Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: विनोद सिंह गुर्जर

रवि मेघों में छुप जायेगा
कविता

रवि मेघों में छुप जायेगा

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** रवि मेघों में छुप जायेगा, बहता सागर रूक जायेगा। मेरी कर्मठता के आगे, आसमान भी झुक जायेगा खड़ा निडर हूँ सीना तान .. मैं किसान हाँ, मैं किसान।।... बहती हवा का एक झोका है। मुझको कब किसने रोका है। तूफानों का जोश है मुझमें। मेघों जैसा रोष है मुझमें।। बंजर भू पर हाथ लगा दूं। मधुवन को लाकर महका दूं ! चमके सरसों, महके धान।।... मैं किसान हाँ, मैं किसान।।... बनकर वृष हल खींचे मैंने। बीज लहू से सींचे मैंने।। इस श्रम का उपहार कहाँ? कब पाया उपकार यहाँ? बड़े दलालों ने लूटा है। सारा शासन ही झूठा है। कब पाया मैंने सम्मान ?.. मैं किसान हाँ, मैं किसान।।... बल विवेक पाया अन्नों से। मृदु व्यवहार मीठे गन्नों से। दारा से बलवान बनाये। रामानुज से ज्ञानी पाये।। श्रम का कैसे मोल करोगे? हक को गोल मटोल करोगे? राजा ...
जहरीली हवा
कविता

जहरीली हवा

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** जहरीली हवा बह रही। हमसे यूं कह रही।। जीना है तुम्हें गर। अपनों के साथ घर।। खुद को नजर बंद कर दो। ताले में बंद कर लो।... घूमने का ख्याल छोड़ो। व्यर्थ के सवाल छोड़ो।। जिंदगी रहे सलामत, होटलों की दाल छोड़ो।। मेहफिल ना जाने का, इरादा बुलंद कर लो।।... खुद को नजर बंद कर दो। ताले में बंद कर लो।... मौत का पैगाम लेके। आये है तूफान ऐसे। लड़ने तैयार हैं हम, हार जायें मान कैसे।। निश्चय खदेड़ देंगे, ऐलान-ए-जंग कर दो।।... खुद को नजर बंद कर दो। ताले में बंद कर लो।... मुश्किल है आन पड़ी। आफत में जान पड़ी। महामारी फैल रही, आई विकराल घड़ी।। निराशा के आंगन में , उत्साह, उमंग भर दो।।... खुद को नजर बंद कर दो। ताले में बंद कर लो।... परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालव...
काव्य मंजूषा साहित्य वल्लरी समूह का ऑनलाइन कवि सम्मेलन सम्पन्न
साहित्यिक

काव्य मंजूषा साहित्य वल्लरी समूह का ऑनलाइन कवि सम्मेलन सम्पन्न

काव्य मंजूषा साहित्य वल्लरी समूह, महू के तत्वाधान में एवं संस्थापक कवि विनोद सिंह गुर्जर के संयोजन में दिनांक १३ अप्रेल २०२१ को ऑनलाइन अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन गूगल मीट पर किया गया जिसमें देश के विभिन्न प्रांतों से साहित्यकारों ने हिस्सा लिया। प्रमुख रूप से डा.महिमा दुबे खरगोन, जया साराभाई मुंबई, स्मिता सिंह बलिया, अंशुक द्विवेदी इंदौर, अरविंद सोनी मंदसौर, रितु प्रज्ञा, दरभंगा, वीरेन्द्र दसौंधी, वीर-खरगोन, विजय पांडे, महू ने अपनी रचनाओं से समां बांधा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री सुरेश चंद्र अस्थाना महू, विशेष अतिथि श्री राजेश पांडे छत्तीसगढ़, मार्गदर्शक श्री श्रीकृष्ण किशोर खोड़े देवास थे, कोरोना योद्धा डॉ. विमल सक्सेना का भी सम्मान किया गया सभी सम्मानीय रचनाकारों ने नववर्ष आगमन पर रोग मुक्त भारत की ईश्वर से प्रार्थना करते हुये सभी के अच्छे स्वास्थय की मंगल कामना की एवं रचना पाठ किय...
भारत पर स्वर्ग
कविता

