गोरैया (अवतार छंद )
शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया (असम)
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अवतार छंद विधान
अवतार छंद २३ मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह १३ और १० मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है। दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
२ २२२२ १२, २ ३ २१२
चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः २ को ११ में तोड़ा जा सकता है, किंतु आदि द्विकल एवं अंत २१२ (रगण) अनिवार्य है। अठकल के नियम अनुपालनिय है।
फुर फुर गोरैया उड़े, मदमस्त सी लगे।
चीं चीं चीं का शोर कर, नित भोर वो जगे।।
मृदु गीत सुनाती लहे, वो पवन सी बहे।
तुम दे दो दाना मुझे, वो चहकती कहे।।
चितकबरा तन, पर घने, लघु फुदक सोहती।
अनुपम पतली चोंच से, जन हृदय मोहती।।
छत, नभ, मुँडेर नापती, नव जोश से भरी।
है धैर्य, शौर्य से गढ़ी, बेजोड़ सुंदरी।।
ले आती तृण, कुश उठा, हो निडर भीड़ में।
है कार्यकुशलता भरी, निर्माण नीड़ में।।
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