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Tag: वन्दना पुणतांबेकर

नव वर्ष
कविता

नव वर्ष

वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर) ******************** नव पल्लव, नववर्ष आया। सुख-समृद्धि छोली भर लाया। खिले पुष्प सा जीवन सबका। मन की आशा हो पूरी। कभी न हो नीरवता जग में। द्वेष नही कोई मन में रखना। मिलो तो सदा अपनो से लगना। जीवन है, यह सुन्दर सपना। हो हर आशा पूरी। घर चहके पल-पल महके। हर दिल में मुस्कान खिले। अरमान के फूल खिले। खुशियॉ सबकी हो पूरी। यही मंगल कामना मेरी । आशा और विश्वास रखो तुम। निराशा मन कि दूर करो तुम यही जीवन की धुरी। हँसो, खिलो ख़िला- खिलाओ स्वजन। नव वर्ष नई आशा, नई खुशियों का संसार खुला हो। हर घर मंगल गीत बजे। घर, आँगन में दीप जले। सबकी आस हो पूरी। यही कामना मेरी। नव पल्लव, नववर्ष आया। खुशियों की सौगात लाया। किसी चहरे पर मुस्कान खिला सको तो। जीवन सार्थकता हो पूरी। यही कामना मेरी। . परिचय :- वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कव...
नारी अस्तित्व
हाइकू

नारी अस्तित्व

वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर) ******************** बीती रात। सहसा बदले हालात। घायल जज्बात। सपने बर्बाद। अपनो की याद। कैसे हालात। कलयुगी रावण। हवस का दानव। पड़ा भारी। अबला बेचारी। मुसीबत की मारी। थी वह कुँवारी। अँधेरी रात। बिखरा अस्तित्व। टूटी आस। मन उदास। माँ की आशा। हुई निराशा। बेटियां हमारी। कैसे हो सुरक्षित। चिंता भारी। असंख्य आबादी। दुष्टों की आवारी। संकट भारी। बदला समाज। मानवता का नाश। दानव पिशाच। अकेली बाला। कोई ना सहारा। बिगड़े हालात। कानून बनाओ। उन दुष्टों को नपुंसक बनाओ। बेटीयॉ बचाकर। आने वाला कल। सुरक्षित बनाओ। . लेखिका परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोस...
बचपन
कविता

बचपन

वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर) ******************** बचपन वहीं सुहाना था। बचपन तो बस। खुशियॉ का खजाना था। खिल-खिलाती खुशियॉ, हरपल। मौसम बड़ा सुहाना था। कहॉ चाहतो का अफसाना था। बचपन वही.......। साथी, दोस्त वही पुराने थे। बचपन के मीत सुहाने थे। कहॉ अपना-पराया भेद जाना था। कहॉ गमो का फ़साना था। बचपन वही.........। दादी के हाथों का लगता अचार सुहाना था। पास जाकर कहानी सुनने का बहाना था। दादा का मीठा स्वप्न सुहाना था। कहॉ चिंताओं का फ़साना था। बचपन वही..........। छुट्टियों का अलग ही ज़माना था। लड़ना-झगड़ना तकरारो का आना-जाना था। लेकिन मन का निर्मल तराना था। कहॉ राग-देश का फ़साना था। यह भेद अब हमने जाना कि बचपन बड़ा सुहाना था। . लेखिका परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाय...
कनागत
लघुकथा

कनागत

********** वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर) आज राम चरण अपनी उम्र को दरकिनार करते हुए।अकेले ही बनारस के घाट तक पहुंचे। बनारस के पास ही गांव में रहते थे। घर में कोई नहीं था। जो उनकी कद्र करें! सभी अपनी-अपनी भागा दौड़ी में लगे हुए थे। किसी को फुर्सत ही नहीं। यही सोच अकेले ७९ वर्ष की उम्र में हिम्मत धरकर निकल पड़े। घाट पर जाकर देखा तो जेब से रुपए कहीं नदारद हो चुके थे। कुर्ते की जेब में सिर्फ कुछ चिल्लर ही खनक रही थी। वह परेशान होकर इधर-उधर देखने लगे।तभी वहां एक भिखारन आई बोली- "बाबा श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं, कुछ दान पुण्य कर दो! रामचरण बोले- "बेटा मैं भी यही सोच कर आया था।कि अपने माता-पिता का श्राद्ध कर लू,घर में किसी को फुर्सत ही नहीं, मगर मेरे रुपए गिर गए हैं!,समझ नहीं आ रहा क्या करूं घबराई हुई सी आवाज में वह बोले,"कोई बात नहीं बाबा मुझे तो रोज मिलता रहता है। आप यहीं बैठो मैं आती हूं। करते हुए वह...
तर्पण
कविता

तर्पण

********** वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर) पित्रौ को सुखी देखना चाहते है। पित्रौ का कनागत करना चाहते है। जीते जी उनका सम्मान करे। जीते जी आदर प्रेम करे। मरने पर आत्माएं दूसरी, योनियों में विलीन हो जाती। जीते जी अपने,पराये समझ आते। मरने पर पितृ विलीन हो जाते। सिर्फ चित्र-चरित्र याद रह जाते। भवनाओं से अपनो को अपना ले। चाहे फिर पित्रौ का श्राद्ध करे ना करे। उनके दिलों को दर्द ना दे। सुख का भोग जीते जी अर्पण करे। मन से भावो से प्रेम का तर्पण करे। जीते जी प्रेम अपर्ण करे। मारने पर भाव भीनी श्रद्धांजलि समर्पण करे। दिखावे का तर्पण ना करे। जीते जी पित्रौ को प्रेम अर्पण करे। प्रेम अर्पण करे। . लेखिका परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलत...
फूल
कविता

फूल

********** वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर) फूल खिलता है,मुस्कुराता है। बहारो संग झूम-झूम जाता है। कभी जन्मदिन पर खुशियॉ मनाता है। कभी गमो में गमगीन हो जाता है। अर्थी पर जब चढ़ता है,आँसू बहता है। प्रभु के चरणों मे धन्य हो जाता है। नेताओ के गले में घुटन से दब जाता है। महापुरुषों के गले मे पड़ इठलाता है। समयनुसार वह भी भाग्यनुसार चलता है। किस्मत भी फूलों की इंसा की तरह होती है। इंसा जरा सी तकलीफों मे घबराता है। फूल काँटो के साथ जीवन। बिताकर समय परिस्थितियों अनुरूप ढल जाता है। फूलों से सीखो जीवन जीना। हर परिस्थितियों में खिलकर मुस्कुराना । हर फूलों का मुकद्दर अलग होता है। फिर भी समयनुसार जीवन मे हर परीस्थिति में ढल जाना फूल हमे सिखाता है।   लेखिका परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई ...
सफर
कविता

सफर

======================== रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर गर! सफर में साथ हो अपनो का, तो सफर आसां हो ही जाता है। तलाश हो गर! सही मंजिल की, तो कारवाँ बन ही जाता है। वादियां खिली-खिली सी हो। गर! ना हो दोस्त साथ तो। चमन भी, चुभ ही जाता है। गर! साथ हो दोस्त, परिवार तो। विराना! चमन हो ही जाता है। मुक़द्दर सभी का अपना-अपना। लेकिन! कोई मंजिल तो होगी। जहाँ में! जहाँ, हमसाथ हो ही जाता है। मत कर! तलाश बिखरे पन्नो की। कसूर पन्नो का नही। गर! वक्त साथ ना हो तो। हवा का रुख बदल ही जाता है। चलते रहो, मुस्कुराते रहो। सफर में! धूप-छावं तो होगी। गर! सफर हो साथ अपनो का तो। सफर आसां हो ही जाता है।   परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्...
रोटी
कविता, छंद

रोटी

======================== रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर सायली छन्द की कविता रोटी तुम हो छोटी मोटी पतली भूख तुम्ही मिटाती। *** कही घी चुपड़ी कही सूखी रहती तृप्ताति आत्मा माँ। *** तुम्हारे हाथों भाती गर्म रोटी जीवन सन्देश सिखलाती। *** भूख तृष्णा तुम्ही ज्वाला पेट की बुझती तुम भाति।   परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोसा, विवशता, सलाम, पसीने की बूंद,  कविताएं :- वो सूखी टहनियाँ, शिक्षा, स्वार्थ सर्वोपरि, अमावस की रात, हायकू कविताएं राष्ट्र, बेटी, सावन, आदि। प्रकाशन : भाषा सहोदरी द्वारा सांझा कहानी संकलन एवं लघुकथा संकलन सम्मान : "भाषा सहोदरी" दिल्ली द्वारा आप भी अपनी क...
सरहद
कविता

