पुरानी पेंशन
सीमा रंगा "इन्द्रा"
जींद (हरियाणा)
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रोक ली क्यों पुरानी पेंशन,
अब तो कर दो लागू।
आस लगाए बैठे कब से,
बन बैठे क्या साधू।
यहां जवानी अपनी खो दी,
कैसे कटे बुढ़ापा।
नहीं सुनी जो बातें हमारी,
हम खो देंगे आपा।।
हक हमारा देते नहीं है,
वंचित करते हमको ।
सता के हम सबको यूं,
मिलता क्या है तुमको।
मात- पिता से रहते हरदम,
दूर बहुत सपनों से।
घर बार दिया है छोड़ हमने,
दूर रहें अपनों से।।
शपथ सभी ने मिलकर ली थी,
नाम देश हो कतरा।
आंधी आए तूफान आए,
नहीं हमें है खतरा
दो -दो पेंशन है नेता की,
हमें एक न मिलती।
कब तक रहेगा दोगलापन,
घर पर खुशी ने खिलती।।
करो बहाल पुरानी पेंशन,
खुशी दिला दो हमको।
दुख से मिल जाएं छुटकारा,
अपना कहेंगे तुमको ।
जीवन को खुशहाल बना दो,
करते हो क्यों देरी।
सब कुछ है हाथ में तुम्हारे,
बात सुनो जी मेरी।।
परिचय :- ...