भारत पर स्वर्ग

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** थाली, लोटे, शंख बजाये, और खुशी में नाचे हम। यज्ञ, हवन भी कर डाले, देव ऋचायें वांचे हम।। राम नाम के दीपक भी घर-घर सभी उजारे थे। देवों जैसे वो क्षण पाकर, सारे दुख विसारे थे।। विनाश काल विपरीते बुद्धि, मति कैसी बौराई है। अर्थतंत्र को पटरी लाने, व्यर्थ की सोच बनाई है। किसने तुमको रोका-टोका, वेतन हिस्सा दान किया। देश समूचा साथ तुम्हारे, किसने यहाँ अभिमान किया।। महिलाओं का छिपा हुआ धन, बच्चों ने गुल्लक फोड़ी है। आपदा के इस संकट में, नहीं कसर कोई छोड़ी है।। गर और जरूरत थी तुमको, आदेश का ढोल पिटा देते। खुद को गिरवी रख करके, ढेरों अर्थ जुटा देते।। किंतु नहीं ये करना था मंदिर भूले, मदिरा खोले। पवित्र घंटियां मूक रहीं, प्यालों के कातिल स्वर बोले।। मदिरालय सब खोल दिये। देवालय सारे बंद पड़े। कोरोना को आज हराने बुलंद हुए स्वर मंद पड़े।। बोतल और प्...
प्रेम की गली में
कविता

प्रेम की गली में

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता "प्रीत की पाती" में प्रेषित कविता) प्रेम की गली में ये उदारता है क्यों ? ... बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ?... तू नहीं तो तेरा एहसास है मुझे, ऐसा लगे जैसे आस-पास है मुझे।-२ तेरे-मेरे चित्र नयन, उतारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ? सच मानिए जब से आप मिल गए। मन मधुबन में कई पुष्प खिल गए।-२ अंग-अंग दीप अब उजारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ? मीरा श्याम रंग में दीवानी हो गई। भक्ति अनुराग की कहानी हो गई।-२ गरल में सुधा, नेह उतारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ? राधा व्याकुल हुई घनश्याम आ गए। शबरी के जूठे बेर राम खा गए । -२ ईश्वर भी प्रेम बस हारता है क्यों ? बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्योँ ? परिचय :-...
आज नहीं तो कल संभव
कविता

आज नहीं तो कल संभव

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** थाली, लोटे, शंख बजाये, और खुशी में नाचे हम। यज्ञ, हवन भी कर डाले, देव ऋचायें वांचे हम।। राम नाम के दीपक भी घर-घर सभी उजारे थे। देवों जैसे वो क्षण पाकर, सारे दुख विसारे थे।। विनाश काल विपरीते बुद्धि, मति कैसी बौराई है। अर्थतंत्र को पटरी लाने, व्यर्थ की सोच बनाई है। किसने तुमको रोका-टोका, वेतन हिस्सा दान किया। देश समूचा साथ तुम्हारे, किसने यहाँ अभिमान किया।। महिलाओं का छिपा हुआ धन, बच्चों ने गुल्लक फोड़ी है। आपदा के इस संकट में, नहीं कसर कोई छोड़ी है।। गर और जरूरत थी तुमको, आदेश का ढोल पिटा देते। खुद को गिरवी रख करके, ढेरों अर्थ जुटा देते।। किंतु नहीं ये करना था मंदिर भूले, मदिरा खोले। पवित्र घंटियां मूक रहीं, प्यालों के कातिल स्वर बोले।। मदिरालय सब खोल दिये। देवालय सारे बंद पड़े। कोरोना को आज हराने बुलंद हुए स्वर मंद पड़े।। बोतल और प्...
हाय! विधाता
कविता

हाय! विधाता

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** हाय! विधाता तू, कहां पर सो रहा। तेरी रचना का अंत, अब हो रहा।।.... प्यासे हैँ नैनों के सपने। दूर हुये हैं हमसे अपने। किसने ये सब खेल रचा है। धरती पर श्मशान बसा है।। आज हवायें जहरीली हैं। सबकी आंखें नम गीली है।। किसी ने बेटे को खोया हैं। पिता भी मृत शैया सोया है।। हँसती बहारों में कांटे, कोई बो रहा। तेरी रचना का अंत, अब हो रहा।।.... बिलख रही है मां की ममता, शून्य हो चली मानव क्षमता।। सूरज पर है तम का साया। चारों ओर अंधेरा छाया।। चाँद पूर्णिमा भूल चुका है। मावस के हाथों में बिका है।। नागिन रातें डोल रहीं हैं। घर की कुंडी खोल रहीं हैं।। हाय! पुजारी धैर्य, तेरा अब खो रहा। तेरी रचना का अंत, अब हो रहा।।.... कैसी अजब ये महामारी है। दुनिया सारी बेचारी है।। बीती रातें, दिन ढलता है। नहीं पता कुछ भी चलता है।। पिंजरे में खुशियां रोतीं ह...
राम तुम्हारे नाम
कविता

राम तुम्हारे नाम

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं। तुम्हें बुलाने को हम आतुर, मंत्र उच्चारे हैं।। रावण से ज्यादा बलशाली दानव आया है, इससे कौन लड़ेगा प्रभु जी, आप सहारे हैं।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।... अदृश्य शक्ति का भेदन कैसे हम कर पायेंगे, इसके आगे कैद हुये हम बड़े बेचारे हैँ।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।.. देखो कैद में आज अयोध्या का जन मानस है। रोती अंखियां राम तुम्हारी राह निहारे हैँ।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।... ऐसे निर्मोही बने रहोगे कौन पुकारेगा, प्रकटो हे श्रीराम भक्त जन तुम्हें पुकारे हैं।।... राम तुम्हारे नाम के दीपक आज उजारे हैं।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्...
लेखनी रहती हरदम
कविता

लेखनी रहती हरदम

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** करीब लेखनी रहती हरदम पर लिखने दे तब ना। आंखों से ओझल सूरत हो, नव दिखने दे तब ना।।... सुंदर शब्दों को सेक रहा हूं, पर सिकने दे तब ना।।... करीब लेखनी रहती हरदम पर लिखने दे तब ना।।. . दो कौड़ी के भाव सृजन है, पर बिकने दे तब ना।।... करीब लेखनी रहती हरदम पर लिखने दे तब ना। मैं मिट जाऊं उसकी हसरत, पर मिटने दे तब ना।।... करीब लेखनी रहती हरदम पर लिखने दे तब ना।।... मैं कंचन होता लोहे से, पर पिटने दे तब ना।।.. करीब लेखनी रहती हरदम पर लिखने दे तब ना।।... मैं मंचों पर गीत बेचता, पर रटने दे तब ना।।... करीब लेखनी रहती हरदम पर लिखने दे तब ना।।.. . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौ...
लेखनी हाथों में लेकर
कविता

लेखनी हाथों में लेकर

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** लेखनी हाथों में लेकर, यूँ डगर में मत रुको। वरदान कवि का है मिला मत डरो मत तुम झुको।। भावनाओँ के भंवर में डूब शब्दों को चुनो। कवि हो तो कुछ शर्म से, कुछ धर्म से कुछ तो लिखो।। गद्य में या पद्य में, गीत में संगीत में तुम अंधेरे में रहो, और उजालों से कहो।। तम हटा ..प्रकाश भर, रवि जरा आकाश पर।। रश्मियाँ फिर झूमकर। लेखनी को चूमकर। स्वागत करें। तुझसे कहें। कवि मत दिखो। पर कुछ लिखो।। मावस गहन कालिख रहे, निशा कराहे और सहे। कवि उठाना कलम अपनी, चीरना अंधकार को, विभा पारावार को।। चांदनी बिखेर देना, लाना चंद्रक हार को। पूर्णिमा खिल उठे, नीर सागर हिल उठे।। पुरबा बहे। हंसकर कहे। कवि मत दिखो। पर कुछ लिखो।। . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य...
कलम बना तलवार
कविता

