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Tag: संजय वर्मा “दॄष्टि”

गीतों चलन होता अमर 
आलेख

गीतों चलन होता अमर 

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" ===================== गीत  की कल्पना, राग, संगीत के साथ गायन  की मधुरता  कानो  में मिश्री घोलती साथ ही साथ मन को प्रभावित भी करती है। गीतों का इतिहास भी काफी पुराना है। रागों के जरिए दीप का जलना, मेघ का बरसना आदि किवदंतियां प्रचलित रही है, वही गीतों  की राग, संगीत  जरिए  घराने भी बने है। गीतों का चलन तो आज भी बरक़रार है जिसके बिना फिल्में अधूरी सी लगती है। टी वी, रेडियों, सीडी, मोबाइल आइपॉड आदि अधूरे ही है। पहले गावं की चौपाल पर कंधे पर रेडियो टांगे लोग घूमते थे। घरों में महत्वपूर्ण स्थान होता का दर्जा प्राप्त था। कुछ घरों में टेबल पर या घर के आलीए में कपड़ा बिछाकर उस पर रेडियों फिर रेडियों के ऊपर भी कपड़ा ढकते थे जिस पर कशीदाकारी भी रहती थी। बिनाका -सिबाका गीत माला के श्रोता लोग दीवाने थे। रेडियों पर फरमाइश गीतों की दीवानगी होती जिससे कई प्रेमी - प्रे...
दबी आवाजे
कविता

दबी आवाजे

रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि" कौन उठाए आवाज समस्याओं के दलदल  भरे हर जगह रोटी कपडा मकान का पुराना रोना रोने के गीत वर्षो से गा रहे गुहार की राग में भूखे रहकर उपवास की उपमा ऊपर वाला भी देखता तमाशे दुनिया की जध्धो जहद जो उलझी मकड़ी के जाले में फंसी ऐसे जीव की हालत जिसे निचे वाला भले ही पद बड़ा हो सुलझा न सका वो ऊपर वाले से वेदना के स्वर की अर्जी प्रार्थना के रूप में देता आया अपने आराध्य को धरा पर कौन सुने गुहार जैसे श्मशान में मुर्दे को ले जाकर उसकी गाथाएं भी श्मशान के दायरे में हो जाती सिमित भूल जाते इंसानी काया की तरह हर समस्या का निदान करना परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- 2-5-1962 (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व ...