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Tag: विकास मिश्रा

एक अजनबी
कविता

एक अजनबी

********** विकास मिश्रा एक अजनबी से सफर में एक अजनबी से मिलना. पर लगता है ऐसे जैसे जानता हूँ सारा इतना.. . गुमसुम गुमसुम सी बैठी थी अकेली. उलझी हुई लगती थी वो एक पहेली.. . होने लगी थी बाते कुछ इधर उधर की, पूंछा ही नही मैंने तुम खोई कहा हो इतना.. . अब तो आंखों ही आंखों में बात होने लगी. धीरे धीरे से वो भी करीब आने लगी.. . हम दोनों एक प्यारी सी मुस्कान में खो गए.. वर्षो से थे बिछड़े अनजाने में मिल गए.. . आंखों से लब्ज अब लब पे आ चुके थे .. और वो अपनी आँखों से ही मेरे लफ़्ज़ों को चुरा रहे थे.. . फिर वो बेधड़क सी अपनी बातों को बोलने लगी.. कुछ थे पुराने राज जो वो अब खोलने लगी.. . अपनी नर्म उंगलियों से अपनी जुल्फों को सुलझाती.. इशारों ही इशारों में मुझे बहुत कुछ समझाती.. . हम सभी अजनबी थे पर अब दोनो घुलमिल गए थे.. कुछ सोए हुए थे ख्वाब धीरे धीरे वो भी जग रहे थे.. . परिचय :- गोपालगंज, बिहार न...