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शर्म
लघुकथा

शर्म

श्रीमती आभा बघेल रायपुर, छत्तीसगढ़ ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित लघुकथा) "तुम्हें भोजन का पैकेट चाहिए क्या?" एक आवाज़ आई। रघु ने आवाज़ की ओर देखा लेकिन कुछ बोला नहीं। फिर किसी ने पूछा, "भोजन का पैकेट चाहिए क्या तुम्हें?" रघु ने शर्म भरी आवाज़ में कहा "साहब, चाहिए तो है। चार लोगों का परिवार है मेरा। घर में बच्चे खाने के लिए मेरा रास्ता देख रहे होंगे।" "तो फिर ये नखरा क्यों?"- किसी दूसरे व्यक्ति ने कहा। "साहब ! मैं मेहनत करने वाला आदमी हूँ। किसी के सामने हाथ फैलाना अच्छा नहीं लगता।ये तो मेरा बुरा वक्त है जो आज मेरी ये हालत है।" रघु ने उदास स्वर में कहा। "सब पता है हमें। अपने घर में भले ही ढेर लगा होगा, लेकिन फिर भी यहाँ माँगने आ जाते हैं लोग।" एक व्यंग्य भरी आवाज़ आई। "मैं उनलोगों में नहीं हूँ साहब!" रघु की आवाज़ थोड़ी ते...