सरहद

======================== रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर सरहदों पर खड़ी, यह बर्फ की दीवार। देश का समर्पित,शहीदों का परिवार। हर क्षण-क्षण के पहरेदार यह हैं। सहते गिरते तुफानो के वार यह है । चट्टानों से अटल खड़े हैं। सैनिक सीना तान खड़े हैं। प्रेम,संवेदनाओं का समर्पण कर,चारो प्रहर डटे खड़े हैं। वतन की रक्षा की खातिर सीने पर कई वार सहे हैं। मुश्किलों को पार कर। देश की ये आन बने है। शीतल लहरों की मार यह सहते। हमको चैन की नींद ये देते। फिर भी आँखे खोल खड़े हैं। सजगता की मिसाल बने हैं। भारत का गौरव,अभिमान रहे है। सम्मान करो मातृभूमि के इन लालो का। शूरवीर जो माँ ऐ है,इनकी। सच्ची देशभक्ति का पुंज बनी है। नमन देश के उन परिवारों को। देश की खातिर बेटो की कुर्बानी देकर। चेहरे पर मुस्कान लिए है।   परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं,...
वन्दे भारत
कविता

वन्दे भारत

============================================ रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर अखण्ड भारत का सपना साकार हुआ। लाखो वीरो की कुर्बानी से। कश्मीर लहू से लाल हुआ। उन वीरो की कुर्बानी से देखो चमन बाहर हुआ। शंखनाद बज उठा भारत मे। ऐसा वीर प्रताप हुआ। सत्य सैलाब के लोकतंत्र से। कश्मीर फिर गुल,गुलशन,गुल्फाम हुआ। तिरंगे की आन,बान,शान,का। लोकतन्त्र में भारत का सम्मान हुआ। तिरंगे का गौरव महान हुआ। अखण्ड भारत का सपना साकार हुआ। परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोसा, विवशता, सलाम, पसीने की बूंद,  कविताएं :- वो सूखी टहनियाँ, शिक्षा, स्वार्थ सर्वोपरि, अमावस की रात, हायकू कविताएं...
समाज सेवा
लघुकथा

समाज सेवा

============================================ रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर सारा हॉल लोगो से भरा हुआ था। भ्रांत परिवारों की महिलाओं द्वारा समाजिक उत्सव मनाया जा रहा था।पीछे किसी प्रतिष्ठित संस्था का बेनर लगा था।पूरे हॉल में रौनक बिखरी पड़ी थी। उच्च परिवार की कुछ महिलाये स्टेज पर जमकर नाच रही थी।डोनेशन देकर बने अधिकारी लोग आगे की पंगतियो में विराजमान थे। अपनी महिला को चार दिवारी में कैद कर समाज सेवा के नाम पर भ्रांत महिलाओ के अंग प्रदर्शन की झांकी खुले आम देखी जा रही थी। अधिकारी लोगो के सामने वह महिलाये अपने आप को किसी समाजसेवी संस्था की सदस्य होने पर गर्व महसूस कर रही थी। लेकिन अधिकारियों के लिए मात्र एक मनोरंजन का माध्यम था। ओर ऐसा कार्यक्रम हर मौके पर होना चाहिए यही उनका धेय था।उसमे से एक अधिकारी ने तिरछी नजरो से पास बैठे अधिकारी की ओर देखकर कुटिल मुस्कान बिखेरी। परिचय :- नाम : वन्दना प...
पिता
कविता

पिता

============================================ रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर पिता सार हैं, सृष्टि का आधार हैं। जीवन में हर कदम पर। एक सशक्त ढ़ाल है। उनकी कल्पना बिन, जीवन सुना विरह का जाल है। पिता कर्तव्यों की खान है। पिता का छत्र महान हैं। पिता आशा है, जीवन की परिभाषा है। पिता क्रोध है, त्याग है, खामोश एहसास है। पिता का स्नेह निष्छल अपार है। शिक्षा, सम्पन्नता का भरा- पूरा द्वार हैं। पिता से सजता हर त्यौहार है। पिता आँगन की खुशी, माँ की चूड़ी, रंगों की बहार हैं। पिता तो पिता हैं, घर के पालनहार हैं। पिता सुखों की, ममता की, प्रेम की बहार है। पिता को स्नेह वंदन बार-बार हैं। परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती श...
सिर्फ हम
लघुकथा