कलम बना तलवार

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** कवि, कलम बना तलवार। जिनके मन में कलुषित तन में, पनप रहा व्यभिचार.. पहन तू नरमुंडो के हार..।। शासन चुप, शासक सोये हैं। सब अपनी धुन में खोये हैं। अंधा रेबड़ी बांट रहा है। बेहरा सबको डांट रहा है। संविधान के जयकारे हैँ। किंतु आज फिर हम हारे हैं।। अपराधों का बड़ता जाता अजब ही कारोबार।।.. पहन तू नरमुंडो के हार..।। पांडव की सेना घटती है। कौरव की सेना बढ़ती है । कान्हा, अर्जुन यहाँ कहाँ पर, दुशासन बैठे यहाँ घर-घर। भीष्म मूक, विधुर शांत है। भीम शोक में फिर क्लांत है।। द्रोपदी की लाज बचाने, कौन आये इस बार।।.. पहन तू नरमुंडो के हार..।। नरभक्षी और पिशाचों के कर्मों से अपराध बड़ा। क्या बोलूं क्या नाम दूं इसको, शोकग्रसित मन आज खड़ा। तोड़ कलम फेंकू क्या पथपर, और बंदूक उठा लूं हाथ। बोलो कवि क्या बागी होगे, दोगे कदम-कदम पर साथ।। बलात्कार करने वा...
गणतंत्र दिवस पर एक शाम देश के नाम काव्यनिशा सम्पन्न।
साहित्यिक

गणतंत्र दिवस पर एक शाम देश के नाम काव्यनिशा सम्पन्न।

कलमकारों ने सुनाई अपनी उत्कृष्ट रचनाएँ .... देर रात तक सुनते रहे सैंकड़ों श्रोता .... वंस मोर-वंस मोर की आवाजों से गूंज उठा कार्यक्रम स्थल .... इंदौर : सिलिकॉन सिटी राऊ रहवासी सहित दीपक जैसवानी व सौरभ सोनगरा द्वारा अखिल भारतीय साहित्य परिषद तत्वाधान में आयोजित विराट कवि सम्मेलन सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम में देशभक्ति, गीत, ग़ज़ल, व श्रृंगार रस की कविताओ की सभी रचनाकारों ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुति देकर देर रात तक समां बांधे रखा। कवियों में धीरेन्द्र जोशी, विनोद सिंह गुर्जर, सुरेशचन्द्र अस्थाना, भगवानदास तरंग, दामोदर विरमाल, पवन मकवाना, यश कौशल, सत्या ठक्कर, अक्षत व्यास, दीपक जैसवानी, देवांशी गुर्जर, पायल परदेशी, अंजना ठाकुर, आदि उपस्थित रहे। इसी अवसर पर हिंदी साहित्यिक क्षेत्र में उत्कृष्ट सृजन हेतु कवि विनोद सिंह गुर्जर को डॉ विरमाल साहित्यिक सम्मान से सम्मानित किया गया। संचालन धीरेन्द्र जोशी ...
वक्त का अजब तकाजा
कविता

वक्त का अजब तकाजा

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** वक्त का अजब तकाजा देखो। बंदर के हाथ में माजा देखो।। जिसके मूंह पर वफा नुमाईश हैै, वेहयायी का तमाशा देखो।।... वक्त का अजब तकाजा देखो।।... जिसने की है मुहब्बत यहॉ कभी, उनके इश्क का जनाजा देखो।।... वक्त का अजब तकाजा देखो।।... चंद सिक्कों के लिये नीलाम हुआ, आज बन बैठा वही राजा देखो।।. वक्त का अजब तकाजा देखो।।... भूल गये लोग रिश्तों के मतलब, भाई था कल आज बंधन ताजा देखो।।... वक्त का अजब तकाजा देखो।।... जिन्हें गुमां था अपनी शौहरत पर, हाथ में ढोल और बाजा देखो ।।.. वक्त का अजब तकाजा देखो।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मे...
मालवा प्रांत का कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर एवं व्याख्यान में प्रांतीय साहित्यकारों का महाकुंभ संपन्न।
साहित्यिक

