विराम
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रचयिता : संगीता केस्वानी
सदियों पुरानी रीत है बदली,
एक तरफा ये जीत है बदली,
है विराम मेरी बेबसी का,
है लगाम तेरी नाइंसाफी का,,
न पर्दे से इनकार है,
ना संस्कारो से तक़रार है,
अब अपने फैसलों का मुझे भी अधिकार है,
रौंद सके मेरे जीवन को तुझे अब न ये इख्तियार है,,
अब ना अश्क-ऐ-आबशार होगा,
ना हर पल डर का विचार होगा,
सुखी -नुष्चिन्त हर परिवार होगा,
मेरे भी हक़ में ये बयार होगा,,
सायरा, गुलशन इशरत,आफरीन, आतिया का संघर्ष रंग लाया,
मजबूरी से मज़बूती की जंग का सुखद परिणाम आया,,
ना हूँ केवल वोट-बैंक या ज़ाती मिलकीयत,
अब जाके पाई मैंने भी अपनी अहमियत,,
तुम सरताज तो मैं शरीके-हयात,
पाख ये रिश्ता-ऐ-निकाह ना होगा तल्ख तलाक से तबाह,
न तलाक-ऐ-बिददत,
ना तलाक-ऐ-मुग़लज़ाह,
कर पायेगा इस रूह-ऐ-पाख का रिश्ता तबाह,
सो मेरी जीत मैं तुम्हारी जीत,
और तुम्हारी जीत में मेरी शान।।
लेखिका परिच...