Thursday, November 7राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: सरिता चौरसिया

जाने भी दो यार
कविता

जाने भी दो यार

सरिता चौरसिया जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** जाने भी दो यार.. छोड़ो ना यार, अब जाने भी दो कहां तक लेकर चलोगे गिले, शिकवे एक-दूसरे के बिना तो जी भी ना सकोगे, कभी खेले थे एक संग, पकड़ कर जिसकी उंगली सीखा था एक-एक पग रखना करता था जो तुम्हारी फिक्र कभी खुद से भी ज्यादा, जीता था जो तुम्हारे लिए कभी खुद से भी ज्यादा तुम्हारे सपने थे जिसके लिए उसकी नींद भी थी तुम्हारे लिए, एक सवाल पूछना खुद से किसी दिन, गर फुर्सत मिले दुनियादारी से तो, खुद को तलाश करने की जेहमत करना, एक बार ज़रूर कि नाराजगी तो ठीक है शिकायतें भी ठीक हैं पर क्या मुहब्बत से शिकायत का ओहदा ज्यादा बड़ा है ? आज हैं कल रहें ना रहें फिर किससे करोगे शिकायतें किससे रूठोगे? अब तो मान भी जाओ ना रूठो इस तरह क्या पता फिर मिले न मिले।। परिचय :- सरिता चौरसिया पिता : श्री पारसनाथ चौरसिया शिक्षा : एम...
पौधे से बात
कविता

पौधे से बात

सरिता चौरसिया जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** एक दिन अपने घर के बरामदे में खड़ी कुछ विचारों में डूबी देख रही थी, गमले के पौधों को बड़े ही गौर से जाने मन क्यूं खो गया एक छोटा सा नन्हा सा पौधा झांक रहा था मिट्टी के भीतर से मुझे देखा उसने और मुस्कुराया लगा कुछ कहना चाहता है, पूछा मैंने क्यूं मुस्कुराए, वो बोला, मैं आज दुनिया को देख रहा हूं कल मैं भी बड़ा हो जाऊंगा फलदार वृक्ष बनूंगा, हरा-भरा हो जाऊंगा पर सोचा है कभी मुझे यह तक कौन लाया? एक बीज था मुझसे पहले इस धरती पर उसने खुद को मिटा दिया सौंप दिया खुद को इस मिट्टी के हाथों में कि भले ही मैं ना रहूं पर संभाल लेना मेरी इस अमानत को मेरा अस्तित्व नहीं मिटने देना, मत जाने देना व्यर्थ मेरा ये त्याग, समर्पण, मैं जड़ बन कर भी मिट्टी के भीतर से उसको देखूंगा जो है मेरी ही परछाईं। पौधा फिर से बोला मुझसे ...
अब की आई ऐसी दिवाली
कविता

अब की आई ऐसी दिवाली

सरिता चौरसिया जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अब की आई ऐसी दिवाली कुछ आंसू कुछ दीपों वाली, जग सारा जगमग जगमग है रोशन हर इक गली डगर है, देश नगर भर कर उमंग में नए चरम को छूता है, अंधकार और तम विनाश को लड़ियां झूमर झालर लाए सजी रंगोली बंदनवार सजाए हमने, पूजन-पाठ आरती मंगल दीप धूप महकाया सबने, नए-नए रंग रूप संवारे सज धज लगते सभी प्यारे खीर-पूरी पकवान पकाए सब लोगों ने मौज उड़ाए, द्वार खड़े हम कुछ यूं खोए सब आए हैं, सब आयेंगे, बस मेरे पापा ना आए, फ़ोन कॉल के लिए तरसते रह गए मेरे कान, मेरे प्यारे बाबूजी की हैप्पी दिवाली सुन पाने को, अबकी आई कुछ ऐसी दिवाली, कुछ आंसू कुछ दीपों वाली।। परिचय :- सरिता चौरसिया पिता : श्री पारसनाथ चौरसिया शिक्षा : एम. ए. हिंदी (बी.एड.) जन्म स्थान : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्...
सन्नाटा…
कविता

सन्नाटा…

सरिता चौरसिया जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** अंधकार को चीर कर आती झींगुर की आवाजे सनसनाती हुई हवाओं का झोंका पेड़ों के झुरमुट से झांकता, ताकता, चांदनी की झिलमिल आहट सन्नाटा... छू जाती है अंतर्मन को। कौन कहता है? सन्नाटे से डर लगता है? हां, लगता है डर, बिल्कुल लगता है मुझे भी लगता था बहुत डर, जब मैं छोटी थी, हर सन्नाटे से कांपता था मन हर कोने को ताड़ता था मन, शायद कोई झांक रहा हो, खट पट की आहट पर, लगता कोई मुझको डरा रहा हो।। आज परिस्थिति उलटी है, नही लगता डर अब किसी सन्नाटे से, किसी अंधेरे से अब तो अच्छा लगता है एकांत एकांत ही मन की शान्ति है अब तो झींगुर की आवाज में भी संगीत सुनाई पड़ता है, चांदनी के झिलमिल में प्रकाशित होता मन जाना चाहता है विश्रांति की ओर रोजमर्रा की जिम्मेदारियों के बीच अब खुद को तलाशता है मन नही लगता अब कभी सन्...