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Tag: शुभांगी चौहान

कुआँ हुआ करता था
कविता

कुआँ हुआ करता था

शुभांगी चौहान लातूर (महाराष्ट्र) ******************** कुआँ हुआ करता था बाड़े में दादी भरा करतीं थी रोज उसका मीठा पानी कभी भोर में सुबह में तो कभी दुपहरी देता हर समय ठंडक उस कुएँ का पानी कभी राहगीर बटोही की प्यास बुझाता तो कभी प्यार से दो बूंद पँछी को पिलाता याद आता हैं बहुत कुआँ वह मीठे पानी का शाम होते ही आती गांव की औरतें सभी भरने के लिए उसी कुएं का पानी चहेरे के संग-संग चमक जाते भरे-भरे पानी से भरे घड़े तांबे और पीतल के खुश हो होकर भरती वह घड़ों में पानी पानी जैसे हो अमृत जीवनदान काम बनता नही था एक भी बगैर कुएं के पानी के भूसे की रोटी बनाती दादी उसी कुएं के पानी से कपड़े और बरतन धोती और आँगन को गोबर से चमकाती दादी उसी कुएं के पानी से स्वर्ग बन जाता घर-द्वार आँगन गाँव उसी पानी से अब न जाने कहाँ खो गये वह बाऊडी कुएं नजर में नही आते हैं आज...
रिश्तों की परछाइयाँ…
कविता

रिश्तों की परछाइयाँ…

शुभांगी चौहान लातूर (महाराष्ट्र) ******************** होती हैं ओस की बूंदों सी कभी नजर आती तो कभी ओझल सी रिश्तों की परछाइयाँ देखता हूँ मैं रोज एक दीपक जलता हुआ उस अनाथालय मे और अनायास ही खींचा चला जाता हूँ उस अनाथालय की ओर पुछा मैने उस अनाथ से सवाल क्यों जलाते हो यह दीपक यहाँ क्या देता हैं यह अनाथालय तुम्हें जवाब दिया उसने बुझी सी और बहुत ही धीमी आवाज में बोला साहब...! नही देखी मैने कभी माँ की गोद और पिता का साया इस पाषाण ह्रदय दुनियाँ ने भी कब अपनाया तब इसी निस्वार्थ प्रेम स्वरूपी अनाथालय ने ही मुझे पाला हैं हवा, बारिश तुफान से हमे बचाया हैं इसी ने दिखाया हैं माँ का रूप और पिता का स्वरूप भाई-बहनों सा दूलारा हैं इसी ने और मित्र का भरपूर प्रेम भी दिया हैं इसी अनाथालय ने जब बाहर की बनावटी, आभासी और झूठी दुनियाँ से थक जाता हैं हर सच्चा मन त...