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Tag: विजय गुप्ता “मुन्ना”

आखिर किसे स्वीकार है (ताटंक)
कविता

आखिर किसे स्वीकार है (ताटंक)

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** जानकर अंजान बनना तो खुद का दारोमदार है। पर अन्य को दोषी बताना, आखिर किसे स्वीकार है। समय_प्रवाह संग बह जाना, किसका दिया उपहार है। क्षमता नियंत्रण पहचान का बस नाम मुन्ना रफ्तार है। जनहित कल्याण मार्ग खातिर धरातल वाली सोच हो। यथेष्ठ दायित्व पालन में, धृष्टता का ना लोच हो। रहे लाभार्थी पर नजर यूं, उसको तनिक ना मोच हो। भान सदा गरीब को होता, जब कष्टों की भरमार है। पर अन्य को दोषी बताना, आखिर किसे स्वीकार है। समय_प्रवाह संग बह जाना, किसका दिया उपहार है। शोर छिपा है अरमानों में, अलग तादाद ही बसता। जगमग दिव्य रोशनी में भी, खामोशी से सब सहता। सुखदुख सचझूठ मध्य बैठा, प्रदर्शन से घिरा रहता। पांच सदी पश्चात त्रेतायुग सा अयोध्या दरबार है। पर अन्य को दोषी बताना , आखिर किसे स्वीकार है। समय_प्रवाह संग बह जाना, किसका दिया उपहा...
गोष्ठी बुखार
छंद

गोष्ठी बुखार

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** एक काव्य गोष्ठी में पिछले दिनों एक कवि मुख से उच्चारित हुआ, गोष्ठी से कुछ बुखार कम हो जाता है। विजय गुप्ता ने इस भाव को काव्य सूत्र में ताटंक छंद विधा में सृजित किया। कवि लेखक अपने चिंतन से, चाल चलन दरशाता है संभव समर्थ समाधान तक, कलम खूब चलवाता है। जनता सत्ता आइना देखे, साधक बनकर गाता है। फिर गोष्ठी हलचल होने में, बुखार कम वो पाता है। कवित्व गुण का आधार यही, कई विधा का संगम हो। सृजन सेवा साधना तीर, से कुपथ्य का निर्गम हो। विवाद आंकड़े बने जमघट, कई वर्ग से उदगम हो। दशा दिशा के नेक तर्क में, फूहड़ बोली आलम हो। कविता धारा अब बहे कहां, उत्थान जहां गिराता है। कहने सुनने युग गुजर चुका, काव्य शोर मचाता है। कवि लेखक अपने चिंतन से, चाल चलन दरशाता है। संभव समर्थ समाधान तक, कलम खूब चलवाता है। आचार्यद्रोण शिक्षा समान, अल...
शिवायन
भजन

शिवायन

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** शिव का नाम जगत में सबसे छोटा पर, देवों के देव महादेव ही शिव अखंड श्रद्धा पूर्ण नमन। ब्रम्हांड में शून्य स्थान नहीं कभी रहता, दिव्य चेतना से परिपूर्ण हर कोना ज्ञान भंडार चमन। ज्यतिर्लिंगों से शंख आकृति रचेता बम बम लहरी। अनंत चेतना है शाश्वत शिव प्रथम गुरु, स्वयं-भू शिव के दो नेत्र सूर्य चंद्र तीसरा विवेक नयन। भूत वर्तमान भविष्य स्वर्ग मृत्यु पाताल, त्रिलोक स्वामी भोले भक्ति में दास भक्त करते जतन। शिव का नाम जगत में सबसे छोटा पर, देवों के देव महादेव ही शिव अखंड श्रद्धा पूर्ण नमन। ज्यतिर्लिंगों से शंख आकृति रचेता बम बम लहरी। देवी सती स्मृति वश देह पर भस्म रमाते, शिव आभूषण भस्म के भस्मी तिलक में भक्त भजन। नागराज वासुकी बने सागर मंथन रस्सी, नागसर्प माला भी गहना शिव शंकर को भाए गहन। शिव का नाम जगत में सबसे छोटा पर,...
निल बटे सन्नाटा- घनाक्षरी
धनाक्षरी

निल बटे सन्नाटा- घनाक्षरी

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** (घनाक्षरी) बाबा विश्वनाथ घर, नशेड़ी उपाधि देता, काशी धरा से बोलता, अधेड़ कुंआरा है। सनातन असर तौल, भड़का जहर खौल, भड़ास ही निकालने, कुआंरे का नारा है। गालियां नहीं एक को, रूष्ट युवा ये सोचते, युवा पीढ़ी समस्त को, गालियां सौगात दी। यू एस ए युवा गुहार, लोकतंत्र बेअसर, चुनाव परिणाम से, पाएगा आघात ही। विचार धारा डमरू, बजाकर जो रूबरू, अर्जी लगे दरबार, युवा शक्ति का जोश है। जैसा जहां जो जमता, वो वैसा वहां कहता, व्यर्थ झाड़े तुगलकी, अहंकारी दोष है। चलो इसी बात पर, चार वर्ग जानकर, सेवा धर्म मानकर, अधर्म को ही टा टा। लटका अटका और, भूला भटका भाई भी, नेता प्रेमी छात्र पाते, निल बटे सन्नाटा। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता "मुन्ना" जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग सा...
नव्य वर्ष
दोहा

नव्य वर्ष

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ग्यारह महिने दौड़ती, सबकी अपनी रेल। नवल माह पूरा करे, अंतिम वाला खेल।। सुंदर शोभा पलक पर, रखना सदा जरूर। बूंद पत्ते अवसान से, निज स्थल होते दूर।। सबक पड़ोसी माह से, मिल जाता हर बार। दिसंबर को पछाड़ता, नवल साल संसार।। दुर्गम पथ नदिया चले, अनुपम दे उपहार। वक्त घड़ी चलती सरल, अनुभव मिले अपार।। खो देने का भय रहे, याद बिदा का मोल। बूढ़ा वक्त दरक रहा, नूतन परतें खोल।। चूके समय बहाव में, परिणिति भी अनजान। अहम आहुति बता रहा, भूल गए अनुमान।। खुशियाँ पल संयोग से, जब भी खोले द्वार। भुलवाए संताप का, भारी भरकम भार।। स्नेहयुक्त संसार में, पल पल जीवन खास। चाहत रंगत ही सदा, हरदम रखना पास।। संकट मोड़ खड़ा मिले, अनर्थ भी तैयार। पकड़ नहीं तकदीर पे, कहता दिल आगार।। आवागमन युक्ति चले, नूतन समझो ...
लोहा अवसान
दोहा

लोहा अवसान

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** लोहा लेने जो खड़े, कुछ तो होगी बात। साधन साहस संग हो, दूरी बहुत जज्बात।। अतिशय खिलाफ ही सदा, अपनों से ही बैर। सहमत होते देखते, यथा समय ही गैर।। बात_चीत विरुद्ध खड़े, बोली में ही तंज। सहन_शक्ति सीमा हुई, जिसने पाया रंज।। निर्णय लेता वो सही, खुलकर दे पैगाम। बिगाड़ सदैव ही मिले, संभव नहीं लगाम।। धन जमीन संबंध ही, लाते हैं बिखराव। पारदर्शी गुण पारखी, करते तनिक बचाव।। मसला विवाद मूल है, कलयुग की पहचान। दुनिया सारी खोजती, कैसे हो निपटान।। जीवन लोहा मानते, निर्णय राह उत्थान। अंतिम यात्रा में मिले, कफन रिक्त नादान।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता "मुन्ना" जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा ...
गड्ढे की छलांग (ताटंक)
कविता

गड्ढे की छलांग (ताटंक)

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए। दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए। साहस मेहनत छलांग धरो, अपनी क्षमता बढ़ जाती। बुरा दूसरों का किए बिना, लक्ष्य भेदना सिखलाती। अनुभव बिन उद्योग संचालन, नई राह में लीन हुए। अब शोख शर्मीला बच्चा कहे, दुनियादारी जीत गए। गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए। दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए। गड्ढा खोदने में जो तल्लीन, उनके पास समय कम हो। बाधक बनने में खो देते, जो संस्कार जरूरी हो। उनके घर की कलह कहानी, यत्र-तत्र गम गीत नए। बचपन से रहे कलंक ग्रस्त, अब ज्यादा ही दीन हुए। गड्ढे खोदने लोग लगे थे, हम छलांग के मीत भए। दुविधा भेदन की दुनिया में, सुविधा लाना सीख गए। स्पर्धा कारोबार के स्वामी, भाग्य से बहुत कमाते। हमने सुने कुछ ऐसे बोल, वो सोना चना...
खुद से धोखा मत करना (ताटंक)
कविता

खुद से धोखा मत करना (ताटंक)

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** लक्ष्य भेदना दुष्कर समझें, सब्र साधना ही धरना। लक्ष्यों के जानो रूप हजार, मनचाहा पहले रखना। पथ भ्रष्ट जन की अनदेखी, करके तुम आगे बढ़ना। जब राह चुनी अंतर्मन से, खुद से धोखा मत करना। सत्य राह में बाधा देने, समक्ष परोक्ष चले आते। वो कभी आपको भटकाते, सहज रूप में बहकाते। दिल दिमाग का गोबर होता, शंकाओं में घिर जाते। लक्ष्य दाल संग भात बैठे, मुसरचंद दूर फेंकना। पथ भ्रष्ट जन की अनदेखी, करके तुम आगे बढ़ना। जब राह चुनी अंतर्मन से, खुद से धोखा मत करना। लक्ष्य साधने की कला याद, छत पे थी घूमती मछली। नीचे बहते जल में मछली, बिंब आंख में हां कर ली। देश_देश के वीरों को सब, देख रहे आई मतली। साध्य साधन साधक कहते, सीख सदा अर्जुन रखना। पथ भ्रष्ट जन की अनदेखी, करके तुम आगे बढ़ना। जब राह चुनी अंतर्मन से, खुद से धोखा मत करना। द्वे...
दिल से- कहते हम आपसे… कायल
दोहा

दिल से- कहते हम आपसे… कायल

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कायल महक विशेष है, परखो मनुज सुजान। धर्म कर्म का मन वचन, हर पल की पहचान।। कायल घात विनाश में, करते अपना अंत। हो सकता कुछ देर हो, सुनते वाणी संत।। कायल उचित विकास का, डंका चारों ओर। संकल्प सिद्धि के लिए, थामे सेवा डोर।। कायल जन की राह में, आते बहुत तनाव। पर श्रम युक्ति चाल से, रखते बहुत लगाव।। कायल बनना अति सरल, जब मात्र निःस्वार्थ। पवित्र गंगा धार में, गुण सदा परमार्थ।। व्यर्थ जी हुजूरी छिपा, लाभ भरा ही भाव। कायल होते एक के, रखते अन्य दुराव।। ना थकते जो खुद कभी, गुनगानों में होड़। कायल बनकर भी सदा, बन जाते बेजोड़।। जब कायलता काज से, मिलते सही निशान। देश बढ़े तब अनवरत, शिखर चला परवान।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता "मुन्ना" जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ ...
पहाड़ तोड़ विजय
धनाक्षरी

पहाड़ तोड़ विजय

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** देश में दिवाली रंग, दरक गई सुरंग, मजदूर बदरंग, बुरा वक्त होश का। सिलक्यारा टनल में, दबे हुए श्रमिक के धैर्य को करें नमन, रक्षा कर्म जोश का। मुसीबत राज करे, चहुं ओर सब घिरे, कोई थके कभी गिरे, लोग घबराते हैं। मुसीबत पहाड़ का, बंद सब किवाड़ भी, विकल्प संकल्प बल, हौसला दिलाते हैं। सुई संग तलवार, थे छोटे बड़े औजार, मशीन जवान धार, देश करे प्रार्थना। मेला रेला कष्ट आए, टूट फूट खूब लाए, श्रमिक बातचीत से, भूलते कराहना। सत्रह दिवस तक, दोनों ओर भरसक, तरकस के तीर से, ढूंढते संभावना। घंटे चार शतक में, खाना पीना दवाई से, सत्ता जनता देश की, देखो सदभावना। तमस भरी दुनिया, उमस रही बगिया, प्रयास वाली कलियां, सतत खिलाते हैं। रक्षा जीवनदायिनी, सुकर्म वरदायिनी, पहाड़ तोड़ विजय, वापसी सौगातें हैं। परिचय :- विजय कुमार गुप्...
जीत की दहाड़
धनाक्षरी

