बरखा का रानी
शत्रुहन सिंह कंवर
चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी
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आषाढ़ का महीना
बारिश का बसेरा
चमक उठी है
बिजली की ताड़
बरस पड़ी है
पानी की बुंदे
खिल उठा है
हरियाली सा
आँगन
महक उठी है
मिट्टी का कटेरा
मन मयूर
नाच रहा है
सुंदर सा पकेरा
चहक रहा है
भोर का चकेरा
टपक पड़ी छाजन,
छत घीरैना
खिल गई है
किसानों का चेहरा
करने को लास
भूमि भी मचलती
आषाढ़ का महीना
बारिश का बसेरा।
परिचय :- शत्रुहन सिंह कंवर
निवासी : चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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