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Tag: विकास कुमार

ये दुनिया सारी है जिनकी शरण में
कविता

ये दुनिया सारी है जिनकी शरण में

विकास कुमार औरंगाबाद (बिहार) ******************** ये दुनिया सारी है आज जिनकी शरण में, हमारा नमन है अपने उन बाबा के चरण में। पूजा के योग्य है बाबा हम सबकी नजर में, सब मिलकर फूल बरसायें बाबा के चरण में। जिनके नियम पर चलता रहेगा ये भारत सादा, ऐसा ही एक संविधान बनाए अपने भीम दादा। इस हिन्दुस्तान की धरती पर हम सबको चलना आया, बाबा ने इक नया संविधान लिखकर हमे लिखना बताया। देश प्रेम में जिसने आराम को दिए ठुकराए, गिरे हुए इंसान को अपना स्वाभिमान सिखाये। जिसने हमको अपने मुश्किलों से लड़ना सिखलाया, इस जमीन पर ऐसा दीपक बाबा साहब कहलाया। शिक्षा संगठन के थे अपने बाबा बड़ा पुजारी, अधिकार हेतु किए लाखो लोगो से संघर्ष भारी। मानव मे भी है रक्त एक, एक भाँति है सब आये, अपने स्वारथ के चक्कर में लोग जाति–पाति बनायें। युगो–युगो में यह पीड़ा रमी थी तब होता था दर्द ऐसा, छुवा-छूत...
ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं
कविता

ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं

विकास कुमार औरंगाबाद (बिहार) ******************** ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं, मै आज की युग की नारी हूं। कम मुझे आप मत आको, मै इस सारी दुनिया पर भारी हूं।। सदियों से जीती औरो के लिए, सदियों से यह अत्याचार सहे। हर बात पर एक सीमा होती है, ऐसे घुट–घुट कर कौन रहे।। ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं, मै आज की युग की नारी हूं। नही डरती हूं मैं इस दुनिया से, बस अपनो से सदा मैं हारी हूं। कम मुझे आप मत आको, मै आज की युग की नारी हूं।। मैं बाहर काम पड़ने पर जाती हूं, परिवार का अभिमान बढ़ाती हूं। गृहस्थी का गाड़ी स्वय चलाती हूं अपने परिवार खुश रख पाती हूं।। ना अबला हूं ना मैं बेचारी हूं, मै आज की युग की नारी हूं। फिर मैं लोगों का हवस का शिकार बन जाती हूं, जान बचाने के लिए जोर–जोर से चिलाती हूं। फिर भी मै अपने बातों को नही बता पाती हूं, फिर भी भारत में महिला दि...
अपना बसंत ऋतु
कविता

अपना बसंत ऋतु

विकास कुमार औरंगाबाद (बिहार) ******************** हमारे मन में हरियाली सी जब आई है। फूलों ने जब अपनी गंध को भी उड़ाई है।। कोयल भी गाती है जब कुहू-कुहू, भंवरे भी दिल से करते रहते है गुंजार। आई है इस रंग बिरंगी रंगों वाली इन सभी तितलियों की मौज बहार।। फूलों पर हैं भवरे अपना रंग जमाए। आम के पेड़ भी अपना मोजर दिखाए।। हमलोग करने ऋतुराज का स्वागत आए। खेतो में सरसो भी बैठा अपना फूल खिलाए।। हरियाली का मौसम है जिसे कहते है बसंत ऋतु। न सर्दी है न गर्मी है देखो आया अपना बसंत ऋतु।। घर में आया नया फसल और साथ में नया उमंग। चलो बनाकर खाएं पकवान अपनो के संग।। परिचय :- विकास कुमार निवासी : दाऊदनगर औरंगाबाद (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
१४ फरवरी शहीद दिवस
कविता

१४ फरवरी शहीद दिवस

विकास कुमार औरंगाबाद (बिहार) ******************** आतंकवादी भेड़ जब फौज शेर के पीछे से छुपकर एक दर्दनाक दुर्घटना करने को आई थी। आतंक इनके जज्बातों से डर के एक वाहन लदे आरडीएक्स फौज के वाहन से टकराई थी।। रोया होगा आसमान भी उस दिन जिस रात को ये दर्दनाक समय आई थी। आसमा तो क्या धरती को भी दिल से जोरो का जब आवाज निकल आई थी।। माँ की आँखे तो बहुत ही दिनों से बेटे का आने की रास्ता को देखकर आई थी। तभी पत्नी की घर में आवाज गूंजी, जब फौजी पति के शहीद होने की खबर आई थी।। माँ ने भी अपने दूध का कर्ज चुकाने के बहाने, वीरों को आवाज लगाकर जगाने आई थी। बहने और बच्ची भी उन्हें जगाने चिखते–चिल्लाते हुए बहुत दूर तक आई थी।। हर आँखे नम हो गया जब अपने ही देश के ४२ फौजियों के शहीद होने की खबर जब टीवी में आई थी। उन माताओं और बहनों की दिल पर क्या गुजरा होगा, जब किसी के बेटे, ...