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Tag: संजय वर्मा “दॄष्टि”

उड़ान
कविता

उड़ान

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पिता बेटी की आँखों में देखता सपने, कल्पनाएँ अन्तरिक्ष में उड़ानों के पंख संजोता सपनों में। मन ही मन बातें करता बुदबुदाता मेरी बेटी का ध्यान रखना जानता हूँ अन्तरिक्ष में मानव नहीं होते इसलिए हेवानियत का प्रश्न नहीं उठता। पिता हूँ फिक्र है मुझे बड़ी हो चुकी बेटी की छट जाते है, जब भ्रम के बादल तब दूर से सुनाई देती है भीड़ भरी दुनिया में उत्पीडन की आवाजें उन्हें रोकने का बीड़ा उठाती बेटी की आक्रोशित आँखे। देती चीखों के उन्मूलन का देखता हूँ विस्मित नज़रों से फिर से संजोये सपनो को बेटी की आँखों में उडान उत्पीडन से निपटने की होंसलो, कल्पनाओ के साथ। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं मे...
पहाड़
कविता

पहाड़

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पेड़ों की पत्तियां झड़ रही मद्धम हवा के झोकों से चिड़िया विस्मित चहक रही मद्धम खुशबू से हो रहे पहाड़ के गाल सुर्ख पहाड़ अपनी वेदना किसे बताए वो बता नहीं पा रहा एक पेड़ का दर्द लोग समझेंगे बेवजह राइ का पर्वत पहाड़ ने पेड़ो की पत्तियों को समझाया मै हूँ तो तुम हो तुम ही तो कर रही मौसम का अभिवादन गिरी नहीं तुम बिछ गई हो और आने वाली नव कोपलें जो है तुम्हारी वंशज कर रही आने इंतजार कोयल मीठी राग अलाप लग रहा वादन शहनाई का गुंजायमान हो रही वादियाँ में गुम हुआ पहाड़ का दर्द जो खुद अपने सूनेपन को फूलों की चादर से ढाक रहा कुछ समय के लिए अपना तन... परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व...
चिड़ियों की चहचहाहट
कविता

चिड़ियों की चहचहाहट

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** बादलों की ओट में खिला छुपा चाँद पहाड़ों पर जाती पगडण्डी मन आकाश में चाँद के इंतजार में घुप्प अंधेरा रात स्याही विरहन सी। पत्तो की सरसराहट उल्लू की कराहती आवाजे लगता मृत्यु जीवन को गले लगाए बैठी चाँद निकला बादलों से। सूखे दरख्तो सूखी नदियों ने ओढ रखा हो धवल चाँदनी का कफ़न। जंगल कम नदियाँ प्रदूषित हो सूखी मानों ऐसा लगता मौत हो चुकी पर्यावरण की। धरा से आँखे चुराता चाँद छूप जाता बादलों की ओट निंद्रा टूटी स्वप्न छूटा भोर हुई उजाला आया नई उम्मीदों से जंगल सजाने। नदियों की कलकल चिड़ियों की चहचहाहट ने दिया पर्यावरण को पुनर्जन्म। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार प...
कहाँ खो गई गोधूलि
कविता

कहाँ खो गई गोधूलि

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** शाम को उड़ती धूल में देखता आकाश की लालिमा सूरज की धुँधली छवि सूरज लेता शाम को सबसे अलविदा गाय के गले में बंधी घंटिया सूरज की करती हो शाम की आरती गोधूलि की धूल बन जाती गुलाल धरा से आकाश को कर देती गुलाबी नित्य ये पूजन चला करता वर्षा ऋतु धूल और सूरज छिप जाते देव कर जाते शयन ये गाँव की कहानी शहरों में धूल कहाँ औऱ सूरज भी कहाँ सीमेंट की ऊंची बिल्डिंग सड़के डामर की कहाँ गाय के गले मे आरती की घँटी गोधूलि का महत्व गाँव मे होता शहरों में तो काऊ महज पढ़ाया जाता गाँव प्रकृति से सजा इसलिए तो सुंदर है सोचता हूँ गॉव जाकर प्रकृती को पुनःपहचानू। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ ...
किताबें
कविता

किताबें

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** किताबें भी कहती हैं शब्दों में हमसे कुछ ज्ञान पाते रहो, हमें भी अपने घरो में फूलो कि तरह बस यूँ ही तुम सजाते रहो। किताबें बूढी कभी न हो तो इश्क कि तरह ये ख्यालात दुनिया को दिखाते रहो, कुछ फूल रखे थे किताबों में यादों के सूखे हुए फूलो से भी महक ख्यालो में तुम पाते रहो। आँखें हो चली बूढी फिर भी मन तो कहता है पढ़ते रहो, दिल आज भी जवाँ किताबों की तरह पढ़कर दिल को सुकून दिलाते रहो। बन जाते है किताबों से रिश्ते मुलाकातों को तुम ना गिनाया करों, माँग कर ली जाने वाली किताबों को पढ़कर जरा तुम लौटाते रहो। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और...
माँ के लिए
गीत

माँ के लिए

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** ईश्वर से अनाथ बालक की विनती मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार माँ करती है, प्यार-दुलार ये बतियाते है मुझसे-यार मै अनाथ ये क्या जानूँ क्या होता है माँ का प्यार बिन माँ के लगते सूने त्यौहार। मैने देखी ही नहीं …। माँ का आँचल आँखों का काजल मीठे से सपने जैसे खो गए हो अपने बिन माँ के लगता है कोरा संसार। मैने देखी ही नहीं.... ऊपर वाले ओ रखवाले अंधेरों में भी देता उजियाले मेरी विनती सुन, दे माँ का प्यार बिन माँ के कहाँ से पाउँगा माँ का प्यार। मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार माँ करती है, प्यार-दुलार ये बतियाते है मुझसे-यार मै अनाथ ये क्या जानूँ क्या होता है माँ का प्यार बिन माँ के लगते सूने त्यौहार। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन...
अनंत
कविता

अनंत

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** कठिनाइयों में सोचने की शक्ति आर्थिक कमी से बढ़ जाती संपन्न हो तो सोच की फुरसत हो जाती गुम। अपनी क्षमता अपनी सोच बिन पैसों के होजाती बोनी पैसे हो तो घमंड का बटुवा किसी से सीधे मुँह बात कहा करता। बड़े होना भी अनंत होता हर कोई एक से बड़ा छोटा जीता अपनी कल्पना और आस की दुनिया में। आर्थिकता से भले ही छोटा हो मगर दिल से बड़ा और मीठी वाणी से जीत लेता अपनों का दिल। बड़प्पन की छाया में हर ख़ुशी में वो कर दिया जाता/या होजाता दूर। इंसान का ये स्वभाव नहीं होता पैसा बदल जाता उसके मन के भाव जिससे बदल जाते स्वभाव जो रिश्तों में दूरियां बना मांगता ईश्वर से और बड़ा होने की भीख बड़ा होना इसलिए तो अनंत होता। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन...
सुमिरन
कविता

सुमिरन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जिंदगी का क्या भरोसा ये किसी को पता नहीं मृत्यु अटल सत्य ये सब को पता। स्वस्थ मन तन मीठी वाणी अपनाकर तनाव को मस्तिष्क से परे कर दो पल आराध्य को याद करो। जीवन की दौड़भाग में ये कार्य भी उतना ही आवश्यक जितना माता -पिता की सेवा। क्योंकि इच्छाए अनंत होती हर कोई एक दूसरे से बड़ा बनना चाहता इस होड़ में उम्र गुजरती जाती बाकि रोजी रोटी की जुगाड़ में गुजरती। जीवन को पटरी पर लाना बीमारियों और महँगी शिक्षा से उभरना चाहता इंसान मगर ,फिर तनाव घर बसा लेता मस्तिष्क में। जीवन चक्र में उलझ कर भूल जाता इंसान आराध्य को याद करना किंतु विपत्ति में स्वतः याद आजाते अपने अपने आराध्य जिनका सुमिरन कुछ तो कम करेगा मस्तिष्क में तनाव। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल ...
रंगों से रंगी दुनिया
गीत

रंगों से रंगी दुनिया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मैने देखी ही नहीं रंगों से रंगी दुनिया को मेरी आँखें ही नहीं ख्वाबों के रंग सजाने को। कौन आएगाआँखों में समाएगा रंगों के रूप को जब दिखायेगा रंगों पे इठलाने वालों डगर मुझे दिखाओं जरा चल सकूँ मै भी अपने पग से रोशनी मुझे दिलाओं जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .... याद आएगा, दिलों मे समाएगा मन के मित को पास पाएगा आँखों से देखने वालों नयन मुझे दिलों जरा देख सकूँ मै भी भेदकर इन्द्रधनुष के तीर दिलाओं जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .... जान जायेगा, वो दिन आएगा आँखों से बोल के कोई समझाएगा रंगों को खेलने वालों रोशनी मुझे दिलाओं जरा देख सकूँ मै भी खुशियों को आँखों मे रोशनी दे जाओ जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .... परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पित...
चंपा का फूल
कविता

चंपा का फूल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** चंपा के फूल जैसी प्रिये काया तुम्हारी मन को आकर्षित कर देती जब तुम खिल जाती हो चंपा की तरह। तुम भोरे, तितलिया के संग जब भेजती हो सुगंध का सन्देश वातावरण हो जाता है सुगंधित और मै हो जाता हूँ मंत्र मुग्ध। प्रिये जब तुम सँवारती हो चंपा के फूलो से अपना तन जुड़े में, माला में और आभूषण में तो लगता स्वर्ग से कोई अप्सरा उतरी हो धरा पर। उपवन की सुन्दरता बढती जब खिले हो चंपा के फूल लगते हो जैसे धवल वस्त्र पर लगे हो चन्दन की टीके। सोचता हूँ क्या सुंदरता इसी को कहते मै धीरे से बोल उठता हूँ प्रिये तुम चंपा का फूल हो। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में न...
संकल्प
कविता

संकल्प

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अंग्रेजी के शब्दों से हो रहा हिंदी के इंद्रधनुष के साहित्य शाला का रंग फीका। मानव देख रहा धुंधलाई आँखों से और व्यथित मन सोच रहा लिखने, पढ़ने में क्यों? बढ़ने लगे हिंदी में अंग्रेजी के मिलावट के खेमे। शायद, मिलावट के प्रदूषण ने हिंदी को बंधक बना रखा हो। तभी तो हिंदी सिसक-सिसक कर हिंदी शब्दों की जगह गिराने लगी लिखने, पढ़ने ,बोलने में तेजाबी अंग्रेजी आँसू। साहित्य से उत्पन्न मानव अभिलाषा मर चुकी अंग्रेजी के वायरस से। कुछ बची वो स्वच्छ ओंस सी बैठी हिंदी विद्वानो की जुबां पर। सोच रही है आने वाले कल का हिंदी लिखने, पढ़ने, बोलने से ही तो कल है हिंदी से ही मीठी जुबां का हर एक पल है। संकल्प लेना होगा हिंदी लिखने, पढ़ने,बोलने का आज हिंदी को बचाने का होगा ये ही एक राज। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९...
छतरी
कविता

छतरी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आज आँख भर आईं पिता की जब याद आई बारिश की बूंदों ने दरवाजे के पीछे टंगी पिता की छतरी की याद दिलाई. संभाल कर रखी थी माँ ने छतरी नए जमाने के रेन कोट में बेचारी छतरी की क्या बिसात. मगर ये यादों के दर्द को वो ही महसूस कर सकता जिनके पिता अब नही है बेजान छतरी बोल नही सकती यादों में सम्मलित होकर आंखों से आँसू छलकाने का दम जरूर रखती है जीवन की आपाधापी से परे हटकर दो पल अपनो को जरा याद कर देखे क्योकि ये बेजान बाते नही है यकीन ना होतो फोटो एलबम के पन्ने उलट कर देखे आंखों से आँसू ना झलकें तो दुनिया और रिश्तों से विश्वास उठ ही जाएगा इसलिये अपनो की यादें औऱ उनकी चीजो को संभाल कर रखें ये ही जीवन मे उनके न होने पर उनके होने का अहसास ता उम्र तक कराती रहेगी जैसे पिता की छतरी. परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि...
जल की पाती
कविता

जल की पाती

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** जल कहता है इंसान व्यर्थ क्यों ढोलता है मुझे प्यास लगने पर तभी तो खोजने लगता है मुझे। बादलों से छनकर मै जब बरस जाता सहेजना ना जानता इंसान इसलिए तरस जाता। ये माहौल देख के नदियाँ रुदन करने लगती उनका पानी आँसुओं के रूप में इंसानों की आँखों में भरने लगती। कैसे कहे मुझे व्यर्थ न बहाओ जल ही जीवन है ये बातें इंसानो को कहाँ से समझाओ। अब इंसानो करना इतनी मेहरबानी जल सेवा कर बन जाना तुम दानी।   परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्...
अनंत
कविता

अनंत

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** कठिनाइयों में सोचने की शक्ति आर्थिक कमी से बढ़ जाती संपन्न हो तो सोच की फुरसत हो जाती गुम अपनी क्षमता अपनी सोच बिन पैसों के हो जाती बोनी पैसे हो तो घमंड का बटुवा किसी से सीधे मुँह बात कहा करता? बड़े होना भी अनंत होता हर कोई एक से बड़ा छोटा जीता अपनी कल्पना आस की दुनिया में आर्थिकता से भले ही छोटा हो मगर दिल से बड़ा और मीठी वाणी से जीत लेता अपनों का दिल बड़प्पन की छाया में हर ख़ुशी में वो कर दिया जाता या हो जाता दूर इंसान का ये स्वभाव नहीं होता पैसा बदल जाता उसके मन के भाव जिससे बदल जाते स्वभाव जो रिश्तों में दूरियां बना मांगता ईश्वर से और बड़ा होने की भीख बड़ा होना इसलिए तो अनंत होता। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प...
कागज की नाव
कविता

कागज की नाव

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** बारिश में पानी भरे गड्ढों में कागज की नाव चलाने को मन बहुत करता हम बड़े जरूर हुए ख्यालात तो वो ही है हुजूर रिश्तों के पेचीदा गणित में उलझ जाकर पहचान भूल जाते घर आंगन जो बुहारे गए धूल भरी आंधी सूखे पत्तो संग कागज के टुकड़ों को बिखेर जाती तूफानी हवा सूने आंगन में सोचता हूं कागज की नाव बना लू. गढढो में पानी को ढूंढता हूं किंतु पानी तो बोतलों में बंद बरसात की राह ताकते नजरें थक सी गई जल की कमी से नाव भी अनशन पर जा बैठी जल का महत्व केवट और किसान ज्यादा जानते बचपन में कागज की नाव चलाते और लोग बाग कागजों पर ही नाव चला देते ख़ैर, जल बचाएंगे तभी सब की नाव सही तरीके से चलेगी आने वाली पीढ़ी जल की उपलब्ता से नाव बनाना और चलाना सीख ही जाएगी। . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :-...
हल
कविता

हल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** उम्र को बढ़ता देख मन ठिठक कर हो जाता लाचार विचारों की लहरें लगने लगती सूनामी सी। चेहरा आईने में देख खामोश हो जाता मन ये सोचता संक्रमण की आपदा से कैसे बचा जाए कब तक लड़ा जाए। चिंता की लकीरों को अपने माथे पर उभारता मानो ये कुछ कह रही हो बता रही हो आने वाले समय का लेखा जिसे स्वयं को हल करना। शिक्षित बेरोजगार बेटे की नोकरी और जवान होती लड़की की शादी की चिंता देख वो खुद की बीमारियो पर ढाक देता - स्वस्थ्यता का पर्दा और बार -बार आईने में देखता है अपना चेहरा मन ही मन झूठ कहता मै ठीक हूँ। आखिर खामोश आईना बोलने लगता ये हर घर का मसला जहाँ हर एक के मन में आते इसतरह के छोटे- छोटे भूकम्प। ईश्वर और कर्म से कहे कि वो ऐसे इंसानो की मदद करें जो अपने भाग्य में खोजते रहते इन मसलो का हल। . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा...
रंगों से रंगी दुनिया
गीत

रंगों से रंगी दुनिया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मैने देखी ही नहीं रंगों से रंगी दुनिया को मेरी आँखें ही नहीं ख्वाबों के रंग सजाने को। कोंन आएगा, आखों मे समाएगा रंगों के रूप को जब दिखायेगा रंगों पे इठलाने वालों डगर मुझे दिखावो जरा चल संकू मै भी अपने पग से रोशनी मुझे दिलाओं जरा ये हकीकत है कि, क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं ........................... याद आएगा, दिलों मे समाएगा मन के मित को पास पायेगा आँखों से देखने वालों नयन मुझे दिलाओं जरा देख संकू मै भी भेदकर इन्द्रधनुष के तीर दिलाओं जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .............................. जान जाएगा, वो दिन आएगा आँखों से बोल के कोई समझाएगा रंगों को खेलने वालों रोशनी मुझे दिलावों जरा देख संकू मै भी खुशियों को आखों मे रोशनी दे जाओ जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने...
नयन
कविता

नयन

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नीर भरे नयन पलकों पर टिके रिश्तों का सच बिन बोले कहते यादों की बातें ठहर जाते है पग सुकून पाने को थके उम्र के पड़ाव निढाल हुए मन पूछ परख रास्ता भूलने अब लगी राहें इंतजार की रौशनी चकाचोंध धुंधलाए से नयन कहाँ खोजे आकृति जो हो गई अब दूरियों के बादलों में तारों के आँचल में निगाह से बहुत दूर जिसे लोग देखकर कहते-वो रहा चाँद . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से...
कलम लेखन से संवरते अक्षर, उदय होते नए विचार
आलेख

कलम लेखन से संवरते अक्षर, उदय होते नए विचार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के जरिए लेखन भले ही सरल प्रक्रिया हो गई हो। कलम के माध्यम से जो विचार और अक्षर निखरते है उसकी बात ही कुछ और होती है। इस और ध्यान ना देने से हैंडराइटिंग ख़राब होने की वजह भी यही रही है। व्याकरण त्रुटि ना के बराबर रहती है। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल के साथ -साथ हैंडराइटिंग को भी जारी रखें। क्योकि कलम से कागज पर लिखी जाने वाले लेखन विधा कम्प्यूटर युग में खो सी जाने लगी। सुन्दर अक्षरों की लिखावट के पहले अंक मिलते थे। साथ ही सुन्दर लेखन की तारीफे होती थी जो जीवन पर्यन्त तक साथ रहती थी, स्कूलों, विभिन्न संस्थाओं द्धारा सुन्दर लेखन प्रतियोगिता भी होती थी। अब ये विधा शायद विलुप्ति की कगार पर जा पहुंची। लेखन विधा को विलुप्त होने से बचाने हेतु लेखन विधा के प्रति अनुराग को हमें जारी रखना होगा। ये लेखन एक सागर के सामान...
चार कांधों की दरकार
कविता

चार कांधों की दरकार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** सांसों के मध्य संवेदना का सेतु ढहते हुए देखा देखा जब मेरी सांसे है जीवित क्या मृत होने पर सवेंदनाओं की उम्र कम हो जाती या कम होती चली जाती भागदोड़ भरी जिंदगी में वर्तमान हालातों को देखते हुए लगता है शायद किसी के पास वक्त नहीं किसी को कांधा देने के लिए समस्याओं का रोना लोग बताने लगे और पीड़ित के मध्य अपनी भी राग अलापने लगे पहले चार कांधे लगते कही किसी को अब अकेले ही उठाते देखा, रुंधे कंठ को बेजान होते देखा खुली आँखों ने संवेदनाओं को शुन्य होते देखा संवेदनाओ को गुम होते देखा ह्रदय को छलनी होते देखा सवाल उठने लगे मानवता क्या मानवता नहीं रही या फिर संवेदनाओं को स्वार्थ खा गया लोगों की बची जीवित सांसे अंतिम पड़ाव से अब घबराने लगी बिना चार कांधों के न मिलने से अभी से जबकि लंबी उम्र के लिए कई सांसे शेष है ईश्वर से क्या वरदान मांगना चाहिए ? बि...
जान है तो जहान है
व्यंग्य

जान है तो जहान है

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ********************  वर्तमान फेसबुक, वाट्सअप, इंस्ट्राग्राम ने टीवी, वीडियो गेम्स, रेडियो आदि को लॉकडाउन में चाहने लगे। कहने का मतलब है की दिन औऱ रात इसमे ही लगे रहते है। यदि घर पर मेहमान आते और वो आपसे कुछ कह रहे। मगर लोगो का ध्यान बस फेसबुक, वाट्सअप पर जवाब देने में और उनकी समझाइश में ही बीत जाता। मेहमान भी रूखेपन से व्यवहार में जल्द उठने की सोचते है। घर के काम तो पिछड़ ही रहे।फेसबुक, वाट्सअप का चस्का ऐसा की यदि रोजाना सुबह शाम आपने राम-राम या गुड़ मोर्निंग नही की तो नाराजगी। इसका भ्रम हर एक को ऐसा महसूस होता कि-मैं ही ज्यादा होशियार हूँ। अत्याधिक ज्ञान हो जाने का भ्रम चाहे वो फेंक खबर हो। उसका प्रचार भले ही खाना समय पर ना खाएं किन्तु खबर एक दूसरे को पहुंचाना परम कर्तव्य समझते है। पड़ोसी औऱ रिश्तेदार अनजाने हो जाते। मगर क्या कहे भाई इन्हें तो बस दूर के ...
संक्रमण का अंधेरा
कविता

संक्रमण का अंधेरा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** रोशनी से जागती उम्मीदों की किरण अंधेरों को होती उजालों की फिक्र सूरज है चाँद है बिजली है इनमें स्वयं का प्रकाश होता ये स्वयं जलते दिये में रोशनी होती मगर जलाना पड़ता सब मिलकर दीप जलाएंगे धरती पर करोड़ो दीप जगमगाएंगे औऱ ये बताएंगे संक्रमण के अंधेरों को एकता के उजाले से दूर करके स्वस्थ जीवन को दूरियां बनाकर देखा जा सकता पाया जा सकता। . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता...
अप्रैल फूल
कविता

अप्रैल फूल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अप्रैल फूल कही खिलता नहीं मगर खिल जाता मजाक के घर में एक अप्रैल को क्या, क्यों, कैसे ? अफवाओं की खाद से और उसे सींचा मगरमच्छ के आँसू से लोगों ने इस अप्रैल फूल को इसीलिए ये पौधा झूठ के गमले में फल फूल रहा वर्षो से लोग झूठ को भी सच समझने लगे क्या अप्रैल फूल के बीज फैलने लगे है पूछे, तो लोग कहते -हाँ बस एक अप्रैल को ही दुकानों पर मिलते है आप को विश्वास हो तो आप भी लगाने के लिए ले आए घर की बालकनी में और आँगन में लोगो को जरूर दिखाए आपके यहाँ एक अप्रैल का फूल खिला ताकि उन्हें कुछ तो विश्वास हो आप पर एक अप्रैल को भी सुंदर सा फूल खिलता है जैसे वर्षों बाद खिलता है ब्रह्म कमल जिसे सब ने देखा है मगर अप्रैल फूल कभी नहीं देखा शायद एक अप्रैल को ही हमे देखने का सौभाग्य प्राप्त हो? . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालज...
फूलों की बातें
कविता

फूलों की बातें

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** फूलों का ये कहना दिल की बातें दिल में ही रखना छीन ले जाता कोई खुश्बू बस इस बात का तो रोना फूल बिन सेहरे-गजरे उदास हुए याद नहीं क्यों सांसे उतनी ही बची फूलों की न जाने तितली-भोरें फूलों के क्यों खास हुए उडा न पवन खुशबुओं को इस तरह मोहब्बतें भी रूठ जाएगी बेमौसम के पतझड़ की तरह कुछ याद रहेगी खुशबुओं की जब तक रहेगी धड़कन से सांसों की तरह खुश्बुएं भी रूठ जाती फूलों से काँटों की पहरेदारी बनती दगाबाज की तरह तोड़ लेता कोई जैसे अपने रूठे को मनाने की तरह चाह है बनना पेड़ के फूलों की तरह क्यारियों के फूल तो अक्सर टुटा करते इंसान भी बेवजह क्यों सबसे रूठा करते . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत...
उडती अफवाए
कविता

उडती अफवाए

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अफवाए भी उडती/उड़ाई जाती है जैसे जुगनुओं ने मिलकर जंगल मे आग लगाई तो कोई उठ रहे कोहरे को आग से उठा धुंआ बता रहा तरुणा लिए शाखों पर उग रहे आमों के बोरों के बीच छुप कर बैठी कोयल जैसे पुकार कर कह रही हो बुझालों उडती अफवाओं की आग मेरी मिठास सी कुहू-कुहू पर ना जाओं ध्यान दो उडती अफवाओं पर सच तो ये है की अफवाओं से उम्मीदों के दीये नहीं जला करते बल्कि उम्मीदों पर पानी फिर जाता उठती अफवाहों से अब ख्व्वाबों मे भी नहीं डरेगी दुनिया इसलिए ख्व्वाब कभी अफवाह नहीं बनते और यदि ऐसा होता तो अफवाए मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, गिरजाघर से अपनी जिन्दगी की भीख भला क्यों मांगती? . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभि...