दीप जलायें
शरद सिंह "शरद"
लखनऊ
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दीप जलाने का दिन आया,
घर घर दीप जले ऐसा।
दीप मालिका सजे सभी की,
प्यार हिलोरें ले ऐसा।
आओ ऐसा दीप जलायें,
तम मिटे हमारे तन मन का,
दीपशिखा की हर बाती से,
जगमग हो मन हम सब का।
राग द्वेष का कलुषित साया,
छाये नहीं किसी जन में,
ऐसा दीप जले मन प्रांगण,
आलोक भरे हर जीवन में।
तिमिर अमावस का छट जाये।
दीपों की ऐसी ज्योति जले,
बैर भाव को त्याग सभी के
मन में करुणा का भाव पले।
मन मंदिर रोशन हो जाये,
आओ एक दीप जलायें हम,
राह सुगम हो जीवन की,
इक दूजे के हो जायें हम।
परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप ...