्र को पागलों की तरह चूमने लगी। ये सब देख कर बीजी के दिल में घंटियां सी बजने लगीं। वे फौरन समझ गई कि सावित्री क्या कहना चाह रही है। करनू के मिलने के का...
लेखक की आत्मा
व्यंग्य

लेखक की आत्मा

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** पसीने से तर-बतर, लस्त पस्त से यमराज भगवान विष्णु को प्रणाम कर नतमुख खड़े हो गए। "वत्स यम, आज इतने थके और उदास क्यों लग रहे हो?" "भगवान, इस सेवक को अब आप सेवामुक्त करें। बहुत दौड़ लिया। अब नहीं दौड़ा जाता"- कहते कहते यमराज का कंठ अवरुद्ध हो गया। "ऐसी भी क्या बात है यम? जब से सृष्टि का निर्माण हुआ है तुम अपना काम पूरी निष्ठा और लगन से कर रहे हो। अब क्या हो गया?इतने घबराए और निराश क्यो हो? सेवा समाप्त करने से समस्या का हल नहीं निकल पाएगा।" पांव पकड़ लिए यमराज ने। "निश्चिंत होकर कहो क्या कष्ट है? संकोच मत करो।" यमराज ने हिम्मत जुटाई। करबद्ध हो बोले- "भगवन्, आपने मुझे एक वृद्ध लेखक की आत्मा लेने भेजा था।" "हां हमें याद है। परिवार वाले उससे तंग आ चुके हैं। उम्र भी पिचानवें साल है। बहू बेटे रोज मंदिर में दीपक जलाकर प्रार्थना करते है...
आंखें … एक ऐतिहासिक कहानी
कहानी

आंखें … एक ऐतिहासिक कहानी

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** शाम का धुंधलका फैलने में अभी देर थी। पवन में हलकी सी सरसराहट थी। पक्षी उद्यान में क्रीड़ारत थे। सरोवर के स्वच्छ जल में अस्ताचलगामी सूर्य का प्रतिबिंब किसी चपल बालक की तरह अठखेलियां कर रहा था। कमल हंस रहे थे। मोर नाच रहे थे। सुगंधित समीर उड़कर गवाक्ष में एकाकी, मौन, शून्य में निहारती महादेवी तिष्यरक्षिता की अलकों से अठखेलियां कर रहा था। परंतु वह इस समय इस सबसे बेखबर अपने ही विचारों में खोई थी। उनके रुप माधुर्य की आभा तिरोहित होते सूर्य की रश्मियों के साथ मिलकर दुगुनी हो गई थी। प्राकृतिक दृश्य पावक बनकर महादेवी के तन-मन को प्रज्वलित करने लगे थे। जब शाम अपने डैने फैलाए राजमहल की प्राचीरों पर उतरती तब महादेवी का मन उदास हो जाता। और सम्राट अशोक का इंतजार करते-करते वे कमलिनी सी मुरझा जाती। श्रृंगार ज्योति विहीन हो जाता। काम की दारुण ज्व...