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Tag: शशि चन्दन

मेरी पहचान
कविता

मेरी पहचान

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** लक्ष्मी सी मेरी पहचान। देता देव और इंसान।। भ्रमित कर स्वयं को हर लेता इक दिन प्राण।। मेरी ही कोख से निकल.... पलता वो वक्ष स्थल से.... खोट भर नैनों में फिर... दामन भरता अश्रुजल से।। कभी अग्नि में स्वाह तो कभी पत्थर होना पड़ा ।। कभी टुकड़े हुए हज़ार, तो कभी बेघर होना पड़ा।। क्रोध करूं या हास्य करूं। या स्वयं का परिहास करूं।। निर्णय तो करना होगा.... मौन रहूं या विनाश करूं।। सोचती हूं उठा लूं कोरा कागज़, दिखा दूं अपनी कलम की ताकत। ताकि जन्में, जब-जब "कविता".. "दिनकर" आकर छंदों से करें स्वागत।। परिचय :- इंदौर (मध्य प्रदेश) की निवासी अपने शब्दों की निर्झर बरखा करने वाली शशि चन्दन एक ग्रहणी का दायित्व निभाते हुए अपने अनछुए अनसुलझे एहसासों को अपनी लेखनी के माध्यम से स्याह रंग कोरे कागज़ पर उतारतीं हैं, जो उन्ह...
पिता होना आसान नहीं होता
कविता

पिता होना आसान नहीं होता

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गगन चूमती इमारत का, नींव का पत्थर होना आसान नहीं होता।। कि अपने मुस्कुराते अधरों से, हलाहल पीना आसान नहीं होता।। रात को शीतल चांद, दिन को सूरज सा तपना आसान नहीं होता। कि इस मायावी जग में, निस्वार्थ प्रेम करना आसान नहीं होता ।। अपने खून पसीने से एक कोरी किताब लिखना आसान नहीं होता।। कि साध कर भागते समय को, गीता बाँचना आसान नहीं होता।। निर्मल कोमल हृदय को सक्ता का, आवरण ओढ़ना आसान नहीं होता। कि घर बाहर की जिम्मेदारियों को, कांधे ढोना आसान नहीं होता।। नर्म नर्म कलियों को सहेज, ओक में भरना आसान नहीं होता । कि लड़खड़ाते कदमों को, एक सही दिशा देना आसान नहीं होता।। जीवन के खेल में, जीतकर भी हारना आसान नहीं होता। बैठ कर जमीन पर दिन में तारे देखना आसान नहीं होता।। फटे हाल घिसे जूते लिए, कड़ी धूप में चलना...
अर्धनारीश्वर
कविता

अर्धनारीश्वर

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मुझसे गलती हो गई ऐसी भी क्या, जो तन पाया अर्धनारीश्वर का । ना प्रकृति न पुरुष में गणना हुई, जबकि अंश था मुझमें भी ईश्वर का।। बधाईयां गई मैंने घर घर जाकर, फिर कोख जानकी की क्यों सूनी मिली।। ढोल की थाप पे खूब थिरके पांव, क्यों न फिर केशव की रज धूलि मिली।। समाज ने सदा उपेक्षित भाव से देखा, ना शिक्षा का अधिकार न सम्मान पाया।। बीत गए दिन रैन काल कोठरी में, हर स्थान ही तो मेरे लिए शमशान पाया।। मां का आंचल छीना बाबा का कन्धा, जन्म को मेरे धिक्कार सा माना।। क्यों न रूप स्वरूप जैसा मिला था, वैसे ही जग ने सहज ही स्वीकार जाना।। जाते किस ओर कहो ना नर न नारी हम, चौदह वर्ष प्रतीक्षारत अपलक नैन रहे ।। हे राम अहो भाग्य जो तप की श्रेणी में आंका, आशीष वचन जो सिद्ध होते आपकी देन रहे।। झलकते हैं नीर झर झर आँखों से हरपल, प...
शिक्षा व्यवस्था
कविता

शिक्षा व्यवस्था

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षा जीवन का सार है, संस्कारों का मीठा संसार है, आत्मा का परमात्मा से मिलन का... एकमात्र यही सच्चा द्वार है।। दिनचर्या हो कैसी, व्यवहार हो कैसा, कोरे मन पे लिखो बस न ऐसा वैसा.. कलम ही सारथी बेड़ा लगाती पार, शिक्षा ना खरीदी जाती देकर पैसा।। भगवान राम कृष्ण भी पढ़े गुरुकुल में, सर्व शिरोमणी बने तब रघुकुल में..। जीवन ज्योति के आखर आखर जोड़, गीताधारी कहलाए जगतकुल में।। युग बीते परिवर्तन हुए बदली नियमावली, विद्या मंदिरों में लगने लगी हाट बाजारों की गली, विद्यार्थी जीवन सिमटने लगा किताबों में.. मां सरस्वती की वीणा रूदन कर विदा हो चली।। आधुनिक शिक्षा व्यवस्था चलती ठेकों पे, कलम से कलाम बनना हुआ दूर, परीक्षा उत्तीर्ण होती आज नेगों से....।। ज्ञान का प्रकाश नहीं.. लाचारी भरी शिक्षकों की जेबों में....।। देश के ...
बारिश की बूँदें
कविता

बारिश की बूँदें

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** देखो धरा अम्बर से, मिलन की गुहार लगाये, थाल भर मोती माणिक अम्बर ने खूब सजाये, मन के आँगन बरस रही है मीठी मीठी सी फुहार, प्यासी धरा भी आँखें मींचे आशा की झोली फैलाये।। खुशियों भरी काग़ज़ की नाव ग़मों को बहा ले जाए देखो न बाल मन का कोना-कोना कैसे खिलखिलाये, छपाक छप, छपाक छप बारिश का कंचन जल कहे, भर लो अमृत चुल्लू में ज़िन्दगी तो हरदम ही ज़हर पिलाये।। खिली है हर कली कली, पत्ता पत्ता भी मुस्काये, नवल धवल हुए खेत खलियानशशि चन्द देख कृषक गदगद हो जाये, सौंधी सौंधी माटी, श्वास-श्वास मातृभूमि के रक्षकों की महकाये, बुलंद हौसलों की बारिश के बीच, शान से तिरंगा लहराये।। धानी चुनर ओढ़, अधरों पर धर लाज का घूँघट, सजनी चली साजन घर, जब मन भावन सावन आये प्रीतम ने अमियाँ की डाल पे प्रेम पुष्पों का झूला डाला, कृष्ण राधिका स...
ज़ुल्म और दर्द
कविता

ज़ुल्म और दर्द

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** होती जब-जब अस्मिता की हानि, उठती ज़ुल्म और दर्द की आंधी, पौरुष तो रहता जन्मजात अंधा, स्त्रियाँ भी नेत्रों पर पट्टियां बांध लेती हैं।। भीष्म प्रतिज्ञा लेने वाले गंगा पुत्र भी भरी सभा बीच मौन हो पछताते हैं.., गुरुजन और नीति श्रेष्ठ विदुर भी,, हाथ पे हाथ धरे फफकते रह जाते हैं।। झूठी दुनिया के संगी साथी देव पुत्र, हर कर अपना सब कुछ हाय कैसे, ये दांव अपनी ही स्त्री को लगाते हैं, बाजुओं के बल पर धिक्कारे जातें हैं।। खींचता है जब साड़ी दुर्शासन., झूठे रिश्तों से भीख मांग हरती अस्मिता, तब कृष्णा को फिर कृष्ण ही याद आते हैं, और अम्बर से चीर बढ़ा वो..., रेशम के एक धागे का मोल चुकाते हैं..।। कटी थी जब ऊंगली केशव की.., कृष्णा ने अपने आंचल का चीर फाड़, कृष्ण की ऊंगली पर बांधा था..., कृष्ण एक भाई का फर्ज निभाने आते हैं...
हमारी संस्कृति हमारी विरासत
कविता

हमारी संस्कृति हमारी विरासत

शशि चन्दन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** धरा से अम्बर तलक विस्तृत है, हमारी "भारतीय संस्कृति", देती है जो हर जड़ चेतना को, सारगर्भित जीवन की स्वीकृति।। है संगम यहाँ विविधता का, पर लेष मात्र भी नहीं है कोई विकृति, संविधान ने दिए हैं कई अधिकार, जन जन में एकता ही एक मात्र संतुष्टि।। यहाँ बच्चा बच्चा राम है, और हर एक नारी में माँ सीता है, यहाँ हर प्राणी को मिलती माँ के आँचल में प्रेम की गीता है।। बहती नदियों की धारा में आस्था और विश्वास के दीपक जलते हैं, कि मल मल धोये कितना ही तन को, मगर श्रेष्ठ कर्मों से ही पाप धुलते हैं।। इतिहास बड़ा पुराना है शिलालेखों में कई राज़ हमराज से मिलते हैं, मार्ग मिले चार ईश वंदन के, मगर एक ही मंजिल पर जाकर रुकते हैं।। रक्त-रक्त में मिलता एक दिन, यहाँ ना कोई जात धर्म का ज्ञाता है, "रहीमन धागा प्रेम का है", दिलों से रिश्...