मालवा प्रांत का कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर एवं व्याख्यान में प्रांतीय साहित्यकारों का महाकुंभ संपन्न।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद मालवा प्रांत द्वारा आयोजित 'हमारी साहित्यिक परम्पराए' विषय पर व्याख्यान व कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर व बैठक इंदौर : महू।  इंदौर में सरस्वती शिशु मंदिर, साई नाथ कॉलोनी, तिलक नगर पर आयोजित हुई इस प्रांतीय साहित्यकार महाकुंभ में महू से १५ साहित्यकार एवं अन्य स्थानों से सहभागिता करने वाले जिला इकाई १३ एवं तेहसील इकाई १६ से कुल ११० साहित्यकार उपस्थित हुए। महू इकाई के उपाध्यक्ष एवं प्रांतीय कार्यकारिणी सदस्य कवि विनोद गुर्जर ने जानकारी देते हुये बताया कि यह महाकुंभ, साहित्य की गंगा में डुबकी लगाने का अवसर बड़े ही सौभाग्य से प्राप्त होता है। साथ ही यह भी बताया कि आद. श्री त्रिपुरारी लाल शर्मा जी, प्रांताध्यक्ष, मालवा प्रांत द्वारा इकाई गौरव सम्मान की अनुशंसा पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के राष्ट्रीय महासचिव श्री श्रीधर पराड़कर जी एवं अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के प्रदे...
विरह की ज्वाला
कविता

विरह की ज्वाला

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** कहीं विरह की ज्वाला ने, मेरे अंतस से निकस तुम्हारे मन में डेरा डाला होगा। आह! आज दिन काला होगा।...। तुमने तो मुड़कर नहीं देखा, शब्दों में बस भाव पिरोए। यादों में नीरस गए सावन, नैन, मेघ बन दिन भर रोए।। क्या-क्या स्मृति लाऊं तुमको, आह! रुदन में हाला होगा ...। उस पथ पर मैं आज खड़ा हूँ जहां चैन पाते थे नैना। निरख-निरख कर भेद छुपाते, नहीं बताते थे मन बैना।। ऑखो में पल तैर गए हैं, आह! हृदय मतवाला होगा।...। अंदर तक झकझोर रही है, धड़कन भी सहमी-सहमी है। अब तक कह पाये ना तुमसे, आज मगर, कहनी-कहनी है।। पिछले जन्मों का कुछ तूने, आह ! नेह संभाला होगा।...।। . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा...
शीत
कविता

शीत

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** शीत बड़ी.....!!!! क्यों चीख पड़ी ? क्या दुखद घड़ी..? ना, ...... मेघों की दड़ी। बारिश की झड़ी। बूंदों के संग-संग, हिम तुहिन लड़ी।। कैसा भय है...? कुछ नव क्षय है...? सदियों से ही, प्रकृति लय है।। इस बार सजन, घबराये मन । धक-धक धड़कन, अंग-अंग जकड़न।। पावक ना दहक, बर्फीली महक। नस-नस में चहक, बहे रक्त बहक।। . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवान...
पहन तू नरमुंडो के हार..
कविता

पहन तू नरमुंडो के हार..

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** कवि, कलम बना तलवार। जिनके मन में कलुषित तन में, पनप रहा व्यभिचार.. पहन तू नरमुंडो के हार..।। शासन चुप, शासक सोये हैं। सब अपनी धुन में खोये हैं। अंधा रेबड़ी बांट रहा है। बेहरा सबको डांट रहा है। संविधान के जयकारे हैँ। किंतु आज फिर हम हारे हैं।। अपराधों का बड़ता जाता अजब ही कारोबार।।.. पहन तू नरमुंडो के हार..।। पांडव की सेना घटती है। कौरव की सेना बढ़ती है । कान्हा, अर्जुन भला कहाँ पर, दुशासन बैठे यहाँ घर-घर। भीष्म मूक, विधुर शांत है। भीम शोक में फिर क्लांत है।। द्रोपदी की लाज बचाने, कौन आये इस बार।।.. पहन तू नरमुंडो के हार..।। नरभक्षी और पिशाचों के कर्मों से अपराध बड़ा। क्या बोलूं क्या नाम दूं इसको, शोकग्रसित मन आज खड़ा। तोड़ कलम फेंकू क्या पथपर, और बंदूक उठा लूं हाथ। बोलो कवि क्या बागी होगे, दोगे कदम-कदम पर साथ।। बलात्कार करने वालो...
अश्रु क्यों बहा रहे हो …
कविता