सिर्फ हम

============================================ रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर आज उमा जीवन के अंतिम पड़ाव के साथ आश्रम में अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। कल ही उसका चश्मा टूट चुका था। दो दिनों से अपनी समस्या को आश्रम संचालक को बयां कर चुकी थी। किसी के पास इतना समय नही था। कि उसकी समस्या का समाधान करें। कमजोर आँखों से वह उठी। धुंधलाई नजरो से अपने जर्जर शरीर को संभालते हुए बाहर आई। अभी कुमुद ने देखा की बिना चश्मे से उमा को देखने मे परेशानी हो रही हैं, तभी कुमुद ने आगे हाथ बढ़कर उसको सहारा दिया। ओर मुस्कुराती हुई "बोली उमा अब  यहाँ किसकी आस रखती हो  हमारा यहाँ कोई नही है, जब तक हम यहाँ है, हमे ही एक दूसरे का साथ  देना होगा। कहकर अपने को उम्र से कम समझकर उसका हाथ थाम दोनों बिना दाँतो के एक प्यारा सा ठहाका लगा उठी। दोनों को मुस्कुराहट बहुत ही प्यारी ओर सलोनी लग रही थी। परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर...
वार्तालाप
लघुकथा

वार्तालाप

============================================ रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर सड़क की पगडंडियों से गुजरता अनुपम गर्मी की तपिश से परेशान हो रहा था। सरकारी स्कूल की नौकरी ऐसी थी। कि गाँव की पाठशाला का भार उसी के जिम्मे आ गया था। गर्मी में स्कूल की छुट्टियां होने के बावजूद भी कोई ना कोई काम से उसे जाना ही पड़ता। आज उसे नए नियमों से स्कूल की भर्तियों को लेकर प्रारूप तैयार करना था। इसी सिलसिले को दिमाग में रखते हुए, वह धूल भरे गुबार से गुजर रहा था। तभी जोरो से आँधी शुरू हो गई। वह सिर छुपाने के लिए जगह की तलाश कर रहा था। तभी उसे वहाँ एक सूखा सा बंजर पेड़ दिखाई दिया। वह उसी पेड़ के नीचे थोड़ी देर के लिए रुका तो ऊपर से उस पर कुछ बूंदे पानी की गिरी। उसने देखा आसमान तो साफ है। फिर यह पानी की बूंद कहां से गिरी। उसने ऊपर नजर उठा कर देखा। तो उसे कुछ भी दिखाई नहीं दिया। वह आँधी के रुकने का इंतजार कर रहा था। ...
आज का सच
संस्कार

आज का सच

बाल साहित्य : आज का सच रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर ============================================ आधुनिकता की दौड़ में भाग रहाआज का बचपन मॉल, गेमज़ोन से प्रभावित आज के बच्चे उन्हें नैतिक मूल्यों की कोई बात समझ नहीं आती। दस साल का कार्तिक भी हर रविवार को पापा के साथ बाहर घूमने जंक फूड खाने कि जीत करता। बेचारा इकलौता है,  तो हर संडे उसका प्रॉमिस मम्मी-पापा खुशी-खुशी करते। गर्मी की छुट्टियों में दादा जी जब घर आए तो उन्होंने देखा की कार्तिक थोड़ा होमवर्क करने के बाद सारा टाइम मोबाइल पर गेम खेलता रहता। मम्मी- पापा ऑफिस चले जाते। दादा जी से थोड़ी बहुत बातचीत की फिर वह मोबाइल में लग जाता। शाम को जब कार्तिक की मम्मी आई तो दादा जी ने पूछ लिया, 'बेटी क्या कार्तिक बाहर खेलने नहीं जाता, सारा समय घर पर ही कम्प्यूटर पर गेम खेलता रहता है। कार्तिक की माँ ने जवाब दिया, "बाहर शाम तक धूप भी तेज होती है। और य...