जीत की दहाड़

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** घनाक्षरी बहार खूब जोश की, खेल ट्रिक सुधार से, मंच अति रोमांच का, जीत से पछाड़ हो। दस विजय सतत, हार का नहीं सबब, हर जीत कथा यही, लेश ना जुगाड़ हो। दशा वक्त अनुरूप, रहे नहीं सदा भूप, देश जीते विश्व रूप, कुछ ना बिगाड़ हो। पसीना महक अब, पूरा जग सुरभित, चाल वही कॉल सही, बॉल मार धाड़ हो। एक सुर रीत रहे, टीम मन मीत बने, नायक का रंग ढंग, खोलता किवाड़ है। उमंग नहीं जंग ही, जीत वाली तरंग से, जीत जश्न जयघोष, तोड़ता पहाड़ है। हलचल धड़कन, अटकल दमखम व्यर्थ नहीं चक चक, आज ही उखाड़ हो। तन मन हवन से, फतह बल चहल, विश्व कप में पहल, जीत की दहाड़ हो। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता "मुन्ना" जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मं...
अवध में राम आए हैं
मुक्तक

अवध में राम आए हैं

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** अदभुत दिवाली रंग जो हम त्रेता युग पाए हैं। लाखों दीप ज्योति गगमग, अवध में राम आए हैं। ढोल नगाड़े नारों से, राम लोक शोभा जुलूस, सनातन संस्कृति साक्षी, जन मानस ही लाए हैं। पूज्य राम सबूत मांग, अनर्गल संवाद ढाया। तथ्य विहीन संवाद को, यथा समय जवाब लाया। ब्रम्हांड में बुराई का, परिणाम मिलता जरूर, सनातन को झूठ कहकर, पश्चाताप तक ना भाया। हिंदू तीज त्योहार जो, सदा फिजूल बताए हैं। सिद्ध हुआ वे रावण मन, कलयुग में भी छाए हैं। अदालत फैसले तक जो, पांच सदी भी गुजर गई, अतः सत्यापित खुद होता, तम को सदा हराए हैं। नकारने वाले कहते, राम पर हक सभी का है। प्रभु श्री राम दयालु भी, किस्सा मानस ग्रंथ का है। शरणागत पर करें कृपा, सीख यदि वांछित लेंगे, छल कपट विरोध में शक्ति, सत्ता रण प्रपंच का है। राम नाम की गूंज सुनी, दिव्य भव्य ...
मर्यादा कहने-सुनने की (ताटंक)
कविता

मर्यादा कहने-सुनने की (ताटंक)

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कहने सुनने वाली भाषा, शान मर्यादा रखती है। केवल कहने सुनने से जो, दुख भी आधा करती है। बातचीत ऐसा मसला जो, विकास कार्य को रचती। युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी, अनुचित चाल चल पड़ती। कहा सुनी से सीधा आशय, विध्वंस को इंगित करना। कानाफूसी अंदाज रोग, आधार अलग ही रहना। उसी मोड़ दोराहे जानो, विघटन कारण बन सकता। कहना सुनना पृथक रहकर, बातचीत धारण करता। स्वस्थ वार्तालाप बताता, सम्मान से दुनिया चलती। बातचीत ऐसा मसला जो, विकास कार्य को रचती। युद्ध क्रुद्ध दिशाहीन कभी, अनुचित चाल चल पड़ती। तंज प्रहार बातचीत में, सुबह-सुबह की राधे-राधे। जो वाचाल मौन हो जाए, टीस चुभन से आधे आधे। शुभ घड़ी में मूक परिभाषा, गलत समझना परंपरा। हारे स्वस्थ कुशाग्र मनुज, विचलित जो था हरा भरा। दो पाटन बिच साबुत कैसे, पिसने की चाकी चलती। ब...
राजनीति की चिल्ल पों
कविता

राजनीति की चिल्ल पों

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** राजनीति प्रवक्ता के बोल, रटे रटाए दिखते हैं। आड़ा तिरछा पूछ लिया तो, प्रति प्रश्न ही करते हैं। बोलने से कमाई होती, पर दिशाहीन चलते हैं। संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते हैं। अच्छा बोलने वाले का तो, हुनर दिलाता है मौका। गलत बात टकरा जाए, वक्ता जड़ते छक्का चौका। बस तारीफों के पुल बांधों, भले नहीं सोना चोखा। गुजरे समय में खूब जिनसे, पार्टी ने खाया धोखा। उन चतुरों की खातिर देखो, बस अंगार चमकते हैं। संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते हैं। वकील कानूनी भाषा से, रखें तर्क वितर्क कुतर्क। अदालत फैसला रहे एक, पर वक्ता दलील में फर्क। अपने मतलब का जोड़-तोड़, दिखाकर ही पाते हर्ष। आरोप अपराध अंतर में, करते कई बार विमर्श। कागज सबूत फोटो अनेक , पैरवी में दमकते हैं। संस्कारी भारत की गरिमा, मचा चिल्ल पों हरते ह...
बड़े आराम से
कविता

बड़े आराम से

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ब्रम्हांड भी छोटा लगे माता पिता के सामने, गोल घेरा में गणेश प्रथम बड़े आराम से। पढ़ना सुनना बोलना लेखन कला सूत्र होते, मां शारदे कृपावश समर्थ बड़े आराम से। विचार सोचकर बोलने तैयार हों जब तलक, बेबाक इंसा बोल जाते हैं, बड़े आराम से। काम करने की हिम्मत जुटा पाते जब तलक, कारगुजार निपटा जाते हैं बड़े आराम से। वतन चौकसी जवानों का दुष्कर सुरक्षा दौर, कुछ भूलते हैं गर्व सम्मान बड़े आराम से। माखन मटकी रखने की दुविधा जसोदा को, नटखट कन्हैया चट करते, बड़े आराम से। दोस्ती पैगाम ऊपरी ऊपर दमदारों का शौक, सुदामा मित्र मानें द्वारकेश बड़े आराम से। परम वीर पराक्रमी आजमाते रहे शिव धनुष, शक्ति कामना से राम तोड़ें बड़े आराम से। आदिशक्ति नवरात्रि पर्व उपासना साधनारत, मनकामना पूर्ण दयारूपेण बड़े आराम से। परिचय :- वि...
चेहरा भाव
दोहा

चेहरा भाव

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मानो कहकर सोचना, दे जाता अवसाद। जो सोचकर कहे सदा, मनमोहक हो नाद।। चेहरा भाव जानिए, अंतर्मन की चाल। कलम समझ तो अनवरत, भाषा मालामाल।। हाव_भाव गुण देन से, जीवन कुछ आसान। दोहरापन छिपा कहीं, कर लेते पहचान।। मुख से प्रकट कुछ करे, मन में रखे दुराव। भिन्न रूप अति सहजता, दिखता है स्वभाव।। पढ़कर भाषा अंग की, माना होती जीत। बचना हो जब गैर से, उसकी है ये रीत।। रिश्तों संग कटुता कभी, देती जब आभास। सहज ढंग परखो इन्हें, सुखद रहे आवास।। विभिन्न अर्थ नकारते, अपनी जिद की टेक। सदाचार ही खो गया, जो बन सकता नेक।। साफ झलकते भाव की, परख शक्ति ही शान। शब्द चयन आधार से, मृदु कुटिल पहचान।। गुण अवगुण दोनों रहें, जग मानव का सार। सहनशील हरदम नहीं, अवश्य करो विचार।। परख अनोखी चाहतें, संभव रहे बचाव। हर पहलू के रूप दो, गलत ...
क्रोध क्षमा की म्यान
कविता

क्रोध क्षमा की म्यान

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** शब्द लघु हैं गुस्सा क्षमा, व्यापक है प्रभाव। एक म्यान में एक का, चलता है स्वभाव।। द्वंद्व इनमें ना रहे, गुण विशेष का ताज। अति दोनों की है बुरी, गुम हो जाती लाज।। सटीक व्याख्या क्रोध की, करना हो श्रीमान। भिन्न स्वरूप जांचिए, बहुत जरूरी ज्ञान।। गलत सदा अवमानना, जिद चले प्रतिकूल। छोटे बड़े काज जहाँ, वृहद लघु भी भूल।। बिन गलती या डांट से, ना पले व्यवहार। अनुशासन के नियम ही, देते हैं संस्कार।। जब गलती खुद आपकी, होता क्रोध फिजूल। अन्य किसी पर थोपना, अवश्य रहे निर्मूल।। संत ऋषि मुनि गण सभी, दिखलाते आवेश। सुंदर भविष्य के लिए, समय समय आदेश।। दुर्वासा परशुराम का, तप बल ही वरदान। खूबी बगैर क्रोध का, अनुचित है अरमान।। त्रेता युग में ’राम’ का, सागर से अनुरोध। अवमानना पयोधि की, तब भड़का था क्रोध।। करते रहो ...