अश्रु क्यों बहा रहे हो …

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** होटलों में मस्त खाना खा रहे हो। नाच रहे फूहड़, कुछ भी गा रहे हो ।।... आज कुपोषण से गृसित है बालपन, तुम सुरा में मस्त डूबे जा रहे हो।।... अबोध बच्चों से कराते काम हो, हाय, ऐसा जुल्म क्यों तुम ढा रहे हो।।.. नग्न होकर नाचना, ताली बजाना, कौनसा, कैसा जमाना ला रहे हो।।.. तुम गरीबों के वसन को नोचकर, कुबेर का सारा खजाना पा रहे हो।।... दीन दुखियों के आंसू रूक पोंछ दे, अनंत सुख पाने में क्यों शरमा रहे हो।।.. कृष्ण बनना है तो प्रेम को सीख लो, कंस के नाम अश्रु क्यों बहा रहे हो।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता र...
फूलों से भी नाजुक
कविता

फूलों से भी नाजुक

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** फूलों से भी नाजुक है। दिलदार मेरा।.. महक रहा है फिजां में, प्यार मेरा।।... तू जो बोले तो कोयल भी शरमाती है। बलखाके चले वो तो कहर ढाती है। पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा, तलबगार तेरा।।... फूलों से भी नाजुक है। दिलदार मेरा।.. महक रहा है फिजां में, प्यार मेरा।।... तेरी हर शोख अदा का हूं, में दीवाना। तेरे आने से हो जाता हूँ में अंजाना।। याद रहता है एक चेहरा, बस यार तेरा।।... फूलों से भी नाजुक है। दिलदार मेरा।.. महक रहा है फिजां में, प्यार मेरा।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
बाल दिवस
कविता

बाल दिवस

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** चलो चलें बच्चे हो जायें। लुका-छिपी में फिर खो जायें।। अर्थ, व्यर्थ की उलझन से, दूर कहीं जाके सो जायें।।.. तू मेरे संग खेल सिथोली, मैं फिर तेरी चोटी खींचू। तू मेरी सब्जी ले भागे, मैं फिर तेरी रोटी खींचू।। तेरे आंचल में सिर रखके, थोड़ा हंस, थोड़ा रो जायें।।... चलो चलें बच्चे हो जायें। लुका-छिपी में फिर खो जायें।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
जय मध्य प्रदेश …
कविता

जय मध्य प्रदेश …

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** जय मध्य प्रदेश। दुखः निर्गम।। शुभम प्रवेश.... जय मध्य प्रदेश... जय मध्य प्रदेश... बुंदेल, बघेली राजस्थानी। छत्तीसगड़ी, चंबल दा पानी।। अजब मालवा का, परिवेश.... जय मध्य प्रदेश... दुखः निर्गम ।। शुभम प्रवेश.... जय मध्य प्रदेश...जय मध्य प्रदेश... जनापाव पावन मन भावन, तीर्थंकर ओमकार सुहावन। सतपुड़ा का सुवन स्वदेश.... जय मध्य प्रदेश। दुखः निर्गम ।। शुभम प्रवेश.... जय मध्य प्रदेश...जय मध्य प्रदेश... सिंध, पार्वती नर्मद हर। चंबल बहती, कल-कल कर।। महाकाल, महादेव सर्वेश.... जय मध्य प्रदेश। दुखः निर्गम ।। शुभम प्रवेश.... जय मध्य प्रदेश...जय मध्य प्रदेश... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के ...
धन तेरस… हो मन तेरस…
कविता, व्यंग्य

