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Tag: लज्जा राम राघव “तरुण”

रे माधो
कविता

रे माधो

लज्जा राम राघव "तरुण" बल्लबगढ, फरीदाबाद ******************** रे माधो! सुख है दुख के आगे।.. मन की तनिक लगाम खींच, फिर सोई आत्मा जागे। रे माधो सुख है दुख के आगे।.. मन तुरंग पर चढ रावण ने सीता जाय चुराई। हनुमत संग सुग्रीव लिए श्री राम ने करी चढ़ाई। देख सामने मौत दुष्ट को नहीं समझ में आई। फिर राम लखन ने जा लंका की ईंट से ईंट बजाई। लंका भस्म हुई सारी सब छोड़ निशाचर भागे। रे माधो! सुख है दुख के आगे।.. बाली ने कर घात भ्रात से पाप किया था भारा। भाई की घरवाली छीनी नाम सुमति था तारा। गदा युद्ध प्रवीण बालि सुग्रीव बिचारा हारा। राम सहायक बने तुरत पापी को जाय संहारा। बड़े बड़े बलवान सूरमा काल के गाल समागे। रे माधो! सुख है दुख के आगे।. भक्ति में हो लीन 'ध्रुव' तारा बन नभ में छाये। शबरी की भक्ति वश झूठे बेर राम ने खाए। भागीरथ तप घोर किया गंगा धरती पर लाये। दानव सुत प्रह्लाद बचाने भू पर विष्णु आये। "विष...
विषमताओं की लकीरें
गीत

विषमताओं की लकीरें

लज्जा राम राघव "तरुण" बल्लबगढ, फरीदाबाद ******************** विषमताओं की लकीरें, घेर मेरा मग खड़ी है। राह कैसे देख पाऊं, तिमिर की रेखा बड़ी है। वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।......! मेघ भी देता सुकूँ कब, गर्दिशों का रेत फैला। पाक जो दामन हमारा, वक्त कर पाया न मैला। लुभाती मुझ को रही, सुगंधि तेरी देह की थी......! वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।......! पेड़, जंगल सब कटे जो, साक्ष्य थे दीवानगी के। पशु, पक्षी, गिरि, गह्वर, आराध्य थे रवानगी के। मरू फैला दूर तक इक आस रिमझिम मेंह की थी।...! वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।...! काल का ये फेर सारा, काल की सारी खुदाई। मिलन होकर भी लिखी थी, भाग्य में उनसे जुदाई। लुटा कर सब कुछ बचा, ये फुहारें स्नेह की थी।.....! वो समय बीता कभी का, छाँह तेरे नेह की थी।.....! .   परिचय :-  लज्जा राम राघव "तरुण" जन्म:- २ मार्च १९५...