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Tag: संजय वर्मा “दॄष्टि”

बिटियाँ नहीं जान पाती
कविता

बिटियाँ नहीं जान पाती

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** माँ अब मेरे लिए काजल नहीं बनाती ये सब बचपन की बातें थी कि मुझको नजर ना लगे | लेकिन मै तो अभी छोटी हूँ माँ की नज़रों मे भाग दौड़ की जिन्दगी मे मेरा लाड-दुलार भी खो सा गया है | मै सुनना चाहती हूँ मेरे बचपन के नाम की मुझे बुलाने के लिए माँ की मीठी पुकार और गरमा गरम रोटी रात दूध पिया की नहीं माँ की फिक्र को। किंतु अब दीवार पर माला डली है मेरे टपकते आंसुओं को देख कर मेरी माँ मुझसे जैसे कह रही हो छुप हो जा मेरी बिटियाँ | वही फिक्र के साथ मै ख्याल रखने वाला बचपन वापस पाना चाहती हूँ इसलिए माँ की तस्वीर से मन ही मन बातें किया करती हूँ आज भी | मै सोचती हूँ कि क्रूर इन्सान अब क्यों करने लगा है भ्रूण-हत्याए अचरज होता है की मै जाने कैसे बच गई माँ की ममता क्या होती ये मै कभी भी नहीं जान पाती यदि मेरी भ...
बिटिया की बिदाई
कविता

बिटिया की बिदाई

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नन्हें दोनों हाथों से कंकू के छापे अपने पिता को लगाती फिर लिपट के रोती विदा होते ही सबकी आँखों की कोर में आँसू आ ठहरते और आना सुखी रहना कह ढुलक जाते आँसू रिश्ता आँखों और आंसुओ के बीच मन का होता जो डबडबाए नैना अंदर से मन को रुलाता पिता से पूछ कर बिदा होती लगने लगता आसुंओं का बांध फूट गया हो सारी बातें बचपन से लेकर बड़े होने की घूमने लगती आँखों के सामने बिदा के बाद घर आने पर खाना बिना आसूं गिरे खाया हो ये कभी भी ना हुआ दर्द का सच पिता को कुछ ज्यादा ही महसूस करता रोता मन किसे कहे बिटियाँ की बिदाई का दर्द कंकू के छापे जिन्हें देखकर आँसुओं से डबडबाने लगते सूने नयन। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल स...
दायित्व
कविता

दायित्व

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** बकरी चराने गई बिटियाँ को जरा सी देरी हो जाने पर पढने जाने की फिक्र को लिए माँ पुकार रही बिटियाँ को। आवाज पहाड़ों से टकराकर गुंजायमान हो रही नदी भी ऐसे लग रही मानो वो भी बिटियाँ को ढूंढ़ने में बहते हुए अपना दायित्व निभा रही हो। शिक्षा से ही बिटियाँ ने पा लिया एक दिन बड़ा ओहदा माँ की याद आने पर आज बिटियाँ ने पहाड़ों पर से पुकारा जब अपनी माँ को। तब पहाड़ हो चुके थे मोन नदी भी हो चुकी थी सूखी बकरियां भी हो गई गुम। सूना लगने लगा घर। क्योकि इस दुनिया में नहीं है माँ बिटियाँ को शिक्षा का दायित्व देते हुए देखा था इसलिए ये सभी मोन होकर दे रहे माँ को श्रद्धांजलि। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभ...
प्रेम संदेश
कविता

प्रेम संदेश

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आकाश को निहारते मोर सोच रहे, बादल भी इज्जत वाले हो गए बिन बुलाए बरसते नहीं शायद बादल को कड़कड़ाती बिजली डराती होगी सौतन की तरह। बादल का दिल पत्थर का नहीं होता प्रेम जागृत होता है आकर्षक सुंदर, धरती के लिए धरती पर आने को तरसते बादल तभी तो सावन में पानी का प्रे -संदेशा भेजते रहे रिमझिम फुहारों से। धरती का रोम-रोम, संदेशा पाकर हरियाली बन खड़े हो जाते मोर पंखों को फैलाकर स्वागत हेतु नाचने लगते किंतु बादल चले जाते बेवफाई करके छोड़ जाते हरियाली और पानी की यादें धरती पर प्रेम संदेश के रूप में। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में ...
पिता
कविता

पिता

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पिता का दाहसंस्कार कर घर के सामने खड़े होकर अपने पिता को पुकारने की प्रथा जो दाहसंस्कार में सम्मिलित होकर बोल रहे थे कि राम नाम सत्य है उन्हें हाथ जोड़कर विदा करने की विनती भर जाती आँखों में पानी वो पानी बढ जाता गला रुँध जाता, तब जब तस्वीर पर चढ़ी हो माला और सामने जल रहा हो दीपक बचपन की स्मृतियाँ संग पिता आ जाती है मस्तिष्क पटल पर जो काम पिता कर लेते थे वो लोगो से पूछकर करना पड़ता होंसला अफजाई और परीक्षा में पास होने पर पीठ थपथपाई भी गुम सी गई अब में पास हुआ किंतु शाबासी की पीठ सूनी सी है और त्यौहार भी मुँह मोड़ चुके और रौशनी रास्ता भूल गई पकवान और नए कपडे कैद हो गए पेटियों में इंतजार है श्राद पक्ष का पिता आएंगे पूर्वजो के संग धरती पर अपने लोगो से मिलने जब श्राद में पूजन तर्पण और उन्हें याद कर...
पहले बात को समझना चाहिए
संस्मरण

पहले बात को समझना चाहिए

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पहले बात को समझना चाहिए एक वाक्या वो यूँ था- बाबूजी ने साहब के बंगले पर जाकर बाहर खड़े नौकर से पूछा साहब कहाँ है ? उसने कहा "गए" यानि उसका मतलब था की साहब मीटिंग में बाहर गए। बाबूजी ने ऑफिस में कह दिया की साहब गए इस तरह उड़ती-उड़ती खबर ने जोर पकड़ लिया। खैर, कोई माला, सूखी तुलसी, टॉवेल आदि लेकर साहब के घर के सामने पेड़ की छाया में बैठ गए। घर पर रोने की आवाज भी नहीं आरही थी। सब ने खिड़की में से झाँक कर देखा। साहब के घर में कोई लेटा हुआ है और उस पर सफ़ेद चादर ढंकी हुई थी। सब घर के अंदर गए और साथ लाए फूलो को उनके ऊपर डाल दिया। वजन के कारण सोये हुए आदमी की आँखे खुल गई। मालूम हुआ की वो तो साहब के भाई थे जो उनसे मिलने बाहर गावं से रात को आये थे। सब लोग असमझ में थे की बाबूजी को नौकर ने बात समझे बगैर सही तरीके से नहीं की। इसमें बाबूजी का कसूर...
रेडियो की बात निराली
आलेख

रेडियो की बात निराली

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** गीत की कल्पना, राग, संगीत के साथ गायन की मधुरता कानो में मिश्री घोलती साथ ही साथ मन को प्रभावित भी करती है। गीतों का इतिहास भी काफी पुराना है। रागों के जरिए दीप का जलना, मेघ का बरसना आदि किवदंतियां प्रचलित रही है, वही गीतों की राग, संगीत जरिए घराने भी बने है। गीतों का चलन तो आज भी बरक़रार है जिसके बिना फिल्में अधूरी सी लगती है। टीवी, सीडी, मोबाइल आइपॉड आदि अधूरे ही है। पहले गावं की चौपाल पर कंधे पर रेडियो टांगे लोग घूमते थे। घरों में महत्वपूर्ण स्थान का दर्जा प्राप्त था। कुछ घरों में टेबल पर या घर के आलीए में कपड़ा बिछाकर उस पर रेडियों फिर रेडियों के ऊपर भी कपड़ा ढकते थे जिस पर कशीदाकारी भी रहती थी। बिनाका-सिबाका गीत माला के श्रोता लोग दीवाने थे। रेडियों पर फरमाइश गीतों की दीवानगी होती जिससे कई प्रेमी-प्रेमिकाओं के प्रेम के तार आपस...
कोरोना की आपदा में नियमों का पालन ही एकमात्र उपाय है
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कोरोना की आपदा में नियमों का पालन ही एकमात्र उपाय है

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां पर संघन जंगल है। शुद्ध आबोहवा है। इतनी प्राकृतिक संपदा निःशुल्क प्रकृति देती आई है। किंतु कोरोना की आपदा इंसानों पर आगई है। जिससे वो जूझता जा रहा है। वही प्रकृति कई तरह के जीव-जंतु का पोषण कर रही है, साथ ही प्रकृति की आबो हवा निर्मल होगई है। स्वच्छता हर स्थान पर नजर आने लगी है। पृथ्वी के रहवासी संक्रमण से जूझ रहे है, ये संक्रमण को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित अभी तक सुनने पढ़ने में नहीं आया संक्रमण की चेन तोड़ने की बात सभी करते मगर संक्रमण के आँकड़े घटते बढ़ते हर जगह दिखाई देते है। अनलॉक प्रक्रिया भी इसी कारण से बढ़ाई जाती होगी। शाकाहारी और मांसाहारी भोजन करना इंसान की अपनी निजी पसंद होती है। देखा जाए तो शाकाहारी भोजन में स्वास्थ्य के लिए उपयोगी पोषण तत्व रहते ही है। शाकाहारी भोजन को विदेश...
वृक्ष की तटस्था
कविता

वृक्ष की तटस्था

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** हे ईश्वर मुझे अगले जन्म में वृक्ष बनाना ताकि लोगों को ओषधियाँ, फल-फूल और जीने की प्राणवायु दे सकूँ। जब भी वृक्षों को देखता हूँ मुझे जलन सी होने लगती क्योकि इंसानों में तो अनैतिकता घुसपैठ कर गई है । इन्सान-इन्सान को वहशी होकर काटने लगा वह वृक्षों पर भी स्वार्थ के हाथ आजमाने लगा है। ईश्वर ने तुम्हे पूजे जाने का आशीर्वाद दिया क्योंकि बूढ़े होने पर तुम इंसानों को चिताओ पर गोदी में ले लेते शायद ये तुम्हारा कर्तव्य है। इंसान चाहे जितने हरे वृक्ष-परिवार उजाड़े किंतु वृक्ष तुम इंसानों को कुछ देते ही हो। ऐसा ही दानवीर मै अगले जन्म में बनना चाहता हूँ उब चूका हूँ धूर्त इंसानों के बीच स्वार्थी बहुरूपिये रूप से। लेकिन वृक्ष तुम तो आज भी तटस्थ हो प्राणियों की सेवा करने में। परिचय :- संजय वर्मा "द...
बेटियां होगी सुरक्षित
कविता

बेटियां होगी सुरक्षित

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** एक अख़बार में निविदा विज्ञापन दहेज़ के दानव के विनाश हेतु चाहिए एक बाण ऐसी निविदा पढने के बाद दिल को हुआ आराम। पूर्व परिदृश्य में बहुए उत्पीड़न का शिकार होती थी ऐसे हादसों के कारण गावों के कुएं की चरखियां, घट्टीयों की आवाजें ख़त्म होती थी। अब बहुए दहेज उत्पीड़न से जली या जलाई जा रही है ऐसे हादसों के कारण शहरों के मोबाइल संदेश, उत्पीड़न रोकने की आवाजें समाधान हेतु पहुँच नही पा रही। बाजारों में फ्रेमों के और कब्र के पत्थरों के दाम यकायक बढ़ते जा रहे सूने घर और आँचल में बच्चे छुपे कैसे छुपा-छाई का खेल वो भी खोते जा रहे रिश्तों में कड़वाहट, लालची युग का विष घुलता जा रहा। लगने लगा जैसे दहेज़ के लालची दानवों का दायरा बढ़ता जा रहा बढ़ते हुए दायरों को न रोक पाने का कारण यह भी हो सकता कलयुग में बाण चला...
बादल और नदी
कविता

बादल और नदी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** इतनी चुप क्यों हो जैसे रीति नदियाँ तुम्हारी खिलखिलाहट होती थी कभी झरनों जैसी कलकल। रूठना तो कोई तुमसे सीखे जैसे नदियाँ रूठती बादलों से मै बादल तुम बनी स्वप्न में नदी सूरज की किरणें झांक रही बादलों के पर्दे से संग इंद्रधनुष का तोहफा लिए सात रंगों में खिलकर मृगतृष्णा दिखाता नदियों को रीति नदियों में पानी भरने को बेताब बादल सौतन हवाओं से होता परेशान। नदी से प्रेम है तो बरसेगा जरूर नही बरसेगा तो नदियां कहाँ से कलकल के गीत गुनगुनाए। औऱ बादल सौतन हवाओं के चक्कर मे फिजूल गर्जन के गीत क्यों गाए। जो गरजते क्या वो बरसते नही यदि प्यार सच्चा हो तो बरसते जरूर। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - प...
इजहार प्रेम का
कविता

इजहार प्रेम का

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पेड़ पर मौसम आने पर लगते फूल और फल पेड़ प्रेम का प्रतीक बन जाते जब बांधी जाती प्रेम के संकल्प की धागे की गठान पेड़ की टहनी पकड़े करती प्रेम का इजहार या पेड़ के तने से सटकर खड़ी रहती पेड़ एक दिन बीमारी से सूख गया प्यार भी कही खो गया चाहत भी गम में हुआ बीमार एक दिन चला गया मृत्यु की आगोश में संयोग वो जब जला दाहसंस्कार में लकड़ियाँ उसी पेड़ की थी अधूरा इश्क रहा जीवन मे रूह तृप्त हुई इश्क़ की चाहत ने कभी टहनियों को छुआ तो था कभी। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन...
अनदेखी
कविता

अनदेखी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** तरसती आँखें और आस रिश्तों को पाने के लिए तलाशता मन। बिखर गए मोतियों से रिश्ते को फिर से पिरोने की चाह कापते हाथ उठ नहीं पाते देने आशीर्वाद कमजोर देह। किस्से ताजे बुजुर्गी तिरस्कार के पिंजरे में दुबकी उम्र खाना पिंजरे में पक्षी का दाना देते जैसे। कैद पक्षी से भला कौन ज्यादा बातें करता अकेलापन बहुत बुरा होता कलयुग में श्रवणकुमार भला कहा मिलेंगे। भौतिकता की चकाचौंध रिश्तों को निगलती सोच अपने अपने भाग्य की बूढ़े रिश्तों का भाग्य से क्या काम। दकियानूसी सोच मस्तिष्क -दिल को कर देती छोटा रिश्ते की राहें हो चली गुमराह। किंतु बुजुर्गी दरवाजे पर दस्तक को आज भी पहचानती बुजुर्गो की अनदेखी बहुत दूर बसे रिश्ते बरसों बाद दरवाजा थपथपा कर अपनों से दूर रह रहे दूर बसे दुबके रिश्तों को याद आने पर अब देने लगे दस्तक। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पि...
भगवान कृष्ण-वाद्य कला
आलेख

भगवान कृष्ण-वाद्य कला

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ********************                       भगवान कृष्ण के जान से जुडी कथाएं है उनमें से एक यह भी है जब देवकी ने श्री कृष्ण को जन्म दिया, तब भगवान विष्णु ने वासुदेव को आदेश दिया कि वे श्री कृष्ण को गोकुल में यशोदा माता और नंद बाबा के पास पहुंचा आएं, जहां वह अपने मामा कंस से सुरक्षित रह सकेगा। श्री कृष्ण का पालन-पोषण यशोदा माता और नंद बाबा की देखरेख में हुआ। बस, उनके जन्म की खुशी में तभी से प्रतिवर्ष जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। पूजा हेतु सभी प्रकार के फलाहार, दूध, मक्खन, दही, पंचामृत, धनिया मेवे की पंजीरी, विभिन्न प्रकार के हलवे, अक्षत, चंदन, रोली, गंगाजल, तुलसीदल, मिश्री तथा अन्य भोग सामग्री से भगवान का भोग लगाया जाता है। जन्माष्टमी पर्व पर नई पोशाख, मोर पंख, पारिजात के फूलों का भी महत्त्व है ऐसी मान्यता है जन्माष्टमी के व्रत का विधि पूर्वक पूजन क...
रोटी
कविता

रोटी

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** भूख में स्वाद जाने क्यों बढ़ जाता रोटी का झोली/कटोरदान से झांक रही रख रही रोटी भूखे खाली पेट में समाहित होने की त्वरित अभिलाषा ताकि प्रसाद के रूप में रोटी से तृप्त हो ऊपर वाले को कह सके धरा पर रहने वाला तेरा लख-लख शुक्रिया। रोटी कैसी भी हो धर्मनिर्पेक्षता का प्रतिनिधित्व करती भाग -दौड़ भी रोटी के लिए करते फिर भी कटोरदान धरा पर रहने वालों को नेक समझाइश देता कटोर दान में ऊपर-नीचे रखी रोटी मूक प्राणियों के लिए होती सदैव सुरक्षित। दान के पक्ष के लिए रखी एक रोटी की हकदारी से भला उनका पेट कहाँ से भरता ? रोटी की चाहत रोटी को न मालूम रोटी न मिले तो भूखे इंसान की आँखें रोती यदि रोटी मिल जाए ख़ुशी के आंसू से वो गीली हो जाती बस इंसान को और क्या चाहिए ऊपर वाले से किन्तु रोटी की तलाश है अमर। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी व...
बाबुल का घर
कविता

बाबुल का घर

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** निहारती रहती हूँ बाबुल का घर कितना प्यारा है मेरा बाबुल का घर आँगन, सखी, गलियों के सहारे बाबुल का घर लोरी, गीत, कहानियों से भरा बाबुल का घर। बज रही शहनाई रो रहा था बाबुल का घर रिश्तों के आंसू बता रहे ये था बाबुल का घर छूटा जा रहा था जेसे मुझसे बाबुल का घर लगने लगा जेसे मध्यांतर था बाबुल का घर। बाबुल से फरमाइशे करती थी बाबुल के घर हिचकी संकेत अब याद दिलाता बाबुल का घर सब घरों से कितना प्यारा मेरा बाबुल का घर एक दिन तो जाना ही है, छोड़ बाबुल का घर। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे...
मेरी दोस्त गोरैया
कविता

मेरी दोस्त गोरैया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** दस्तक मेरे दरवाजे पर चहकने की तुम देती गौरैया चाय,बिस्किट लेता मैं तुम्हारे लिए रखता दाना-पानी यही है मेरी पूजा मन को मिलता सुकून लोग सुकून के लिए क्या कुछ नहीं करते ढूंढते स्थान। गोरैया का घोंसला मकान के अंदर क्योकि वो संग रहती इंसानों के साथ हम खाये और वो घर में रहे भूखी ऐसा कैसे संभव दान और सुकून इन्हें देने से स्वतः आपको मिलेगा हो सकता है हम अगले जन्म में बने गोरैया और वो बने इंसान दोस्ती-सहयोग कर्म के रूप में साथ रहेंगे। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे...
प्यार
कविता

प्यार

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** कोरोना संक्रमण प्रेम की दूरियां बढ़ाता प्रेम की परिभाषा को लील गया। दूरियां से रिश्ते के समीकरण डगमगा गए और आना शब्द रिश्तों की किताब से जैसे हट गया हो। प्रेम पत्र के कबूतर मर चुके आँखों से ख्वाब का पर्दा उम्र के मध्यांतर पर गिर गया। कुछ गीत बचे वो जब भी बजे दिलों के तार छेड़ गए प्यार के हंसी पल वापस रेत मुठ्ठी में भर गए। दिल से ख्वाब हटते नहीं शायद रूहें भटकती इसलिए की उनसे कभी प्यार खुमार लिपटा हो। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्र...
अप्रैल फूल
कविता

अप्रैल फूल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अप्रैल फूल कही नहीं खिलता मगर खिल जाता एक अप्रैल को क्या, क्यों, कैसे? अफवाओं की खाद से और मगरमच्छ के आँसू से सींचा लोगो ने इस अप्रैल फूल को। इसीलिए ये झूठ का पौधा एक अप्रैल के गमले में फल फूल रहा वर्षो से। लोग झूठ को भी सच समझने लगे झूट के बाजारों में क्या अप्रैल फूल के बीज मिलते जब पूछे, तो लोग कहते-हाँ बस एक अप्रैल को ही दुकानों पर मिलते है। आप को विश्वास हो तो आप भी लगाए घर की बालकनी में और आँगन में लोगो को जरूर दिखाए कहे कि हमारे यहाँ एक अप्रैल का फूल खिला ताकि उन्हें कुछ तो विश्वास हो। एक अप्रेल को भी सुंदर सा फूल खिलता है जैसे वर्षों बाद खिलता ब्रह्म कमल जिसे देखा होगा सबने मगर अप्रैल फूल कभी देखा नहीं शायद एक अप्रैल को हमारे द्वारा बोया ही हमे देखने का सौभाग्य प्राप्त हो। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतील...
माँ
कविता

माँ

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार माँ करती है, प्यार-दुलार ये बतियाते है मुझसे-यार मै अनाथ ये क्या जानूँ क्या होता है माँ का प्यार बिन माँ के लगते सूने त्यौहार मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार माँ का आँचल आँखों का काजल मीठे से सपने जैसे खो गए हो अपने बिन माँ के लगता है कोरा संसार मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार ऊपर वाले ओ रखवाले अंधेरों में भी देता उजियाले मेरी विनती सुन, दे माँ का प्यार बिन माँ के कहाँ से पाउँगा माँ का प्यार मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न...
मौसम
कविता

मौसम

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मोहब्बत को याद करों दिल फिर से जवां हो जाता ख़्वाब हो पुराने मगर आंखों में फिर चमक दे जाता। वसंत के आने से मन गुनगुनाता प्यार का पंछी भी गीत गाता धड़कन ऐसी धड़कती की डालियों से पत्ता टूट जाता। कहते वसंत ऋतु में ऐसे ही आता आमों पर लगे मोर फूल सुहाते ताड़ी के भी ऊँचें पेड़ शोर मचाते सूने पहाड़ भी गीत गुंजाते टेसू भी ये सब देख मुस्कुराते। मौसम भी यदि बेमौसम हो जाते प्यार के मौसम को कैसे भूल जाते रूठना हो तब औऱ मौसम रूठ जाते वसंत ऋतु प्यार को सभी प्रेमी मनाते। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवा...
प्यार ऐसा ही होता
कविता

प्यार ऐसा ही होता

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** धड़कन की चाल बढ़ सी जाती जाने क्यों जब तुम सामने से गुजरती आँखों में अजीब सा चुम्बकिय प्रभाव छा सा जाता शब्दों को लग जाता कर्प्यू देह की आकर्षणता या प्यार का सम्मोहन कल्पनाएं श्रृंगारित आइना हो जाता जीवित राह निहारते बिना थके नैन पहरेदार बने इंतजार के प्यार के लहजेदार शब्द लगे यू जैसे वर्क लगा हो मिठाई में संदेशों की घंटियां घोल रही कानों में मिश्रिया इंतजार में नाराजगी वृक्षों को गवाह तपती धूप ,बरसता पानी फूलों की खुशबू लुका छुपी का खेल होता है प्यार में विरहता में प्यार छूटता रेलगाड़ी की तरह बीती यादों के सिग्नल तो अपनी जगह ठीक है उम्र की रेलगाड़ी अब किसी स्टेशन पर रूकती नहीं प्यार का स्टेशन उम्र को मुंह चिढ़ा रहा जब उम्र थी तब बैठे नहीं गाड़ी में आखरी डब्बे का गार्ड दिखा रहा झंडी। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी व...
पतंग
कविता

पतंग

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** आकाश में उड़ती रंगबिरंगी पतंगे करती न कभी किसी से भेद भाव जब उड़ नहीं पाती किसी की पतंगे देते मौन हवाओं को अकारण भरा दोष मायूस होकर बदल देते दूसरी पतंग भरोसा कहा रह गया पतंग क्या चीज बस हवा के भरोसे जिंदगी हो इंसान की आकाश और जमींन के अंतराल को पतंग से अभिमान भरी निगाहों से नापता इंसान और खेलता होड़ के दाव पेज धागों से कटती डोर दुखता मन पतंग किससे कहे उलझे हुए जिंदगी के धागे सुलझने में उम्र बीत जाती निगाहे कमजोर हो जाती कटी पतंग लेती फिर से इम्तहान जो कट के आ जाती पास होंसला देने हवा और तुम से ही मै रहती जीवित उडाओं मुझे? मै पतंग हूँ उड़ना जानती तुम्हारे कापते हाथों से नई उमंग के साथ तुमने मुझे आशाओं की डोर से बाँध रखा दुनिया को उचाईयों का अंतर बताने उड़ रही हूँ खुले आकाश में। क्योकि एक पतंग जो हूँ जो कभी भी कट सकती तुम्हारे हौसला खो...
बेटियां
कविता

बेटियां

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अपने गांव का दिखे या ख़बर हो खुश होती है बेटियां बिदाई के समय रुलाती है बेटियां मोबाइल बेटी का आता पूरे घर को नजदीक कर देती बेटियां भाई के रिजल्ट सुनकर ससुराल में मिठाई बटवा देती बेटियां घर आंगन के गुड्डे गुड़ियों को छोड़ बहुत दूर जा बसती बेटियाँ घर मे बेटियों का टूटता खिलौना डर होता आने पर डाँटेगी बेटियां नन्ही चिड़िया सी उड़कर ससुराल में बना लेती बसेरा बेटियां त्यौहार पर नही आ पाने से रिश्तो को रुला देती बेटियां मोबाइल पर दुःख की बातें कभी नही बताती बेटियां मायके-ससुराल को तराजू के पलवो में रिश्ते तोलती बेटियां बेटियों से मिलकर आने पर हिम्मत आजाती खुशियां नाच गा उठती बातें सुनाती नए रिश्तों के घर आंगन को ऐसी होती है प्यारी सी लाडली बेटियां माता- पिता की ता उम्र फिक्र करती बेटियां बेटी की याद आने पर आँसू छलकाती अंखिया परिचय :- संजय वर्...
उड़ान
कविता

उड़ान

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** पिता बेटी की आँखों में देखता सपने, कल्पनाएँ अन्तरिक्ष में उड़ानों के पंख संजोता सपनों में। मन ही मन बातें करता बुदबुदाता मेरी बेटी का ध्यान रखना जानता हूँ अन्तरिक्ष में मानव नहीं होते इसलिए हेवानियत का प्रश्न नहीं उठता। पिता हूँ फिक्र है मुझे बड़ी हो चुकी बेटी की छट जाते है, जब भ्रम के बादल तब दूर से सुनाई देती है भीड़ भरी दुनिया में उत्पीडन की आवाजें उन्हें रोकने का बीड़ा उठाती बेटी की आक्रोशित आँखे। देती चीखों के उन्मूलन का देखता हूँ विस्मित नज़रों से फिर से संजोये सपनो को बेटी की आँखों में उडान उत्पीडन से निपटने की होंसलो, कल्पनाओ के साथ। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं मे...