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नशा नाश का मूल
कविता

नशा नाश का मूल

विकास सैनी बापू गांव, कोटखावदा, (जयपुर) ******************** छोड़ो धुम्रपान और शराब, नशा नाश का मूल है। जो नर नशें को अपनाता, जीवन में बोता शूल है। नशा जिसने अपना लिया, यह जीवन की भूल है। गांजा गुटखा बीड़ी पीता, मानव जीवन धूल है। नशा जो करें उसे बुलावा, यम का स्वीकार है। बर्बाद होकर पहुंचे श्मशान, रोता उसका परिवार है। पीकर भांग धतूरा दारू, मौत गले लगाते है। कंचन सी काया को यूं, सब धूएं में उड़ाते हैं। परिचय : विकास सैनी निवासी : बापू गांव, कोटखावदा, (जयपुर) शिक्षा : कक्षा ९वीं राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय बापू गांव, कोटखावदा, जयपुर। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा...