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Tag: श्रीमती अंजू निगम

सोच
लघुकथा

सोच

श्रीमती अंजू निगम जाखन, (देहरादून) ******************** मन में प्रचंड उथल-पुथल मची हैं। ऑफिस के माहौल में राजनीति पैठ रही हैं। इसी मनोदशा में, अंधेरे से घिरते कमरे में वह अपने बिस्तर में औधें मुँह पड़ी थी। दीदी ने आकर केवल उसका हाल-चल ही तो लेना चाहा था। पर नेहा को यह दीदी की, अपने जीवन में जरूरत से ज्यादा दखलअंदाजी लगी और उसने बड़े-छोटे का लिहाज छोड़ दी को खुब खरी-खोटी सुना दी। तबसे दोनो के बीच अबोला ठना था। आज नेहा जब इसी मनोस्थिति में घी दानी में घी उलीचने लगी तो काफी घी बाहर फैल गया। उसे ध्यान आया कि दीदी हमेशा कहती कि घी या तेल उलीचते समय नीचे परात लगा लिया करो ताकि घी स्लैब में न फैले और परात में सिमटा रहे। उस दिन अगर वो भी अपने बहते मन के नीचे सब्र की परात लगा लेती..... . परिचय :- श्रीमती अंजू निगम जन्म : २० अगस्त १९६८ निवासी : जाखन, देहरादून आप भी अपनी कविताएं, कहानिया...
पुरवाई
लघुकथा

पुरवाई

श्रीमती अंजू निगम जाखन, (देहरादून) ******************** हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा लेखन प्रतियोगिता में प्रथम विजेता रही लघुकथा "अरे !!! रमेसी!! कब आया सहर से?" काका की आवाज खुशी से चमक रही थी। "आये तो पंद्रह दिनो से ऊपर हो गये। पर यहाँ आये के पहले, वो नजदीक का अस्पताल वाले धर लिये। वही चौहद दिनो का वनवास काट के कल ही गाँव आये गये रहेन। सोचे खेतो की तनिक सुध ले लूँ।" "अच्छा हुआ भईया, जो खेत बेच के न गये। कौनो ठौर तो रही अब। बढ़िया किये जो वापसी कर ली।" "हाँ कक्का!! खाने रहने सब का जुगाड़ खतम हो गया था। परदेस में कोई हाथ थामने वाला न बचा। सोचे, मरना ही हैं तो अपनो के बीच मरे। कोई मिट्टी देने वाला तो हो।" "ऐसा असुभ न निकालो रमेसी। तुमको मालूम, तुम्हारे बाद कितना लड़कन सहर की ओर भाग गये रहे। आधा गाँव खाली हुई गया था। तुम भी तो पलट कभी गाँव का सुध न लियो। चलो, अब धीमे...