धन तेरस… हो मन तेरस…

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** धनतेरस धनवान बने, धन बरसे, ना मन तरसे। सभी भुभेच्छा यही आज, देता सारा सकल समाज।। किंतु ...! मेरे कवि ह्रदय ने नया पर्व का नाम दिया .... मनतेरस। धन तेरस .. हो..जन तेरस ..हो मन तेरस ..।। मनतेरस का पर्व मनायें हम सब। दुखिया के घर खुशियां लायें हम सब।।.... जिनकी आंखों में सागर तैर रहे। हाय वेदना उनकी हर जायें हम सब।।... जिनके घर दीपक घी के जार रहे, भूखे तक कुछ तेल पहुंचायें हम सब।।... जिन्हें दरिद्रता ने अभिषापित कर डाला, गहरे घावो तक मरहम दे आयें हम सब।।... त्योहारों को जो सीमा पर मना रहे, उनकी यश गाथा को गायें, हम सब।।... धनतेरस का मतलब शायद जान चुके, आओ मिल अभियान चलायें हम सब .... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यका...
गम के सिवा
गीत

गम के सिवा

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** गम के सिवा क्या दिया मैंने तुमको, तेरी जिंदगी से चला जाऊंगा में। तेरी आंख में आंसुओं की झड़ी हो, हरगिज नहीं देख अब पाऊंगा में।।... मुझे भूल जाना सपना समझकर, दिल में ना रखना कोई याद मेरी। मेहफूज रखे खुदा हर बला से, चाहे ज़िंदगी कर दे बर्बाद मेरी।। दुआओं भरे गीत अब गाऊंगा में।.. तेरी जिंदगी से चला जाऊंगा में। तेरी आंख में आंसुओं की झड़ी हो, हरगिज नहीं देख अब पाऊंगा में।।... उन रास्तों पर कभी तुम ना जाना, जहां बीती यादें सतायेंगी तुमको। गूंजेंगी कानों में आवाज मेरी, बुलायेंगी तुमको,रूलायेंगी तुमको।। लेकिन नजर ना कहीं आऊंगा में।.. तेरी जिंदगी से चला जाऊंगा में। तेरी आंख में आंसुओं की झड़ी हो, हरगिज नहीं देख अब पाऊंगा में।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभ...
जिसे चांद कहते रहे
कविता

जिसे चांद कहते रहे

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** साल भर हम जिसे चांद कहते रहे, आज उसने हकीकत में झुटला दिया। मैं तो हूं रोशनी आंखों की पिया, चांद कहकर गले से लिपटा लिया।। इन सांसों में खुशबू महकती तेरी, तेरी यादों में खुशियां चहकती मेरी। जिस दिन मुलाकात होती नहीं, रूह तड़फे और काया दहकती मेरी।। सात जन्मों का बंधन नाता किया।।.. चांद कहकर गले से लिपटा लिया।।.. मैं दूर होकर भी कब दूर हूँ, इस जमाने के हाथों मजबूर हूँ। धड़कन हो मेरे दिल की प्यारे सनम, तू मेरा नूर है मैं तेरी नूर हूँ।। मेरी पूजा का रोशन, तुम्हीं से दिया।.. चांद कहकर गले से लिपटा लिया।।.. . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, क...
नेह तुमसे लगाऐं
कविता

नेह तुमसे लगाऐं

********** विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) नेह तुमसे लगाऐं, तुम ना स्वीकारो? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... असर अब कुछ हुआ है। दिखे खाई कुआ है। प्रीत में हार बैठे सब, खेला ऐसा जुआ है । हम दर्द से बिलखें, नजर तुम ना बुहारो? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... अजब हलचल हुई थी। टाट, मल-मल हुई थी।। तुम्हारे प्रेम बंधन में, देह शतदल हुई थी।। आज दल-दल फंसे हैं, देखकर ना उबारो ? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... भला अनुराग पाला। मन घुली हाय हाला।। अधेरों से हुयी यारी, लगे बैरी उजाला ।। तिमिर की स्याह में डूबे, दीप फिर भी ना जारो? क्या अर्थ है, सब व्यर्थ है।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि ...