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बेटियों के दर्द
कविता

बेटियों के दर्द

संध्या शुक्ला अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** आइए महसूस करिए बेटियों के दर्द को, देखिए मतलब की गंगा में नहाते हुए मर्द को। वो औरत जिसने जन्म देकर है तुम्हे पाला यहां, जिसके दूध से जली जीवन की ज्वाला यहां। बहन जिसके धागे की अमानत है कलाई पर, हर बहन का कर्ज वो जो है चढ़ा हर भाई पर। वो बाप जिसकी इज्जत की हर कल्पना बेटी से है, घर की दीवारें सुने हर गर्जना बेटी से है। वो बाप जिसका पुत्र एक और बेटियां दो-तीन हैं, वो प्रेम के सागर तले बेटे में ही क्यों लीन है। इज्जत बचाना काम सबने सौंप बेटी को दिया, बेटा चाहे आबरू छीने बने या माफिया। आबरू को लूट कर भी बेटा कुल का अंश क्यों, बेटी जो बस प्रेम कर ले तो उठेगी उंगलियां। हर धर्म में बेबसी और यातना से ऊब कर, मर गई हैं जानें कितनी बेटियां यूं टूटकर। परिचय :-  संध्या शुक्ला शिक्षा : परास्नातक नि...